देस-परदेस : गज़ा में उम्मीदों की वापसी, फिर भी संदेहों के बादल

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 21-01-2025
Des-Pardes: Hope returns to Gaza, but clouds of doubt still linger
Des-Pardes: Hope returns to Gaza, but clouds of doubt still linger

 

 

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प्रमोद जोशी

पश्चिम एशिया में युद्ध-विराम हो तो गया है, पर इसे स्थायी-शांति नहीं माना जा सकता है. बावज़ूद इसके यह बड़ी सफलता है. पिछले 15महीने से चली आ रही लड़ाई को रोकने में यह बड़ी कामयाबी है.

युद्ध-विराम शांति नहीं है, बल्कि ऐसे संघर्ष के बाद ,जिसमें 46,000से ज्यादा लोग मारे गए, उम्मीद की एक किरण है. सवाल हैं कि क्या यह समझौता इस इलाके में स्थायी-शांति का आधार बन सकेगा?

अंदेशा है कि इसराइली सेना अभी भले ही हट जाय, पर एक-दो या छह-आठ महीने बाद, वह वापस भी आ सकती है. इसी तरह हमास के हाथ में कुछ ऐसे हथियार रहेंगे, जो भविष्य की सौदेबाज़ी में काम आएँगे. 

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने समझौता लागू होने के ठीक पहले कहा कि युद्धविराम के दूसरे चरण के लिए बातचीत विफल हुई, तो फिर से लड़ाई के लिए हम तैयार हैं. युद्धविराम 'अस्थायी' है और इसराइल ग़ज़ा पर फिर से हमला करने का अधिकार रखता है.

स्थायी-शांति बाद की बात है, पहले चर्चा इस बात की है कि इसे हमास या इसराइल में से किसकी जीत माना जाय? हमास को नेस्तनाबूद करने में क्या इसराइल कामयाब हुआ है, जिसका उसने दावा किया था?

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कैसे संभव हुआ?

यह भी साफ है कि समझौते तक पहुँचने में बड़ी भूमिका सीरिया में बशर अल-असद के पतन और लेबनान में हिज़्बुल्ला की तबाही ने निभाई. इन दोनों बातों को अमेरिका, इसराइल और कुछ हद तक अरब देशों की सफल रणनीति के रूप में देखा जाएगा. 

कुछ महीने पहले तक इस लड़ाई को इसराइली सफलता के रूप में देखना संभव नहीं था. अब कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति न बने होते, तो यह समझौता हो भी नहीं सकता था.

यह भी अर्धसत्य है. इस समझौते पर पिछले कई महीनों से बात चल रही थी, जिसमें अमेरिका के बाइडेन-प्रशासन की भूमिका थी. अलबत्ता ट्रंप के पद-ग्रहण के ठीक एक दिन पहले यह सब होना भी, अमेरिका की भूमिका को रेखांकित कर रहा है. 

समझौते की घोषणा 15जनवरी को ज़रूर हुई, पर यह वही प्रस्ताव है, जिसका राष्ट्रपति जो बाइडन ने पिछले साल मई में ह्वाइट हाउस के एक  संबोधन में ज़िक्र किया था.

तीन चरण

युद्ध विराम शुरू होने में करीब तीन घंटे की देरी हुई, क्योंकि इसराइल ने हमास से उन बंधकों की सूची माँगी, जिन्हें दिन में रिहा किया जाना था. एक इसराइली अधिकारी ने बाद में बताया कि सूची मिल गई.

इस समझौते का विवरण औपचारिक रूप से घोषित नहीं हुआ है, फिर भी कुछ बातें रोशनी में आई हैं. इनमें छह हफ्ते के शुरुआती चरण में मध्य गज़ा से इसराइली सेनाओं की क्रमिक वापसी और विस्थापित फिलिस्तीनियों की उत्तरी गज़ा में वापसी शामिल है.

युद्ध विराम के दौरान हर रोज़ गज़ा में मानवीय सहायता से भरे 600ट्रक भेजे जाएँगे, जिनमें से 50ट्रक ईंधन से भरे होंगे. इनमें से 300ट्रक उत्तरी क्षेत्र में भेजे जाएँगे, जहां हालात बहुत कठिन हैं.

हमास 33 इसराइली बंधकों को रिहा करेगा, जिनमें सभी महिलाएँ (सैनिक और नागरिक), बच्चे और 50वर्ष से अधिक आयु के पुरुष शामिल हैं. हमास सबसे पहले महिला बंधकों और 19वर्ष से कम आयु के लोगों को रिहा करेगा, उसके बाद 50वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों को रिहा करेगा. तीन महिला बंधकों को रविवार को रेड क्रॉस के माध्यम से रिहा कर दिया गया.

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एक के बदले तीस

इसराइल हरेक नागरिक बंधक के बदले 30फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा करेगा और हमास द्वारा रिहा की जाने वाली प्रत्येक इसराइली महिला सैनिक के बदले 50फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा करेगा.

इसराइल 7अक्टूबर, 2023से हिरासत में ली गई सभी फ़लस्तीनी महिलाओं और 19वर्ष से कम उम्र के बच्चों को पहले चरण के अंत तक रिहा कर देगा. रिहा किए गए फ़लस्तीनियों की कुल संख्या रिहा किए गए बंधकों पर निर्भर करेगी.

इनमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 990से 1,650तक फ़लस्तीनी बंदी हो सकते हैं. पहले दिन ही 90फलस्तीनी महिलाओं और बच्चों को रिहा किया गया है.

हमास छह सप्ताह की अवधि में बंधकों को रिहा करेगा, जिसमें हर सप्ताह कम से कम तीन बंधकों को रिहा किया जाएगा और शेष 33को अवधि समाप्त होने से पहले रिहा किया जाएगा. सबसे पहले जीवित बंधकों को रिहा किया जाएगा, उसके बाद मृत बंधकों के अवशेषों को.

दूसरे चरण की वार्ता

समझौते के पहले चरण के 16वें दिन दूसरे चरण पर बातचीत शुरू होगी.  इसमें इसराइली पुरुष सैनिकों सहित शेष सभी बंधकों की रिहाई, स्थायी युद्धविराम और इसराइली सैनिकों की पूर्ण वापसी शामिल होने की उम्मीद है.

तीसरे चरण में सभी शेष शवों को वापस लाया जाएगा तथा मिस्र, कतर और संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में गज़ा का पुनर्निर्माण शुरू किया जाएगा.पहले चरण के लगभग एक पखवाड़े बाद, चरण-2को लागू करने पर बातचीत शुरू होगी, जिसमें शेष बंधकों की वापसी, स्थायी युद्ध-विराम और सभी इसराइली सैनिकों की गज़ा से वापसी की बातें होंगी. 

सवाल है कि समझौते के दूसरे और तीसरे चरणों तक कैसे पहुँचेंगे? दूसरा चरण संघर्ष को स्थायी रूप से समाप्त करने के बारे में है. वही इसका सबसे महत्वपूर्ण और ज़रूरी पक्ष है.

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संबंध सुधार के प्रयास

7अक्तूबर, 2023 को हमास के हमले से पहले, इसराइल और अरब देशों के बीच संबंधों में महत्वपूर्ण प्रगति होती दिखाई पड़ रही थी. इसमें बहरीन और यूएई के साथ अब्राहम समझौता शामिल था. उस वक्त कहा जा रहा था कि अब्राहम समझौते वाले देशों ने इसराइल के साथ शांति समझौते तो किए हैं, लेकिन वे फलस्तीनियों को न्याय दिलाने के लिए अपने दबाव का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. 

बहरहाल जिस वक्त लग रहा था कि सऊदी अरब भी इस समझौते में शामिल हो सकता है, 7अक्तूबर, 2023को हमास का हमला हो गया. यह योजना केवल हमास ने बनाई होगी, इसे लेकर संदेह था.

अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने उस वक्त हमास और हिज़्बुल्ला के सूत्रों के हवाले से खबर दी थी कि ईरानी सेना के अधिकारी अगस्त के महीने से हमले की योजना तैयार कर रहे थे. बाद में इसराइल और ईरान के बीच सैनिक-भिड़ंत से इस बात की पुष्टि भी हुई.

अब क्या होगा?

बहरहाल अब इसराइल, ईरान और फलस्तीनियों के अलावा अरब देशों के अगले कदम बहुत महत्वपूर्ण होंगे. सबसे पहला कदम होगा फलस्तीनियों के पुनर्वास और इस इलाके में पुनर्निर्माण का. यह काम अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की निगरानी में होगा और इसमें अमेरिका और अरब देशों की बड़ी भागीदारी होगी. संभव है कि चीन भी इस काम में पूँजी निवेश की संभावनाएँ देखे.

स्थायी शांति-स्थापना के लिए फलस्तीनियों की आकांक्षाओं को किसी भी समझौते में समायोजित करने की जरूरत होगी. ऐसा तभी संभव है जब सभी पक्ष सद्भावना और दीर्घकालीन समझदारी के साथ काम करें.

पर क्या ऐसा संभव है और क्या राजनीतिक उद्देश्य भुला दिए जाएँगे? जिस शाम समझौते की घोषणा हुई उसी शाम ईरान के सरकारी टेलीविज़न चैनल ने शाम के अपने मुख्य समाचार में इस समझौते को इसराइल की 'सबसे बड़ी हार' घोषित किया था.

चैनल ने कहा कि अपने तमाम संसाधन झोंकने के बावजूद हमास को ख़त्म करने में इसराइल नाकामयाब रहा. यह युद्धविराम को ईरान के 'रेज़िस्टेंस फ़्रंट' की जीत है. इसे लेकर फ़लस्तीन, लेबनान, यमन, इराक़, तुर्की और दूसरे देशों में जश्न मनाया गया. ईरानी मीडिया ने कहा कि इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 'घुटने टेक दिए' हैं. वे समझौते को स्वीकार करने के लिए मज़बूर हुए हैं.

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किसकी मज़बूरी?

ईरान के आलोचक मानते हैं कि ट्रंप की नीतियों के डर से, हमास को युद्धविराम स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उनका सवाल है कि हमास और 'रेज़िस्टेंस' ने 7अक्तूबर के हमले से हासिल क्या किया? ट्रंप के 'प्रभाव' के बिना समझौता नहीं हो सकता था.

सवाल घुटने टेकने या मज़बूरियों का नहीं है, बल्कि यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में शांति-स्थापना का रास्ता क्या है? देखना यह भी होगा कि इस समझौते के बाद बिन्यामिन नेतन्याहू के नेतृत्व में सरकार का क्या होगा? उसे ताकत मिलेगी या हार?

नेतन्याहू-विरोधी मानते हैं कि समझौता होने में मुख्य अड़चन बिन्यामिन नेतन्याहू थे. लड़ाई को पहले महीने में ही रोका जा सकता था, पर नेतन्याहू की ज़िद और बाइडन प्रशासन की ओर से उसे मिले समर्थन के कारण लड़ाई इतनी लंबी खिंच गई.

फलस्तीनी-राजनीति

बहरहाल युद्ध विराम गज़ा के घिरे लोगों के लिए पहली बड़ी राहत है. नवंबर 2023में संक्षिप्त विराम के बाद यह उम्मीद का पहला संकेत है, जिसमें 300फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई के बदले में 251में से 41इसराइली बंधकों को रिहा किया गया था. इसराइल का कहना है कि 94अब भी बंधक हैं, जिन्हें वापस नहीं किया गया है. अंदेशा है कि इनमें से 34की मृत्यु हो चुकी है.

दूसरी तरफ नेतन्याहू को अपने देश में और विदेश में भी हमलों का सामना करना होगा. उन्हें अंतरराष्ट्रीय अदालतों में युद्ध-अपराध के आरोपों का सामना भी करना होगा.

नेतन्याहू की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और हमास के अड़ियल रवैये के कारण सद्यः स्थापित शांति के बिगड़ने का खतरा बना रहेगा. इसराइल ने युद्ध विराम के बाद गज़ा में हमास की किसी भी सार्थक भूमिका को मानने से इनकार किया है.

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फतह गुट की भूमिका

समझौतों को लागू कराने के लिए फलस्तीन के वैध पक्ष को भी तैयार करना होगा. हमास को दुनिया स्वीकार नहीं करती और इसराइल ने हमास के एकमात्र विकल्प, फलस्तीनी प्राधिकरण को व्यवस्थित तरीके से कमज़ोर कर दिया है.

बहरहाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त ग्रुप भी प्राधिकरण या फतह गुट है, जो गज़ा पट्टी के प्रशासन में केंद्रीय भूमिका निभाएगा. 80वर्षीय बुज़ुर्ग महमूद अब्बास के नेतृत्व के लिए यह काम आसान नहीं होगा.

गज़ा पट्टी में काफी नुकसान उठाने के कारण यासर अरफात 2001में अपना मुख्यालय जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थिति रामल्ला में ले गए थे. तब से उनके उत्तराधिकारी महमूद अब्बास ने गज़ा में कदम नहीं रखे हैं.

जून 2007 में हमास ने गज़ा पट्टी पर पक्के तौर पर कब्ज़ा कर लिया और एक तरह से फलस्तीनी क्षेत्र दो हिस्सों में विभाजित हो गया. हमास और अन्य उग्रवादी फलस्तीनी समूहों या उनके नेताओं को वैश्विक मान्यता प्राप्त नहीं है.

इसराइली रणनीति

हाल के संघर्ष में इसराइल ने याह्या सिनवार, इस्माइल हानिये और मोहम्मद देफ सहित हमास के कई वरिष्ठ नेताओं को खत्म कर दिया है. इसराइल ने हमास के बुनियादी ढाँचे को काफी हद तक नष्ट कर दिया है.

इस लड़ाई के दौरान हमास, हिज़्बुल्ला और सीरिया के अलावा ईरान को काफी नुकसान पहुँचा है. अब अमेरिका में ट्रंप-प्रशासन की नीतियों स्थितियों का तत्काल अनुमान लगा पाना मुश्किल है,

नेतन्याहू पर भी कई दिशाओं से दबाव हैं. उनके वित्तमंत्री बेज़ेल स्मोट्रिच और सुरक्षा मंत्री इटमार बेन-ग्वीर ने इस सौदे का विरोध किया है. उनकी संसद में बहुत से नाराज़ लोग हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री को असहमति-नोट भेजा है. इसमें कहा गया है कि इसराइल की सुरक्षा को खतरे में न डालें.

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इसराइल हटेगा?

इसराइल ने बार-बार कहा है कि हम गज़ा पट्टी से पूरी तरह से नहीं हटेंगे, जिसका मतलब है कि इसराइली सेना को नेत्ज़ारिम कॉरिडोर में तैनात रखने की कोशिश होगी. यह कॉरिडोर गज़ा पट्टी को दो भागों में बाँटता है.

गज़ा-मिस्र सीमा पर स्थित फिलाडेल्फ़िया कॉरिडोर नाम की पतली सी पट्टी पर भी इसराइल अपना नियंत्रण चाहेगा. यह वह जगह है, जहाँ से हमास खुद को पुनर्गठित करने की कोशिश कर सकता है. 

लड़ाई रुकने के बाद अब फलस्तीनी लोग उत्तरी गज़ा की तरफ जाएँगे. उनके घर तबाह हो चुके हैं, उनके पुनर्वास की जरूरत है. दोनों पक्षों की क्रूर-कहानियाँ भी प्रकाश में आएँगी. इसराइली सुरक्षा तंत्र और इंटेलिजेंस की विफलता का ज़िक्र भी होगा, जिसके कारण 7अक्तूबर का हमला संभव हुआ. बहरहाल उसके पहले देखिए कि होता है क्या.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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