देस-परदेस : भारत-कनाडा तकरार और ट्रूडो की राजनीति

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 22-10-2024
Country and abroad: India-Canada conflict and Trudeau's politics AI pic
Country and abroad: India-Canada conflict and Trudeau's politics AI pic

 

joshiप्रमोद जोशी

खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत-कनाडा के बीच तकरार ने एक बार फिर से गंभीर शक्ल अख्तियार कर ली है. कनाडा के अलावा अमेरिका में हुई एक कानूनी कार्रवाई के छींटे भी इस मामले पर पड़े हैं. इन बातों से दुनिया के कुछ गोपनीय-रहस्यों के खुलने की संभावनाएं भी पैदा हो  रही हैं.

सच है कि खालिस्तानियों की हिंसा की अनदेखी करने का कनाडा का लंबा इतिहास है, पर इस वक्त लग रहा है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी अनाड़ी राजनेता हैं. उनपर देश की आंतरिक राजनीति का दबाव है, जिससे बचने के लिए उन्होंने बेहद बचकाना तरीका अपनाया है.

यह बात मामूली नहीं है कि एक देश का प्रधानमंत्री, जो मित्र देश होने का दावा भी करता है, भारत पर हत्या की साजिश का आरोप लगा रहा है और राजनयिकों को देश से निकाल रहा है. उनके आरोपों के पीछे अंदेशा है, निर्णायक साक्ष्य नहीं. उनका कहना है कि साक्ष्य भारत-सरकार में हैं.

ट्रूडो की दुविधा

कनाडा की तरफ़ से जो आरोप लगाए गए हैं और पिछले एक साल से भारत के साथ कनाडा के रिश्तों में जो तल्ख़ी आई है, विश्लेषक इसका कनाडा की घरेलू राजनीति से संबंध मानते हैं.ट्रूडो की सरकार अल्पमत में है और उन्हें हाल दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है. इससे उनकी राजनीतिक स्थिति और भी मुश्किल हो गई है. मुख्य विपक्षी पार्टी लगातार उन पर दबाव बना रही है.

उनकी राजनीतिक स्थिति में असाधारण गिरावट आई है. बढ़ती महंगाई, अफोर्डेबल हाउसिंग और बढ़ती बेरोजगारी ने लोगों में निराशा पैदा की है, जिससे उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है.एंगस रीड इंस्टीट्यूट के सर्वेक्षण के अनुसार, ट्रूडो की अस्वीकृति रेटिंग सितंबर 2023 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 65 प्रतिशत हो गई है. उनकी अनुमोदन रेटिंग 51प्रतिशत से गिरकर 30 प्रतिशत हो गई है.

अपनी ही पार्टी का दबाव

ट्रूडो अपनी लिबरल पार्टी के भीतर बढ़ते विरोध से भी जूझ रहे हैं. कम से कम 20 लिबरल सांसदों ने ही उनके इस्तीफे की माँग कर दी है, क्योंकि उन्हें डर है कि उनके नेतृत्व में पार्टी का चुनावी-पतन निश्चित है.हाल में मॉन्ट्रियल और टोरंटो के उपचुनावों में, उन्हें हार का सामना करना पड़ा, जबकि ये इलाके उनके गढ़ माने जाते थे. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार 30 या 40 सांसद नेतृत्व परिवर्तन की माँग कर सकते हैं.

सीबीसी के पोल ट्रैकर से पता चलता है कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी, विरोधी कंजर्वेटिव पार्टी से लगभग 20प्रतिशत अंकों से पीछे चल रही है. कंज़र्वेटिव नेता पियरे पोलीव्रे प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ रहे हैं.

बावजूद इसके ट्रूडो पीछे हटते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. उनकी विदेशमंत्री मेलनी जोली लगातार जहर भरे वक्तव्य ज़ारी कर रही हैं. अगले साल अक्तूबर में संघीय चुनाव होने हैं, ऐसे में ट्रूडो के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा है.

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ट्रूडो के आरोप

पिछले साल ट्रूडो ने आरोप लगाया था कि निज्जर की हत्या में भारत के खुफिया एजेंट शामिल थे. इस विवाद के कारण पिछले साल भी  दोनों देशों ने एक दूसरे के राजनयिकों को निकाला था. इस बार ज्यादा बड़ी संख्या में और ज्यादा तल्ख़ी के साथ निष्कासन की कार्रवाई हुई है.

सवाल है कि यह टकराव किस हद तक बढ़ सकता है और इसके पीछे के कारण क्या हैं? पिछले हफ्ते कनाडा से शुरू हुई बदमज़गी का राजनयिक असर शुरू ही हुआ था कि अमेरिका के न्याय विभाग ने हत्या की एक साज़िश के आरोप में भारतीय नागरिक विकास यादव पर आरोप तय किए हैं.

अमेरिका का मामला

हालांकि दोनों देशों के आरोप मिलते-जुलते हैं, पर अमेरिका और कनाडा की प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग रही हैं. अमेरिका इस मुद्दे की जटिलता को संभवतः समझता है और उसने हत्या के प्रयास से दोनों देशों के रिश्तों को बिगाड़ने की अनुमति नहीं दी है, जबकि कनाडा ने रिश्ते बुरी तरह बिगाड़ लिए हैं.

अमेरिका के फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (एफबीआई) ने आरोप लगाया है कि विकास यादव नामक भारतीय नागरिक, अमेरिका की धरती पर गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या का प्रयास कर रहा था. उसने यह भी कहा है कि वह भारतीय खुफिया अधिकारी है.

यह बात सामान्य वक्तव्य के रूप में नहीं है, बल्कि अदालती-कार्यवाही के रूप में है. अमेरिका ने सीधे अदालती कार्रवाई की है, पर कनाडा ने कानूनी कार्रवाई के बजाय आरोपों का सहारा लिया है. उसने भारत के गृहमंत्री का नाम लेकर आरोपों को राजनीतिक रंग भी दे दिया है.

कनाडा के मामले में भारत ने आक्रामक रुख़ अपनाया है. वहीं, भारत ने राजनयिक तरीके से संवाद बनाए रखा. इससे कड़वाहट एक सीमा से आगे नहीं बढ़ी, पर कनाडा के प्रधानमंत्री के बरताव को बहुत से विशेषज्ञ बचकाना मान रहे हैं.

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कनाडा की जानकारी

मीडिया में प्राप्त विवरणों के अनुसार कनाडा के पास कुछ सिग्नल इंटेलिजेंस यानी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से की गई बातचीत और कुछ व्यक्तिगत संपर्कों (ह्यूमन इंटेलिजेंस) के आधार पर जानकारी एकत्र की गई है.

यह जानकारी अमेरिकी इंटेलिजेंस और ‘फाइव आईज़’ देशों के साथ शेयर भी की गई है. कनाडा, ‘फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायंस’ का सदस्य है. इसमें कनाडा के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं.

इस दौरान दुनिया के मीडिया में ओसामा बिन लादेन और अल जवाहिरी से लेकर इराक, अफगानिस्तान और ईरान में पश्चिमी देशों द्वारा की गई हत्याओं का जिक्र भी हुआ है.

भारत-विरोधी गतिविधियाँ

भारतीय नज़रिए से देखा जाए, तो एक सवाल यह भी पैदा होता है कि है कि इन देशों के पास क्या खालिस्तानी गतिविधियों की जानकारियाँ नहीं हैं? वह कौन सा नेटवर्क है, जो इन देशों में सक्रिय है और ‘फाइव आईज़’ को उसकी जानकारी नहीं है?

यह केवल निज्जर की हत्या और गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के प्रयास की मामला नहीं है, बल्कि इन चारों देशों में चल रही भारत-विरोधी गतिविधियों से जुड़ा मामला भी है. दोनों बातों को अलग कैसे किया जा सकता है?

‘फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायंस’ भारतीय राजनयिकों के संवाद-संपर्क की खुफियागिरी करता है, तो क्या भारत-विरोधी आतंकवादी गतिविधियों की नहीं करता? संयोग से ये पाँचों हमारे मित्र देश हैं, पर ये हमारे कैसे मित्र हैं?

खालिस्तानियों की मदद

इस बात के प्रमाण भी हैं कि सत्तर के दशक के बाद अमेरिका ने खालिस्तानी-आंदोलन को सहारा दिया था, क्योंकि बांग्लादेश युद्ध के बाद उसके तत्कालीन-दोस्त पाकिस्तान ने खालिस्तानी आंदोलन खड़ा किया. उस आंदोलन की जड़ें अमेरिका, कनाडा और यूके में मौजूद भारतवंशियों के बीच धार्मिक आधार पर जमाई गईं.

संयोग से हाल में हुए सत्ता-पलट से इन आशंकाओं को बल मिला है कि इन देशों की भूमिका बांग्लादेश की राजनीति में भी है. इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि भारत और कनाडा के रिश्ते बांग्लादेश बनने के बाद से ही खराब हैं. 2020में जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत में चल रहे किसान-आंदोलन का समर्थन किया था, तब भी ऐसे सवाल सामने आए थे.

खालिस्तान समर्थक

हरजीत सिंह निज्जर खुलेआम खालिस्तान की बातें करता था. भारत सरकार निज्जर को आतंकवादी और अलगाववादी संगठनों का मुखिया मानती है. दो साल पहले भारत ने निज्जर की गिरफ्तारी या उससे जुड़ी सूचना देने वाले को 10लाख रुपये का इनाम देने की पेशकश भी की.

भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि कनाडा के पास हमारे 36प्रत्यर्पण अनुरोध लंबित हैं. हमने तमाम व्यक्तियों को गिरफ्तार करने या कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया है.

कनाडा में 14से 18 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. इनमें सात लाख से ज्यादा सिख हैं. पंजाब के अलावा सिख सबसे ज़्यादा कनाडा में हैं. धीरे-धीरे वहाँ गैर-सिख भारतीयों की संख्या भी बढ़ रही है, इसलिए वहाँ खालिस्तानियों के प्रतिरोध के प्रसंग भी बढ़े हैं.

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विकास यादव 

अमेरिकी न्याय विभाग ने बताया कि विकास यादव के साथ कथित तौर पर हत्या की साज़िश में शामिल एक और व्यक्ति 53वर्षीय निखिल गुप्ता को पहले ही अमेरिका को प्रत्यर्पित किया जा चुका है.संभव है कि अमेरिका सरकार भविष्य में विकास यादव के प्रत्यर्पण की माँग करे. सच यह भी है कि मुंबई पर 26नवंबर 2008को हुए हमले से जुड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण का मामला भी अभी चल ही रहा है.

पिछले साल नवंबर में अमेरिकी न्याय विभाग के दस्तावेजों में ‘सीसी-1’ (सह-साजिशकर्ता) के रूप में उल्लेख किए जाने के तीन सप्ताह से भी कम समय बाद, खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने के आरोपी विकास यादव को दिल्ली पुलिस की विशेष सेल ने जबरन वसूली के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया.

सरकारी कर्मचारी?

बहुत सी बातें अभी स्पष्ट नहीं हैं. विकास यादव, जिनका नाम अमेरिकी न्याय विभाग के अभियोग में एक ‘भारतीय सरकारी कर्मचारी’ के रूप में दर्ज है, जबकि  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पिछले गुरुवार को कहा कि वह सरकारी संरचना का अंग नहीं है. हाँ, उसके ऊपर कुछ आपराधिक आरोप जरूर हैं.

कनाडा मानता है कि अमेरिका और कनाडा के प्रकरण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. चूँकि इन दोनों मामलों के बारे में जो भी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, वह किसी खास निष्कर्ष की ओर इशारा नहीं करती है.

पश्चिमी रवैया

इसमें दो राय नहीं कि कनाडा सरकार ने खालिस्तान समर्थक समूहों को हिंसा के लिए सार्वजनिक आह्वान की असाधारण अनुमति दे रखी है. वहाँ टिकटॉक पर इस्लामिक स्टेट के प्रचार को पोस्ट करने पर छह साल की जेल की सज़ा मिली है, पर खालिस्तान के लिए हत्याओं की अनुमति का आह्वान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है.

अंतरराष्ट्रीय कानून आम तौर पर हत्याओं का विरोध करता है, लेकिन अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने 9/11 के बाद से आतंकवादियों के खिलाफ नियमित रूप से हिंसक कार्रवाइयाँ की हैं. खुफिया कार्रवाइयों के विवरण यों भी सामने नहीं आते, पर अब जब कनाडा और अमेरिका में कुछ बातें खुल रही हैं, तब शायद रहस्य की कुछ और परतें भी खुलेंगी.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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