शिक्षकों का योगदान: कैसे बन सकते हैं राष्ट्र निर्माण के सशक्त स्तंभ ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 05-09-2024
Role of teachers in nation building: challenges and solutions AI photo
Role of teachers in nation building: challenges and solutions AI photo

 

अब्दुल्लाह मंसूर

शिक्षक समाज के निर्माण में एक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। वे सिर्फ ज्ञान के स्रोत नहीं होते, बल्कि नैतिक मूल्यों, सामाजिक समझ और नागरिक कर्तव्यों को बच्चों में प्रवाहित करने का कार्य करते हैं। एक शिक्षक का कार्य केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा तक सीमित नहीं है; बल्कि वे छात्रों को जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। 
 
इस लेख में, हम शिक्षक की भूमिका, उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के उपाय और भारत में शिक्षकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेंगे.
 
शिक्षक और राष्ट्र निर्माण
 
शिक्षक राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। वे समाज की बुनियादी इकाई को सशक्त बनाते हुए विद्यार्थियों के चरित्र, नैतिकता और राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करते हैं। शिक्षक छात्रों को डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, नेता और विचारक बनने के लिए तैयार करते हैं, जिससे उनकी सफलता सुनिश्चित होती है।शिक्षक पाठ्यक्रम पढ़ाने के अलावा जीवन कौशल, नैतिक मूल्य और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना भी विकसित करते हैं, जो अच्छे नागरिक बनने में मदद करता है। 
 
वे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता की भावना जगाते हैं, जिससे छात्रों में देश के प्रति गौरव और प्रेम बढ़ता है।शिक्षक छात्रों को वैश्विक नागरिक बनने के लिए तैयार करते हैं और नवाचार व रचनात्मकता को प्रोत्साहित करते हैं.
 
वे सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं और सकारात्मक परिवर्तन लाने में प्रेरित करते हैं। इस प्रकार, शिक्षक व्यक्तिगत जीवन और राष्ट्र की दिशा दोनों को आकार देते हैं, एक प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण में योगदान देते हैं.
 
भारतीय शिक्षा के बुनियादी सवाल
 
भारत को अपनी शिक्षा नीति में कई मूलभूत प्रश्नों पर ध्यान देना चाहिए। अब जबकि अधिकांश बच्चे स्कूल में नामांकित हैं, यह सवाल उठता है कि क्या वे वास्तव में सीख रहे हैं और प्रत्येक वर्ष स्कूल में बिताने के बाद उनके ज्ञान और कौशल में कितना सुधार हो रहा है ?
 
शिक्षा प्रणाली को इस दिशा में सुधार की आवश्यकता है कि बच्चों को शिक्षा से वास्तविक ज्ञान, कौशल और अवसर मिलें ? यह भी विचार करना होगा कि क्या भारत को कुछ के लिए उत्कृष्टता का पीछा करना चाहिए या सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना चाहिए ?
 
शिक्षा नीति में तकनीकी और व्यावसायिक कौशल को कैसे शामिल किया जाए ताकि यह बच्चों के भविष्य के लिए अधिक प्रासंगिक हो, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। 
 
शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षक की भूमिका
 
भारत में प्राथमिक शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच के बावजूद, शैक्षणिक गुणवत्ता और बच्चों की सीखने की क्षमता में कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। मुख्य समस्या यह है कि बच्चे अपेक्षित स्तर की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, भारतीय स्कूलों की कठोर संरचना बच्चों के पिछड़ने का कारण बनती है। शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे प्रत्येक कक्षा के पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों का कड़ाई से पालन करें। 
 
इस कठोर संरचना के कारण, शिक्षक उन बच्चों पर पर्याप्त समय नहीं दे पाते जो कक्षा के स्तर से पीछे हैं। हाल तक, प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों के मूल्यांकन की कोई व्यवस्थित प्रणाली नहीं थी जो पिछड़े हुए बच्चों की पहचान कर सके। 
 
स्कूल प्रणाली (सरकारी या निजी) में पिछड़े हुए बच्चों की मदद के लिए कोई संगठित या व्यवस्थित उपचारात्मक प्रयास नहीं किए जाते। यदि कोई बच्चा शुरुआती वर्षों में बुनियादी कौशल नहीं सीखता है, तो बाद के स्कूली वर्षों में उनके इन कौशलों को प्राप्त करने की संभावना कम होती है। 
 
इस कठोर संरचना के परिणामस्वरूप, कई बच्चे पाठ्यक्रम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते और धीरे-धीरे पीछे रह जाते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से उन बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण है जिनके माता-पिता कम शिक्षित हैं और घर पर पर्याप्त शैक्षणिक सहायता प्रदान नहीं कर सकते। इस स्थिति में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 
 
वे बच्चों को प्रारंभिक वर्षों में ही बुनियादी कौशल सिखाने पर जोर दे सकते हैं ताकि आगे की शिक्षा में उन्हें कठिनाई न हो। साथ ही, शिक्षकों को अधिक समावेशी और लचीली शिक्षण विधियों का उपयोग करना चाहिए ताकि सभी बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ावा मिल सके।
 
भारत में प्राथमिक शिक्षा की चुनौतियाँ
 
भारत में प्राथमिक शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच के बावजूद, मुख्य चुनौती बच्चों की सीखने की क्षमता और शैक्षणिक गुणवत्ता से संबंधित है।
 
इस चुनौती के कई पहलू हैं
 
शिक्षा की गुणवत्ता
 
लगभग सभी बच्चे स्कूल में नामांकित हैं, लेकिन वे अपेक्षित स्तर की शिक्षा प्राप्त नहीं कर रहे हैं।
 
बुनियादी कौशल का अभाव
 
नए आंकड़े दर्शाते हैं कि पांच साल की स्कूली शिक्षा के बाद भी, केवल लगभग आधे बच्चे ही पढ़ने या गणित में वह स्तर प्राप्त कर पाते हैं जो दो या तीन साल के बाद अपेक्षित होता है।
 
सीखने की धीमी गति
 
यदि एक बच्चा शुरुआती वर्षों में बुनियादी कौशल नहीं सीखता है, तो बाद के स्कूली वर्षों में उनके इन कौशलों को प्राप्त करने की संभावना कम होती है।
 
पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति
 
भारतीय स्कूलों की कठोर संरचना बच्चों के पिछड़ने का कारण बनती है, क्योंकि शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे प्रत्येक कक्षा के पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों का कड़ाई से पालन करें।
 
घर पर सहायता का अभाव
 
ग्रामीण क्षेत्रों में, लगभग 50 प्रतिशत स्कूली बच्चों की माताएं बिना शिक्षा या बहुत कम शिक्षा वाली हैं, जो घर पर सीखने के लिए सक्रिय समर्थन प्रदान नहीं कर सकतीं।
 
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत को अपनी शिक्षा नीति को बुनियादी ढांचे और इनपुट, नामांकन और खर्च से आगे बढ़ाकर दृष्टि और कार्यान्वयन के मौलिक प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
 
भारत में शिक्षकों के सामने चुनौतियाँ
 
हालाँकि शिक्षक समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी वे कई चुनौतियों का सामना करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
 
शिक्षक अनुपस्थिति 
 
भारत में शिक्षक अनुपस्थिति की दर उच्च है, जो स्कूलों में सीखने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। सरकारी स्कूलों में यह समस्या अधिक गंभीर है, जिसके कारण शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आती है।
 
प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी
 
कई शिक्षकों में पर्याप्त प्रशिक्षण और आवश्यक कौशलों की कमी है, जिससे उनकी शिक्षण क्षमता सीमित हो जाती है। 
 
इसके अलावा, कई स्कूलों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे और संसाधनों की कमी है, जो शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। प्रशासनिक कार्य का बोझ: शिक्षकों को कई प्रशासनिक कार्य करने पड़ते हैं, जिससे शिक्षण के लिए कम समय मिलता है। यह समस्या विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में अधिक देखी जाती है।
 
बड़ी कक्षा का आकार
 
भारत में छात्र-शिक्षक अनुपात अधिक होने के कारण कक्षाएं बड़ी होती हैं, जिससे व्यक्तिगत ध्यान देना मुश्किल हो जाता है।
 
भाषा की बाधा
 
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ संवाद में कठिनाई होती है, जिससे शिक्षण प्रक्रिया प्रभावित होती है।
 
शिक्षक प्रभावशीलता को बढ़ाने के तरीके
 
भारत में शिक्षक प्रभावशीलता को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
 
प्रशिक्षण और कौशल विकास
 
शिक्षकों को नियमित रूप से नवीनतम शिक्षण विधियों और तकनीकों से अवगत कराने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। इन प्रशिक्षणों में डिजिटल तकनीकों का उपयोग, समावेशी शिक्षा, और विद्यार्थियों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीकों पर जोर दिया जाना चाहिए।
 
टीम प्रयास और समन्वय
 
शिक्षकों को अपनी शैक्षणिक गतिविधियों में समन्वय करना चाहिए ताकि संस्थान का समग्र प्रदर्शन बेहतर हो। 
 
प्रबंधन को शिक्षकों के लिए वार्षिक अंतर-विभागीय प्रतियोगिताएं आयोजित करनी चाहिए जो टीम प्रयास और समन्वय में सुधार करेंगी।
छात्र प्रतिक्रिया का उपयोग: शिक्षकों को सेमेस्टर के दौरान छात्रों को अनौपचारिक प्रतिक्रिया देने के कई अवसर प्रदान करने चाहिए। यह शिक्षण अभ्यास में सुधार का एक प्रभावी तरीका है।
 
पेशे के प्रति प्रतिबद्धता
 
शिक्षकों को अपने पेशे के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए ताकि वे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकें। इस प्रतिबद्धता को बढ़ाने के लिए, शिक्षकों के लिए नियमित रूप से प्रोफेशनल डेवलपमेंट कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
 
समावेशी शिक्षा और शिक्षक का महत्व
 
समावेशी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को, उनकी क्षमताओं या पृष्ठभूमि से परे, एक साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। इसमें शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
 
शिक्षक को एक ऐसा वातावरण बनाना होता है जहां सभी बच्चे सुरक्षित और स्वीकृत महसूस करें। उन्हें प्रत्येक बच्चे की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पहचानना और उनके अनुसार शिक्षण विधियों को अपनाना होता है।
 
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए, शिक्षक को व्यक्तिगत शिक्षा योजना तैयार करनी चाहिए और सहायक तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। पाठ्यक्रम को इस तरह से अनुकूलित किया जाना चाहिए कि वह सभी बच्चों के लिए सुलभ हो। इसके लिए शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
 
शिक्षक एक ऐसा स्तंभ है, जिसके बिना समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। वे न केवल बच्चों को शिक्षित करते हैं, बल्कि उन्हें समाज का जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में मार्गदर्शन भी करते हैं। 
 
हालाँकि, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनसे निपटने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। यदि शिक्षक प्रभावशीलता को बढ़ाने और उनकी चुनौतियों को दूर करने के लिए समुचित कदम उठाए जाएं, तो निःसंदेह, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और हमारा देश समृद्ध और शक्तिशाली बनेगा।
 
(लेखक पेशे से शिक्षक हैं)