देस-परदेस : बदलते वैश्विक-परिदृश्य में भारत-अमेरिका-वार्ता

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 11-03-2025
Country and abroad: India-US dialogue in the changing global scenario
Country and abroad: India-US dialogue in the changing global scenario

 

joshiप्रमोद जोशी

डॉनल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों से पहली नज़र में ऐसा लग सकता है कि दुनिया उनके आगे झुक जाएगी. आंशिक रूप से यह बात सच भी होगी, पर पूरी तरह नहीं. उन्होंने पिछले मंगलवार को अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में अपने 'स्टेट ऑफ यूनियन एड्रेस' में जो कुछ कहा, वह अमेरिकी जनता को प्रभावित करने के लिए ‘अपनी तारीफ’ से ज्यादा कुछ नहीं था.

भारत समेत अनेक देशों ने अमेरिका के साथ नई टैरिफ-व्यवस्था के लिए बात शुरू कर दी है. पिछले हफ्ते वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इसी सिलसिले में बात करने अचानक अमेरिका गए, जहाँ वे तीन दिन रहे.

यह सब बदलती विश्व-व्यवस्था का संकेतक भी है, पर बात केवल टैरिफ तक सीमित नहीं है. भारत सरकार कमोबेश स्वतंत्रता के बाद की उसी नीति पर चल रही है, जिसके अनुसार हमारा देश अंतरराष्ट्रीय-मूल्यों से जुड़ा रहेगा, पर किसी देश का पिछलग्गू नहीं बनेगा.

अमेरिका के साथ हमारी नीतिगत-साझेदारी एकतरफा नहीं है, बल्कि साझा हितों पर आधारित है. एक गैर-गठबंधनीय मित्र के रूप में ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ के साथ जुड़ने के लिए भारत, बेहतर तरीके से तैयार है. वहीं पिछले साल हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में हुए राजनीतिक-परिवर्तन में अमेरिकी भूमिका को लेकर भारतीय-संदेह दूर नहीं हुए हैं.

भारतीय जनता ने अमेरिका की लोकतांत्रिक और उदार भावनाओं का हमेशा सम्मान किया है, पर उसे ‘दुनिया का दारोगा’ नहीं माना है. अब जब ट्रंप यह कह रहे हैं कि हम दूसरे देशों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, तो यह बात भारत की अभिलाषाओं के अनुरूप है.

ऐसा नज़र आ रहा है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका वैश्विक नेता बनने के बजाय स्व-हित पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. मोटे तौर पर अमेरिका की टैरिफ-नीति से चीन की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, भारत की नहीं. कुछ फर्क पड़ेगा, पर भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यातमुखी नहीं है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात पर केंद्रित है. अलबत्ता भारत को अपनी टैरिफ-प्रणाली की समीक्षा करने और उसे वैश्विक-प्रतिस्पर्धा के लायक बनाने का मौका भी अब मिलेगा.

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दुनिया से हाथ खींचा

नब्बे के दशक में अमेरिका वैश्वीकरण का ध्वजवाहक था और अब वह उससे दूर जा रहा है. बहुपक्षीय संस्थान और नियम आधारित व्यवस्था यह सुनिश्चित कर रही थी कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बड़े देश, छोटे देशों के साथ किस तरह का आचरण करें.

ऐसे में द्विपक्षीय समझौते कम होते हैं. वार्ता में संबद्ध पक्षों के आकार और उनकी सामर्थ्य को भी ध्यान में रखा जाता है.

ट्रंप ने नारा दिया है ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन.’ इस कोशिश में वे वैश्विक-संधियों (मसलन पेरिस समझौता) और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाओं से दूरी बना रहे हैं और नाटो जैसे सहयोगियों से कह रहे हैं कि अपने संसाधन आप जुटाएँ.

यूरोप और एशिया में अनेक देश, जो अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर हैं, ट्रंप की इस माँग पर हैरान हैं कि या तो वे सामूहिक रक्षा में अधिक योगदान दें या ‘अमेरिकी-छतरी’ को छोड़ दें.

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं को मिलने वाली अमेरिकी मदद की समीक्षा शुरू की है. इन संस्थाओं में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष शामिल हैं. विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था में नए सदस्यों की नियुक्ति से अमेरिकी-इनकार के बाद यह संस्था नख-दंत विहीन हो गई है.

अब उन्होंने अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने के लिए टैरिफ बढ़ाने और लाखों आप्रवासियों को उनके देश वापस भेजने का अभियान शुरू किया है.

टैरिफ-युद्ध

भारतीय मीडिया में भारत पर ट्रंप के तंज़ काफी चर्चा में हैं, क्योंकि उनके व्यंग्य-वाण भारत सरकार के राजनीतिक विरोधियों को आलोचना का मसाला दे रहे हैं, पर उनके असल निशाने पर कनाडा, मैक्सिको और चीन हैं. ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वे कनाडा और मैक्सिको पर 25प्रतिशत टैरिफ को लागू करेंगे, साथ ही चीन से होने वाले सभी आयातों पर अतिरिक्त 10प्रश व्यापक टैरिफ लगाएंगे. यह 1फरवरी से लागू हुए 10प्रश चीन टैरिफ के अतिरिक्त होगा.

यह बात उन्होंने मंगलवार 4मार्च को कही और अगले दिन ही मैक्सिको और कनाडा पर नए टैरिफ भार को एक महीने के लिए स्थगित कर दिया. ज़ाहिर है कि मसले की जटिलताओं का अनुमान उन्हें भी है. अमेरिकी बाज़ारों से खबरें आ रही हैं कि नई टैरिफ-नीति से महंगाई बढ़ने का अंदेशा है.

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भारत सहमत

भारत के संदर्भ में उन्होंने मंगलवार की घोषणा के बाद शुक्रवार को अपने ओवल ऑफिस में कहा कि भारत अपने टैरिफ में कटौती करने पर सहमत हो गया है. सच यह है कि भारत ने इस दिशा में पहले ही काम शुरू कर दिया है. 

ट्रंप ने संसद में कहा कि भारत ऑटो सेक्टर में 100प्रतिशत से अधिक टैरिफ वसूलता है. उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि भारत ने अपने सालाना बजट में यह टैक्स घटाकर पहले ही 30फीसदी कर दिया है.

ट्रंप की बातों की नाटकीयता के पीछे उनके देश की राजनीति है. वे देश की जनता के सामने साबित करना चाहते हैं कि मैं बड़ी तेजी से कहानी बदल दूँगा. यह बात यह बात दीगर है कि वे सफल होंगे या नहीं, फिर भी उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. अगले चार साल अमेरिकी-प्रशासन उनके अधीन है और उसमें हानि-लाभ की जिम्मेदारी उनकी है.

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महंगाई का खतरा 

अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के बजट लैब के अनुसार द्वारा मैक्सिको, कनाडा और चीन पर टैरिफ लगाए जाने के कारण उपभोक्ता कीमतों में 1.05से 1.2प्रतिशत की वृद्धि होगी, जो प्रति परिवार 1,600से 2,000डॉलर का वार्षिक नुकसान होगा. एवोकैडो और स्ट्रॉबेरी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और गैसोलीन तक उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होने की संभावना है.

टैरिफ से 2025में अमेरिकी सरकार को 1.5ट्रिलियन डॉलर तक की राशि भी मिलेगी, लेकिन बजट लैब ने इन उपायों को प्रतिगामी कर के रूप में चिह्नित किया है, क्योंकि वे कम आय वाले उपभोक्ताओं पर असर डालेंगे.

एंडरसन इकोनॉमिक ग्रुप के विश्लेषण के अनुसार, टैरिफ से उत्तरी अमेरिका में असेंबल की जाने वाली प्रत्येक कार पर 4,000से 10,000डॉलर तक का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है, जिसमें स्टील और एल्युमिनियम पर ट्रंप के टैरिफ शामिल नहीं हैं.

शायद इन्हीं अंदेशों को देखते हुए बुधवार को ह्वाइट हाउस ने घोषणा की कि कनाडा और मैक्सिको से होने वाले ऑटो आयात पर टैरिफ से एक महीने की छूट दी जाएगी.

भारत की पहल

भारत ने केवल टैरिफ को लेकर ही नहीं, तमाम दूसरे विषयों पर अपना होमवर्क कर रखा है और न केवल अमेरिका से, बल्कि यूरोपियन यूनियन के साथ भी व्यापार-समझौते की तैयारियाँ कर ली हैं.

ट्रंप को यह एहसास कराना भी जरूरी है कि भारत के पास व्यापार समझौते की व्यावहारिक रूपरेखा है और इरादा भी. भारत ने अपनी ओर से शुरुआती कदमों में अधिकतम टैरिफ को 150प्रतिशत से घटाकर 70प्रतिशत करने के साथ ही सही संकेत पहले ही दे दिए थे.

चुनींदा टैरिफ कम करके, भारत का लक्ष्य मुख्य क्षेत्रों में समझौता किए बिना एक अनुकूल बातचीत का माहौल सुनिश्चित करना है. भारत ने अमेरिका के खिलाफ टकराव का रुख अपनाने के बजाय टैरिफ को समायोजित करने की अपनी इच्छा का संकेत दे दिया है.

समझौते का रोडमैप

2030 तक 500 अरब डॉलर का भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य काफी महत्वाकांक्षी है. इसके लिए अगले पाँच वर्षों में 250-270 अरब अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त व्यापार आवश्यक है. इसके लिए दोनों देशों को व्यापार समझौते में एक रोडमैप शामिल करना पड़ेगा.

भारत, तेल और गैस के सबसे बड़े आयातकों में से एक है. दोनों देशों के व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए भारत, अमेरिका से ज्यादा खनिज तेल और गैस का आयात करने पर सहमत हो सकता है. अलबत्ता तेल और गैस के लाभप्रद मूल्य निर्धारण, रूस जैसे अन्य आपूर्तिकर्ताओं पर प्रतिबंध और पश्चिम एशिया में शांति और सुरक्षा पर बहुत कुछ निर्भर करेगा.

भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों में एक मजबूत स्तंभ है रक्षा-तकनीक. ट्रंप प्रशासन एफ-35लड़ाकू जेट, पी-8आई विमान, हेलीकॉप्टर और अन्य उन्नत सैन्य प्रणालियों जैसी बड़ी खरीद के माध्यम से व्यापार घाटे को कम करने का इच्छुक है. हथियारों की खरीद के साथ कई तरह की जटिलताएँ जुड़ी हैं, पर यह भी सच है कि हाल के वर्षों में अमेरिका से भारत की रक्षा-खरीद में काफी वृद्धि हुई है.

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बातचीत ज़ारी

ट्रंप के बयान के ठीक पहले भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते पर बातचीत करने की घोषणा कर दी थी. दोनों सरकारें बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चा को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में हैं.

पीएम मोदी और ट्रंप ने व्यापार समझौते को पूरा करने के लिए सितंबर-अक्तूबर की समय-सीमा तय की है. ट्रंप द्वारा बार-बार भारत की उच्च टैरिफ दरों की आलोचना सुनने  के बाद, भारतीय उद्योग की धारणा है कि समझौते के लिए कुछ रियायतों की आवश्यकता होगी.

बहुध्रुवीयता की दिशा

इधर विदेशमंत्री एस जयशंकर ने 5मार्च को लंदन स्थित थिंक टैंक चैटम हाउस में कहा कि ट्रंप और उनके प्रशासन की कई प्राथमिकताएं भारत की उम्मीदें बढ़ाने वाली हैं. हम ऐसे प्रशासन से रूबरू हैं जो हमारी भाषा में बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रहा है.

पिछले हफ़्ते लंदन में अपने भाषण में विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने सुझाव दिया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की "अमेरिका फ़र्स्ट" नीति ऐसी चीज़ है जिस पर दिल्ली काम कर सकती है. जयशंकर के

जयशंकर ने कहा, 1945से अमेरिका को एक राष्ट्र के बजाय पश्चिम के साथ एक गुट के रूप में देखा जाने लगा था, पर अब अमेरिका की पहचान एक देश के रूप में बन रही है. भारत ने अमेरिका के प्रभुत्व वाले एकध्रुवीय विश्व के विचार से हटकर ट्रंप की इस धारणा का स्वागत किया है कि आज दुनिया में कई शक्तियां हैं, जो ‘बहुध्रुवीय विश्व’का निर्माण करती हैं.

डॉलर की भूमिका

फरवरी में, ट्रंप ने धमकी दी थी कि यदि ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देश ‘डॉलर के साथ खेलना चाहते हैं’ तो उनपर  100प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा. जयशंकर ने लंदन में कहा कि डॉलर को कमजोर करने में हमारी बिलकुल भी रुचि नहीं है. अलबत्ता वैश्वीकरण को बढ़ावा देने के प्रयास के तहत भारत सरकार रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा दे रही है.

वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव डॉलर की भूमिका को लेकर आएगा. जयशंकर ने कहा कि डॉलर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता का स्रोत है और अभी दुनिया को स्थिरता की आवश्यकता है. जयशंकर ने कहा कि डॉलर के संबंध में ब्रिक्स देशों के विचार भिन्न-भिन्न हैं.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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