हरजिंदर
चुनाव जब आता है तो ध्रुवीकरण उसके बहुत पहले ही शुरू हो जाता है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब एक महीने का समय भी नहीं बचा है लेकिन वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण एक साल से भी पहले से हो रहा है. शुरूआत हिजाब के मुद्दे से हुई थी. फिर टीपू सुल्तान आ गए और आजकल सावरकर बनाम टीपू सुल्तान को लेकर तू-तू मैं-मैं चल रही है. इसी के साथ इन दिनों पीएफआई और एसडीपीआई जैसे प्रतिबंधित संगठनों को लेकर भी बयानबाजी बढ़ गई है.
कुछ समय पहले राज्य सरकार ने जब मुसलमानों को मिलने वाले चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म किया तो यह सबको साफ समझ में आ गया था कि असल मामला सामाजिक न्याय का नहीं, सांप्रदायिक धु्रवीकरण का है. सरकार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट में गिर गया.
टेलीविजन की ब्रेकिंग न्यूज़ की शैली में हम कह सकते हैं कि सरकार को मुंह की खानी पड़ी. लेकिन शायद ऐसा नहीं हुआ. वह फैसला दरअसल आरक्षण खत्म करने का था ही नहीं. वह सिर्फ एक संदेश देने का था. वह संदेश जहां पहंुचना था वहां पहंुच गया. सुप्रीम कोर्ट मे क्या हुआ इससे बहुत ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है.
ध्रुवीकरण हमेशा ही दुधारी तलवार होता है. अक्सर वह मतदाताओं के एक वर्ग को विरोधी खेमे की ओर भी धकेल देता है. यही वजह है कि कर्नाटक में भाजपा और उसकी सरकार ने जो कुछ भी किया है उसे लेकर कांग्रेस काफी खुश नजर आ रही है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता जी परमेश्वर ने तो प्रदेश के मुसलमानों के नाम एक अपील भी जारी की है कि वे अपनी सुरक्षा के लिए कांग्रेस को वोट दें.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के सबसे अनुभवी नेता येदीयुरप्पा इस ध्रुवीकरण से पैदा होने वाले खतरे को समझ रहे हैं इसलिए उन्होंने ऐसे मुद्दों को न उठाने की अपील भी की है.दूसरी तरफ कांग्रेस की उम्मीदों को पंचर करने के लिए असद्दुदीन ओवेसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन भी मैदान में उतर चुकी है.
इतना ही नहीं उसने जनता दल सेकुलर से चुनावी गंठजोड़ भी कर लिया है. इस गंठजोड़ ने दोनों ही दलों के लिए कईं परेशानियां भी खड़ी की हैं.कांग्रेस की समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है. पार्टी ने जिन पहले 166 उम्मीदवारों की सूची जारी की है उनमें सिर्फ 10 मुलमानों को ही टिकट दिया गया है. इसे लेकर राज्य के कुछ मुस्लिम नेता कांग्रेस का विरोध भी कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है.
राज्य में विधानसभा की 70 ऐसी सीटें बताई जाती हैं जिनके नतीजों को मुस्लिम मतदाता प्रभावित करते हैं। इनमें से 40 सीटें ऐसी हैं जहां उनके वोट अक्सर निर्णायक साबित होते हैं. यह चुनावी गणित बताता है कि राजनीतिक दलों को ध्रुवीकरण की जरूरत क्यों महसूस हो रही है.
तमाम दूसरी परेशानियों के साथ ही इस राजनीति की एक बड़ी समस्या यह होती है कि इसमें जनता से जुड़े असली मुद्दे नजरंदाज हो जाते हैं. यही कर्नाटक में हो रहा है. कुछ समय पहले तक यह कहा जा रहा था कि राज्य में चुनाव भ्रष्टाचार के मसले पर होगा, लेकिन अब कोई भ्रष्टाचार की बात नहीं कर रहा.
कर्नाटक में फिर एक बार यही साबित करने की कोशिश हो रही है कि भ्रष्टाचार करके भी आप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये चुनाव जीत सकते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )