देस-परदेस : भारत-पाकिस्तान रिश्ते और क्षेत्रीय-सहयोग के स्वप्न

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 08-10-2024
Des-Pardes: India-Pakistan relations and dreams of regional cooperation /pix social media
Des-Pardes: India-Pakistan relations and dreams of regional cooperation /pix social media

 

 

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प्रमोद जोशी

इस महीने 15-16 को इस्लामाबाद में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेशमंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान जा रहे हैं. उनकी यात्रा को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या इसे दोनों देशों के संबंध-सुधार की शुरुआत माना जाए ? 

हालांकि विदेश मंत्रालय और स्वयं विदेशमंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा द्विपक्षीय-संबंधों को लेकर नहीं है, फिर भी सम्मेलन से बाहर, खासतौर से मीडिया में, रिश्तों को लेकर चर्चा जरूर होगी. पर यह चर्चा आधिकारिक रूप से नहीं होगी, सम्मेलन के हाशिए पर भी नहीं.

दूसरी तरफ सम्मेलन में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत-पाकिस्तान प्रसंग प्रतीकों के माध्यम से उठेंगे. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय-सहयोग और साइबर-सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा के दौरान ऐसी बातें हों, तो हैरत नहीं होगी.

दक्षिण एशिया दुनिया के उन क्षेत्रों में शामिल है, जहाँ क्षेत्रीय-सहयोग सबसे कम है. हम आसियान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर सकते हैं, पर उससे कहीं कमतर समझौता भी पाकिस्तान से नहीं कर सकते. 1985में बना दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) आज ठंडा पड़ा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कश्मीर.

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द्विपक्षीय डिप्लोमेसी

सामान्य परिस्थितियाँ होतीं, तो शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहाँ जाते, पर इस वक्त उनका नहीं जाना भी द्विपक्षीय-संबंधों पर टिप्पणी है. पिछले शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से एक पत्रकार ने पूछा कि क्या विदेशमंत्री का दौरा भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश के तौर पर देखा जाएगा?

इस पर जायसवाल ने कहा, यह दौरा एससीओ मीटिंग के लिए है, इससे ज़्यादा इसके बारे में न सोचें. इसके बाद विदेशमंत्री एस जयशंकर ने भी स्पष्ट किया कि यह यात्रा आपसी-रिश्तों को लेकर नहीं है. एससीओ-फोरम में द्विपक्षीय-संबंधों पर बातें नहीं होती हैं, पर भारत या पाकिस्तान में सम्मेलन हो और मीडिया में द्विपक्षीय-रिश्तों पर बातें नहीं हों, ऐसा संभव नहीं. 

पिछले साल मई में एससीओ के गोवा सम्मेलन को याद करें. पाकिस्तानी विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी सम्मेलन में शिरकत करने भारत आए थे. उस वक्त सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसले उछले और इस वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं.

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दक्षिण एशिया

इस समय हमारा ध्यान पड़ोसी देशों पर ज्यादा है. पिछले कुछ दिनों में मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के साथ, जो संवाद हुआ है, उसपर ध्यान देने की जरूरत है. विदेशमंत्री ने कुछ समय पहले मालदीव में तीन दिन बिताए. इस हफ्ते वहाँ के राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू की भारत-यात्रा भी ध्यान खींच रही है. 

इसके पहले विदेशमंत्री एस जयशंकर श्रीलंका होकर आए हैं, जहाँ हाल में सत्ता-परिवर्तन हुआ है. श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके से मिलने वाले वे पहले विदेशी मंत्री हैं. भारत 'नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी' पर चलता है. हमने कोविड-19 महामारी, प्राकृतिक आपदाओं और पड़ोसी देशों के आर्थिक-संकट में फँस जाने पर सहायता की है.

नेपाल, भारत और बांग्लादेश के अधिकारियों ने हाल में विद्युत आपूर्ति को लेकर एक समझौता किया है. इसके तहत नेपाल में बनी बिजली बांग्लादेश को बेची जा सकती है, जिसके लिए भारतीय ट्रांसमीशन लाइनों का इस्तेमाल होगा. इस समझौते की पृष्ठभूमि नेपाल और बांग्लादेश दोनों में हुए सत्ता-परिवर्तन से पहले की है. अलबत्ता इससे यह संदेश जरूर जाता है कि दक्षिण एशिया में सहयोग का संभावनाएं बनी हुई हैं, पर सहयोग किस रूप में होगा, इसे देखना और समझना होगा.

नवंबर, 2014 में काठमांडू के दक्षेस शिखर सम्मेलन में मोटर वाहन और रेल संपर्क समझौते पर सहमति नहीं बनी, जबकि पाकिस्तान को छोड़ सभी देश इसके लिए तैयार थे. पाकिस्तानी विरोध के कारण ही भारत और अफगानिस्तान के बीच सड़क-मार्ग से कनेक्टिविटी आज तक स्थापित नहीं हो पाई है.

काठमांडू में दक्षेस देशों का बिजली का ग्रिड बनाने पर पाकिस्तान सहमत जरूर हो गया था, पर उसमें प्रगति नहीं हो सकी है. उस सम्मेलन के बाद से भारत ने सार्क से अपना मुँह मोड़ भी लिया है. अलबत्ता बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के साथ समझौते जरूर किए हैं. इसके लिए आवश्यक ग्रिड के निर्माण के लिए सऊदी अरब, यूएई और सिंगापुर जैसे देश मदद कर रहे हैं.

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भारत-पाकिस्तान

इन कारणों से भारत ने अपनी 'नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी' में पाकिस्तान को शामिल नहीं किया है. दूसरी तरफ करीब एक दशक बाद भारत के विदेशमंत्री की पाकिस्तान-यात्रा के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं. इससे पहले दिसंबर, 2015में तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज 'हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन' में भाग लेने, इस्लामाबाद गईं थीं. उस वक्त दोनों देशों के बीच संवाद बढ़ रहा था.

उसी महीने प्रधानमंत्री मोदी अफगानिस्तान से वापस लौटते समय अचानक लाहौर में उतरे थे. उस यात्रा के एक हफ्ते बाद ही पठानकोट एयर बेस पर हमला हुआ और फिर उसके बाद यह स्पष्ट हो गया कि भले ही नवाज़ शरीफ चाहते हों, पर पाकिस्तान के ‘डीप-स्टेट’ वह गर्मजोशी मंज़ूर नहीं.

उस घटनाक्रम के कारण भारत की विदेश-नीति में बड़ा मोड़ आया. भारत ने पाकिस्तान और दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (सार्क) से किनाराकशी की और विदेश-नीति में ‘माइनस पाकिस्तान’ तत्व शामिल हो गया. नवंबर 2016में सार्क का शिखर-सम्मेलन पाकिस्तान में होना था, जो अब तक नहीं हुआ है.

दिसंबर, 2015 में जहाँ दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों की बातें हो रही थीं, वहीं अगस्त, 2016में जब तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह सार्क की बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान गए, तब उन्हें अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा था. पाकिस्तान के तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी निसार अली ख़ान ने राजनाथ जी से हाथ तक नहीं मिलाया था.

इसके बाद पाकिस्तान सरकार द्वारा आयोजित दोपहर के भोजन में शामिल हुए बिना राजनाथ जी भारत वापस आ गए थे. पिछले साल बिलावल भुट्टो जब गोवा आए थे, तब उन्होंने कहा कि भारत को जम्मू-कश्मीर में 5अगस्त, 2019से पहले की स्थिति को बहाल करके बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए. उनके इस वक्तव्य के कुछ घंटों बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयशंकर ने कहा कि भुट्टो-जरदारी के बयान से पाकिस्तानी मानसिकता का पता चलता है.

सम्मेलन में विदेशमंत्री जयशंकर ने अपने अभिवादन को गणमान्य व्यक्तियों के लिए औपचारिक हाथ जोड़कर 'नमस्ते' तक सीमित रखा. माना जाता है कि वे औपचारिक रूप से पाकिस्तानी विदेशमंत्री से हाथ मिलाना नहीं चाहते थे.

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एससीओ की भूमिका

रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. इस वक्त जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है. मध्य एशिया के देशों के साथ भारत के रिश्तों को बनाए रखना बेहद ज़रूरी है.

भारत की कोशिश होगी कि एससीओ में चीन के बरक्स उसकी भूमिका बनी रहे. एससीओ को भारत के लिए एक उपयोगी मंच माना जाता है क्योंकि यह उसे एससीओ के सदस्य चार मध्य एशियाई देशों के शीर्ष नेतृत्व से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है. शिखर सम्मेलन स्तर की बातचीत अन्य सदस्य देशों के नेताओं और संगठन के पर्यवेक्षकों से मिलने और बातचीत करने की संभावनाएं भी प्रदान करती है.

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संपर्क-सूत्र

अगस्त 2017 में एससीओ के अस्ताना शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भी बातें हुईं, जबकि उस वक्त डोकलाम जंक्शन पर टकराव अपने चरम पर था. उस सम्मेलन में मतभेदों को विवाद न बनने देने पर आमराय भी व्यक्त की गई थी.

इसके बाद सितंबर 2020में मॉस्को में एससीओ के रक्षा और विदेश मंत्रियों की बैठकों के दौरान भारत और चीन के रक्षा-विदेशमंत्रियों की बैठकें भी हुईं, जबकि उसके कुछ समय पहले पूर्वी लद्दाख में गलवान की घटना हो चुकी थी.

हाल के वर्षों में जी-20, ब्रिक्स और एससीओ में वैश्विक-राजनीति की छाया भी पड़ रही है. सितंबर, 2023 में भारत में हुए जी-20शिखर सम्मेलन में शी चिनफिंग और व्लादिमीर पुतिन नहीं आए. उसके पहले जुलाई 2023में भारत में एससीओ शिखर सम्मेलन हुआ, जिसकी मेजबानी भारत ने ऑनलाइन प्रारूप में की.

उस समय इस वर्चुअल सम्मेलन को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई गई थीं, जबकि मध्य एशिया के देशों और ईरान ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि उनके शासनाध्यक्ष नई दिल्ली में व्यक्तिगत रूप से शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे.

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वैश्विक-राजनीति

भारत ने शिखर सम्मेलन को वर्चुअली आयोजित करने का फैसला आखिरी समय में किया. मीडिया में अटकलें लगाई गईं कि भारत ने ऐसा इसलिए किया लिया क्योंकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की व्यक्तिगत भागीदारी के बारे में चीन सरकार ने पुष्टि नहीं की थी.

इसके ठीक पहले मई में गोवा में हुए एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो के व्यवहार को देखते हुए, महसूस किया गया कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की मेजबानी के दौरान कुछ अनहोनी भी हो सकती है. जिस तरह बिलावल भुट्टो ने मीडिया को संकेत करके कुछ बातें कहीं, वैसा शाहबाज़ शरीफ भी कर सकते हैं. वैसे भी उनके आने का मतलब था कि सारे मीडिया का ध्यान उनपर ही रहता.

हाल में, प्रधानमंत्री मोदी 4जुलाई को हुए राष्ट्राध्यक्षों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कजाकिस्तान के अस्ताना नहीं गए. उनके स्थान पर विदेशमंत्री जयशंकर गए. पीएम मोदी ने संसद की चल रही कार्यवाही में अपनी व्यस्तताओं के कारण शिखर सम्मेलन में वर्चुअल संबोधन के कजाकिस्तान के अनुरोध को भी स्वीकार नहीं किया.

हाल में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने 12सितंबर को इस्लामाबाद में आयोजित एससीओ वाणिज्य मंत्रियों की 23वीं बैठक में भाग नहीं लिया. उनके स्थान पर वाणिज्य सचिव सुनील बड़थ्वाल ने वर्चुअल माध्यम से भाग लिया.ये बातें डिप्लोमेसी का हिस्सा हैं, इनका मतलब यह भी नहीं है कि भारत एससीओ को महत्व नहीं देता. हमें कोई निष्कर्ष निकलने के पहले पाकिस्तान और चीन को लेकर उभरती नीतियों को भी सामने रखना होगा.

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पाकिस्तानी राजनीति

पाकिस्तान की राजनीति और वहाँ की प्रशासनिक-व्यवस्था का कोई पता नहीं. कश्मीर को लेकर वहाँ की जनता के भीतर उन्माद पैदा किया गया है. यह सिर्फ संयोग नहीं है कि एससीओ शिखर सम्मेलन के ठीक पहले मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम पाकिस्तान की तीन दिवसीय यात्रा पर आए. उन्होंने वहाँ कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का मलेशिया समर्थन करता है.

इस वक्तव्य की अनदेखी कर भी लें, पर इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि उसी समय मुस्लिम प्रचारक ज़ाकिर नाइक का पाकिस्तान में स्वागत किया गया. ज़ाकिर नाइक भारत से भागे हुए हैं और उन्हें मलेशिया में शरण मिली है.

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, वह किस पासपोर्ट पर पाकिस्तान गए हैं इसकी हमें जानकारी नहीं है, लेकिन मैं आपको याद दिला दूँ कि जब मलेशिया के प्रधानमंत्री भारत आए थे, तब इस मुद्दे को विशेष रूप से उठाया गया था. ज़ाहिर है कि यह सब अनायास नहीं होता. ऐसी बातें, किसी न किसी स्तर पर संपर्कों को बनने से रोकती हैं.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)

 

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