प्रमोद जोशी
पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत तीनों देश, अब आम-चुनावों की ओर बढ़ रहे हैं. इनमें सबसे पहले होगा पाकिस्तान, जो करीब पंद्रह महीने की राजनीतिक गहमा-गहमी के बाद चुनावी रंग में रंगने वाला है. शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में काम कर रही वर्तमान सरकार अब किसी भी वक्त नेशनल असेंबली को भंग करने की घोषणा करने वाली है. वे कह चुके हैं कि सरकार नेशनल असेंबली का कार्यकाल 12 अगस्त को खत्म होने के पहले हट जाएगी.
इस घोषणा के बावजूद चुनाव के समय को लेकर असमंजस हैं. एक और बड़ा असमंजस इमरान खान और उनकी पार्टी तहरीके इंसाफ को लेकर है. उसे चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने दिया जाएगा या नहीं. चुनाव आयोग का कहना है कि मामला अदालत में है और वहीं से निर्देश आएगा.
इमरान खान के संवाददाता सम्मेलन की खबरों के प्रकाशन पर रोक लगा दी गई है. इमरान खान पर इतने केस चला दिए गए हैं कि वे उनमें उलझ गए हैं, फिर भी उनकी राजनीतिक शक्ति बनी हुई है. उनकी पार्टी के दर्जनों नेता उन्हें छोड़कर चले गए हैं. इसके पीछे सेना का दबाव बताया जाता है.
हालांकि उनकी पार्टी तकरीबन तोड़ दी गई है, फिर भी यह साफ है कि अवाम के बीच वे लोकप्रिय हैं. अपनी बदहाली के लिए इमरान खान खुद भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्होंने अपने आप को खुद-मुख्तार मान लिया था, जबकि वे सेना की कठपुतली मात्र थे.
महंगाई और कंगाली
इमरान को हटाने के बाद सत्ता में आई शहबाज शरीफ सरकार खुद महंगाई और कंगाली की हालत से जूझ रही है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से पाकिस्तान को तीन अरब डॉलर का कर्ज मिल गया है. इसके अलावा कुछ मित्र देशों ने उसकी मदद की है, जिससे इस साल विदेशी कर्जों के डिफॉल्ट का खतरा टल गया है.
आने वाले समय में सरकार जो भी होगी, उसे आर्थिक-संकट से जूझना होगा. वर्तमान सरकार चाहती है कि नई व्यवस्था आए, जो कम से कम वैधानिक हो और जिसे पाँच साल तक काम करने की भरोसा हो. इसलिए आगामी चुनावों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.
पीडीएम में शामिल दलों को अब यह भरोसा हो गया है कि इमरान खान की राजनीतिक ताकत खत्म करने की योजना काफी हद तक सफल हो चुकी है. उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) बिखराव का शिकार हो गई है. पीडीएम में शामिल दलों के लिए वे बड़ी चुनौती नहीं रह गए हैं. संभव है कि पीडीएम से जुड़ी पार्टियाँ चुनाव में अलग-अलग लड़ें.
संसद की विदाई
बहरहाल नेशनल असेंबली का विदाई सत्र पिछले गुरुवार से शुरू हो गया है और सांसद अपने-अपने विदाई वक्तव्य दे रहे हैं. इस हफ्ते कुछ बड़े काम और होंगे. चुनाव सुधार विधेयक-2017में बदलाव जाएगा. चुनाव सुधारों को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं, जो संसद की मंजूरी के बाद ही लागू हो सकते हैं.
इनमें सबसे महत्वपूर्ण बात है अंतरिम-सरकार को अधिकार देना. अभी तक चुनाव के पहले बनने वाली अंतरिम सरकार के पास कोई अधिकार नहीं होता था, पर अब उसे अधिकार-संपन्न करने का प्रस्ताव है.
बीच में एक खबर आई थी कि इस बात पर सहमति बन गई है कि अगले 8अगस्त को संसद भंग कर दी जाएगी, लेकिन मीडिया में यह खबर आने के फौरन बाद सूचना मंत्री मरियम औरंगजेब ने इसका खंडन कर दिया. उन्होंने कहा कि नेशनल असेंबली को भंग करने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.
सेना की भूमिका
पर्यवेक्षक मानते हैं कि चुनाव की तारीखें तय करने से लेकर भविष्य की सरकार बनाने तक के फैसले में सेना की भूमिका भी होगी, जो दिखाई नहीं पड़ेगी. देश में कम से कम पिछले तीन दशक से सेना का प्रत्यक्ष या परोक्ष शासन है, जो अब भी चलता रहेगा. पाकिस्तान का लोकतंत्र ‘गाइडेड डेमोक्रेसी’ है, जैसा दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में है.
2018में इमरान खान का आगमन सेना की सहायता से हुआ था और पिछले साल अप्रेल में उनकी विदाई भी सेना की सहायता से हुई थी. मई के महीने में उन्हें कुछ समय के लिए गिरफ्तार भी किया गया था, जिसके विरोध में देशभर में व्यापक हिंसा हुई थी. अब देस के सुप्रीम कोर्ट की असहमति के बावजूद, इन प्रदर्शनकारियों पर सैनिक अदालतों में मुकदमे चलाए जा रहे हैं.
इस साल अप्रेल में देश के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दो सूबों में मई के महीने में चुनाव कराए जाएं, क्योंकि वहाँ के असेंबलियाँ भंग कर दी गई थीं, पर सरकार ने चुनाव नहीं कराए.
अक्तूबर या नवंबर
चुनाव आयोग ने अक्तूबर या नवंबर में चुनाव कराने की तैयारियाँ कर ली हैं. अब बात केवल इतनी है कि नेशनल असेंबली और दो प्रांतीय असेंबलियों को 12अगस्त को उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भंग नहीं किया गया तो चुनाव 11 अक्तूबर से पहले होंगे. पहले कर दिया तो नवंबर में. फिलहाल चुनाव आयोग पुराने परिसीमन के आधार पर ही चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है.
देश के संविधान के अनुसार यदि संसद को समय से पहले भंग किया गया, तो 90 दिन के भीतर चुनाव होंगे और यदि कार्यकाल पूरा किया तो 60 दिन के भीतर. इस दौरान एक कार्यवाहक सरकार काम देखेगी. अभी असमंजस इस बात को लेकर भी है कि चुनाव की देखरेख सेना करेगी या नहीं.
कानून मंत्री आजम नजीर तारड़ ने कहा है कि नेशनल असेंबली के कार्यकाल में कोई विस्तार नहीं होगा. यह अपना कार्यकाल पूरा कर रही है. अलबत्ता हमने उसे समय से पहले भंग करने का विकल्प भी खुला रखा है.
कुछ असमंजस
इन घोषणाओं के बावजूद सत्तारूढ़ गठबंधन पीडीएम में चुनाव को लेकर कुछ मतभेद हैं, इस वजह से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि कब होंगे. यह असमंजस देश की डिजिटल जनगणना को लेकर है. इस साल हुई डिजिटल जनगणना के आधार पर हुए परिसीमन के आधार पर या पुराने परिसीमन पर ?
जमीयत-उल्मा-ए-इस्लाम (फज़्ल) के चीफ मौलाना फज़लुर रहमान को लगता है कि यह मसला चुनाव में देरी करेगा. उनका यह भी कहना है कि अंतरिम सरकार चुनाव की प्रक्रिया तय करेगी. गठबंधन की एक और पार्टी एमक्यूएम-पी ने कहा है कि चुनाव नवीनतम जनगणना के आधार पर होने चाहिए.
इसके पहले कई मंत्रियों ने कहा है कि अक्तूबर या नवंबर में चुनाव होंगे और वे नई जनगणना के आधार पर नहीं होंगे. शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में पीपीपी के नेता करीम कुंडी ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चय से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है कि समय से चुनाव हो जाएं.
वे पुराने परिसीमन के आधार पर ही चुनाव के समर्थक हैं. साथ ही वे चाहते हैं कि सूबाई असेंबलियों का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही चुनाव होना चाहिए. यानी उसके 60दिन बाद. साथ ही उन्होंने कहा कि यदि गठबंधन के सहयोगी चाहते हैं कि नेशनल असेंबली को समय से पहले भंग कर देना चाहिए, तो हम इसके लिए भी तैयार हैं.
नवाज़ की वापसी ?
असमंजस इस बात पर भी है कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-नून) के सुप्रीमो नवाज शरीफ की वापसी होगी या नहीं. वे जून के अंतिम सप्ताह में यूएई में थे, जहाँ पूर्व राष्ट्रपति और पीपीपी के नेता आसिफ अली जरदारी के साथ उनकी बातचीत हुई थी.
इस बैठक में दोनों ने चुनाव-रणनीति और भविष्य की व्यवस्था पर विचार किया था. दोनों दल सत्तारूढ़ गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) में भागीदार हैं. वे मिलकर चुनाव लड़ेंगे या अलग-अलग अभी यह स्पष्ट नहीं है.
नवाज शरीफ के अमीरात आने के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि वे पाकिस्तान लौट सकते हैं, पर ऐसा अभी संभव नहीं लगता. उन्हें वापस आना होता, तो मुलाकात यूएई में क्यों होती? वे इलाज के नाम पर 2019से लंदन में ही रह रहे हैं.
पिछले चुनाव
पिछली बार पाकिस्तान में 25 जुलाई, 2018को चुनाव हुए थे. राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल असेंबली की 272 सीटों के लिए चुनाव हुए. उसके साथ ही चार राज्यों की असेंबलियों के चुनाव भी हुए. नेशनल असेंबली के चुनाव में तहरीके पाकिस्तान सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई थी.
सूबाई असेंबलियों में खैबर पख्तूनख्वा में तहरीके इंसाफ, सिंध में पीपीपी और बलोचिस्तान में नव-गठित बलोचिस्तान अवामी पार्टी को बहुमत प्राप्त हा. पंजाब में त्रिशंकु की स्थिति रही. अलबत्ता पीएमएल-नून सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई. बाद में कुछ निर्दलीय सदस्यों ने तहरीके इंसाफ का दामन थामा और उसकी सरकार बन गई.
कुल सीटें
नेशनल असेंबली में 342 सीटें होती हैं. इनमें से 272का सीधे चुनाव होता है. इन जनरल सीटों के अलावा 10 सीटें गैर-मुस्लिम सदस्यों के लिए होती हैं. 60 सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं. सामान्य सीटें जीतने वाली पार्टियाँ जितनी सीटें जीतती हैं, उसके अनुपात में महिला सीटें उन्हें आबंटित की जाती हैं.
इमरान खान सरकार ने अपने दौर में एक बिल पास किया था कि भविष्य के चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के मार्फत होंगे. उस समय विरोधी दलों ने इसका विरोध किया और कहा कि ईवीएम की मदद से पीटीआई को चुनाव जीतने में आसानी होगी. अप्रैल 2022में सत्ता परिवर्तन के बाद 11पार्टियों के पीडीएम की सरकार बनी और उन्होंने ईवीएम के कानून को रद्द कर दिया. इसलिए इसबार के चुनाव बैलट पेपर पर ही होंगे.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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