देस-परदेस : भारत-अमेरिका ‘न्यूक्लियर-डील’ से ‘होल्टैक-डील’ तक

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 22-04-2025
Country and abroad: India-America from 'Nuclear Deal' to 'Holtac Deal'
Country and abroad: India-America from 'Nuclear Deal' to 'Holtac Deal'

 

permodप्रमोद जोशी

वैश्विक व्यापार-युद्ध के बीच भारत और अमेरिका के रिश्तों को लेकर कई तरह के किंतु-परंतु इन दिनों हवा में हैं. ये रिश्ते केवल आर्थिक सतह पर ही नहीं हैं, बल्कि सामरिक और तकनीकी-सहयोग, तथा राजनय और वैश्विक राजनीति की सतह पर भी हैं.

इन संपर्कों-संबंधों के समानांतर भारत-रूस, भारत-चीन, भारत-ईयू औऱ भारत तथा पश्चिम एशिया के देशों के रिश्ते भी हैं. बहरहाल 2008का सिविल न्यूक्लियर-डील याददाश्त से मिटता जा रहा था कि हाल में हाल में स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) को लेकर हुई गतिविधि ने कई बातें एकदम ताज़ा कर दी हैं.

लग यह भी रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार का प्रारंभिक समझौता अगले कुछ महीनों में हो जाएगा, पर उसके नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई गतिविधि ने लहरें पैदा की हैं.

वैश्विक-योजना

भारत-अमेरिका न्यूक्लियर-डील के पीछे केवल नाभिकीय-ऊर्जा का मामला ही नहीं था, बल्कि दोनों देशों की एक व्यापक वैश्विक-योजना भी थी. उस समझौते के लगभग दो दशक बाद, गत 26मार्च को, अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने भारत में परमाणु रिएक्टरों के डिजाइन और निर्माण के लिए होल्टैक इंटरनेशनल के आवेदन को मंजूरी दे दी.

इस अनुमति से भारत में तीन कंपनियों-एलएंडटी, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स और होल्टैक की क्षेत्रीय सहायक कंपनी, होल्टैक एशिया को अनक्लैसिफाइड स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) तकनीक के हस्तांतरण का रास्ता साफ हो गया है.

अब यह कार्यक्रम मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की अनेक उपलब्धियों में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी. परमाणु समझौते को उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुँचाने का श्रेय उन्हें प्राप्त होगा.

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भविष्य का ऊर्जा-स्रोत

छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर उभरती हुई परमाणु तकनीक का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे पारंपरिक बड़े परमाणु संयंत्रों की तुलना में बेहतर सुरक्षा सुविधाओं के साथ स्केलेबल, लचीला बिजली उत्पादन प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

भारत की योजना 2040 तक ऐसे 50 रिएक्टरों के निर्माण की है. यह तकनीक अंततः भारत को ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों से जुड़ने में मदद करेगी, क्योंकि विकासशील देशों को भी स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा की ज़रूरत है.

होल्टैक डील ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते (जिसे आमतौर पर 123समझौते के रूप में जाना जाता है) में नई जान फूँक दी है, जिस पर मूल रूप से 2007में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने हस्ताक्षर किए थे.

अपने शुरुआती वायदे के बावजूद, इस समझौते को विभिन्न कानूनी और नियामक चुनौतियों के कारण लगभग दो दशकों तक कार्यान्वयन में देरी का सामना करना पड़ा. इस अवधि में दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग व्यावहारिक रूप से बहुत कम और काफी हद तक केवल सैद्धांतिक रहा.

भारत-चीन स्पर्धा

भारत की तरह, चीन भी एसएमआर को वैश्विक दक्षिण में अपनी कूटनीतिक पहुँच के एक उपकरण के रूप में देखता है जो एसएमआर उद्योग को प्रभावित कर सकता है, जैसा कि उसने इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में किया है.

भारत और अमेरिका दोनों ही अकेले दम पर चीन से प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग करना चाहते हैं. भारत के उस लेवल की तकनीक नहीं है और अमेरिका को श्रम की अपेक्षाकृत उच्च लागत और उस देश में बढ़ती संरक्षणवादी-प्रवृत्ति से दिक्कत हो रही है.

इस समय रूस और चीन में दो एसएमआर परिचालन के चरण में पहुँचने वाले हैं. 2023में चीन ने हैनान प्रांत में लिंगलोंग-वन एसएमआर के कोर मॉड्यूल को सफलतापूर्वक स्थापित किया था. चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, लिंगलोंग-1का काम 2026में पूरा हो जाएगा और उसका संचालन होने लगेगा.

चीन का इरादा, एक दशक में परमाणु ऊर्जा क्षमता के मामले में अमेरिका से आगे निकलने का है. चीन में इस समय लगभग दो दर्जन रिएक्टर निर्माणाधीन हैं.

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छोटे रिएक्टर

एसएमआर उन्नत नाभिकीय रिएक्टर हैं जिनकी विद्युत उत्पादन क्षमता 30मेगावाट से लेकर 300मेगावाट तक होती है. होल्टैक को मंजूरी, ऐसे समय में मिली है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) को बढ़ावा देने के लिए तेजी से प्रयास कर रहे हैं.

इस सहयोग का उद्देश्य भारत में एसएमआर का विकास और निर्माण करना है, जो पहली बार अमेरिका द्वारा डिजाइन किए गए रिएक्टरों का भारत में सह-विकास और निर्माण है.हाल के महीनों में, भारत सरकार ने नाभिकीय ऊर्जा के मामले में अपनी भावी योजनाओं को स्पष्ट करना शुरू किया है.

2025-26के केंद्रीय बजट में, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में 2047तक कम से कम 100गीगावॉट परमाणु-ऊर्जा के क्षमता निर्माण की बात कही थी.

स्वच्छ ऊर्जा की ज़रूरत

इससे देश को अपने ऊर्जा संक्रमण में मदद मिलेगी. मोदी सरकार के दो प्रमुख राष्ट्रीय मिशनों-ग्रीन हाइड्रोजन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए बड़ी मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा की जरूरत है. एक दशक पहले, एक सामान्य डेटा सेंटर को औसतन 10मेगावाट बिजली की आवश्यकता होती थी. आज, औसतन 100मेगावाट. यह ज़रूरत लगातार बढ़ रही है.

हमें अक्षय-ऊर्जा स्रोतों की जरूरत इसलिए भी है, ताकि जलवायु-परिवर्तन के वैश्विक-दायित्वों को पूरा किया जा सके. भारत को पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हुए अपनी तकनीकी और विनिर्माण आकांक्षाओं को प्राप्त करना है, तो देश के ऊर्जा मिश्रण के लिए विश्वसनीय और आसानी से तैनात किए जा सकने वाले एसएमआर आवश्यक हैं.

इस उद्देश्य के लिए, सरकार ने 20,000करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसका लक्ष्य 2033तक कम से कम पाँच स्वदेशी एसएमआर विकसित करना है. फरवरी में, भारत और फ्रांस ने लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों और उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टरों को विकसित करने के लिए एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए.

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एसएमआर-300

हाल ही में, केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि 200 मेगावाट क्षमता के भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (बीएसएमआर) को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिजाइन और विकसित किया जा रहा है. इसमें 60से 72महीने का समय लगेगा. यह प्रेशराइज़्ड हैवी वॉटर रिएक्टर (पीडब्लूआर) होगा.

होल्टैक के डिजाइनों में से एक, एसएमआर 300-प्रेशराइज़्ड लाइट वॉटर रिएक्टर है. एसएमआर-300को न्यू जर्सी स्थित होल्टैक इंटरनेशनल ने डिजाइन किया है और यह दुनिया के नवीनतम एसएमआर में से एक है.

यह एक एयर-कूल्ड रिएक्टर है, जिसका अर्थ है कि इसे पानी के भंडारण के लिए बहुत अधिक जगह की आवश्यकता नहीं है और यह शुष्क वातावरण में भी काम कर सकता है.

यह रिएक्टर कोयले से चलने वाले संयंत्रों में उपलब्ध मौजूदा बुनियादी ढाँचे का उपयोग कर सकता है, जिससे नए भूमि-अधिग्रहण की आवश्यकता कम हो जाती है.

एसएमआर सहयोग अमेरिका-भारत सिविल न्यूक्लियर डील के वायदे को पूरा करेगा, जिसमें अमेरिकी परमाणु कंपनियों को भारत में प्रवेश करके स्वच्छ और विश्वसनीय बिजली उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई थी.

भारत को महत्वपूर्ण विनिर्माण इकोसिस्टम बनाने और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में नए सिरे से आगे आने का रास्ता भी इससे खुलेगा.

इससे भारत को 'ग्लोबल साउथ' सहित करीबी भागीदारों के साथ स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण देगा.

भारत-अमेरिका सहयोग

जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन की राजकीय यात्रा के दौरान, उन्होंने और राष्ट्रपति जो बाइडेन ने परमाणु ऊर्जा में भारत-अमेरिका सहयोग को सुविधाजनक बनाने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें सहयोगात्मक तरीके से अगली पीढ़ी के छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर प्रौद्योगिकियों का विकास भी शामिल है.

होल्टैक के पास पहले से ही गुजरात में एक विनिर्माण संयंत्र है, जो विस्तार के लिए तैयार है. होल्टैक के पास गुजरात के दाहेज में एक गैर-परमाणु विनिर्माण सुविधा है. उसने कहा है कि यदि प्रस्तावित विनिर्माण योजनाओं को मंजूरी मिल जाती है तो वह एक वर्ष से भी कम समय में उस संयंत्र में कार्यबल को दोगुना कर सकता है.

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पाकिस्तानी-विरोध

पाकिस्तान के रक्षा मामलों से जुड़े थिंक टैंक ‘सेंटर ऑर इंटरनेशनल स्ट्रैटेजिक स्टडीज़’ ने अपनी सरकार से आग्रह किया है कि वह अमेरिका के इस फैसले का विरोध करे. थिंक टैंक का कहना है कि इन रिएक्टरों का इस्तेमाल बिजली तैयार करने के अलावा पनडुब्बियों और युद्धपोतों के इंजन चलाने में भी होगा.

इसका कहना है कि भारत अगली पीढ़ी की छह पनडुब्बियों के उत्पादन का कार्यक्रम बना रहा है. नए और छोटे नाभिकीय रिएक्टरों की तकनीक से अब ज्यादा कारगर और शक्तिशाली पोत और पनडुब्बियाँ भारत के बेड़े में शामिल हो जाएँगी.

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केवल सैनिक इस्तेमाल की पनडुब्बियों की बात ही नहीं है, असैनिक क्षेत्र में भी पानी के नीचे संचालित होने वाली वैज्ञानिक-शोध के वाहन और पोत भी इसकी सहायता से बन सकेंगे.

इससे इस इलाके में सैनिक-असंतुलन पैदा हो जाएगा. यह पाकिस्तानी मनोदशा है, जो इसी दिशा में चल रहे चीनी प्रयासों की अनदेखी करती है.

चीन का असैनिक परमाणु कार्यक्रम का उद्देश्य औपचारिक तौर पर अक्षय ऊर्जा उद्देश्यों के लिए बताया जाता है, लेकिन इसके सामरिक-निहितार्थों को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता.

इतना ही नहीं चीन-पाकिस्तान सामरिक-सहयोग को देखते हुए भी यह बात खासी महत्वपूर्ण है. दक्षिण चीन सागर में चीन, फ्लोटिंग परमाणु रिएक्टर बनाने की योजना पर काम कर रहा है. फ्लोटिंग न्यूक्लियर पावर प्लांट्स (एफएनपीपी) के लिए एसएमआर बुनियादी तकनीक है.

चीन ने दक्षिण चीन सागर में उथले सागर पर चट्टानों को घेरकर कृत्रिम द्वीप बनाए हैं. इनपर बिजली आपूर्ति के लिए फ्लोटिंग रिएक्टरों का निर्माण शुरू किया है. शुरू में 20से अधिक ऐसे रिएक्टर लगाने की योजना बनाई गई थी. फिलहाल 20की परियोजना को स्थगित कर दिया गया है, पर कुछ पर काम चल रहा है. 

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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