देश-परदेस : कुंठित पाकिस्तान के जख्मों पर क्रिकेट की सफलता ने मरहम लगाया

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 15-11-2022
देश-परदेस : कुंठित पाकिस्तान के जख्मों पर क्रिकेट की सफलता ने मरहम लगाया
देश-परदेस : कुंठित पाकिस्तान के जख्मों पर क्रिकेट की सफलता ने मरहम लगाया

 

permoप्रमोद जोशी

पाकिस्तान की टीम टी-20विश्व कप के फाइनल में हालांकि हार गई, पर उसने देश के राजनीतिक अनिश्चय और असंतोष के गहरे जख्मों पर मरहम पर लगाने का काम किया है. भले ही वे चैंपियन नहीं बने, पर उन्हें संतोष है कि जब हमें प्रतियोगिता से बाहर मान लिया गया, हमने न केवल वापसी की, बल्कि फाइनल में भी लड़कर हारे. इससे देश के स्वाभिमान को सिर उठाने का मौका मिला है. फिलहाल देश के अखबारों के पहले सफे पर फौरन चुनाव कराने की माँग की जगह क्रिकेट के किस्सों ने ले ली है.

पाकिस्तानी समाज तमाम मसलों पर मुख्तलिफ राय रखता है, आपस में लड़ता रहता है, पर जब क्रिकेट की बात होती है, तब पूरा देश एक हो जाता है. फाइनल मैच का गर्द-गुबार बैठ जाने के बाद भी क्रिकेट या यह खेल लोक-साहित्य, संगीत, गीतों और यूट्यूबरों के वीब्लॉगों में दिखाई पड़ रहा है. इसे देखना, पढ़ना और सुनना बड़ा रोचक है.  

राजनीतिक दृष्टि

पाकिस्तान में खेल और राजनीति को किस तरीके से जोड़ा जाता है, उसपर गौर करने की जरूरत भी है. फाइनल मैच के पहले एक पाकिस्तानी विश्लेषक ने लिखा, पाकिस्तान जीता तो मैं मानूँगा कि देश में पीएमएल(नून) की सरकार भाग्यशाली है. 1992में इसी पार्टी की सरकार थी और आज भी है. बहरहाल टीम चैंपियन तो नहीं बनी, पर देश इस सफलता से भी संतुष्ट है.

इमरान खान के जिन समर्थकों ने इस्लामाबाद जाने वाली सड़कों की नाकेबंदी कर रखी थी, वे कुछ समय के लिए खामोश हो गए और उन्होंने बैठकर सेमीफाइनल और फाइनल मैच देखे. ऐसा कब तक रहेगा, पता नहीं पर इतना साफ है कि भारत की तरह पाकिस्तान भी क्रिकेट के दीवानों का मुल्क है. बल्कि हमसे एक कदम आगे है.

हार के पीछे छिपी सफलता

टीम चैंपियन हो जाती, तो पता नहीं क्या होता, पर फाइनल में खेलना और लड़ते हुए हारना भी बड़ी उपलब्धि है. अलबत्ता इसके साथ टीम की बल्लेबाजी की खामियों और रणनीति को लेकर हर घर, हर मोहल्ले में विश्लेषण चल रहे हैं. ज्यादातर में इस हार के पीछे छिपी सफलता के किस्से हैं. 

यह विवेचन खेल की बारीकियों से नहीं जुड़ा है, बल्कि दर्शकों और पाकिस्तान के सामाजिक जीवन से जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया पर आधारित है. रेखांकित इस बात को करना है कि अराजकता के शिकार इस देश का मनोबल हार के बावजूद मिली इस सफलता से ऊँचा हुआ है. अलबत्ता उन्हें अफसोस है कि प्रतियोगिता के लीग मैचों में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया.

भारत का जिक्र

इस विवेचन और विश्लेषण में भारत का जिक्र न हो, ऐसा भी संभव नहीं. उन्हें खुशी है कि इंग्लैंड के हाथों पाकिस्तान की वैसी करारी हार नहीं हुई जैसी भारत की हुई. यहाँ तक की देश के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने एक ट्वीट में भारत की हार पर तंज कस दिया. इसी किस्म का एक टुकड़ा पीसीबी के चेयरमैन रमीज़ राजा ने भी मारा है.

भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान सुनील गावसकर ने भारत-इंग्लैंड सेमीफाइनल के पहले एक चैनल से कहा कि पाकिस्तान फाइनल जीता, तो इसके कप्तान बाबर आजम 2048में देश के प्रधानमंत्री होंगे. यह बात इमरान खान के नेतृत्व में 1992के एकदिनी विश्व कप हासिल करने से जुड़ी है. तकरीबन ऐसी ही परिस्थितियों में पाकिस्तानी टीम का तब इंग्लैंड की टीम से ही फाइनल में मुकाबला हुआ था.

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सफलताओं की तलाश

पाकिस्तान के पास राष्ट्रीय-स्वाभिमान के प्रतीकों की संख्या छोटी है. देश के कर्णधार पुरानी भारतीय सभ्यता से खुद को अलग साबित करना चाहती है. इसलिए उनका ज्यादातर इतिहास मुगल काल की भव्यता तक सीमित रहता है. देश की लोकतांत्रिक अराजकता और पिछले तीन-चार दशकों से कट्टरपंथ और आतंकवाद की लहरों ने इस मनोबल को और गिराया. एक आम पाकिस्तानी के पास खेल के मैदान की सफलताएं ही बचीं.

क्रिकेट से पहले हॉकी टीम राष्ट्रीय-स्वाभिमान का प्रतीक थी, पर कालांतर में वह कुंठित होती चली गई. 1992का फाइनल जीतने के बाद इमरान खान राष्ट्रीय नायक के रूप में उभरे. उनका महत्व इस बात से भी रेखांकित होता है कि 1987के विश्व कप के अंत में, क्रिकेट से संन्यास लेने के बावजूद 1988में देश के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने उनसे दुबारा कप्तानी करने का आग्रह किया.

राष्ट्रीय गौरव

क्रिकेट को उस वक्त देश ने राष्ट्रीय-सम्मान का दर्जा दिया था, जो आज भी जारी है. 39साल की उम्र में इमरान ने पाकिस्तान की विश्व कप विजेता टीम का नेतृत्व किया. क्रिकेट ने उन्हें राष्ट्रीय गौरव का विषय बनाया था. बावजूद इसके विश्व कप जीतने के बाद इमरान ने जो स्वीकृति-भाषण दिया, उसे लेकर उनकी आलोचना भी हुई.

उन्होंने अपनी टीम और कौम का उल्लेख नहीं किया, बल्कि खुद पर और अपने भावी कैंसर अस्पताल पर केंद्रित किया. देश जिस गौरव का जिक्र चाहता था, वह नहीं होने पर वह व्यथित भी हो जाता है.

इमरान की राजनीतिक यात्रा के साथ भी राजनीतिक गौरव का मसला जुड़ा है. आज इमरान की बातों को जनता का बड़ा तबका इसलिए मान लेता है, क्योंकि वे ‘कौम’ की बात करते हैं. अप्रैल 1996में ख़ान ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी बनाई और उसके 22 साल बाद 2018 में वे प्रधानमंत्री बने.

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कुदरत का निजाम

इसबार के विश्व कप में एक बार लगा कि पाकिस्तानी टीम बाहर हो गई है, पर उसने सबको चौंकाते हुए सेमीफाइनल और फाइनल में जगह बनाई. इस सिलसिले में सोशल मीडिया में टीम के कोच सक़लैन मुश्ताक का जुमला ‘कुदरत का निजाम’ ट्रेंड हो रहा है.

सकलैन मुश्ताक ने वर्ल्ड कप से पहले इंग्लैंड के खिलाफ खेली गई घरेलू टी-20सीरीज में हार को लेकर एक टीवी इंटरव्यू में कहा था, दिन और रात, गर्मी और सर्दी, ज़िंदगी और मौत, ये सभी चीजें ‘कुदरत का निज़ाम हैं’. ठीक वैसे ही, खेल भी चलता है. जीत-हार तो होगी.

सक़लैन मुश्ताक के बयान पर पाकिस्तान में पहले तो तंज़ कसे गए और फिर जब टीम फाइनल में पहुँच गई, तो कप्तान बाबर ने ‘कुदरत के निज़ाम’ को फिर याद किया. अब क्रिकेट के दीवाने इस जुमले को दोहरा रहे हैं. यों भी टी-20 क्रिकेट में कुछ भी हो सकता है.

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इस खेल पर ‘कुदरत का करिश्मा’ बहुत फिट बैठता है. दक्षिण अफ्रीका की टीम ने भारत को हराया, पर खुद नीदरलैंड्स से हार गई, जिसे भारत ने धोया था. यह भी कुदरत का करिश्मा था कि पाकिस्तान और इंग्लैंड दोनों टीमें ऑस्ट्रेलिया में ही हुए 1992के एकदिनी क्रिकेट के विश्वकप में कुछ इसी अंदाज़ में भिड़ी थीं.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )