देस-परदेस : चीन में मुसलमानों के दमन पर वैश्विक चुप्पी

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 24-06-2024
पश्चिमी युन्नान प्रांत की ग्रैंड मस्जिद शादियान के गुंबद और मीनारें गिराकर उसे चीनी शैली की इमारत बना दिया गया. चित्र में ऊपर पुरानी मस्जिद और नीचे उसकी बदली तस्वीर। चित्र द गार्डियन से साभार
पश्चिमी युन्नान प्रांत की ग्रैंड मस्जिद शादियान के गुंबद और मीनारें गिराकर उसे चीनी शैली की इमारत बना दिया गया. चित्र में ऊपर पुरानी मस्जिद और नीचे उसकी बदली तस्वीर। चित्र द गार्डियन से साभार

 

jodhiप्रमोद जोशी

चीन में मुसलमानों की प्रताड़ना से जुड़े विवरण पहले भी आते रहे हैं, पर हाल में इस आशय की खबरों की संख्या काफी बढ़ी हैं. इसके बावजूद मुस्लिम देशों के संगठन (ओआईसी) या ऐसे ही किसी दूसरे बड़े संगठन की ओर से विरोध के स्वर सुनाई नहीं पड़ते हैं.

मुसलमानों को सुधार-गृहों के नाम पर बने डिटेंशन-सेंटरों के नाम पर वस्तुतः जेलों में रखा जा रहा है. इनमें लाखों व्यक्तियों को न्यायिक-प्रक्रिया के बगैर, ‘सुधार’ के नाम पर कैद किया जा रहा है.

शिनजियांग प्रांत में 600 से ज्यादा ऐसे गाँवों के नाम बदल दिए गए हैं, जिनसे धार्मिक-पहचान प्रकट होती थी. मस्जिदों के गुंबदों और मीनारों को हटाकर उन्हें चीनी शैली की इमारतों में बदला जा रहा है.

पहले माना जाता था कि यह दमन केवल शिनजियांग प्रांत के वीगुर समुदाय तक सीमित है, पर हाल में आई खबरें बता रही हैं कि यह दमन-चक्र देश भर में चल रहा है. पिछले एक दशक से ओआईसी ने चीन में मुसलमानों के मसले पर पूरी तरह मौन साध रखा है.

मुस्लिम-हितों के लिए मुखर रहने वाला पाकिस्तान भी इस मामले में कुछ नहीं बोलता.इस गतिविधि ने खासतौर से 2015 के बाद से जोर पकड़ा है, जब राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने धर्मों के ‘चीनीकरण (सिनिसाइज़ेशन)’ का आह्वान किया था. चीनीकरण के साथ ‘फोर एंटर’ अभियान भी चल रहा है, जिसका मतलब है कि हरेक मस्जिद में चार बातों को अहमियत दी जाएगी.

ये चार बातें हैं, चीनी राष्ट्र-ध्वज, धर्म से जुड़े चीनी-कानूनों, कोर सोशलिस्ट मूल्य और देश की मूल-संस्कृति का प्रचार. मस्जिदों पर चीनी ध्वज लहरा रहे हैं और सड़कों पर होर्डिंग लगाए गए हैं, जिनमें इस्लाम के बरक्स साम्यवाद के महत्व को रेखांकित किया गया है.

गुंबदों को गिराया

हाल में पश्चिमी मीडिया में प्रकाशित विवरणों से पता लगा है कि चीन सरकार ने ‘इस्लामिक इमारतों के चीनीकरण या सिनिसाइज़ेशन’ के नाम पर देशभर की मस्जिदों के गुंबदों और मीनारों को गिराने का काम पूरा कर लिया है.

हाल में चीन के पश्चिमी युन्नान प्रांत की अज़ीमुश्शान मस्जिद शादियान के गुंबद और मीनारें भी गिरा दी गईं. यह मस्जिद अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध थी और इसे चीन की सबसे बड़ी मस्जिद माना जाता था. संभवतः यह आखिरी ऐसी मस्जिद है, जिसके अरबी इस्लामिक शैली के चिह्न पूरी तरह मिटा दिए गए हैं.

इस्लाम का चीनीकरण

ब्रिटिश अखबार द गार्डियन, फाइनेंशियल टाइम्स और समाचार मीडिया स्काई न्यूज़ में प्रकाशित सचित्र-पड़तालों से यह भी पता लगा है कि ऐसा ‘इस्लाम के चीनीकरण या सिनिसाइज़ेशन’ के नाम पर किया गया है.

