हरजिंदर
सड़कें, बेशक चलने के लिए ही होती हैं.जरूरी यही है कि इन रास्तों में बाधाएं न हों.लेकिन भारत में सड़कों पर इतना ही नहीं होता.वहां तरह-तरह के धार्मिक जुलूस और शोभा यात्राएं निकलती हैं.राजनीतिक दल कभी रोड शो करते हैं तो कभी विरोध प्रदर्शन.इन्हीं सड़कों के चैराहों और नुक्कड़ों पर छोटी-मोटी चुनावी सभाएं भी होती हैं.
ये सब न हो तो यातायात हमेशा ज्यादा अच्छे ढंग से और सुगमता से चले.लेकिन क्या इस सबको बंद किया जा सकता है ?
लेकिन देश मेें कुछ जगह यह सोच दिख रही है कि यह सब बंद किया जा सकता है.पिछले हफ्तेे ईद के मौके पर कानपुर और अलीगढ़ में ऐसे लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई जो ईदगाह में जगह कम पड़ जाने पर उसके बाहर सड़क पर नमाज अता कर रहे थे.
सड़क पर नमाज अता करने की ऐसी खबरें और जगहों से भी आई हैं लेकिन मामले सिर्फ इन्हीं दो जगहों पर दर्ज किए गए.यह ठीक है कि सड़कों पर यातायात ठीक से चले इसे सुनिश्चित करना प्रशासन की जिम्मेदारी है.
लेकिन किसी त्योहार के मौके पर सभी लोगों को इबादत के लिए जगह मिल सके यह सुनिश्चित करना भी किसी की तो जिम्मेदारी होनी चाहिए.और अगर लोगों की संख्या इंतजाम से ज्यादा हो जाए तो क्या किया जाए यह भी पहले से ही तय हो जाना चाहिए.ऐसा नहीं है कि ईद के मौके पर पहली बार इतनी भीड़ उमड़ी थी.सबसे बड़ी बात यह है कि त्योहार खुशी का मौका होता है,
ज्यादा से ज्यादा कोशिश यह होनी चाहिए कि ऐसे मौके पर किसी तरह की फौजदारी की नौबत न ही आए.पिछले कुछ समय में ऐसे हंगामें बढ़ गए हैं और खबरों में इसे लेकर हो-हल्ला भी कुछ ज्यादा ही होने लगा है.
हालांकि आम लोग ऐसी चीजों को लेकर लगातार उदारता भी दिखा रहे हैं.याद कीजिए कुछ साल पहले गुड़गांव में सार्वजनिक जगहों पर नमाज अता करने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई थी.तब एक स्थानीय गुरुद्वारे ने नमाज के लिए अपने परिसर के दरवाजे खोल दिए थे.
गुड़गांव इसका कोई अकेला उदाहरण नहीं है.पिछले साल गुजरात के दलवाना गांव में भी ईद के मौके पर नमाज के लिए स्थानीय मंदिर को खोल दिया गया था.इसे पहले इस ऐतिहासिक मंदिर में रोजा इफ्तार का आयोजन भी किया गया था.
पिछले साल ही मुंबई के कोलाबा में गणपति मंडल ने इसकी पूरा इंतजाम किया था कि नमाजियों को कोई दिक्कत न आए.इसके थोड़ा पहले ऐसी ही खबर बुलंदशहर के जोनपुर गांव से भी आई थी.
कुछ साल पहले तक ईद के मौके पर ऐसी खबरें आती थीं तो किसी को कोई हैरत नहीं होती थी.हां, ऐसी खबरें सद्भाव को लेकर लोगों को आश्वस्त करने का काम जरूरी करती थीं.इस बार ईद पर ऐसी खबरें नहीं आईं.
इस बार ईद पर उन कुछ लोगों के खिलाफ मामले दर्ज होने की खबरें आ रही हैं जो किसी भी सूरत में अपने त्योहार को पूरी धार्मिक परंपरा से मनाना चाहते थे.प्रशासन ने जा कुछ किया उसमें भले ही कानूनी रूप से कुछ गलत न हो लेकिन उसमें आम लोगों के प्रति हमदर्दी की कमीं साफ तौर पर दिखाई देती है.
वैसे यह कोई मुश्किल मामला नहीं है.ऐसी स्थितियों से बड़ी आसानी से बचा जा सकता है.लेकिन आजकल इसकी कोशिशें भी बंद हो गई हैं और मामला किसी न किसी तरह से तनाव की हद तक पहंुच जाता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )