प्रमोद जोशी
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते लोकसभा में विरोधी सदस्यों के हंगामे के बीच भारत की विदेश-नीति तथा देश के नेताओं की हाल की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी देने के लिए एक बयान दिया. उस बयान को जिस राजनीतिक-बेरुखी का सामना करना पड़ा, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आंतरिक-राजनीति, विदेश-नीति को कितना महत्व दे रही है.
इस बात को स्वीकार करने की जरूरत है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, राष्ट्रीय-सुरक्षा और विदेश-नीति को लेकर आमराय होनी चाहिए. इन नीतियों में क्रमबद्धता होती है. ऐसा नहीं होता कि सरकार बदलने पर इन नीतियों में भारी बदलाव हो जाता हो.
इस महीने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन होने वाला है. उसके बाद सितंबर में जी-20का शिखर सम्मेलन दिल्ली में होगा. ये सभी घटनाएं भारत के राष्ट्रीय-हितों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं.
कैसे ‘इंडिया ’?
संसद में अपने बयान के प्रति बेरुखी को देखते हुए जयशंकर ने कहा कि वे ‘इंडिया’ (विरोधी गठबंधन) होने का दावा करते हैं, लेकिन अगर वे भारत के राष्ट्रीय हितों के बारे में सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, तो वे किस तरह के ‘इंडिया’ हैं ?
बहरहाल पिछले दिनों कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं, जिनपर मीडिया का ध्यान कम गया है. एक और घटना संसद से ही जुड़ी है. विदेशी मामलों से जुड़ी संसदीय समिति ने भारत सरकार को सलाह दी है कि यदि पाकिस्तान पहल करे, तो उसके साथ आर्थिक संबंध फिर से कायम करने चाहिए.
इसके पहले जोहानेसबर्ग में देश के सुरक्षा-सलाहकार अजित डोभाल की एक महत्वपूर्ण मुलाकात चीन के विदेशमंत्री वांग यी से हुई है. उसके पहले जकार्ता में विदेशमंत्री एस जयशंकर की भेंट वांग यी से हुई थी. इन दोनों मुलाकातों के महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं.
संसदीय-समिति
विदेशी मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने मंगलवार 21जुलाई को लोकसभा में पेश भारत के ‘पड़ोसी पहले (नेबरहुड फर्स्ट) नीति’ पर केंद्रित अपनी रिपोर्ट में कई तरह के सुझाव दिए हैं. समिति ने कहा है कि चीन के ‘बेल्ट एंड रोड विजन’ और अमेरिका के हिंद-प्रशांत कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए छोटे पड़ोसियों के साथ व्यापक जुड़ाव और संबंधों को गहरा करने की जरूरत है.
पाकिस्तान से रिश्ते बनाना, केवल भारत के हाथ में नहीं है. इसके लिए पाकिस्तान को भी पहल करनी होगी. अगस्त 2019में जब भारत ने कश्मीर को अनुच्छेद 370से मुक्त किया था, उसके बाद पाकिस्तान ने न केवल व्यापार-संबंधों को तोड़ा, बल्कि अपने उच्चायुक्त को भी वापस बुला लिया. बदले में भारत को भी अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाना पड़ा.
क्षेत्रीय-एकीकरण
उसके पहले 2014में काठमांडू में हुए दक्षेस शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण होकर रहेगा. यह काम दक्षेस के मंच पर नहीं होगा, तो किसी दूसरे मंच से होगा. मोदी ने यह बात पाकिस्तानी आनाकानी से उपजी परिस्थितियों के मद्देनज़र कही थी.
उस सम्मेलन में दक्षेस देशों के मोटर वाहन और रेल सम्पर्क समझौते पर सहमति नहीं बनी, जबकि पाकिस्तान के अलावा सभी देश इसके लिए तैयार थे. सड़क-मार्ग का एकीकरण होने से अफगानिस्तान समेत मध्य एशिया के देशों के साथ भारत का और बांग्लादेश तथा म्यांमार समेत दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ पाकिस्तान का बेहतर संपर्क स्थापित हो सकता है.
माइनस पाकिस्तान
काठमांडू सम्मेलन के बाद से दक्षेस का कोई शिखर सम्मेलन नहीं हुआ. उसके बाद का सम्मेलन पाकिस्तान में होना था, पर भारत-पाकिस्तान रिश्तों की बढ़ती कड़वाहट की वजह से वह नहीं हुआ और क्षेत्रीय-सहयोग की गाड़ी जहाँ की तहाँ खड़ी है. भारत उसके बाद से ‘माइनस पाकिस्तान नीति’ पर चल रहा है.