इन्हें अब इस तरह से बदल दिया गया है कि वे चीनी इमारतों जैसी लगें. धर्मस्थलों के चीनीकरण अभियान के तहत अब चीन की आखिरी प्रमुख मस्जिद से भी अरबी शैली की वास्तुकला के नामो-निशान मिटा दिए गए हैं.

इन रिपोर्टों के साथ प्रकाशित तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि मस्जिद के गुंबद और मीनारें अब नहीं हैं. उनकी जगह चीनी शैली की छत बना दी गई है. मस्जिद के ऊपर लगे अर्धचंद्र (क्रिसेंट मून) और हरे रंग के टाइल्स को बदल दिया गया है.

प्रतिरोध का दमन

शादियान से 100 मील से भी कम दूरी पर स्थित युन्नान की एक अन्य ऐतिहासिक मस्जिद नाजियायिंग से भी इसकी इस्लामी विशेषताओं को इसके पहले ही हटा दिया गया था. पिछले साल मई के महीने में जब इसका गुंबद गिराया जा रहा था,

तब स्थानीय निवासियों ने इसका विरोध किया था, जिसे दबाने के लिए भारी पुलिस-बल का इस्तेमाल किया गया था.चीन में न तो स्वतंत्र-मीडिया है और न मानवाधिकार-संगठन. इसलिए वह विरोध फौरन ही दबा दिया गया. 21,000 वर्ग मीटर में फैली शादियान की ग्रैंड मस्जिद इस्लामिक-शैली की बड़ी, भव्य और ऐतिहासिक इमारत हुआ करती थी.

उसके शिखर पर अर्धचंद्र से सुशोभित हरे रंग का गुंबद होता था. मस्जिद के चारों ओर चार ऊँची मीनारें और दो छोटे गुंबद और होते थे. मस्जिद की नई तस्वीरों में गुंबद के स्थान पर चीनी हान शैली की पगोडा जैसी इमारत नज़र आती है. मीनारों की ऊंचाई भी काफी कम करके उन्हें भी पगोडा स्तंभों की शक्ल दे दी गई है.

चीनी-राष्ट्रवाद

मार्क्सवाद, धर्म को अफीम जैसा नशा मानता है. पर उसका दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय होता है, लेकिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का जोर राष्ट्रवाद पर है. पार्टी के पहले शिखर-पुरुष माओ-जे दुंग के नेतृत्व में पचास और साठ के दशकों में राष्ट्रीय-पहचान को स्थापित करने के अभियान चलाए गए थे.

माओ मानते थे कि देश में पार्टी से इतर संगठनों की आड़ में विदेशी या साम्यवाद-विरोधी ताकतें सक्रिय हो सकती हैं. उस वक्त उनका इशारा चर्च की ओर होता था. पर वह केवल चर्च तक सीमित नहीं था.

माओ के शासनकाल में चली सांस्कृतिक-क्रांति के दौर में शादियान की प्राचीन मस्जिद को बंद कर दिया गया. वह मस्जिद मिंग वंश के दौर में बनी थी. 1975 में उसे ध्वस्त भी कर दिया गया. 1974-75 में उसे लेकर जबर्दस्त आंदोलन चला था, जिसे दबाने के लिए सेना का सहारा लिया गया था. उस दमन में 1600 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.

पहले ढील दी

1976 में माओ ज़ेदुंग के निधन के बाद देंग श्याओ फेंग ने चीन की सत्ता संभाली और आधुनिकीकरण और आर्थिक-उदारीकरण का कार्यक्रम शुरू किया. कम्युनिस्ट पार्टी ने आर्थिक-उदारीकरण की शुरुआत की और धार्मिक-कार्यों को ढील भी दी. पार्टी ने सऊदी अरब और कुवैत जैसे देशों से पूँजी निवेश करने का आग्रह किया.

चीन में तमाम पुरानी मस्जिदें ऐसी भी थीं, जिनकी वास्तु-शैली चीनी थी. देंग श्याओ फेंग के उदारीकरण के दौर में ऐसा भी हुआ कि चीनी शैली की मस्जिदों में बदलाव करके उन्हें अरब-शैली में बदला गया.

शादियान की जिस मस्जिद के स्वरूप को हाल में बदला गया है, वह 2010 में ही बनी थी, और उसके अरब-इस्लामिक स्वरूप को सरकार से स्वीकृति मिली थी. नाजियायिंग की मस्जिद 2004 में बनी थी. इन दोनों मस्जिदों के निर्माण और फिर उनमें बदलाव से चीन सरकार के भ्रम भी उजागर होते हैं.

धर्म-विरोधी अभियान

वर्तमान राष्ट्रपति शी चिनफिंग पहले राष्ट्रीय नेता हैं, जिन्होंने धर्म-विरोधी अभियान को योजनाबद्ध तरीके से चलाया है. वे चाहते हैं कि धार्मिक-नेता स्वयं चीनी-साम्यवाद के नक्शे-कदम खुद को बदलें.

वे मानते हैं कि सोवियत संघ के विघटन के पीछे एक कारण यह भी था कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद को मजबूती से स्थापित नहीं किया गया और उसके वैचारिक-प्रतिस्पर्धियों को पैर जमाने का मौका मिल गया. पार्टी मानती है कि इस्लाम और ईसाई विचार, साम्यवाद के प्रतिस्पर्धी हैं.   

चीन सरकार ने 2018 में ‘इस्लाम के चीनीकरण’ पर एक पंचवर्षीय योजना शुरू की थी. 2019 में चीनी इस्लामिक एसोसिएशन और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारियों की बैठक में ‘इस्लाम के चीनीकरण की इस पंचवर्षीय योजना’ को सफल बनाने का फैसला हुआ. इसका उद्देश्य विदेशी वास्तुकला शैली के स्थान पर चीनी-शैली की वास्तुकला को बढ़ावा देना है.

बनाएं और गिराएं

उसका पहला लक्ष्य था 2022 तक इस्लाम का समाजवाद के साथ मेल बैठाने का काम, ताकि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के महा-सम्मेलन तक यह काम पूरा हो जाए. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक पत्र में स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि इन धर्मस्थलों की शक्ल बदलने में ‘कम बनाने और ज्यादा गिराने के सिद्धांत का पालन करें.’

अक्तूबर, 2022 में हुए इस सम्मेलन में राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने तीसरे और संभवतः आजीवन कार्यकाल की शुरुआत लोहे के दस्ताने पहन कर की. अपने प्रतिस्पर्धियों को हाशिए पर डालते हुए उन्होंने वफादारों की एक नई टीम की घोषणा भी की.

इस महा-सम्मेलन के चार बड़े संदेश थे. पहला, शी चिनफिंग अब उम्रभर के लिए सर्वोच्च नेता बन गए हैं. पोलितब्यूरो के सात में से चार पुराने सदस्यों को हटाकर चार नए नेताओं को पदोन्नति दी गई. भविष्य की आर्थिक-सामाजिक नीतियों में देश के इस्लामिक-समुदाय के चीनीकरण का काम भी शामिल है.

धार्मिक-दृष्टि ‘मनोरोग!’

शी चिनफिंग ने इस्लाम के चीनीकरण के कार्यक्रम की घोषणा 2015 में ही कर दी थी, जिसके आधार पर 2018 में इससे जुड़ा व्यापक कार्यक्रम बनाया गया. इसके अनुसार चरमपंथी धारणाएं, मुसलमानों को हिंसक-आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने को प्रेरित करती हैं.

चीन सरकार मानती है कि इस्लाम का इस्तेमाल ‘चीनी समाजवादी मूल्यों’ में योगदान के रूप में होना चाहिए. इसके लिए 32-सूत्री योजना बनाई गई है. योजना के अनुसार धार्मिक-दृष्टि ‘मानसिक-रोग’ है, जिसका इलाज होना चाहिए.

पिछले साल फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 के बाद से पूरे देश में 2,300 से अधिक मस्जिदों में से तीन-चौथाई को या तो बदल दिया गया या नष्ट कर दिया गया है.
इन बड़ी और ऐतिहासिक मस्जिदों में हुए बदलाव के बावजूद छोटे शहरों और गाँवों में अरब शैली की छोटी मस्जिदें बची भी होंगी, तो वहाँ के लोग चीनीकरण का विरोध नहीं कर पाएंगे.

मस्जिदों के चीनीकरण अभियान को प्रांत दर प्रांत आगे बढ़ाया गया है.

ढाई करोड़ मुसलमान

चीन में करीब ढाई करोड़ मुसलमान रहते हैं. ज्यादातर शिनजियांग, निंगशिया, गांसू और चिंगहाई प्रांतों में रहते हैं. इनमें हुई, वीगुर, कज़ाक, तातार और अन्य समुदाय हैं. इनमें दो मुख्य समूह हैं. एक हैं पश्चिमी युन्नान के हुई मुस्लिम और दूसरे शिनजियांग के वीगुर. चीन सरकार ने हुई मुसलमानों को वीगुरों की तुलना में ज्यादा सुविधाएं दी हैं, क्योंकि वे हान चीनी समाज के साथ काफी घुल-मिल चुके हैं.

चीन में इस्लाम का प्रवेश सातवीं सदी में व्यापारियों के मार्फत हुआ था. बाहर से आए मुस्लिम-व्यापारी शुरू में तटवर्ती इलाकों के व्यापारिक-केंद्रों में रहते थे. उन्होंने मस्जिदों और अन्य धार्मिक-इमारतों का निर्माण भी कराया. खासतौर से मंगोल-नेतृत्व में युआन वंश (1279-1368) के दौर में इस्लाम का प्रभाव बढ़ा.

इसके बाद मिंग वंश (1368-1644) के दौर में हान चीनी शासकों ने बाहरी लोगों और खासतौर से मुसलमानों की संस्कृति के प्रदर्शन पर रोक लगा दी. यह आदेश पहनावे, हेयर-स्टाइल, भाषा और व्यक्तियों के नामों पर लागू होता था.

मुसलमानों ने खुद को काफी हद तक चीनी हान-संस्कृति के साथ खुद को ढाला. वे चीनी भाषा बोलते हैं, उनके नाम भी स्थानीय हैं. इन्हें आज हम हुई मुस्लिम कहते हैं.

सांस्कृतिक एकीकरण

1949 की कम्युनिस्ट क्रांति के बाद पार्टी ने मुसलमानों को आश्वस्त करने की कोशिश भी की. उनसे कहा कि इस्लाम और साम्यवाद में कोई भेद नहीं है. 1952 में पार्टी ने इस्लामिक धार्मिक-पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद कराया, ताकि बताया जा सके कि दोनों विचारधाराएं एक-दूसरे की विरोधी नहीं हैं.

बावजूद इसके पश्चिमोत्तर शिनजियांग प्रांत में वीगुर (या उइगुर) समस्या खड़ी हुई है.   चीन का आधिकारिक इतिहास शिनजियांग इलाके में दो हजार साल के पीछे नहीं जाता. वीगुर इतिहासकार तुर्गन अल्मास की दो किताबों पर चीन में पाबंदी लगा दी गई है, क्योंकि वे इस इलाके के इतिहास को छह हजार साल पीछे ले जाती हैं.

पिछले दो हजार साल में यह इलाका व्यावहारिक रूप में चीन के अधीन कुल जमा 425 साल तक ही रहा है. यहाँ के लोग या तो पश्चिम में तुर्की की ओर से आए हैं या उत्तर में मंगोलिया की ओर से.
1949 के पहले 1933 और 1944 में दो बार इस क्षेत्र में पूर्वी तुर्किस्तान नाम के देश का उदय हुआ और दोनों बार राजनीतिक शक्ति न होने और सोवियत संघ के दबाव में यह अलग देश नहीं बन सका.

मुस्लिम-देशों का रुख

सवाल यह है कि क्या मुस्लिम-देश चीन सरकार की इस रीति-नीति को नहीं देख पा रहे हैं? क्या उन्होंने अपनी तरफ से आपत्ति दर्ज कराई है? मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी की भूमिका इस मामले में क्या रही है वगैरह?

मार्च, 2022 में ओआईसी के विदेशमंत्रियों की 48वीं परिषद की बैठक पाकिस्तान में हुई. इसमें चीन के विदेशमंत्री वांग यी विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए थे. उन दिनों वीगुरों के दमन का मामला पश्चिमी देशों में और संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया जा रहा था.

ओआईसी की बैठक में चीनी विदेशमंत्री को परेशान करने वाले सवाल नहीं पूछे गए. केवल तुर्की के प्रधानमंत्री ने वीगुरों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की. वांग यी ने बैठक में यह भी कहा कि चीन में अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया जाता है.

 ( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )

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