देश-परदेस : बाइडन के सिर पर ‘लाल लहर’ का खतरा

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 01-11-2022
देश-परदेस : बाइडन के सिर पर ‘लाल लहर’ का खतरा
देश-परदेस : बाइडन के सिर पर ‘लाल लहर’ का खतरा

 

permodप्रमोद जोशी

नवंबर के पहले सोमवार के बाद पड़ने वाला मंगलवार अमेरिका में ‘चुनाव दिवस’ होता है. आगामी 8 नवंबर को वहाँ मध्यावधि चुनाव होंगे. आमतौर पर भारतीय मीडिया की दिलचस्पी वहाँ के राष्ट्रपति चुनाव में होती है, पर अमेरिका की आंतरिक राजनीति में मध्यावधि चुनावों की जबर्दस्त भूमिका होती है. इसके परिणामों से पता लगेगा कि अगले दो साल देश की राजनीति और संसद के दोनों सदनों की भूमिका क्या होगी. 

अमेरिकी प्रतिनिधि सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) का कार्यकाल दो साल का होता है और सीनेट के सदस्यों का छह साल का, जिसके एक तिहाई सदस्यों का चक्रीय पद्धति से हर दो साल बाद चुनाव होता है. दोनों सदनों की भूमिका देश का राजनीतिक एजेंडा तय करने की होती है.

हालांकि अभी तक डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों सदनों से अपने काम निकाल ले रही थी, पर अब दोनों ही सदनों में उसके पिछड़ने का अंदेशा है. जो बाइडन की लोकप्रियता में भी गिरावट है. ये बातें 2024के राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम को प्रभावित करेंगी.

लोकप्रियता का पैमाना

राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता है और उसके पद संभालने के दो साल बाद चुनाव होते हैं, इसलिए इन्हें मध्यावधि चुनाव कहा जाता है. मध्यावधि चुनाव एक मायने में राष्ट्रपति की लोकप्रियता का पैमाना होता है. इन चुनावों में मतदान का प्रतिशत कम होता है, पर जब राजनीतिक हवा तेज होती है, तब प्रतिशत बढ़ भी जाता है. इस साल के मतदान प्रतिशत से भी पता लगेगा कि देश का राजनीतिक माहौल कैसा है.

इसबार के चुनाव कुछ और वजहों से महत्वपूर्ण हैं. सामाजिक दृष्टि से देश बुरी तरह विभाजित है और अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है. रिपब्लिकन पार्टी फिर से सिर उठा रही है. मध्यावधि चुनावों के परिणाम आमतौर पर राष्ट्रपति की पार्टी के खिलाफ जाते हैं. इस चुनाव में हिंसा भड़कने की आशंका भी है. चुनाव के मात्र एक सप्ताह पहले 28अक्तूबर को प्रतिनिधि सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी के पति पर हमला हुआ है.

प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में देश के 77फीसदी पंजीकृत वोटरों ने माना कि वोट देते समय आर्थिक मसले सबसे महत्वपूर्ण होंगे. सितंबर के महीने में देश की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 8.2फीसदी थी. देश की गन पॉलिसी भी चिंता का विषय है. आए दिन गोलियों से होने वाली मौतों के विवरण प्रकाशित होते रहते हैं.

दो सदन, दो व्यवस्थाएं

अमेरिकी संसद के दो सदन हैं. हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में 435सदस्य होते हैं. और दूसरा है, सीनेट, जिसमें 100सदस्य होते हैं. हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स की सभी 435सीटों के चुनाव होंगे. सीनेट की चक्रीय व्यवस्था के तहत हर दो साल पर एक तिहाई सीटों पर चुनाव होते हैं. इसबार 34सदस्यों का चुनाव होगा, जो छह साल के लिए चुने जाएंगे.

इस चुनाव में देश के 50 राज्यों के 435 जिलों से 435 सदस्य चुनकर आएंगे, जिनसे देश की 118वीं कांग्रेस गठित होगी, जो 3जनवरी 2023से 3जनवरी 2025तक काम करेगी. इनके अलावा 36राज्यों के गवर्नरों, शहरों के मेयरों तथा कई राज्यों तथा स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे.

नया परिसीमन

इस बार जो चुनाव हो रहे हैं वे 2020 की जनगणना के बाद हुए परिसीमन के तहत होंगे. इसे अमेरिका में गैरीमैंडरिंग कहते हैं. चूंकि रिपब्लिकनों के अधीन राज्यों की संख्या ज्यादा बड़ी है, इसलिए माना जा रहा है कि यह ज्यादातर राज्यों में हुआ परिसीमन रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में रहेगा.

इस चुनाव के बाद पता लगेगा कि दोनों सदनों पर किसी एक दल का वर्चस्व है या नहीं. अमेरिकी संसद का गठन इस प्रकार होता है कि जहाँ प्रतिनिधि सदन में जनसंख्या के अनुपात में सदस्य आते हैं, वहीं सीनेट में भौगोलिक अनुपात में.

देश 435चुनाव क्षेत्रों में विभाजित है, जो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के लिए सदस्य भेजते हैं, जबकि हरेक राज्य चाहे वह छोटा हो या बड़ा, दो-दो सदस्य सीनेट में भेजता है. यानी हरेक राज्य को बराबर का प्रतिनिधित्व मिलता है. अधिकारों के मामले में सीनेटर ज्यादा ताकतवर होते हैं.

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मामूली बहुमत

वर्तमान हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में डेमोक्रेट्स के पास 9सीटों के अंतर (222-213) से बहुमत है. यह 1955के बाद से सबसे छोटा बहुमत है. सीनेट में दोनों पार्टियों की 50-50सीटें हैं. केवल उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के टाई-ब्रेकिंग वोट के कारण डेमोक्रेट्स अपने पक्ष में फैसले करा सकते हैं.

प्रशासन के कुछ उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए अधिकारियों की सीनेट में मंज़ूरी ज़रूरी होती है. जजों की नियुक्ति और महत्वपूर्ण संधियों की पुष्टि सीनेट करती है. पिछले दिनों डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ प्रतिनिधि सदन ने महाभियोग पास कर दिया था, पर सीनेट ने रोक दिया था.

नाक में दम

सामाजिक ध्रुवीकरण की स्थितियों में संसद से प्रस्ताव पास कराना टेढ़ी खीर होता है. इसबार प्रतिनिधि सदन में रिपब्लिकन पार्टी बहुमत में हुई, तो वे 2024के राष्ट्रपति चुनाव होने तक जो बाइडन के तमाम राजनीतिक प्रस्तावों को रोकने में कामयाब हो जाएंगे. ऐसे में डेमोक्रेट्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी ज़मीन बचाने की है. 

राष्ट्रपति की पार्टियों ने 1934 (महामंदी), 1998 (बिल क्लिंटन का महाभियोग) और 2002 (9/11के बाद हुए चुनाव) को छोड़कर हर मध्यावधि चुनाव में सीटें गँवाई हैं. इसबार जो चुनाव हो रहे हैं उनमें रिपब्लिकन पार्टी के 20और डेमोक्रेट्स के 14वर्तमान सदस्यों की सीटें दाँव पर हैं.

रिपब्लिकन लहर ?

पिछले एक साल से आर्थिक खबरों पर महंगाई का दबदबा है और अब मंदी की बात हो रही है. रिपब्लिकन ने बढ़ते अपराधों, दक्षिणी सीमा पर शरण चाहने वालों और महामारी की वजह से स्कूल बंद होने जैसी घटनाओं को लेकर जनता की बढ़ती बेचैनी का फायदा उठाया है. कुछ टिप्पणीकार इसीलिए जून के महीने तक रिपब्लिकन लहर की भविष्यवाणी कर रहे थे.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 24जून को 1973के रो बनाम वेड के फैसले को पलट दिया, जिस फैसले ने गर्भपात को एक संवैधानिक अधिकार बना दिया था. इस फैसले का मतलब यह नहीं है कि गर्भपात के अधिकार को पूरे देश में तुरंत प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.

लोकतंत्र पर खतरा

इस फैसले ने अलग-अलग अमेरिकी राज्यों को तर्कसंगत आधार पर मामलों की समीक्षा के जरिए गर्भपात को विनियमित या प्रतिबंधित करने की ताक़त दी. डेमोक्रेटिक पार्टी गर्भपात के कानूनी अधिकार की समर्थक है, साथ ही वह ‘लोकतंत्र पर खतरे’ की घंटी बजा रही है.

उधर, रिपब्लिकन पार्टी जीवनयापन पर बढ़ते बोझ और आर्थिक-संकट को अपने प्रचार का विषय बना रही है. हाल के चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण बता रहे हैं कि आर्थिक मुद्दे महत्वपूर्ण बन गए हैं, जिससे डेमोक्रेट्स को नुकसान होगा.

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बदले की कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गर्भपात एक भावनात्मक मसला है. यदि हाउस में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत हुआ, तो वे गर्भपात से जुड़े डेमोक्रेट्स के प्रस्तावित कानून को पास नहीं होने देंगे. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और यूक्रेन को हथियारों की सहायता से जुड़े प्रस्तावों को भी रोक सकते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध हुई कार्रवाइयों के विरोध में प्रस्ताव पास करा सकते हैं. अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के लिए अमेरिका सरकार को जिम्मेदार मानते हुए प्रस्ताव ला सकते हैं. जो बाइडन और उनका परिवार रिपब्लिकन निशाने पर होगा.

बाइडन-विरोधी प्रस्ताव

कुछ रिपब्लिकन नेता बाइडन के खिलाफ महाभियोग लाने की घोषणा पहले से करते रहे हैं. अमेरिकी राजनीति में विरोधी नेताओं से येन केन प्रकारेण बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. रिपब्लिकन पार्टी को यदि सीनेट में बहुमत मिला, तो वे जजों की नियुक्ति के बाइडन के प्रस्तावों को रोकेंगे.

रिपब्लिकन को कहीं दोनों सदनों में बहुमत मिल गया, तो कुछ भी अभूतपूर्व हो सकता है. रिपब्लिकन पार्टी दावा कर सकती है कि डोनाल्ड ट्रंप को बेईमानी करके राष्ट्रपति बनने से रोका गया. राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपने कार्यकाल में सीनेट पर रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत का सामना करना पड़ा था.

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2016 में रिपब्लिकन पार्टी ने ओबामा की तीन नियुक्तियों को ब्लॉक कर दिया था. दूसरी तरफ ट्रंप को अपने कार्यकाल के दौरान सीनेट पर रिपब्लिकन का बहुमत होने का फायदा मिला.

जजों की नियुक्ति

अमेरिका में अदालतों के जजों की नियुक्तियाँ राष्ट्रपति करते हैं और उनकी राजनीतिक भूमिका मौका पड़ने पर सामने आती है. अमेरिका की संघीय व्यवस्था में राज्यों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. ऐसे में राज्यों के गवर्नरों के चुनाव भी प्रभावित करेंगे. गर्भपात जैसे विषय पर राज्य अपने कानून बनाएंगे.

2006 के मध्यावधि चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी को दोनों सदनों में हार का सामना करना पड़ा, जिससे डेमोक्रेट्स की वापसी हुई और 1994से चला आ रहा रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व खत्म हुआ. उसके बाद 2010के मध्यावधि चुनाव में जब बराक ओबामा राष्ट्रपति थे, रिपब्लिकनों की वापसी हो गई.

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इसके बाद 2018 के मध्यावधि चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी को झटका लगा। डेमोक्रेट्स ने प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल कर लिया. अलबत्ता रिपब्लिकन पार्टी सीनेट में अपना बहुमत बनाए रखने में कामयाब रही. उस चुनाव में मतदान प्रतिशत, हाल के वर्षों में सबसे ज्यादा रहा था.

एक बात साफ है कि देश की गोरी आबादी नाराज है और वह रिपब्लिकन पार्टी का मूलाधार है. देखना होगा कि इसबार मतदान का प्रतिशत कितना रहता है और रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में ‘लाल लहर’ आती है या नहीं.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )