प्रमोद जोशी
भारत और चीन के बीच पिछले तीन साल से चले आ रहे गतिरोध को तोड़ने की कोशिश में पिछले हफ्ते हुई दो बड़ी गतिविधियों के बावजूद समाधान दिखाई पड़ नहीं रहा है. जोहानेसबर्ग में ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच संवाद ने उम्मीदों को जगाया था, पर लगता नहीं कि समाधान होगा.
कहना मुश्किल है कि अब सितंबर में दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले जी-20 के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर दोनों नेताओं की मुलाकात होगी भी या नहीं. दोनों नेता उसके पहले 5से 7 सितंबर तक जकार्ता में होने वाले आसियान शिखर सम्मेलन में भी शामिल होने वाले हैं. वैश्विक घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में भी दोनों देशों के बीच का तनाव कम होता दिखाई नहीं पड़ रहा है.
चीनी आनाकानी
भारत की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि जबतक सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं होगी, दोनों देशों के रिश्तों में स्थिरता नहीं आ सकेगी. दूसरी तरफ 1977के बाद से लगातार चीनी दृष्टिकोण रहा है कि किसी ‘एक कारण’ से पूरे रिश्तों पर असर नहीं पड़ना चाहिए.
चीन चाहता है कि लद्दाख में तनाव के बावजूद दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते यथावत बने रहें. पिछले साल मई में भारत के सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि सीमा विवाद को चीन ज़िंदा रखना चाहता है. पूर्वी लद्दाख को लेकर भारत का उद्देश्य अप्रैल 2020से पहले की यथास्थिति को बहाल करना है. उन्होंने कहा, यह एकतरफ़ा नहीं हो सकता. दोनों ओर से प्रयास होने चाहिए.
पिछले दिनों पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के रिश्तों में आए बदलाव के कारण भी भारत-चीन रिश्तों में तल्खी बढ़ी है. यूक्रेन-युद्ध के बाद से वैश्विक-ध्रुवीकरण बढ़ा है, जिसमें रूस और चीन एक समूह के नेता के रूप में उभर रहे हैं. भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश-नीति की घोषणा की है, पर चीन के प्रति भारत का अविश्वास दूर नहीं हो रहा है.
19 वें दौर की वार्ता
अगस्त के तीसरे सप्ताह में दोनों देशों की सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच चली छह दिन लंबी बातचीत और उसके पहले कोर कमांडर स्तर पर 19वें दौर की बातचीत के बाद भारतीय पर्यवेक्षकों को आशा थी कि देपसांग और डेमचोक इलाके में चल रहा गतिरोध दूर हो सकता है.
इस उम्मीद को मोदी और शी की मुलाकात से बल मिला था. पर गतिरोध टूटने के बजाय चर्चा का बिंदु इस बात पर है कि मुलाकात भारत की पहल पर हुई या चीन की पहल पर? इसे लेकर दोनों देशों की ने अपनी अलग-अलग राय जितनी तेजी से व्यक्त की है, उससे भी लगता है कि किसी स्तर पर असमंजस है.
पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन अप्रेल 2020 से पहले की स्थिति बहाल करने को तैयार नहीं है. यानी हॉट स्प्रिंग, देपसांग बल्ज और चार्डिंग नाला या देमचोक क्षेत्र में चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है.
चीन ने काफी देशों के साथ अपने सीमा-विवाद निपटा लिए हैं, पर भारत के साथ विवाद को निपटाने की दिशा में खास प्रगति नहीं हुई है. शायद इसके पीछे उसकी कोई दीर्घकालीन रणनीति है.
किसकी पहल ?
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार जोहानेसबर्ग में ब्रिक्स की बैठक के हाशिए पर नरेंद्र मोदी ने शी चिनफिंग से मुलाक़ात की और दोनों के बीच सीमा विवाद पर चर्चा हुई. भारतीय मीडिया रिपोर्टों में आधिकारिक सूत्रों को उधृत करते हुए यह भी कहा गया कि मोदी के साथ मुलाक़ात के लिए चीन ने गुज़ारिश की थी.
शुक्रवार 25 अगस्त को जारी चीनी विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस मुलाकात का आग्रह भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से 23अगस्त को किया गया था, जबकि भारतीय सूत्रों का कहना है कि द्विपक्षीय भेंट का चीनी आग्रह पहले से चला आ रहा था.
दोनों लीडरों की यह मुलाकात लीडर्स लाउंज में हुई. यह कार्यक्रम पहले से तय नहीं था. भारत के एक अखबार ने लिखा कि इस दौरान दोनों के ट्रांसलेटर उनके साथ थे, जबकि एक और अखबार ने लिखा कि उनके साथ न तो इंटरप्रेटर थे और न ही नोट टेकर्स. बाद में इस बैठक के संदर्भ में चीनी प्रवक्ता ने केवल इतना कहा कि भारत और चीन दोनों ही रिश्तों को सामान्य करना चाहते हैं.
मोदी की चिंता
मुलाकात की पुष्टि 24 अगस्त को भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने भी की, पर उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री ने लद्दाख की सीमा के गतिरोध को लेकर अपनी चिंताओं से चीनी नेता को अवगत कराया और कहा कि दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए सीमा पर शांति की स्थापना जरूरी है.
इस दौरान भारतीय मीडिया में एक खबर यह भी चल रही थी कि चीन अपनी सेना की वापसी पर सहमत हो गया है, पर कब, कैसे और किस रूप में, इसका कोई विवरण नहीं है. बहरहाल जोहानेसबर्ग की मुलाकात के संदर्भ में चीनी प्रवक्ता ने इस आशय की कोई बात नहीं कही.
अलग-अलग बयानों से लगता यही है कि दोनों नेताओं ने अपना पक्ष रखा, लेकिन सहमति का कोई आधार नहीं बना. इसके पहले नवंबर 2022 में जी-20 देशों के सम्मेलन में दौरान दोनों नेताओं की मुलाक़ात इंडोनेशिया के बाली में हुई थी.
गलवान-प्रकरण के बाद वह दोनों नेताओं की पहली मुलाकात थी, पर उसमें भी रस्मी बातों के अलावा सीमा को लेकर बातचीत नहीं हुई. उसके पहले सितंबर 2022में एससीओ के समरकंद सम्मेलन में भी दोनों नेता शामिल हुए थे. वहाँ दोनों की सीधे बातचीत भी नहीं हुई.
रटी-रटाई बातें
जोहानेसबर्ग के ब्रिक्स सम्मेलन के बाद में बीजिंग के संवाददाता सम्मेलन में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, मैं चीन-भारत सीमा प्रश्न के बारे में चीनी-दृष्टिकोण को दोहराना चाहूँगा, जिसमें निरंतरता है और स्पष्टता भी. यह एक ऐतिहासिक मसला है, जो चीन-भारत संबंधों को पूरी तरह व्यक्त नहीं करता…इसका समाधान हमें शांतिपूर्ण और दोस्ताना बातचीत के जरिए खोजना चाहिए.
चीनी प्रवक्ता के इस बयान में मई-जून 2020 में हुए हिंसक-संघर्षों का उल्लेख नहीं है. चीन का पहला बयान विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा के ब्रिक्स के हाशिए से दिए गए बयान के फौरन बाद शुक्रवार की सुबह आया था. दूसरा बयान उसके बाद का है.
भारत ने जहाँ पूर्वी लद्दाख से सेना की वापसी का जिक्र किया है, वहीं चीन सीमा-विवाद को व्यापक परिप्रेक्ष्य में पेश कर रहा है और गलवान जैसे प्रकरणों पर कोई बात कहने से बच रहा है.
दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत के 19 दौर हो चुके हैं और स्थिति जस की तस है. विदेश मंत्रियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों, कोर कमांडरों, मेजर जनरलों और अन्य अधिकारियों के बीच बातचीत के कई दौर हो चुके हैं. चीन सारी बातों की अनदेखी कर रहा है और रटी-रटाई बातों को दोहरा रहा है.
गतिविधियाँ बढ़ाईं
एक तरफ चीन पूर्वी लद्दाख से जुड़े मसलों की अनदेखी कर रहा है, वहीं वह पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाता जा रहा है. इतना ही नहीं वह भूटान के साथ ऐसा सीमा-समझौता करना चाहता है, जिससे भारतीय हितों को चोट लग सकती है.
चीन और भूटान के बीच 21 से 24 अगस्त के बीच बीजिंग में सीमा को लेकर वार्ता हुई, जिसमें दोनों पक्षों ने अपने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 'तीन-चरणों का रोडमैप' लागू करने और एक साथ कदम उठाने पर सहमति जताई.
अक्टूबर 2021 में दोनों देशों ने सीमा विवाद सुलझाने की खातिर बातचीत में तेजी लाने के लिए 'तीन-चरणों के रोडमैप' पर समझौता किया था. उस समझौते के अंतर्गत जो संयुक्त टीम बनाई गई है, उसकी यह पहली बैठक थी.
चीन-भूटान वार्ता
'तीन-चरणों के रोडमैप' समझौते के संदर्भ में भारत ने कहा था कि इस घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है. भूटान और चीन के बीच सीमा वार्ता 1984 में शुरू हुई थी और दोनों पक्षों ने विशेषज्ञ समूह स्तर पर 24दौर की बातचीत और 10दौर की बैठक की जा चुकी है.
रोडमैप क्या है, यह अभी स्पष्ट नहीं है. यह समझौता डोकलाम त्रिकोण पर भारत और चीन के बीच चले गतिरोध के चार साल बाद हुआ था. चीन चाहता है कि भूटान उसे 495वर्ग किलोमीटर वाला इलाक़ा देकर बदले में 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा ले ले.
चीन जो इलाक़ा मांग रहा है, वह भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब है, जिसे चिकेंस-नैक कहा जाता है. पूर्वोत्तर के राज्यों तक पहुँचने के लिए वह भारत का मुख्य मार्ग है.
चीन की योजना चुंबी घाटी तक रेल लाइन बनाने की है. उसने यातुंग तक रेल लाइन की योजना है और यातुंग चुम्बी घाटी के मुहाने पर है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब तक चीनी आ गए, तो यह भारत के लिए चिंता का विषय होगा.
सीमा पर निर्माण
जनवरी 2022 में समाचार एजेंसी रायटर्स ने खबर दी थी कि चीन ने भूटान के साथ विवादित-क्षेत्र में इमारतें बनाने का काम तेज गति से शुरू कर दिया है. एजेंसी के लिए किए गए सैटेलाइट फोटो के विश्लेषण से पता लगा कि छह जगहों पर 200 से ज्यादा इमारतों के निर्माण का काम चल रहा है. इन निर्माणों के पीछे की चीनी मंशा को समझने की जरूरत है.
चूंकि अब चीन और भूटान के बीच सीधी बातचीत होती है, इसलिए अंदेशा पैदा होता है कि कहीं वह भूटान को किसी किस्म का लालच देकर ऐसी जमीन को हासिल करना तो नहीं चाहता, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करे.
चीन जिन गाँवों का निर्माण कर रहा है, वे डोकलाम पठार से 30 किमी से भी कम दूरी पर हैं. सूत्रों ने कहा कि भूटान में विवादित क्षेत्र के भीतर चीनी गांवों का इस्तेमाल सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए किए जाने की संभावना है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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