प्रमोद जोशी
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एकबार फिर से खबरों में हैं. न्यूयॉर्क ग्रैंड ज्यूरी ने गत गुरुवार 30मार्च को उनके 2016के राष्ट्रपति अभियान के दौरान एक पोर्न स्टार को पैसे देने के आरोप में आपराधिक केस चलाने को मंजूरी दे दी है. न्यूयॉर्क की ग्रैंड ज्यूरी ने ट्रंप पर अभियोग चलाने को स्वीकृति दे दी. ऐसे अपराध के लिए, जिनमें एक साल या उससे अधिक की कैद हो सकती है.
अमेरिका के इतिहास में आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले वे पहले पूर्व राष्ट्रपति बन गए हैं. कहा जा रहा है कि यदि वे मंगलवार को अदालत के सामने पेश नहीं हुए, तो उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है. लगता नहीं कि इसकी नौबत आएगी. गिरफ्तारी हो या नहीं हो, सजा हो या नहीं हो, लगता है कि ट्रंप इस मौके का फायदा उठाने को तैयार हैं.
राजनीतिक साज़िश
वे इस मुकदमे को अपने खिलाफ बड़ी राजनीतिक साजिश बता रहे हैं. मैनहटन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के दफ्तर का कहना है कि ट्रंप से समर्पण के सिलसिले में बात की गई है. खबरें हैं कि वे अपने निजी विमान में बैठकर न्यूयॉर्क जाएंगे. जब आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, तब तक वे न्यूयॉर्क पहुँच चुके होंगे.
ट्रंप ने कुछ समय पहले ही कह दिया था कि उनपर मुकदमा चलेगा और वे राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव के लिए लगातार धन-संग्रह कर रहे हैं. कोई दूसरा राजनेता होता, तो इससे उसका करियर तबाह हो जाता, पर अमेरिकी राजनीति और समाज के ध्रुवीकरण को देखते हुए लगता है कि ट्रंप इसे अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करेंगे.
चुनाव की तैयारी
वे सज-धज के साथ मुकदमे में भाग लेने के लिए आ रहे हैं. आरोप सिद्ध होने या आरोप लगने के बाद भी अगर वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ना चाहेंगे तो लड़ सकते हैं. अमेरिकी संविधान के मुताबिक़ राष्ट्रपति होने के लिए उम्मीदवार का आपराधिक रिकॉर्ड साफ़ होना ज़रूरी नहीं है. व्यक्ति जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ सकता है.
प्रताड़ना के आरोप के कारण पार्टी में ट्रंप की स्थिति बेहतर हो जाती है. 2020के चुनाव के समय ही रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप विरोधी तबका भर आया था, पर उनके समर्थक भी कम नहीं हैं. पार्टी में रॉन डेसेंटिस उनके मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर कर आए हैं.
पार्टी के कुछ बड़े नेता ट्रंप की नाटकबाज़ी को पसंद नहीं करते हैं, पर जनता के बीच उनकी पैठ है. सवाल है कि सब कुछ होने के बाद भी क्या राष्ट्रपति पद के लिए वे रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बनने में सफल होंगे?
धन का भुगतान
हालांकि आरोपों को सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किया गया है, पर मामला 2016में पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स नाम की महिला को (जिनका असली नाम है स्टेफनी क्लिफर्ड), एक लाख तीस हजार डॉलर के भुगतान की जांच से जुड़ा है.
आरोप सीलबंद हैं और मंगलवार को औपचारिक रूप से अदालत में उन्हें सुनाया जाएगा. 2016में पोर्न स्टार ने मीडिया के सामने कहा था कि 2006में ट्रंप और उनके बीच अफेयर था. इसके बाद ट्रंप की टीम ने स्टॉर्मी को मुँह बंद रखने के लिए एक लाख तीस हजार डॉलर का भुगतान किया.
स्टॉर्मी को पैसों का भुगतान गैरकानूनी नहीं था, लेकिन जिस तरीके से भुगतान हुआ, उसे गैरकानूनी माना गया. ट्रंप के तत्कालीन वकील माइकल कोहेन ने गुपचुप तरीके से स्टॉर्मी को दी थी. जबकि ऐसे दिखाया गया जैसे ट्रंप की एक कंपनी ने भुगतान एक वकील को किया है. इसे बाद में चुनावी प्रचार के खर्च में दिखा दिया गया था.
6 जनवरी का कांड
इसी लेनदेन को अपराध माना गया है, जिसकी जांच ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही शुरू हो गई थी. इस मुकदमे को अमेरिका में चुनाव कानूनों के खिलाफ करीब बीस मामले तैयार हो चुके हैं. उनके खिलाफ सबसे बड़ा मामला है 6जनवरी, 2021को अमेरिकी संसद पर हुए हमले का केस. क्या इस केस के कारण उन्हें भविष्य में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है?