पड़ोसियों को प्राथमिकता देने वाली नीति के संदर्भ में संसदीय-समिति ने कहा है कि यह गतिशील नीति है, जो क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार विकसित होते हुए क्षेत्र में हमारे हितों का समायोजन करेगी. खुले और प्रतिस्पर्धी दक्षिण एशियाई बाजार में जो अवसर तैयार हो रहे हैं, वे सुरक्षा और आर्थिक हितों की दृष्टि से भी उपादेय हैं.
पाकिस्तान में एक तबका ऐसा है, जो मानता है कि उनकी आर्थिक-प्रगति के लिए भारत से रिश्ते सुधारने की जरूरत है.
नेबरहुड-फर्स्ट नीति
भारत की ‘नेबरहुड-फर्स्ट नीति’ की अवधारणा स्वतंत्रता के बाद से ही मौजूद है, लेकिन 2014के बाद इसे प्रमुखता मिली. मई 2014में नरेंद्र मोदी का शपथ-ग्रहण समारोह एक प्रकार से दक्षिण-एशिया के देशों का शिखर-सम्मेलन बन गया था.
इस अवधारणा ने पड़ोसी देशों के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी और संपर्क को बढ़ावा देने के लिए एक रोडमैप बनाने का सुझाव भी दिया, पर भारत-पाकिस्तान रिश्तों के कारण इसकी दिशा बदल गई और भारत ने दक्षेस के बजाय दूसरे क्षेत्रीय-संगठनों की ओर रुख कर लिया.
समिति ने सरकार से ‘नेबरहुड-फर्स्ट नीति’ और ‘एक्ट-ईस्ट पॉलिसी’ के बीच तालमेल बनाने का आग्रह भी किया है. ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ निकटतम पड़ोस पर केंद्रित है, जबकि ‘एक्ट-ईस्ट पॉलिसी’ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विस्तारित पड़ोस पर केंद्रित है.
भारत का उदय
वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का उदय काफी सीमा तक समुद्री व्यापार पर आधारित है. इसके लिए इन दोनों नीतियों का महत्व है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भौगोलिक रूप से स्थित देश और अन्य देश भी, जिनके राष्ट्रीय हित इस समुद्री क्षेत्र से जुड़े हैं, क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, अमेरिका), एससीओ, आई2यू2 (भारत, इसरायल, अमेरिका, यूएई), कोलंबो सिक्योरिटी कॉनक्लेव, ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका) जैसे ग्रुपों के प्रति आकृष्ट हो रहे हैं.
कई प्रकार के त्रिकोणीय गठबंधन बन रहे हैं, जिनमें भारत शामिल है, जैसे भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया, भारत-जापान-इटली, भारत-जापान-अमेरिका, भारत-फ्रांस-ऑस्ट्रेलिया, भारत-इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया, भारत-फ्रांस-यूएई, भारत-मालदीव-श्रीलंका वगैरह.
समिति का सुझाव है कि व्यापक जुड़ाव और छोटे पड़ोसियों के साथ संबंधों को गहरा करने पर ध्यान केंद्रित करना भारत के हित में है. इससे दीर्घकालीन हितों से जुड़ी विदेश नीति को अपनाना चाहिए.
पाकिस्तानी यू-टर्न
फरवरी 2022 में जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी रोकने के समझौते के बाद एकबार फिर से व्यापार-संपर्क स्थापित होने की संभावनाएं बनी थीं, पर पाकिस्तान ने 370की वापसी की शर्त लगाकर उसे रोक दिया. अब अक्तूबर-नवंबर में पाकिस्तान में चुनाव के बाद नई सरकार के दृष्टिकोण को देखना होगा.
कारोबारी रिश्ते तोड़ने के अलावा पाकिस्तान सरकार ने भारत से जरूरी दवाएं और सब्जियाँ वगैरह लेना जारी रखा है. इस तरह 2021में जहाँ दोनों देशों के बीच 5.16करोड़ डॉलर का कारोबार हुआ था, वहीं 2022 में अप्रेल से दिसंबर तक नौ महीनों में 13.5 करोड़ डॉलर का कारोबार हुआ.
भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बेहतर हुए हैं. केवल चीन और पाकिस्तान के साथ ही हिचक बाकी है. पाकिस्तान की हाइपर-सिक्योरिटी नीति सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देती है.
जापानी विदेशमंत्री
पिछले हफ्ते विदेशमंत्री एस जयशंकर ने 27जुलाई को भारत-यात्रा पर आए जापानी विदेशमंत्री योशिमासा हयाशी के साथ व्यापक बातचीत की. बातचीत के मुद्दों में भारत-प्रशांत सहित द्विपक्षीय सहयोग शामिल था. जापान सरकार इस समय चीनी-आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए सामने आई है. पिछले पांच महीनों में हयाशी की यह दूसरी भारत यात्रा है.
