प्रमोद जोशी
पहले ईरान के इसराइल पर और अब ईरान पर हुए इसराइली हमलों के बाद वैश्विक-शांति को लेकर कुछ गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. एक तरफ लगता है कि हमलों का यह क्रम दुनिया को एक बड़े युद्ध की ओर ले जा रहा है. दूसरी तरफ दोनों पक्ष सावधानी से अपने कदम बढ़ा रहे हैं, जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि मौके की भयावहता का उन्हें अंदाज़ा है.
क्या लड़ाई को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है? पश्चिम एशिया में स्थायी शांति की स्थापना क्या संभव ही नहीं है? दुनिया की बड़ी ताकतों को क्या संभावित तबाही की तस्वीर नज़र नहीं आ रही है ? बेशक टकराव जारी है, लेकिन अभी तक के घटनाक्रम से सबक लेकर दोनों पक्ष, भविष्य में बहुत कुछ सकारात्मक भी कर सकते हैं, जिसका हमें अनुमान नहीं है. लड़ाई के भयावह परिणामों को दोनों पक्ष भी समझते हैं. इसे भय का संतुलन भी कह सकते हैं.
बड़ी पहल का इंतज़ार
दुनिया तेजी से बदल रही है. पश्चिम एशिया में अमेरिका का असर पहले के मुकाबले कम होता जा रहा है. उसपर भी इस इलाके की पहेली को सुलझाने का दबाव है. वहाँ राष्ट्रपति-चुनाव अब एक हफ्ता दूर है. ऐसे में उसकी ओर से किसी साहसिक और नई पहल की उम्मीद फौरन नहीं है.
इसराइली हमले के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामनेई ने कहा है कि ईरानी अधिकारियों को यह तय करना चाहिए कि वे इसराइल के सामने ईरान की शक्ति का सर्वोत्तम प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं. ऐसा करने का वही तरीका अधिकारियों को तय करना चाहिए, जो लोगों और देश के सर्वोत्तम हित में हो.
इस बयान के पीछे की संज़ीदगी को पढ़ें. 1अक्तूबर को ईरान ने इसराइल पर हमले के बाद कहा था कि हमने जवाब दे दिया है, जो पूरा हो गया है. इसराइल को इसका जवाब देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. अब इसराइल ने भी यही कहा है कि हमने अपना जवाब दे दिया है, जो पूरा हो गया है.
इसराइली हमले के बाद ईरान ने क्षति को ‘मामूली’ बताया है. इसके पीछे दूसरी वजहों के साथ एक आशय यह भी है कि वह आवेश को काबू में रखना चाहता है. आयतुल्ला के बयान को इसी रोशनी में पढ़ना चाहिए.
अमेरिकी चेतावनी
अमेरिका ने ईरान को चेतावनी दी है कि इसराइल पर अब हमला हुआ, तो हम उसका साथ देंगे. अमेरिका की तरफ से जो भी होगा, उसे नया अमेरिकी-प्रशासन तय करेगा. इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने हाल में भरोसे के साथ घोषणा की है कि पश्चिम एशिया में ऐसी कोई जगह नहीं बची है जहाँ तक इसराइल की पहुँच नहीं हो.
ईरान के लोगों को सीधे संबोधन में, नेतन्याहू ने यह संकेत भी दिया कि ईरान की सरकार में बदलाव होने जा रहा है. कौन करेगा बदलाव? पता नहीं इसके पीछे कोई रहस्य है या सिर्फ प्रचार. 2003में इराक पर अमेरिका के नेतृत्व में हुए आक्रमण से पहले अमेरिकी नेता भी ऐसी बातें कहते थे, पर इराक में वैसा कुछ नहीं हुआ. जैसा अमेरिका चाहता था.
जून 2019में, ईरान ने जब अमेरिकी नौसेना के एक टोही-विमान को मार गिराया, तब लगा कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान पर हमला करने का आदेश देंगे. ऐसा हुआ नहीं. अलबत्ता उसके सात महीने बाद, उन्होंने ईरान के शीर्ष जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का आदेश भी दिया.
अरब देशों की भूमिका
वैश्विक ताकतों के अलावा इस मामले में अरब देशों की भूमिका भी कसौटी पर है. उन्होंने इसराइली हमले की आलोचना की है, पर उससे ज्यादा कुछ नहीं कहा. कठोर भाषा का प्रयोग करने या कोई ठोस कार्रवाई करने से परहेज किया है.सऊदी अरब और ईरान ने हाल में राजनयिक संबंध फिर से स्थापित कर लिए हैं, फिर भी इन रिश्तों को दोस्ताना नहीं कहा जा सकता है.
खासतौर से यमन, सीरिया और इराक में दोनों के हित टकराते हैं.हाल के वर्षों में मिस्र और ईरान के बीच भी घनिष्ठ संबंध नहीं रहे हैं. एक दशक से भी अधिक समय पहले पूर्व मुस्लिम ब्रदरहुड के राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी की सरकार गिराए जाने के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है.
ओमान सल्तनत के ईरान के साथ पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंध रहे हैं, पर उसके पश्चिमी देशों के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं. सल्तनत ने हाल के वर्षों में ईरान और अमेरिका सहित पश्चिमी सरकारों के बीच कई बार गुप्त वार्ताएं आयोजित की हैं.मिस्र और ओमान की तरह कतर ने भी हाल के वर्षों में ईरान और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों से जुड़े संघर्षों में मध्यस्थ की भूमिका निभाई है, विशेष रूप से गज़ा में चल रहे संघर्ष में.
नुकसान का लेखा-जोखा
अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसराइली हमले से ईरान को किस प्रकार की क्षति पहुँची है. उसके एटमी-संस्थानों को कोई नुकसान तो नहीं पहुँचा है. इसराइली सेना ने दावा किया है कि उसने ईरान की मिसाइल निर्माण सुविधाओं, सतह से हवा में मार करने वाले मिसाइल-भंडारों और सैन्य महत्व के अन्य स्थलों सहित लगभग 20लक्ष्यों को निशाना बनाया.
यह साफ है कि इसराइली लक्ष्यों में ईरान के संवेदनशील परमाणु प्रतिष्ठान और खनिज-तेल सुविधाएँ शामिल नहीं थीं. ईरानी अधिकारियों ने कहा कि तेहरान, खुज़स्तान और इलम प्रांतों में स्थित स्थलों को निशाना बनाया गया, साथ ही उन्होंने कहा कि देश की वायुरक्षा प्रणालियों ने हमलों को सफलतापूर्वक रोक दिया हालांकि कुछ क्षेत्रों में सीमित क्षति हुई.
संयम का संकेत
शुरूआती विवरणों से ऐसा लगता है कि इसराइल के हमले उतने बड़े नहीं थे, जितने का पहले से अंदेशा था. शायद वह भी लड़ाई को बहुत आगे तक ले जाने का इच्छुक नहीं है.इस सिलसिले में ‘ओपन-इंटेलिजेंस’ से जुड़ी संस्थाएं और विशेषज्ञ बेहतर जानकारी देंगे.
दो अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा अलग-अलग किए गए आकलनों के अनुसार, वाणिज्यिक उपग्रह चित्रों से पता चला है कि शनिवार को हुए हमले के दौरान इसराइली हवाई हमलों में वे इमारतें नष्ट हो गईं, जिनका उपयोग ईरान बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए ठोस ईंधन मिलाने के लिए करता था.
उन्होंने रॉयटर्स को बताया कि इसराइल ने तेहरान के पास एक विशाल सैन्य परिसर पारचिन और तेहरान के पास एक विशाल मिसाइल उत्पादन स्थल खोजिर पर हमले किए. खोजिर का बड़े पैमाने पर विस्तार हो रहा है.देखना यह भी होगा कि इस इसराइली हमले के जवाब में ईरान भी क्या हमला करेगा? या यह मान लिया जाए कि दोनों देशों ने सीमित-आक्रमण करके अपनी आंतरिक-राजनीति को संतुष्ट कर लिया है?
ईरान की एटमी-सामर्थ्य
एक और सवाल ईरान की एटम-सामर्थ्य को लेकर है. विदेश-नीति से जुड़े अमेरिकी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ईरान परमाणु हथियार हासिल कर लेगा, तो-अस्थिरता पैदा हो जाएगी. विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इसराइल पर ईरान एटमी हमला करेगा, तो वह खुद आत्मघाती कदम उठाएगा. फिर भी किसी भी वक्त गलती से भी कुछ हो गया, तो वह स्थिति भयावह होगी.
ईरान के पास अभी तक कोई नाभिकीय-अस्त्र नहीं है, लेकिन आरोप है कि वह अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करते हुए खुफिया तौर पर हथियार बना रहा है. उसके पास परमाणु हथियार बनाने के लिए पर्याप्त ज्ञान और बुनियादी ढाँचा है.ईरान के पास पचास से ज़्यादा वर्षों से चल रहा असैन्य परमाणु-ऊर्जा कार्यक्रम है.
लंबे समय से यह कहा जाता रहा है कि यह पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है. लेकिन इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में उसके गुप्त परमाणु स्थलों और अनुसंधान के बारे में जानकारी भी उजागर हुई थी.
नाभिकीय-समझौता
ईरान का परमाणु कार्यक्रम तब से गहन अंतरराष्ट्रीय बहस और डिप्लोमेसी का विषय रहा है, जिसकी परिणति 2015के परमाणु समझौते में हुई. अमेरिका ने 2018में एकतरफा तौर पर उस समझौते से खुद को अलग कर लिया. अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक मानते हैं कि तब से ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधियों का बहुत विस्तार कर लिया है.
हाल के हफ़्तों में, हमास, हिज़्बुल्ला और ईरान से तनातनी के बीच, कई पर्यवेक्षकों ने सवाल किया है कि ईरान को एटम बम हासिल करने से रोकने के लिए क्या इसराइल हमला करेगा. इसराइल ने अतीत में ऐसा करने की इच्छाशक्ति दिखाई है. 1981में इराक और 2007में सीरिया की परमाणु रिएक्टर साइटों पर उसने हमले किए हैं.
इसी महीने रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी अधिकारियों ने अपने एक पुराने खुफिया-आकलन की पुष्टि की है, जिसके अनुसार ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं. उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस वक्त ईरान एटमी-हथियारों के विकास से जुड़ी गतिविधियों को अंजाम नहीं दे रहा है.
ईरानी नज़रिया
अप्रैल 2024 में ईरान के एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा, ईरान ने बार-बार कहा है कि हमारा परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है. हमारे परमाणु सिद्धांत में परमाणु हथियारों का कोई स्थान नहीं है.बावजूद इसके विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ईरान कुछ ही महीनों में हथियार के लिए पर्याप्त विखंडनीय सामग्री का उत्पादन कर सकता है.
2015 में ईरान के साथ किए गए नाभिकीय समझौते का एक उद्देश्य उसकी परमाणु गतिविधियों पर अंकुश लगाना था, ताकि ईरान को हथियार बनाने में कम से कम एक वर्ष का समय लगे, ताकि प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त चेतावनी मिल सके.2018 में समझौते से अमेरिका के हटने के बाद, ईरान ने अपनी परमाणु संवर्धन गतिविधियों का विस्तार किया है और अपनी परमाणु सुविधाओं के अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षणों को सीमित कर दिया है, जिनमें से अंतिम निरीक्षण 2021में हुआ था.
जून 2024 में, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि ईरान ‘एक या दो हफ्ते में’ आवश्यक विखंडनीय सामग्री का उत्पादन कर सकता है.ईरान में एक दर्जन से ज़्यादा जगहों पर नाभिकीय-गतिविधियाँ चलती हैं. उसका सबसे बड़ा संवर्धन केंद्र नतांज़ में है, जबकि इसका एकमात्र परमाणु ऊर्जा संयंत्र फ़ारस की खाड़ी के तट पर बुशहर में है.
इस साल दो बार इसराइल के खिलाफ हवाई हमलों से यह भी प्रकट हुआ है कि ईरान के पास नाभिकीय-प्रहार की कई तरह की क्षमताएं हैं. उसके पास क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइलों के ज़मीन में गहराई पर स्थित शस्त्रागार हैं, जिनमें ड्रोन भी शामिल हैं.
ईरानी हमले
इस साल इसराइल पर ईरान ने दो सीधे हमले किए हैं. पहले अप्रेल में और फिर 1अक्तूबर को. ऐसा पहली बार हुआ है. अक्तूबर के हमले के एक उपग्रह इमेजरी विश्लेषण ने संकेत दिया कि तीस से अधिक ईरानी मिसाइलों ने दक्षिणी इसराइल में एक हवाई अड्डे को निशाना बनाया था, जहाँ एफ-35विमानों के हैंगर थे.
इससे यह भी संकेत मिला कि इसराइली बचाव विफल हो गया था. पश्चिमी विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान ने एटमी हथियार हासिल किए, तो इलाके के दूसरे देश, खास तौर पर सऊदी अरब, भी इन्हें हासिल करने की कोशिश करेगा, जिससे परमाणु हथियारों की खतरनाक दौड़ शुरू हो सकती है.
(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)