इसके अलावा 2020 के चुनाव से जुड़ा एक और केस है. फुल्टन काउंटी, जॉर्जिया में चुनाव परिणामों की घोषणा में हस्तक्षेप का मामला, जो काफी गंभीर है. फुल्टन काउंटी में भी एक ग्रैंड ज्यूरी उनके मामले की पड़ताल कर रही है. मामला 11,780 वोटों का है, जिनकी वजह से ट्रंप की बहुत मामूली अंतर से वहाँ हार हो गई थी.
सामाजिक ध्रुवीकरण
अमेरिका में अतीत में राष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति आरोपों के घेरे में आए भी, तो किसी न किसी तरीके से बच गए. इस समय बात केवल न्याय की नहीं राजनीति की है. अब महत्वपूर्ण यह नहीं है कि ट्रंप ने गलती की है या नहीं. करीब-करीब आधा देश चाहता है कि उन्हें सजा दी जाए. आधा देश मानता है कि ट्रंप को प्रताड़ित किया जा रहा है. यह आधा देश मानने को तैयार नहीं कि ट्रंप के साथ न्याय होगा.
ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के पीछे परंपरावादी अमेरिका है. कोई और मौका होता, तो वे ट्रंप को ऐसे अपराध के लिए माफ नहीं करते, पर इस वक्त वे 2020की हार से कुंठित हैं. तकरीबन ऐसे ही मामले को लेकर उन्होंने बिल क्लिंटन के खिलाफ महाभियोग का समर्थन किया था. और उस समय डेमोक्रेटिक पार्टी के जो समर्थक क्लिंटन का बचाव कर रहे थे, वे इस समय मान रहे हैं कि ट्रंप के खिलाफ मामला बनता है.
कानूनी स्थिति
मैनहटन की अदालत में कसौटी पर नैतिकता, आचार-व्यवहार और पाखंड से जुड़े सवाल नहीं हैं, बल्कि यह है कि एक महिला को किया गया एक लाख तीस हजार डॉलर का भुगतान चुनाव की आचार-संहिता का उल्लंघन था या नहीं. अमेरिका में चुनाव के लिए धन-संग्रह की व्यवस्था बहुत उदार है और उससे जुड़े नियमन बहुत कठोर नहीं हैं, इसीलिए देखना होगा कि अदालत का रुख अब क्या होगा.
अमेरिका की अदालत से यह उम्मीद न करें कि वह अपने फैसले को इस आधार पर तय करेगी कि अभियुक्त का रुतबा क्या है और इस मसले पर जनता की राय क्या है. बहरहाल ट्रंप के पक्ष और विरोध की दलीलों पर गौर करें. उनके पुराने वकील माइकल गोहेन साहब अपनी गलती मान चुके हैं कि उन्होंने चुनाव-अभियान से जुड़े वित्तीय-नियमों का उल्लंघन किया है. वे यह भी मान चुके हैं कि उन्होंने संसद के सामने झूठ बोला.
तब क्या वकील सारी गलती वकील की मानी जाएगी? इस रकम को चुनाव-प्रचार के भुगतान की रकम बताना अपराध है. फिर भी सब कुछ जज पर निर्भर करेगा कि वे इस मामले को किस तरह से देखते हैं. चुनाव-प्रचार के लिए धन-संग्रह संघीय-कानून के दायरे में आता है और लेनदेन का विवरण राज्य-कानून के दायरे में.
दोनों को किस तरह जोड़ा जाएगा? फिर भी आम जनता के मन में इस केस को लेकर दो तरह की बातें हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हें बेवजह फँसाया जा रहा है.
नई नज़ीर
दुनिया के अनेक देशों में पूर्व राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों पर मुकदमे चले हैं और उन्हें सजाएं भी हुई हैं, पर अमेरिका का राष्ट्रपति अभी तक सबसे अलग माना जाता रहा है. इटली के सिल्वियो बर्लुस्कोनी और फ्रांस के निकोलस सरकोज़ी हाल की घटनाएं हैं. सिद्धांत यह है कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भी आखिर सामान्य नागरिक है.
पिछले एक दशक में दक्षिण कोरिया के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों और दो पूर्व राष्ट्रपतियों को सजाएं हुई हैं. निकोलस सरकोज़ी के अलावा फ्रांस के पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा फिलन को सज़ा हुई है. अमेरिका में अभी तक किसी पूर्व राष्ट्रपति को सजा नहीं हुई है. वॉटरगेट कांड के बावजूद रिचर्ड निक्सन को मुकदमे की जिल्लत से बख्श दिया गया. क्या डोनाल्ड ट्रंप इस परंपरा को तोड़ेंगे?
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )