देस-परदेस : असद के पराभव का संदेश और उभरते जोखिम

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 10-12-2024
Country and abroad: The message of Assad's defeat and the emerging risks
Country and abroad: The message of Assad's defeat and the emerging risks

 

joshiप्रमोद जोशी

सीरिया में 2011से चल रहे गृहयुद्ध में करीब चार साल के ठहराव के बाद हाल में अचानक फिर से लड़ाई शुरू हुई और देखते ही देखते वहाँ बशर अल-असद की सरकार का पतन हो गया. गौरतलब है कि सत्ता-परिवर्तन सहज और शांतिपूर्ण हुआ है. यानी कि असद की सेना ने किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं किया.

इतनी तेजी से हुए इस सत्ता-परिवर्तन से पश्चिम एशिया के हालात में बड़े बदलावों की उम्मीद की जा रही है. इसके पहले लक्षण इसराइल-सीरिया सीमा पर दिखाई पड़े, जहाँ इसराइली सेना ने विसैन्यीकृत बफर जोन पर कब्ज़ा कर लिया. अभी तक वहाँ संयुक्त राष्ट्र की सेना गश्त करती थी. इसराइली प्रधानमंत्री ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 50 साल पुराना समझौता भंग हो गया है.

asadबशर अल-असद

स में शरण

रविवार को रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि बशर अल-असद ने अन्य प्रतिभागियों के साथ बातचीत के बाद पद और देश छोड़ दिया और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के आदेश दिए हैं. इसके बाद देर रात रूसी समाचार एजेंसियों ने क्रेमलिन के एक सूत्र का हवाला देते हुए बताया कि असद और उनका परिवार रूस पहुँच गया है और उन्हें वहाँ शरण दी गई है.

जहाँ तक भारतीय दृष्टिकोण की बात है, लंबे समय से असद सरकार के साथ भारत के अच्छे संबंध रहे हैं. दोनों देशों के बीच परामर्श का छठा दौर गत 29नवंबर को नई दिल्ली में हुआ था, गृहयुद्ध फिर से शुरू होने के दो दिन बाद.

सीरिया में अब सब कुछ बदल जाएगा. भारतीय विदेश मंत्रालय इस बात का काफी सावधानी से अध्ययन करेगा कि असद के बाद सीरिया में व्यवस्था क्या शक्ल ले री है. अलबत्ता यह खबर महत्वपूर्ण है कि दमिश्क में भारतीय दूतावास का काम बदस्तूर जारी है. 

उत्तराधिकारी कौन?

फिलहाल सवाल है कि सीरिया के भावी शासक कौन हैं और उनका एजेंडा क्या है? सीरियाई लोगों के जश्न के दौर में देश के प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी अल-जलाली ने कहा कि देश में स्वतंत्र चुनाव होने चाहिए, ताकि सीरियाई लोग अपनी इच्छानुसार किसी को चुन सकें.

इसके लिए देश में सहज परिवर्तन की ज़रूरत होगी. जलाली ने यह भी कहा कि संक्रमण काल के प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए मैं मुख्य विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के कमांडर अबू मोहम्मद अल-जुलानी (या जवलानी) के संपर्क में हूँ.

दमिश्क में अल-जुलानी ने उमैयद मस्जिद में आकर कहा, ‘सीरिया को शुद्ध किया जा रहा है.’ उन्होंने अपना संदेश टीवी स्टूडियो या राष्ट्रपति भवन में नहीं दिया, बल्कि 1,300साल पुरानी इस मस्जिद से दिया, जिसका प्रतीकात्मक महत्व है.

उन्होंने ईरान को भी साफ शब्दों में एक संदेश दिया. उनका कहना था कि यह लड़ाई लेबनान में हिज़्बुल्ला तक ईरान की पहुँच को खत्म करने और सीरिया का दुर्ग की ज़मीन का इस्तेमाल किए जाने के खिलाफ थी.

उनके इस संदेश को न केवल तेहरान, बल्कि तेल अवीव और वाशिंगटन में भी सुना गया होगा. अमेरिका की निगाह में जुलानी अब भी नामित आतंकवादी है, जिसके सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम है.

असद के पलायन के अगले दिन ऐसी खबरें आईं कि सीरिया के केंद्रीय बैंक को लूटा जा रहा है. इस घटना की अनदेखी भी कर सकते हैं. यह सच है कि विद्रोहियों से असद के प्रधानमंत्री अल-जलाली ने हाथ मिला लिया है, पर शासन के अन्य सदस्यों का रुख स्पष्ट नहीं है. 

asad

उभरते खतरे

जिस गति से असद सरकार ढही है, वह महत्वपूर्ण है, पर इसका मतलब यह नहीं कि एचटीएस का विरोध नहीं होगा. सीरिया में हथियारों का जखीरा है, जिनमें रासायनिक हथियार भी हैं. दूसरी तरफ यूएई, सउदी, जॉर्डन और मिस्र के प्रशासन इस्लामवादी राजनीतिक शक्ति के संचय के सख्त खिलाफ हैं.

एचटीएस की शुरुआत इस्लामिक स्टेट के पूर्ववर्ती समूह, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक की एक शाखा के रूप में हुई थी, जब इसे जनवरी 2012में जबात अल-नुसरा के रूप के नाम से गठित किया गया था. अप्रैल 2013में अबू बक्र अल-बग़दादी ने ही उन्हें  इराक से सीरिया भेजा, पर जुलानी ने बाद में बग़दादी का साथ छोड़ दिया और अल-कायदा के तत्कालीन नेता अयमान अल-ज़वाहिरी से नाता जोड़ा.

उसके तीन साल बाद, जुलानी ने अल-कायदा के वैश्विक जेहाद को भी अस्वीकार कर दिया और सीरिया के राष्ट्रीय आंदोलन एचटीएस के साथ नाता जोड़ा. हालांकि यह समूह अब भी इस्लामवादी विश्वदृष्टि का क़ायल है, पर इसके तौर-तरीक़े फर्क हैं.

कई पश्चिमी विश्लेषक मानते हैं कि एचटीएस जेहादी महत्वाकांक्षाओं के बजाय सीरियाई राष्ट्रवाद पर ज्यादा केंद्रित है.

पूरे इलाके पर असर

लेवांत, जिसमें इसराइल, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और इराक शामिल हैं, एक उप-क्षेत्र है जो पश्चिम एशिया के हालिया संघर्षों का केंद्र बिंदु रहा है. बशर अल-असद के पराभव के साथ इस इलाके में धर्मनिरपेक्ष बाथ पार्टी की राजनीति का अंत हो गया है.

उनके पिता हाफिज़ अल-असद ने यहाँ जो स्थिरता पैदा की थी, वह अब खत्म हो चुकी है. अब यहाँ नई समस्याएँ जन्म लेंगी. हालांकि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन मानते हैं कि इस इलाके में लोकतंत्र की स्थापना होगी, पर इस बात पर भरोसा होता नहीं है.

असद के पराभव के निहितार्थ केवल सीरिया तक सीमित नहीं हैं. यूक्रेन में रूस के पैर फँसने के एक बड़े परिणाम के रूप में भी इस पराभव को देखना चाहिए. और इस इलाके में ईरान के प्रभाव को लगे भारी धक्के के रूप में भी. 

अब हिज़्बुल्ला को सीरिया के रास्ते मिलने वाली हथियारों की मदद बंद हो जाएगी. इस इलाके पर तुर्की का प्रभाव बढ़ेगा. कुर्दों के इलाके में लड़ाई चलेगी. इराक़ के कुछ इलाकों पर भी इस लड़ाई का असर होगा.

दूसरी तरफ अभी नहीं, तो आने वाले समय में इस पूरे इलाके में पुनर्निर्माण होगा, जिसके लिए भारी पूँजी निवेश की जरूरत होगी. सऊदी अरब और यूएई खासतौर से आधुनिकीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

asad

अरब देशों का नज़रिया

इस पूरे परिदृश्य में अभी तक खामोश बैठे अरब देशों की भूमिका अब बढ़ेगी. पिछले साल 7अक्तूबर को हमास का हमला नहीं हुआ होता, तो शायद अब तक कुछ योजनाएँ सामने आ सकती थीं. हाल के वर्षों में अरब देशों के साथ बशर अल-असद की सरकार के रिश्ते सुधरने लगे थे.

2023में सीरिया को फिर से अरब लीग में शामिल कर लिया गया था. यूएई ने राष्ट्रपति असद की मेज़बानी की और सऊदी अरब ने सीरिया के अधिकारियों को अपने यहाँ बुलाया. शायद इसराइल के साथ जिस समझौते की बातें चल रही थीं, उनमें सीरिया की भी कोई भूमिका थी.

दूसरी तरफ मार्च 2023में चीन की मध्यस्थता से ईरान-सऊदी अरब संबंधों की बहाली ने स्थिति को आंशिक रूप से बेहतर बनाया, पर पिछले साल 7अक्तूबर को गज़ा में हमास के हमले के बाद से स्थितियों में बदलाव आ गया. ऐसा लगा कि शायद ईरान इन बातों को पसंद नहीं करता है.

ऐसा लगता है हमास की कमर टूट चुकी है और हिज़्बुल्ला का काफी नुकसान हो चुका है. कुल मिलाकर अमेरिका-इसराइल के प्रतिरोध की धुरी ईरान आंतरिक रूप से कमजोर हो गया है. इसका एक प्रमाण है कि 26अक्तूबर को अपने ऊपर हुए इसराइली हमले का ईरान ने जवाब नहीं दिया.

वैकल्पिक-व्यवस्था

फिलहाल सीरिया में वैकल्पिक-व्यवस्था से जुड़े मसले खड़े होंगे. विद्रोहियों ने दमिश्क में ईरान के दूतावास पर पहला धावा बोला. इसके बाद इराक को सीरिया में अपने दूतावास को खाली करना पड़ा और अपने कर्मचारियों को लेबनान ले जाना पड़ा.

केवल इस टकराव के पीछे ही नहीं, समूचे पश्चिम एशिया में टकराव के पीछे कई किस्म की ताकतें हैं. एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी देश हैं, वहीं दूसरी तरफ हैं रूस, चीन और उनके मित्र. कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में चल रही वार्ता में शामिल प्रमुख अरब देशों के साथ-साथ तीन गारंटरों ने इस इलाके में अराजकता और आतंकवाद को लेकर चेतावनी दी है. 

क़तर, सऊदी अरब, जॉर्डन, मिस्र और इराक के विदेशमंत्रियों तथा ईरान, रूस और तुर्की के विदेशमंत्रियों ने इस बदलाव के एक दिन पहले शनिवार को क़तर में बातचीत के बाद इस आशय की चेतावनी दी थी. ये तीनों देश सीरिया सरकार और विपक्षी समूहों के बीच शांति-वार्ता का प्रयास कर रहे थे. संभव है कि यह बदलाव उसी वार्ता का परिणाम हो. 

asad

प्रतिबंधों का प्रश्न

उधर अमेरिका और यूएई ने सीरिया और ईरान के बीच दरार पैदा करने का रास्ता खोज लिया है. रॉयटर्स ने इसी दौरान खबर दी थी कि अमेरिका और यूएई ने सीरिया पर से प्रतिबंध हटाने की संभावना पर चर्चा की है, बशर्ते वह ईरान से खुद को अलग करे और हिज़्बुल्ला के लिए शस्त्र-सप्लाई का मार्ग बंद कर दे.

हाल के महीनों में इस बातचीत में तेजी आई है, क्योंकि प्रतिबंधों की संभावित समाप्ति 20दिसंबर को है. उससे पहले ही बशर अल-असद का पलायन हो गया है. सवाल है कि उनकी उत्तराधिकारी सरकार क्या अमेरिका-परस्त होगी?

ईरान-सीरिया दोस्ती को तोड़ने से इसराइल को सीधा लाभ होगा क्योंकि इससे हिज़्बुल्ला को हथियारों की सप्लाई रुक जाएगी. पर तुर्की-समर्थित इस्लामवादी सीरिया में सत्ता में आएँ, यह भी इसराइल को मंज़ूर नहीं होगा. 

लेबनानी मीडिया के अनुसार इसराइल ने भी सीरिया पर अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने का सुझाव दिया है. लंबे समय से यूएई, सीरिया को ईरान से दूर करने की उम्मीद करता रहा है और सीरिया के साथ व्यापारिक संबंध बनाना चाहता है. अमेरिकी प्रतिबंधों ने इन प्रयासों में बाधा उत्पन्न की है.

तुर्की की भूमिका

असद का पतन ईरान और उसके सहयोगियों के लिए निर्णायक झटका है. विद्रोहियों का समर्थन करने वालों में तुर्की, सबसे महत्वपूर्ण बाहरी शक्ति है. वह भौगोलिक रूप से उत्तर-पश्चिम में सीरियाई विद्रोही क्षेत्र से सटा हुआ है. अग्रणी और सबसे बड़ा विद्रोही समूह, हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस), जेहादी संगठन है. इसके पास तुर्की से प्राप्त ड्रोन भी हैं. 

विद्रोहियों में तुर्क-समर्थित सीरियन नेशनल आर्मी (एसएनए) भी है, जो अपने इस नाम के बावजूद, पूरी तरह से तुर्की के स्वामित्व वाली सेना है. तुर्की को सीरियाई-कुर्दों के उभार से चिंता है, जिसका नेतृत्व सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) कर रहा है. तुर्की उन्हें भी पराजित करना चाहता है.

असद खानदान

सीरिया में धर्मनिरपेक्ष बाथ पार्टी की सरकार 1963में तख्तापलट के जरिए सत्ता में आई थी. कई साल तक, यह देश तख्तापलटों और नेतृत्व-परिवर्तनों के दौर से गुज़रा. अंततः मार्च 1971में, अलावी मूल के जनरल हाफ़िज़ अल-असद ने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया.

इसके साथ असद खानदान के इर्द-गिर्द केंद्रित सत्ता की वहाँ शुरुआत हुई. बाथ पार्टी नियंत्रित सीरिया में सत्ता पर तीन शक्ति-केंद्रों का अधिकार था. अलावी वफादार कबीले, बाथ पार्टी और सशस्त्र सेना. तीनों की असद वंश के प्रति निष्ठा थी.

अस्सी के दशक में हाफ़िज़ अल-असद और बाद में उनके बेटे बशर अल-असद की सरकार ने विद्रोहियों का सफलता के साथ सामना किया. पर अब वे अपनी पराजय को टाल नहीं पाए. 

इसके पहले 2015में भी ऐसी स्थिति पैदा होने लगी थी, पर तब रूस ने हस्तक्षेप करके स्थिति को बचाया था, पर अब यूक्रेन की लड़ाई में फँसी होने के कारण रूसी सेना असहाय है. 2016में अलेप्पो पर फिर से कब्ज़ा करने में असद को चार साल लगे थे, पर अब एचटीएस के हाथों उसे खोने में सिर्फ़ चार दिन लगे.

बगावत की भूमिका

वर्तमान टकराव की पृष्ठभूमि में 2010के ‘अरब स्प्रिंग’ की भूमिका है. मार्च 2011में, सीरिया में भी बाथ सरकार के विरोध में भी विरोध प्रदर्शन और लोकतंत्र समर्थक रैलियां हुईं. सरकार ने फौज का इस्तेमाल करके विरोध-प्रदर्शनों को दबा दिया, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए.

ऐसे में सीरियाई-क्रांति, सशस्त्र-विद्रोह में बदल गई, जो 2012तक पूर्ण-गृहयुद्ध में तब्दील हो गई. 2015में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सीरिया में सेना भेजी.  अन्यथा असद शासन का पतन नज़र आने लगा था.

उस वक्त भी फ्री सीरियन आर्मी, जबात अल-नुसरा (अल-कायदा की सीरिया शाखा) और इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे कई विद्रोही और जेहादी गुटों ने लड़ाई लगभग जीत ली थी. पर, रूसी हस्तक्षेप ने लड़ाई का रुख पलट दिया.

तब अमेरिका-समर्थित कुर्द दस्तों ने आईएस का मुकाबला किया. रूस, ईरान और हिज़्बुल्ला-समर्थित सीरियाई सेना ने अन्य विद्रोही समूहों से लड़ाई लड़ी और खोए हुए क्षेत्रों पर फिर से कब्ज़ा किया. रूसी हस्तक्षेप के एक साल से भी ज़्यादा समय बाद, असद शासन ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर फिर से कब्ज़ा कर लिया.

asad

हयात तहरीर अल-शाम

हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) का शाब्दिक अर्थ है, 'शाम या लेवांत की मुक्ति के लिए बना संगठन.' यह सुन्नी इस्लामवादी अर्धसैनिक संगठन है. इसका गठन 28जनवरी 2017को जैश अल-अहरार, जबात फतेह अल-शाम (जेएफएस), अंसार अल-दीन फ्रंट, जैश अल-सुन्ना, लिवा अल-हक़ और नूर अल-दीन अल-ज़ेंकी के विलय के रूप में हुआ था.

एकीकरण की यह प्रक्रिया अबू जाबेर शेख की पहल पर हुई थी, जो अहरार अल-शाम के दूसरे अमीर थे. उन्होंने इस इलाके से बाथ शासन और हिज़्बुल्ला को बाहर निकालने और इस्लामी सरकार के गठन के उद्देश्य से इस एकीकरण का आह्वान किया था.

2017 में, एचटीएस ने अस्ताना वार्ता के माध्यम से संघर्ष विराम क्षेत्र में तुर्क सैनिकों को पश्चिमोत्तर सीरिया में गश्त करने की अनुमति दी. इदलीब प्रांत में वैकल्पिक सरकार एचटीएस की छत्रछाया में चलती है. 

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)

 

ALSO READ बांग्लादेश की विसंगतियाँ और भारत से बिगड़ते रिश्ते