बाढ़ की सांप्रदायिकता और सांप्रदायिकता की बाढ़

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 19-08-2024
Communalism of flood and flood of communalism
Communalism of flood and flood of communalism

 

harjinderहरजिंदर

समस्याओं का दोष दूसरों के मत्थे मढ़ देना राज-काज का पहला उसूल है. जब तक यह काम नौकरशाहों के हवाले होता है तो कुछ गनीमत रहती है, राजनेता जब इस काम को करते हैं तो वे कईं हाथ आगे बढ़ जाते हैं.

पिछले दिनों असम के गुवाहटी में अचानक बाढ़ का पानी घुस आया. शहर में पानी आ जाने पर जो समस्याएं सभी जगह होती हैं वहीं वहां भी दिखाई देने लगीं. इस मानूसन में तकरीबन पूरे भारत में ही ऐसी समस्याएं जगह-जगह दिखाई दी हैं. ऐसे में आम लोगों को जो परेशानियां हो सकती हैं वही गुवाहटी के लोगों को भी हुईं.

वहां यह पानी मेघालय की पहाड़ी ढलानों से होता हुआ पहंुचा था सो सबसे आसान तरीका था कि मेघालय पर इसका आरोप लगाया जाए. लेकिन असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व शार्मा के लिए इस तरह का आरोप लगाना मुमकिन नहीं था, क्योंकि मेघालय की कोनार्ड संगमा की सरकार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की ही सरकार है.

यानी उस पर आरोप लगाना खुद को ही कटघरे में खड़े करने जैसा था.लेकिन कोई तो होना चाहिए था जिस पर आरोप लगाया जाता. मेघालय के इस इलाके में एक प्राईवेट यूनिवर्सटी है जिसका नाम है यूनिवर्सटी आॅफ साइंस एंड टेक्नोलाॅजी मेघालय. इसे एक कारोबारी महबूबुल हक चलाते हैं.

इससे आरोप लगाने के लिए एक निशाना मिल गया. कहा गया कि इस यूनिवर्सटी ने पहाड़ों मे जो कटाई की है उसकी वजह से पानी गुवाहटी जिले के कईं हिस्सों में घुस आया. आरोप सिर्फ यहीं नहीं रुका. इसके साथ उसे सांप्रदायिक रंग भी दे दिया गया. यह कहा गया कि यूनिवर्सटी जो कर रही है वह फ्लड यानी बाढ़ जिहाद है.

असम के मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वे इसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में जाएंगे.गुवाहटी के लोग जिस समय बाढ़ से जूझ रहे थे, असम के नेता उनकी मदद करने के बजाए सांप्रदायिक नफरत की राजनीति को एक नया शब्द दे रहे थे.

इस बीच एक और घटना हुई. दिल्ली में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नेशनल इंस्टीट्यूश्नल रैंकिंग फ्रेमवर्क-2024 की घोषणा की. जिसमें देश के सबसे ज्यादा रैंकिंग वाले उच्च शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालय की रैंकिंग की गई थी. मेघालय की यह यूनिवर्सटी अकेला ऐसा प्राईवेट विश्वविद्यालय है जिसे इसमें जगह मिली.  

उम्मीद थी कि इस उपलब्धि के बाद विवाद खत्म हो जाएगा. यूनिवर्सटी को बधाइयां मिलने लगेंगी. लेकिन आरोपों का सिलसिला जारी रहा. यह कहा गया कि इस यूनिवर्सटी का गेट मक्का की तरह बनाया गया है.

बाद में यूनिवर्सटी ने अपनी तरह से सफाई भी दी. कहा कि उसने किसी भी कानून को कोई उल्लंघन नहीं किया है. उल्लंघन हुआ है या नहीं जांच से  पता चल सकता है, लेकिन यूनिवर्सटी का एक तर्क जरूर महत्वपूर्ण हैं.

उसने कहा है कि जिस इलाके से पानी गुवाहटी की ओर बढ़ता है उसके एक बहुत ही छोटे से हिस्से में यह यूनिवर्सटी है, इसलिए उसे कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ?मामला जब लोगों का ध्यान हटाने के लिए बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा तक को संाप्रदायिक रंग देने का हो तो ऐसे तर्कों का कोई अर्थ नहीं रहा जाता.
 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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