देस-परदेस: बांग्लादेश में नई ‘क्रांतिकारी’पार्टी का उदय और बढ़ती पाक-परस्ती

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  onikamaheshwari | Date 31-12-2024
Des-Pardes: Rise of a new 'revolutionary' party in Bangladesh and growing pro-Pakistan sentiment
Des-Pardes: Rise of a new 'revolutionary' party in Bangladesh and growing pro-Pakistan sentiment

 

प्रमोद जोशी

बांग्लादेश में एक तरफ नई राजनीतिक-संविधानिक व्यवस्था बनाने की तैयारियाँ चल रही हैं, वहीं अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों को जोड़ना शुरू कर दिया है, जिसमें कारोबार के अलावा सैनिक-गतिविधियाँ भी शामिल हैं. यह भी साफ होता जा रहा है कि शेख हसीना के तख्ता-पलट के पीछे सामान्य छात्र-आंदोलन नहीं था, बल्कि कोई बड़ी योजना थी.

विद्रोही छात्र-संगठन आज 31 दिसंबर को कोई घोषणा करने वाला है, जिससे उसके वैचारिक इरादों का पता लगेगा. आंदोलन के नेताओं ने रविवार को ढाका में एक  संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 31 दिसंबर को देश में मुजीबिस्ट संविधान को दफ़न कर दिया जाएगा और एक पार्टी के रूप में अवामी लीग बांग्लादेश में अप्रासंगिक हो जाएगी. हम शहीद मीनार से अपनी 'जुलाई क्रांति की उद्घोषणा' करेंगे. क्या होगी यह घोषणा?

सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है, 'थर्टी फर्स्ट दिसंबर, अभी या कभी नहीं.' उनका कहना है, 5 अगस्त के बाद क्रांतिकारी सरकार बनी होती तो देश में संकट पैदा नहीं होते. पता नहीं कि ‘क्रांतिकारी सरकार’से उनका आशय क्या है और अंतरिम सरकार से उन्हें क्या कोई शिकायत है.   

हसीना का प्रत्यर्पण

अंततः अंतरिम सरकार ने शेख हसीना के प्रत्यर्पण का औपचारिक अनुरोध भारत से कर दिया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस मौखिक-अनुरोध की पुष्टि की है, साथ ही यह भी कहा है कि उचित समय पर इसका जवाब बांग्लादेश को दे दिया जाएगा.

भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि में कई धाराओं के आधार पर भारत, प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है. पर भारत ने अपनी प्रतिक्रिया को फौरन व्यक्त नहीं की है. बांग्लादेश सरकार भी जानती है कि प्रत्यर्पण नहीं होगा. इस समय अनुरोध के पीछे उनके आंतरिक-राजनीतिक कारण हैं.

देश में नई व्यवस्था बनने के पहले शेख हसीना और भारत के खिलाफ जनमत बनाने की यह कोशिश है. इस बीच, भीड़ ने देश के एक प्रमुख समाचार चैनल के पाँच वरिष्ठ पत्रकारों को पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया. भीड़ का नेतृत्व छात्र-समन्वयक हसनत अब्दुल्ला कर रहे थे.

भड़काऊ टिप्पणी

अंतरिम सरकार में सलाहकार महफूज आलम ने हाल में फेसबुक पर एक पोस्‍ट डालकर भारत के कई इलाकों पर कब्जा करने की धमकी दी है. यूनुस प्रशासन ने नवंबर में सलाहकार परिषद का और विस्तार करके महफूज आलम सहित कुछ और लोगों को शामिल किया था.

हालांकि पोस्ट शेयर करने के कुछ समय महफूज आलम ने अपनी पोस्ट हटा ली, पर भारत सरकार ने इसके आधार पर बांग्लादेश को चेतावनी दी है. प्रत्यर्पण की माँग, शेख मुजीब की विरासत और अवामी लीग को बदनाम के लिए भी की जा रही है. बंगबंधु-परिवार के साथ भारत पर कीचड़ उछालने की यह कोशिश है.   

हसीना के पराभव के बाद बांग्लादेश ने भारतीय सहयोग से जुड़ी परियोजनाओं को रद्द करना शुरू कर दिया किया है. ऐसी ही एक परियोजना पूर्वोत्तर भारत में इंटरनेट सेवाओं के लिए बांग्लादेश के पारगमन की मदद लेने से जुड़ी है, इसकी शिकार हुई है.

सुधार और चुनाव

डॉ. यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम शासन को मतदाताओं की स्वीकृति प्राप्त नहीं है. इस बात को समझते हुए राष्ट्रीय एकता, चुनाव और सुधार के मुद्दों पर एक राष्ट्रीय संवाद शुरू किया गया है. फोरम फॉर बांग्लादेश नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने 'ऐक्य कोन पथे' शीर्षक से 27 और 28 दिसंबर को इस संवाद का आयोजन किया।

इस दो दिवसीय वार्ता के पहले दिन मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने कहा कि सुधार के बिना चुनाव बांग्लादेश को आगे नहीं बढ़ा सकते. उन्होंने यह भी कहा कि मतदान की आयु 17 वर्ष होनी चाहिए.

वे यह भी चाहते हैं कि संसद सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 25 से कम करके 21 कर दी जाए. वे उन युवाओं के दबाव में हैं, जो शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन में सबसे आगे थे.

राष्ट्रीय-संवाद

इस संवाद में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा, सुधारों में जितना समय लगेगा...समस्याएं उतनी अधिक बढ़ेंगी. संवाद में  संवैधानिक सुधार आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर अली रियाज़, श्वेत पत्र प्रारूप समिति के प्रमुख देवप्रिय भट्टाचार्य और जमाते इस्लामी तथा बीएनपी के नेता भी शामिल थे, पर अवामी लीग के नेता नहीं थे.

इसके पहले 16दिसंबर को ‘विजय-दिवस’पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में  मुहम्मद यूनुस ने कहा, चुनाव 2025के अंत और 2026की पहली छमाही के बीच हो सकते हैं. उसके अगले दिन, उनके प्रेस सचिव शफ़ीकुल आलम ने विदेश सेवा अकादमी में कहा, सुधारों पर निर्भर करेगा कि चुनाव कब होंगे. आप 30जून, 2026तक उम्मीद कर सकते हैं.

प्रमुख राजनीतिक दलों में से केवल बीएनपी ही जल्द चुनाव कराने की माँग कर रही है. अवामी लीग की आवाज़ न तो सुनाई पड़ रही है और कोई आवाज़ है भी तो उसे सुना नहीं जा रहा है.

नई पार्टी का आग़ाज़

आंदोलन का नेतृत्व करने वाले छात्रों ने, इस दौरान एक नए राजनीतिक दल के गठन की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं. जातीय (राष्ट्रीय) नागरिक समिति नाम का एक संगठन इसमें अगुवाई कर रहा है. पार्टी का संविधान और संरचनात्मक गतिविधियाँ लगभग पूरी हो चुकी हैं.

ज़ाहिर है कि वे बीएनपी के हाथों में भी सत्ता को सौंपना नहीं चाहते. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नई पार्टी को सत्ता सौंपने के लिए चुनाव में देरी की जा रही है. सरकार को चुनाव की जल्दी नहीं है, अलबत्ता जिस रोडमैप की घोषणा की है, वह बीएनपी के दबाव की वजह से है.

पिछले चार दशकों में अवामी लीग या बीएनपी जैसी कोई बड़ी पार्टी देश में नहीं बनी है. कुछ छोटी वामपंथी, राष्ट्रवादी और इस्लामवादी पार्टियाँ बनीं, लेकिन वे अवामी लीग-बीएनपी जैसी बड़ी पार्टी में तब्दील नहीं हो सकीं.

अधिकतर मतदाता इन दोनों को ही जानते हैं. अभी नहीं कहा जा सकता कि नई पार्टी किसे फायदा या नुकसान पहुँचा पाएगी. पहली नज़र में लगता है कि अवामी लीग का आधार इस दौरान कमज़ोर हुआ है.

कैसा उदारवाद?

नई नागरिक-समिति के सदस्य-सचिव अख्तर हुसैन ने हाल में कहा, हम उदारवादी राजनीति के समर्थक हैं. हम बाएँ-दाएँ के फेर में नहीं पड़ेंगे. कट्टरपंथी इस्लामवादी या कट्टरपंथी हिंदुत्व भी नहीं.

बावजूद इसके इसकी विचारधारा को लेकर सवाल हैं. यह स्पष्ट होना ज़रूरी है  कि ये कौन लोग हैं और उनका वैचारिक-एजेंडा क्या है. इतना स्पष्ट है कि तख्तापलट का नेतृत्व करने वाले छात्र संगठनों और विभिन्न मोर्चों के नेता इस नई पार्टी का नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं.

नई पार्टी सामान्य तरीके से मैदान में आएगी, तो प्रतिस्पर्धा पैदा होगी, पर सरकारी छत्रछाया में पार्टी बनेगी तो सवाल भी उठेंगे. बहरहाल राजनीतिक दलों के मझोले नेताओं, सिविल-सोसाइटी के प्रतिनिधियों, लोकप्रिय मीडिया चेहरों को जोड़ने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत चल रही है.

फरवरी तक घोषणा

शुरू में लक्ष्य जनवरी तक राजनीतिक पार्टी बनाने का था, लेकिन कुछ जटिलताओं के कारण अब कहा जा रहा है कि नई टीम का गठन फरवरी तक हो सकता है. नागरिक समिति की प्रवक्ता सामंथा शर्मिन ने हाल में मीडिया को बताया कि हमारा संविधान तैयार है, बाकी काम अंतिम चरण में है.

उन्होंने कहा, चूँकि नई पार्टी का आकार कई प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद ही सामने आएगा, इसलिए कुछ और समय की जरूरत है. समिति के संयोजक नसीरुद्दीन पटवारी ने भी कहा कि अगले एक-दो महीने में राजनीतिक पार्टी की घोषणा कर दी जाएगी.

भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के केंद्रीय समन्वयक अब्दुल कादिर ने कहा कि अगस्त की शुरुआत में हमने आंदोलन का कार्यक्रम तय करते समय तय किया था कि छात्र आंदोलन, राजनीतिक संगठन के रूप में काम नहीं करेगा. इस बैनर की गतिविधियां सदैव गैर-राजनीतिक रहेंगी.

छात्र-संगठन बना रहेगा

इस प्रक्रिया से जुड़े कुछ सूत्रों ने बताया कि सरकार के दो-एक सलाहकार भी नई पार्टी में देखे जा सकते हैं. नई टीम बनने पर वे सलाहकार का पद छोड़ देंगे. पार्टी बनने पर भी राष्ट्रीय नागरिक समिति या भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन को भंग नहीं किया जाएगा.

गत 8सितंबर को जातीय नागरिक समिति ने सबसे पहले आठ बिंदुओं का एक राजनीतिक कार्यक्रम तैयार किया था. 55सदस्यों के साथ शुरू हुए इस मंच के संयोजक नसीरुद्दीन पटवारी बने. सामंथा शर्मिन को इसकी प्रवक्ता बनाया गया.

बाद में संगठनात्मक ढांचे का पुनर्गठन किया गया. धीरे-धीरे मंच ने जमीनी स्तर पर संगठन को देश भर में फैलाने का काम किया है. इस दौरान इस पार्टी का संभावित नाम ‘जनशक्ति’भी हवा में उछला, पर समिति की प्रवक्ता ने इसकी पुष्टि नहीं की.18दिसंबर को केंद्रीय कमेटी में 40और सदस्य शामिल किए गए. इस समय मंच के सदस्यों की संख्या 147है.

गत 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’के अवसर पर नागरिक समिति ने ढाका में विजय रैली का आयोजन किया. इससे लगता है कि यह संगठन बांग्ला राष्ट्रवाद से खुद को जोड़ता है. समिति से ऐसे लोग भी जुड़ रहे हैं, जिनकी हमदर्दी अतीत में अवामी लीग के साथ थी. कयास भी कई तरह के हैं.

पाकिस्तान से रिश्ते

गत 8 अगस्त को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने के तुरंत बाद, डॉ. यूनुस ने  पाकिस्तान से दूरी रखने की नीति को त्याग दिया. गत 19 दिसंबर को काहिरा में आयोजित डी-8 शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से उनकी मुलाकात महत्वपूर्ण है.

दोनों नेताओं ने व्यापार, संस्कृति और खेल के क्षेत्र में आदान-प्रदान के ज़रिए संबंधों को फिर से मजबूत करने पर सहमति जताई. यूनुस ने 1971 के लंबित मामलों को सुलझाने की बात तो कही, पर पाकिस्तान से माफी माँगने को नहीं कहा, जो अबतक बांग्लादेश की ओर से अनिवार्य शर्त होती थी.

इस्लामाबाद और ढाका के बीच सीधी उड़ानें पाँच साल के अंतराल के बाद फिर से शुरू हो गई हैं. पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा शर्तों ढील दे दी गई है. जनवरी में होने वाली एक व्यापार प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए पाकिस्तान को आमंत्रित भी किया गया है.

पाकिस्तान से आने वाले मालवाहक जहाज अब बिना माल की जाँच किए सीधे चटोग्राम बंदरगाह पर उतरेंगे. कारोबारियों को जबरन पाकिस्तान के साथ कारोबार करने और वहाँ से सामान ख़रीदने का दबाव बनाया जा रहा है. कुछ अधिकारी भारत-बांग्लादेश शिपिंग समझौते की समीक्षा करने का सुझाव भी दे रहे हैं. इस समझौते के तहत ही भारत को चटोग्राम और मोंगला बंदरगाहों तक जाने की इजाजत है.

सैन्य-सहयोग

पाकिस्तानी सेना के जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन जनरल साहिर शमशाद मिर्जा के नेतृत्व में एक टीम फरवरी 2025 में बांग्लादेश आ रही है. यह 53 वर्षों में किसी वरिष्ठ पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की बांग्लादेश की पहली यात्रा होगी.

उसी दौरान पाकिस्तान के कराची पोर्ट पर बांग्लादेश की नौसेना पाकिस्तान के बहुराष्ट्रीय संयुक्त अभ्यास ‘अमन’में भाग भी लेगी. अंतरिम सरकार ने न केवल इस अभ्यास में भाग लेने की मंजूरी दी है, बल्कि बंगाल की खाड़ी में पाकिस्तानी नौसेना के साथ साझा युद्धाभ्यास की तैयारी भी शुरू कर दी है.

 (लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)

 

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