सामूहिक भागीदारी से आदर्श गांव का निर्माण संभव

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-01-2025
Creation of an ideal village is possible through collective participation
Creation of an ideal village is possible through collective participation

 

sumamसुमन

किसी भी देश के विकास की संकल्पना केवल महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों की संख्या से ही नहीं होती है बल्कि इसमें गांव की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. विशेषकर ऐसा गांव जिसे आदर्श गांव की संज्ञा दी जा सके. एक आदर्श गांव वह है जहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं, सामाजिक सद्भाव, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ साथ विकास और रोजगार के क्षेत्र में भी अवसर उपलब्ध हों.

वास्तव में, एक आदर्श गांव की परिभाषा केवल बुनियादी ढांचे या संसाधनों के विकास तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि इसमें सभी वर्गों के लोगों का विकास भी होता है. साथ ही, इसमें समृद्धि, आत्मनिर्भरता और आपसी सहयोग की भावना भी शामिल होती है.

ऐसा ही एक गांव राजस्थान के अजमेर जिला स्थित धुवालिया नाड़ा है. जहां सामूहिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण न केवल सरकारी योजनाओं के प्रति जागरूक हैं बल्कि इनमें अधिकतर इसका लाभ उठाकर विकास की ओर अग्रसर हैं. 

अजमेर से तीस किमी दूर रसूलपुरा पंचायत स्थित इस गांव में जब हम पहली बार योजनाओं से जुड़ी जागरूकता के बारे में जानकारी लेने गये तो ऐसा लगा कि यह गांव इतना सक्षम नहीं होगा कि वहां किसी को भी किसी सरकारी योजना के बारे में जानकारियां होंगी.

लेकिन जब गांव वालों से मिले तो कई भ्रम दूर हो गए. गांव वालों का कहना था कि आबादी की दृष्टिकोण से भले ही हमारा गांव छोटा है लेकिन यहां के लोग योजनाओं के बारे में जानते हैं और हमें विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलता है.

हमने देखा कि इस गांव की सड़क पक्की है. जिससे आवागमन के साधन उपलब्ध हैं. एक आदर्श ग्राम में शिक्षा के मौलिक अधिकार को प्राथमिकता दी जाती है. जहां बच्चों, विशेषकर लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जाती है. यहां एक प्राथमिक और एक 12वीं कक्षा तक का स्कूल है, जिससे अधिकांश विद्यार्थी गांव में ही रहकर 12वीं कक्षा तक पढ़ाई करते हैं. 

इसका सबसे बड़ा लाभ गांव की लड़कियों को होता है जिन्हें पढ़ाई के लिए गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता है. इस संबंध में गांव के 50 वर्षीय मेवालाल सिंह बताते हैं कि पहले की तुलना में अब इस गांव के अभिभावकों में शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है.

वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. गांव में 3 से 18 वर्ष की उम्र के करीब 150 से अधिक बच्चे हैं. जो आंगनबाड़ी से लेकर उच्च विद्यालयों तक में पढ़ते हैं. हालांकि लड़कों की तुलना में लड़कियों को पढ़ाने के मामले में अभी भी लोग संकुचित सोच रखते हैं.

लेकिन 10वीं और 12वीं में लड़कियों ने अच्छे नंबर लाकर बहुत सारे अभिभावकों को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया है. वह बताते हैं कि उनकी तीनों पोतियां भी स्कूल और कॉलेज जाती हैं. हालांकि कॉलेज के लिए उन्हें अजमेर शहर जाना पड़ता है.

जहां तक पहुंचना अभी भी गांव में आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों की लड़कियों के लिए बाधा है. यदि गांव के करीब ही लड़कियों के लिए कॉलेज खुल जाए तो परिस्थितियां और बेहतर हो जाएंगी.आर्थिक रूप से पिछड़े धुवालिया नाडा रसूलपुरा पंचायत का एक छोटा गांव है. जिसमें लगभग 100 घर हैं. जिसकी कुल आबादी 650 के आसपास है.

यहां अनुसूचित जनजाति भील और रैगर समुदाय की बहुलता है. वहीं कुछ घर अल्पसंख्यक समुदाय के भी हैं. वहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी यहां अच्छी पहल देखने को मिली. इस संबंध में 65 वर्षीय तारा बाई कहती हैं कि धुवालिया नाड़ा में संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र न केवल सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है बल्कि यहां साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि बीमारियां न फैलें और प्रत्येक नागरिक स्वस्थ जीवन जी सके.

वह कहती हैं कि गांव के अधिकांश लोग कृषि कार्य में लगे हुए हैं, जिसमें आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर कृषि की बेहतर पद्धतियों को अपनाने में किया जाता है. लेकिन रोज़गार के मामले में कुछ बेहतर किया जाना चाहिए ताकि यहां के लोगों को कमाने के लिए शहर जाने की ज़रुरत न पड़े. इसके लिए गांव में ही रोजगार के अवसर प्रदान कर उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार किया जा सकता है.

इस संबंध में गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता भंवर सिंह कहते हैं कि 'किसी भी आदर्श गांव के निर्माण के लिए सामूहिक भागीदारी उसके विकास की नींव होती है. यह महत्वपूर्ण है कि गांव की सभी गतिविधियों में वहां के निवासियों को शामिल किया जाए.

जिससे उन्हें ऐसा लगता है जैसे यह उनका अपना काम है. ऐसे में गांव के विकास और समृद्धि के लिए जो भी करना होता है वह करने को तैयार रहते हैं. ग्राम पंचायत के पास नागरिक सेवा का अधिकार है. जिसके माध्यम से धुवालिया नाड़ा गांव के सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जाता है.

वह बताते हैं कि पंचायत की ओर से इस बात का प्रयास किया जाता है कि गांव में सभी के कागजात पूरे हों ताकि उन्हें योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े. आदर्श गांव की परिकल्पना के बारे में 12वीं की छात्रा श्रेया कहती है कि 'हमारे गांव में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है.

ग्रामीण स्वयं ही गांव को साफ़ रखते हैं और कचरे का उचित निस्तारण करते हैं. जिससे यहां अन्य गांव की तुलना में सफाई अधिक नज़र आएगी. इसमें सामूहिक भागीदारी की काफी अहम भूमिका होती है.एक आदर्श गांव में जल, जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग और संरक्षण किया जाता है.

जो धुवालिया नाड़ा में देखने को मिलती है. गांव में जल संरक्षण के प्रयास किये जाते हैं. इसके अलावा पेड़-पौधे लगाने और पर्यावरण की रक्षा पर भी जोर दिया जाता है. एक आदर्श गांव वह है जहां लोगों को जीवन की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों, वे आत्मनिर्भर हों, परस्पर प्रेम और सम्मान रखें और अपने संसाधनों का उचित उपयोग करें.

हम सभी को अपने-अपने गांवों और क्षेत्रों को धुवालिया नाड़ा गांव की तरह विकसित करने की ज़रूरत है. इसके लिए अभी से कदम उठाने होंगे तभी हम अपने गांव की सफलता की कहानियां भी दूसरों तक पहुंचा पाएंगे. (चरखा फीचर्स)