भारत की हाई-टेक क्रांति में जापान की महत्वपूर्ण भूमिका है. जयशंकर ने कहा कि पहले हुई सुजुकी क्रांति, दूसरी मेट्रो क्रांति, तीसरी हाई स्पीड रेल बनाने की क्रांति और चौथी क्रांति है उभरती टेक्नोलॉजी और सेमी-कंडक्टर.
योशिमासा वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) कहे जाने वाले देशों के समूह के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए दक्षिण-पश्चिम एशिया और अफ्रीका की अपनी यात्रा के हिस्से के रूप में भारत की यात्रा कर रहे हैं. भारत के बाद वे 4अगस्त तक श्रीलंका, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा और इथोपिया के दौरा कर रहे हैं.
क्रमबद्ध-नीति
विदेश-नीति का प्रभाव केवल अंतरराष्ट्रीय मंच पर ही नहीं होता. देश की आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर भी उसका असर पड़ता है. साठ के दशक में जब अकाल पीडित भारत के सामने अन्न संकट खड़ा हुआ तब अमेरिकी मदद से हमने जो हरित क्रांति की उसे भुलाया नहीं जाना चाहिए.
विदेश नीति के मामले में नेहरू का आदर्शवाद आलोचना का विषय बनता है, पर आंतरिक नीति में देश का विकास मॉडल महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की परिकल्पना का विस्तार था. नेहरू को देश के आधारभूत ढाँचे के विकास का श्रेय जाता है. बड़े बाँध, स्टील प्लांट, वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं, इंजीनियरी कॉलेज, अंतरिक्ष अनुसंधान, आणविक ऊर्जा वगैरह.
एक हद तक वे सोवियत क्रांति से प्रभावित थे, पर साम्यवादी नहीं थे. देश की खेती निजी क्षेत्र में ही रही. चूंकि देश में निजी पूँजी की कमी थी, इसलिए नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र को जन्म दिया. उसके समांतर धीरे-धीरे निजी पूँजी को बढ़ाने-पनपाने की कोशिश भी की. अंततः यह भारतीय राष्ट्र-राज्य का विकास था, जिसकी तार्किक परिणति अब सामने है.
ब्रिक्स-सम्मेलन
दक्षिण अफ़्रीका के जोहानेसबर्ग में इस महीने 22से 24अगस्त को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन होना है. उसकी तैयारी में हाल में जोहानेसबर्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक हुई थी. इसमें भारत की तरफ़ से अजित डोभाल और चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल हुए थे.
अजित डोभाल और वांग यी ने द्विपक्षीय मुलाक़ात भी की थी. इस मुलाक़ात के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, ‘पिछले साल के अंत में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाली में चीन-भारत संबंधों को स्थिर करने के लिए एक महत्वपूर्ण सहमति पर पहुँचे थे.’
भारत की ओर से जारी बयान में ऐसी कोई बात नहीं थी. इसमें कहा गया, कि बैठक में एनएसए ने कहा कि 2020से भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर स्थिति ने भरोसे और रिश्ते के आधार को ख़त्म कर दिया है. एनएसए ने स्थिति को पूरी तरह से हल करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाल करने के लिए निरंतर प्रयासों के महत्व पर ज़ोर दिया.
आम-सहमति नहीं
इस शब्दावली से लगता है कि भारत नहीं मानता कि चीन के साथ सीमा पर तनातनी खत्म हो गई है. इसके पहले 14जुलाई को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने जकार्ता में आसियान देशों की बैठक में वर्तमान विदेश मंत्री वांग यी के साथ मुलाक़ात की थी. तब भी नियंत्रण रेखा का मुद्दा उठा था.
जिस बात की सबसे ज़्यादा चर्चा है वह है-बाली में मोदी और जिनपिंग की द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर 'आम सहमति' पर पहुँचने वाली चीनी सूचना. दो बड़े शिखर-सम्मेलनों से पहले चीन ने दोनों देशों की ‘आम सहमति’ कि जिक्र क्यों किया?
चीन संभवतः इस बात को स्थापित करना चाहता है कि सीमा पर सब ठीक-ठाक है. पर भारत का बयान कहता है कि कम से कम ‘आम सहमति’ तो नहीं है. दोनों देशों के दृष्टिकोण ब्रिक्स और जी-20में व्यक्त होंगे. इसलिए इन दोनों शिखर-सम्मेलनों पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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