देस-परदेस : पाकिस्तान के गले की हड्डी बना बलोचिस्तान

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 18-03-2025
Des-Pardes: Balochistan has become a thorn in Pakistan's throat
Des-Pardes: Balochistan has become a thorn in Pakistan's throat

 

permodप्रमोद जोशी

बलोचिस्तानी-आंदोलन ने पाकिस्तानी सिस्टम का पर्दाफाश कर दिया है. हाल में हुए ट्रेन अपहरण से जुड़ी ‘आतंकी-गतिविधियों’ को लेकर हालाँकि सरकारी तौर पर दावा किया गया है कि उनका दमन कर दिया गया है, पर इस सरकारी दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. 

बलोच आतंकवादी समूहों ने एक ‘राष्ट्रीय सेना’ शुरू करने की घोषणा की है. इनकी मजीद ब्रिगेड आत्मघाती हमले कर रही है. पहले, उनके पास आत्मघाती हमलों की ऐसी क्षमता नहीं थी.

11मार्च को अपहरण हुआ और करीब 48घंटे तक मोर्चाबंदी जारी रही, फिर भी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ट्रेन में कुल कितने यात्री थे और कितने वापस आए. कई संख्याएँ मीडिया में तैर रही हैं.

सेना कहती है कि सारे बंधक ‘छुड़ा’ लिए गए हैं, वहीं दूसरे सूत्र बता रहे हैं कि बड़ी तादाद में पाकिस्तानी फौजियों को बलोच लिबरेशन आर्मी ने बंधक बना लिया है. या उनकी हत्या कर दी गई है. इन बंधकों की संख्या सौ से ढाई सौ के बीच बताई गई है. बलोच विद्रोहियों का दावा है कि उन्होंने बंधक बनाए गए 200से ज्यादा जवानों की हत्या कर दी है.

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बलोच आंदोलन

बलोच लिबरेशन आर्मी या बीएलए पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूह है, जो एक स्वतंत्र बलोच राज्य की वकालत करता है. बलोच (या बलूच) लोग पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत, दक्षिण-पूर्वी ईरान और दक्षिणी अफ़गानिस्तान में फैले क्षेत्र के मूल निवासी एक जातीय समूह हैं. उनकी एक अलग भाषाई, सांस्कृतिक और जनजातीय पहचान है, उनकी अपनी भाषा बलोची है, जो ईरानी भाषा परिवार से संबंधित है.

इस समूह ने हाल के वर्षों में अपने हमलों को बढ़ा दिया है, सुरक्षा बलों, बुनियादी ढांचे और विदेशी निवेशों को निशाना बनाया है, खासकर चीन से. बीएलए के ऑपरेशन व्यापक विद्रोह का हिस्सा हैं जो पाकिस्तान के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक में दशकों से चल रहा है.

दिसंबर, 2014में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए हमले के बाद से देश में लगातार हमले हो रहे हैं और किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि समस्या का समाधान क्या है. अब सवाल है कि क्या बलोचिस्तान पर पाकिस्तान का नियंत्रण रह पाएगा?

खबरें यह भी हैं कि सेना के ऑपरेशन के दौरान जो मौतें हुई हैं, उनमें भी पाकिस्तानी फौजी शामिल हैं, क्योंकि सेना ने भी अंधाधुंध गोलीबारी की थी. इन बातों को लेकर एक हफ्ते बाद भी तस्वीर बहुत साफ नहीं है. घटनास्थल तक स्वतंत्र मीडिया की पहुँच है नहीं, इसलिए जानकारी पाना आसान भी नहीं.

भारत पर आरोप

पाकिस्तानी सेना ने करीब तीन दिन की चुप्पी के बाद इस मामले के तार भारत से जोड़कर अपनी अकुशलता पर पर्दा ही डाला है, जो उन्हें जनता के गुस्से से बचने का आसान रास्ता लगता है. सच यह है कि इस घटना से सेना और सरकार दोनों की साख बुरी तरह गिर गई है. इमरान खान की पार्टी तहरीके इंसाफ के आंदोलन के कारण यह साख पहले से गिरी हुई है.

पाकिस्तान सरकार ऐसे सवालों का जवाब देने के बजाय इस बात को ज्यादा प्रचारित कर रही है कि ‘आतंकवादी’ सैटेलाइट फोन के ज़रिए अफ़गानिस्तान में अपने समर्थकों और मास्टरमाइंड से संपर्क में थे और इसका मास्टरमाइंड भारत है.

14मार्च को सेना ने अपने संवाददाता सम्मेलन में 15साल पुरानी वीडियो-क्लिपिंग्स दिखाकर इसके पीछे भारत का हाथ दिखाने की कोशिश की. आईएसपीआर प्रमुख ने चेतावनी दी है कि यह हमला ‘खेल के नियमों को बदल देगा.’ लगभग ऐसी ही बात भारत ने मुंबई पर हुए 26/11के हमले के बाद कही थी. अब इस बात से पाकिस्तान की आशय क्या है, वही जानें.

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हमेशा धोखा मिला

इस आरोप का जवाब भारत के विदेश मंत्रालय ने दे दिया था, पर ज्यादा अच्छा जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है. हाल में अमेरिकी पॉडकास्टर लैक्स फ्रिडमैन से बातचीत के दौरान उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि दुनिया में जहाँ कहीं भी आतंकी हमला होता है, उसके तार पाकिस्तान से जुड़ते हैं.

उदाहरण के लिए, 11सितंबर के हमलों को ही लें. इसके पीछे मुख्य सूत्रधार ओसामा बिन लादेन, वह आखिरकार कहां से मिला? उसने पाकिस्तान में शरण ली थी. दुनिया पहचान चुकी है कि पाकिस्तान केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए परेशानी का केंद्र बन गया है.

भारत लगातार उनसे सरकार द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को छोड़ने के लिए कहता रहा है. यहां तक कि प्रधानमंत्री बनने के बाद शांति के प्रयास में मैं स्वयं लाहौर गया था.

उन्होंने कहा कि जब मैं पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहा था तो पाकिस्तान को विशेष रूप से आमंत्रित किया, ताकि हम एक शुभ शुरुआत कर सकें. लेकिन हर अच्छे प्रयास का परिणाम नकारात्मक निकला.

संगठित-प्रतिरोध

हाल में बलोचिस्तान के पूर्व मुख्यमंत्री अख्तर मेंगल ने ट्वीट किया, ‘बलोचिस्तान का एक इंच भी नहीं बचा है जहाँ सरकार अधिकार का दावा कर सके. वे इस लड़ाई को पूरी तरह से और हमेशा के लिए हार गए हैं.’

उनके पहले जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के अध्यक्ष मौलाना फज़लुर रहमान ने पाकिस्तान की सीनेट में कहा कि बलोचिस्तान के 6-7जिले पूरी तरह से आतंकियों के कब्जे में हैं. पाकिस्तान सरकार या पाकिस्तान सेना का वहाँ कोई नियंत्रण नहीं है.

यह भी स्पष्ट है कि प्रतिरोधी बलोच-सेना (अब इसे सेना कह सकते हैं) का  तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के साथ-साथ काफी अच्छा समन्वय है. काफी समय बाद उनका यह बड़ा हमला है, पर गौर से देखें, तो पाएँगे कि हमलों की संख्या बढ़ती जा रही है.

अकेले 2024में एक हजार से ज्यादा हमले हुए हैं, जो 2023की तुलना में दोगुने से भी अधिक हैं. बलोच-प्रतिरोध की दो प्रवृत्तियाँ गौर करने वाली हैं. एक-दो दशक पहले तक ये लोग मामूली हथियारों को लेकर लड़ रहे थे, पर अब इनके पास बेहतर हथियार और ट्रेनिंग है.

ट्रेन अपहरण के बाद इन्होंने जो वीडियो जारी किया है, उससे यह भी पता लगता है कि उनके पास प्रचार का नेटवर्क और टेक्नोलॉजी भी है. उस वीडियो में एनिमेशन का इस्तेमाल किया गया है.

दूसरे यह बात भी दिखाई पड़ रही है कि अब इस प्रतिरोध के पीछे कबायली सरदारों की ताकत नहीं है, बल्कि मध्यवर्ग के पढ़े-लिखे नौजवान हैं, जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर और वकील भी शामिल हैं. इनमें महिलाएँ भी आगे बढ़कर हिस्सा ले रही हैं. इन्हें अपने इलाके की जनता का भरपूर समर्थन हासिल है.

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अपनी लगाई आग

ताज़ा-प्रकरण की सरकारी सूचना में तमाम झोल हैं, जिनसे लगता है कि देश की सेना बातों को छिपाने को ही प्रशासनिक-कौशल समझती है. वस्तुतः यह देश अपनी ही लगाई आग में झुलसता जा रहा है.

पाकिस्तानी सेना की संस्था इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने 12मार्च को घोषणा की  जाफर एक्सप्रेस ट्रेन के अपहरण के बाद शुरू हुआ सैनिक-अभियान पूरा हो गया है.

उन्होंने यह बात दुनिया न्यूज़ शो 'ऑन द फ्रंट' पर एक साक्षात्कार में कही. विस्मय की बात थी कि इतनी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए उन्होंने संवाददाता सम्मेलन बुलाना भी ठीक नहीं समझा. इतना ही नहीं, सरकारी टीवी और रेडियो ने दो दिन इस अपहरण की खबरों को कवर ही नहीं किया.

दो दिन बाद 14मार्च को सेना ने इस सिलसिले में औपचारिक संवाददाता सम्मेलन बुलाया. सेना कहती है कि ‘आतंकवादियों’ ने महिलाओं और बच्चों सहित बंधकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया. दूसरी तरफ बलोच लिबरेशन आर्मी का कहना है कि हमने यात्रियों को जाने दिया और केवल फौजियों को बंधक बनाया था.

प्रतिरोधी-तंत्र

‘पाकिस्तान डेली’ ने पाकिस्तानी-प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़े इस गठजोड़ को समझने के लिए एक विशेषज्ञ से बात की, जिनका कहना है कि 2021में काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से स्थिति बदली है. 2021से पहले, ईरान, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में अलग-अलग चरमपंथी तंत्र थे.

तालिबान की सफलता के बाद, तीनों ने एक नया, बहुत अधिक शक्तिशाली तंत्र बना लिया है. जिसे अफ़गान तालिबान का समर्थन प्राप्त है. इनमें ‘फ्रीलांसर’ भी हैं, जो कीमत लेकर अपनी सेवाएँ बेचते हैं. इन सेवाओं में आत्मघाती बम विस्फोट प्रशिक्षण, भाड़े के सैनिक आदि शामिल हैं. ये खुफिया जानकारी भी उपलब्ध कराते हैं.

पाकिस्तान का बलोचिस्तान प्रांत ईरान और अफगानिस्तान दोनों के साथ सीमा साझा करता है. इससे चीजों को संभालना और भी जटिल हो जाता है. ट्रेन अपहरण के लिए जिम्मेदार बीएलए समूह की मौजूदगी ईरान और अफगानिस्तान दोनों में है.

इनमें तमाम समूह ऐसे भी हैं, जिनके आपसी मतभेद हैं, पर उनका लक्ष्य एक ही है. उनके रिश्ते एक-दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं हैं और पहले भी सहयोग कर चुके हैं.

पाकिस्तानी सेना के पास सैन्य क्षमताएं हैं, लेकिन स्थानीय समर्थन कम होता जा रहा है. खैबर पख्तूनख्वा के कई हिस्सों में दिन में सरकारी नियंत्रण नहीं है.  रात में स्थिति और खराब हो जाती है.

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सबसे बड़ा सूबा

भूमि क्षेत्र के हिसाब से बलोचिस्तान, देश का सबसे बड़ा प्रांत है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44प्रतिशत है. हालाँकि, यह सबसे कम आबादी वाला प्रांत है, जहाँ पाकिस्तान की कुल आबादी का केवल 6से 7प्रतिशत हिस्सा रहता है.

इसके पहले नवंबर 2024में क्वेटा के रेलवे स्टेशन पर हुए घातक बम विस्फोट में दर्जनों लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए, जो हाल के वर्षों में पाकिस्तान में हुए सबसे विनाशकारी हमलों में से एक था. बीएलए ने जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि यह बलोचिस्तान में सैन्य अभियानों का जवाब था.

पिछले साल बीएलए ने देश के सबसे बड़े शहर कराची में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निकट चीनी नागरिकों को ले जा रहे एक काफिले को निशाना बनाकर किये गए घातक बम विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी.

2022में, दो बच्चों की माँ और एक स्कूल शिक्षिका, 30वर्षीय शैरी बलोच ने कराची में एक आत्मघाती बम विस्फोट किया, जिसमें वह और तीन चीनी शिक्षकों सहित चार अन्य मारे गए. बीएलए ने 2020में कराची स्टॉक एक्सचेंज की इमारत पर हमला किया था, जिसका आंशिक स्वामित्व चीनी संघ के पास है, और 2018में कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया था.

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सीपैक पर निशाना

बीएलए ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के तहत परियोजनाओं में शामिल चीनी श्रमिकों और इंजीनियरों को बार-बार निशाना बनाया है. हमलों में गोलीबारी, आत्मघाती बम विस्फोट और चीनी कर्मियों को ले जाने वाले काफिले पर घात लगाकर हमला करना शामिल है.

बीएलए चीन के निवेश को शोषणकारी और बलोच स्वायत्तता के लिए खतरा मानता है. उसने बार-बार चीनी नागरिकों और परियोजनाओं पर हमला किया है, खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से जुड़ी परियोजनाओं पर.

पाकिस्तान में सक्रिय कई अन्य आतंकवादी समूहों के विपरीत, बीएलए सेक्युलर अलगाववादी आंदोलन है जो इस्लामी राज्य की स्थापना के बजाय बलोचिस्तान की स्वतंत्रता चाहता है.

तीन बड़े विद्रोह

बलोचिस्तान संघर्ष की शुरुआत 1947में हुई थी जब पाकिस्तान ने स्वतंत्रता प्राप्त की और बलोचिस्तान को इसमें शामिल कर लिया, जिसका कई बलोच राष्ट्रवादियों ने विरोध किया था. तब से, इस क्षेत्र में कई विद्रोह हुए हैं, जिनमें 1950, 1970और 2000के दशक की शुरुआत में बड़े विद्रोह हुए.

2021 में हमलों की तीव्रता और आवृत्ति तेजी से बढ़ने लगी. पाकिस्तानी आंकड़ों के अनुसार, 2020 की तुलना में 2021 में बलोचिस्तान में आतंकवादी हमलों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई. ये हमले बढ़ते ही जा रहे हैं.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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