ढाई - चाल :  राजनीति कभी इतिहास से सबक नहीं लेती

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 10-04-2023
ढाई - चाल :  राजनीति कभी इतिहास से सबक नहीं लेती
ढाई - चाल :  राजनीति कभी इतिहास से सबक नहीं लेती

 

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कुछ ऐसी धारणाएं हैं जो लगातार गलत साबित होती रहती हैं, लेकिन फिर भी राजनीति उनका पल्लू नहीं छोड़ती. ऐसी ही एक अवधारणा इतिहास को लेकर है. कहा जाता है कि अगर आप भविष्य पर कब्जा जमाना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है कि आप पहले इतिहास पर कब्जा जमाए.

इस कोशिश में स्कूली बच्चों के सामने इतिहास को अपने ढंग से परोसने का यह काम समय-समय पर वामपंथियों ने भी किया है, कांग्रेसियों ने भी किया है .अब जो देश की सत्ता चला रहे हैं वे भी कर रहे हैं.पिछले कुछ दिनों से एनसीईआरटी नेशनल कौंसिल आॅफ एजूकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग का नया पाठ्यक्रम चर्चा में है.
 
खबरों में बताया जा रहा है कि कैसे 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब से महात्मा गांधी और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे के बारे में कुछ वाक्य हटा दिए गए. मुगल काल के बारे में जो पढ़ाया जा रहा था उसमें से बहुत कुछ हटा दिया गया और काफी फेर-बदल भी कर दिया गया.
 
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इस सब पर जो राजनीतिक प्रतिक्रिया और जो हंगामा होना चाहिए था, वह जारी है. मुख्यतौर पर इस बदलाव को लेकर दो बातें कही जा रही हैं. एक तो यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बच्चों के दिमाग में अपनी विचारधारा ठूंसने के लिए इतिहास की किताबों में ये बदलाव कर रहा है.
 
दूसरी यह भी बात भी कही जा रही है कि इतिहास से भारतीय मुसलमानों के योगदान को मिटाया जा रहा है. हालांकि सरकार की तरफ से इन बदलावों को लेकर सफाई भी दी गई है. फिर भी ये आरोप अपनी जगह हैं.
बच्चों को कैसा और कैसे इतिहास पढ़ाया जाए,
 
इसे लेकर दुनिया भर में काफी विमर्श हुआ है. अभी भी हो रहा है. यह कहा जाता है कि इतिहास की किताबें या इतिहास की पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों से संवाद करे. इनमें इतिहास को लेकर एक दिलचस्पी और जिज्ञासा पैदा करे.
 
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हमारे यहां इन सबकी चिंता किसी को नहीं है. इतिहास ज्यादातर रूखे-सूखे और नीरस ढंग से ही पढ़ाया जाता है. इसी के साथ बच्चों को यह संदेश भी दे दिया जाता है कि भविष्य में उनका जितना भला विज्ञान और वाणिज्य जैसे विषय कर सकेंगे वैसा भला इतिहास से नहीं होगा. नतीजा यह होता है कि कक्षाओं में अव्वल आने वाले बच्चे आगे चलकर इतिहास को प्रमुख विषय के रूप में नहीं चुनते.
 
भारत में पाठ्यक्रम तैयार करने वालों की सारी दिलचस्पी इस बात में होती है कि कैसे अपनी विचारधारा को किताबों में ठूंसा जाए. और बच्चों का समाजीकरण अपनी विचारधारा के आस-पास किया जाए. इसका उन्हें कितना फायदा मिलता है यह हमेशा ही संदेह के घेरे में रहा है.
 
हमारी जो शिक्षा और परीक्षा पद्धति है उसमें बच्चे सिर्फ इन किताबों को इम्तिहान पास करने के गरज से रट भर लेते हैं. इसके मूल्यों को वे किस हद तक ग्रहण करते हैं इसमें हमेशा ही शक रहता है.यह बात सिद्धांत रूप में जरूर कही जाती है कि भविष्य पर कब्जा करने के लिए इतिहास पर कब्जा करो, लेकिन हकीकत शायद ऐसी नहीं होती.
 
अगर ऐसा ही होता तो वे वामपंथी इस देश पर लंबे समय तक शासन करते जिनके इतिहासकारों ने अतीत की अपने ढंग से व्याख्या करने और फिर उसे स्कूली किताबों तक पहुचाने की लंबी कोशिश की थीं.बावजूद इस सच के स्कूली किताबों में बदलाव की कोशिशें जारी रहेंगी. हमारी राजनीति की यही खासियत है कि वह कभी इतिहास से सबक नहीं लेती. 
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )