प्रमोद जोशी
भारत और अमेरिका के बीच हाल में हुई ‘टू प्लस टू’ वार्ता आपसी मुद्दों से ज्यादा वैश्विक-घटनाक्रम के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई, फिर भी रक्षा-सहयोग और आतंकवाद से जुड़े कुछ मुद्दों ने खासतौर से ध्यान खींचा है. कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों को मिल रहे समर्थन के संदर्भ में भारत ने अपना पक्ष दृढ़ता से रखा, वहीं रक्षा-तकनीक में सहयोग को लेकर कुछ संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं.
इन बातों को जून के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के दौरान किए गए फैसलों की रोशनी में भी देखना होगा, क्योंकि ज्यादातर बातें उस दौरान तय किए गए कार्यक्रमों से जुड़ी हैं. गज़ा में चल रहा युद्ध और भारत-कनाडा टकराव अपेक्षाकृत बाद का घटनाक्रम है, पर उनसे दोनों देशों के रिश्तों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है. दोनों परिघटनाएं प्रत्यक्ष नहीं, तो परोक्ष रूप में पहले से चल रही थीं.
दोनों देशों के बीच 2018 से शुरू हुई ‘टू प्लस टू’ स्तर की इस पाँचवीं वार्ता में भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन व रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भाग लिया. ये वार्ताएं दोनों देशों राजनीतिक, राजनयिक, आर्थिक और सामरिक-सहयोग की सैद्धांतिक-पृष्ठभूमि तैयार करने का काम करती हैं. अमेरिका से आए दोनों मंत्रियों ने बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात भी की.
टू प्लस टू वार्ता
दोनों देशों के बीच ‘टू प्लस टू’ स्तर की पहली वार्ता सितंबर 2018 में हुई थी. तब भारत की ओर से तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और अमेरिका की ओर से विदेशमंत्री माइकेल पॉम्पियो और रक्षामंत्री जेम्स मैटिस की नई दिल्ली में मुलाकात हुई थी.
शुरू में ‘टू प्लस टू वार्ता’ को तीन हिस्सों में बाँटा गया था. पहले हिस्से में अगले दस साल का खाका खींचा गया. इसमें एच1बी वीजा और पूँजी निवेश जैसे मुद्दे भी उठे. दूसरे भाग में दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते हुए. तीसरे में अन्य देशों से रिश्तों को लेकर बात हुई. यहाँ रूस और ईरान के मुद्दे भी उठे थे. अमेरिकी पाबंदियों के कारण भारत और ईरान के रिश्ते अब उस धरातल पर नहीं हैं, जिस धरातल पर पाँच साल पहले थे.
देश की बदलती सामरिक-नीति का पता इस बात से भी लगता है कि अब हमारी ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन के साथ ‘टू प्लस टू’ वार्ताएं होने लगी हैं. ये तीनों देश अमेरिका के सहयोगी हैं. इसबार की वार्ता में अमेरिकी विदेशमंत्री ब्लिंकेन ने भारत के इन देशों के साथ रिश्तों के रेखांकित किया, जो अमेरिका के सहयोगी है.
भारत की रूस के साथ भी ‘टू प्लस टू’ वार्ताएं होती हैं. दोनों देशों के बीच दिसंबर 2021 में पहली ‘टू प्लस टू’ वार्ता हुई थी. अपनी ऊर्जा-आवश्यकताओं और रक्षा-तकनीक में रूसी-अवलंबन को देखते हुए भारत ने अपने विकल्पों को खुला रखा है. इस लिहाज से हमारी विदेश-नीति ने अपनी स्वतंत्रता को कायम रखा है. हम किसी के पिछलग्गू नहीं बन सकते हैं.
सितंबर 2018 में माइक पोम्पिओ ने संयुक्त ब्रीफिंग में कहा था कि हम वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उभरने का पूरी तरह से समर्थन करते हैं तथा हम अपनी साझेदारी के लिए भारत की समान प्रतिबद्धता का स्वागत करते हैं. भारत के वैश्विक-शक्ति के रूप से उभरने की परिघटना को महत्वाकांक्षी मानने के बजाय व्यावहारिक मानना चाहिए.
यह अलग विषय है कि हम कब दुनिया की तीसरी या दूसरी अर्थव्यवस्था बन पाएंगे, पर सच यह है कि हमें उभरना ही है. आकार और आर्थिक-गतिविधियों की दिशा को देखते हुए भारत को वह स्थान ग्रहण करना ही है. ऐसे में हमें अपने सामरिक हितों और रणनीतियों के बारे में भी सोचना होगा.
चीनी-प्रतिस्पर्धा
भारत की एनएसजी सदस्यता चीन के विरोध के कारण खटाई में पड़ी रह गई. सितंबर 2018 में ‘टू प्लस टू वार्ता’ के बाद तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने बताया था कि अमेरिका के साथ इस बात के लिए भी सहमति बनी है कि वह मिलकर भारत को एनएसजी सदस्यता दिलवाने की दिशा में प्रयास करेगा. संरा सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट के मामले में भी चीन का अड़ंगा है.
चीन पर अमेरिका असर डाल पाएगा या नहीं, यह अलग सवाल था. अलबत्ता उसके बाद से भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती ही गई है. उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि चीन का अड़ियल रवैया खत्म होगा. चीन की प्रतिबद्धता मोटे तौर पर पाकिस्तान के साथ है, पर बुनियादी मतभेद भविष्य की प्रतिस्पर्धा के कारण है. भारत अब एशिया में चीन का मुख्य-प्रतिस्पर्धी है.
आतंकवाद का विरोध
इसबार की वार्ता के दौरान दोनों देशों ने दोहराया कि हमास के आतंकी हमले के मद्देनज़र, आतंकवाद के खिलाफ हम इसराइल के साथ खड़े हैं. वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में दोनों देशों ने आतंकवाद व हिंसक उग्रवाद, आतंकी समूहों के इस्तेमाल और इन समूहों को फौजी, आर्थिक या अन्य किसी भी प्रकार के समर्थन-सहयोग की निंदा की.
बैठक में हिंद प्रशांत में चीन की बढ़ती ताकत से उत्पन्न हालात के अलावा रक्षा उत्पादन, अहम खनिजों व उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में जुड़ाव बढ़ाने जैसे विषयों पर व्यापक चर्चा हुई. हालांकि पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया, पर 26/11 में मुंबई पर और उसके बाद जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमलों की निंदा की गई और उसके दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का आह्वान किया.
सहयोग का रोडमैप
इस साल जून के महीने में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान एक रोडमैप समझौते पर दस्तखत हुए थे. उसकी रोशनी में व्यापक संवाद, जटिल सैन्य अभ्यास और रक्षा-तकनीकी सहयोग के लिए शुरू की गई संयुक्त परियोजनाओं में तेजी लाना इसमें शामिल है.
प्रधानमंत्री की यात्रा के कुछ दिन पहले अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आए थे. उनके साथ बातचीत के बाद काफी सौदों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी. इसी साल जनवरी में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अमेरिकी रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसेट) को लॉन्च किया था. तकनीकी सहयोग के लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण पहल है.
रक्षा सहयोग
बैठक में रक्षा-सहयोग के संदर्भ में एक बड़ा फैसला स्ट्रायकर बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों के संयुक्त-निर्माण को लेकर हुआ. इस आशय की घोषणा के साथ ऑस्टिन ने बताया कि 31 एमक्यू-9बी ड्रोन की खरीदारी की घोषणा सही समय पर की जाएगी.
उन्होंने कहा, हमारी सरकार के अधिकारी यह सुनिश्चित करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि भारत को यह क्षमता जल्द से जल्द मिल जाए. उन्होंने कहा, हम अंतरिक्ष से लेकर समुद्र के नीचे तक विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग को बढ़ा रहे हैं.
स्ट्रायकर आठ पहियों वाला बख्तरबंद वाहन है, जिसका निर्माण अमेरिका की साना के लिए जनरल डायनैमिक्स लैंड सिस्टम्स-कनाडा करता है. इसके आठ में से चार पहिए गतिमान होते हैं. इसे ‘फोर ह्वील(4X8)’ से ‘एट ह्वील (8X8) ड्राइव’ भी बनाया जा सकता है.
भारतीय आशंकाएं
कुछ रक्षा-विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से भारत के टाटा, एलएंडटी और महिंद्रा ग्रुप को धक्का लगेगा, क्योंकि वे भी ऐसे वाहनों का विकास कर रहे हैं. वे मानते हैं कि ऐसा अमेरिकी दबाव में किया गया है, पर यह जल्दबाजी में निकाला गया निष्कर्ष है. हमें इसके असर को देखने के लिए पूरी तस्वीर पर नज़र डालनी होगी.
टाटा मोटर्स और महिंद्रा ने डीआरडीओ के सहयोग से और भारतीय सेना के मानदंडों के अनुसार इन वाहनों को तैयार किया है. इन विशेषज्ञों के अनुसार अब जब हमने टाटा कैस्ट्रेल को डीआरडीओ के सहयोग से तैयार कर लिया है, स्ट्रायकर के भारत में निर्माण से ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को धक्का लगेगा. दूसरी तरफ विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिकी बख्तरबंद वाहन का उत्पादन भारत में निजी क्षेत्र की किसी कंपनी के माध्यम से ही होगा.
जहाँ तक सेना के लिए खरीद का सवाल है, वह कंपनी भी एक प्रतिस्पर्धी होगी. इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसी एक की इज़ारेदारी कायम नहीं पाएगी. इसके अलावा भविष्य में ऐसे कार्यक्रम भारतीय रक्षा-सामग्री के निर्यात में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
हाल में एक खबर यह भी थी कि तेजस मार्क-1ए के लिए जिस जीई एफ-404 जेट इंजन का आदेश अमेरिका को दिया गया था, उसकी सप्लाई में विलंब हो रहा है. इससे वायुसेना को नए लड़ाकू विमानों की सप्लाई में देरी होगी. कहा यह भी जा रहा है कि यह विलंब केवल भारतीय सप्लाई में देखा गया है, दक्षिण कोरिया को यह सप्लाई बदस्तूर ज़ारी है. बहरहाल यह विषय भी इस वार्ता में शामिल था.
खास बातें
बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य की खास बातें कुछ इस प्रकार हैं:-
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-बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री की अमेरिका-यात्रा के बाद दोनों देशों के रिश्तों में हुई प्रगति, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र, पश्चिम एशिया और यूक्रेन के घटनाक्रम तथा क्वाड के मिकैनिज़्म को मजबूत करने जैसे मसलों पर विचार किया गया.
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-2024 का क्वाड शिखर सम्मेलन भारत में होने वाला है, इस लिहाज से इस वार्ता में उसकी पृष्ठभूमि पर भी बात हुई. अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का एकबार फिर से समर्थन किया. दोनों देशों ने लोकतंत्र, मानवाधिकार और बहुलता जैसे विषयों से अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया.
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-इसके अलावा युद्धाभ्यासों, रक्षा-तकनीक और खासतौर से अंतरिक्ष और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के नए उभरते-क्षेत्रों में सहयोग पर ज़ोर दिया गया. भारत में सेमीकंडक्टर-उद्योग की स्थापना के लिए अमेरिकी निवेश का ज़िक्र भी हुआ. दोनों देशों का आपसी व्यापार इस साल 200 अरब डॉलर के ऊपर चला गया है.
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( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )