राकेश चौरासिया
अपडेट
दिनांकः 24 अगस्त, 2023
समयांकः 13.54 बजे
चंद्रयान-3ः 13 कंपनियों की पांचों अंगुलियां घी में, पूंजी बढ़ी 20,000 करोड़
चंद्रयान-3 अभियान भारत के अंतरिक्ष उद्योग के लिए भी पीएसएलवी बूस्टर साबित होने वाला है. चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के चांद को स्पर्श करने के पहले ही इस अभियान के सहयोगी कारखानों का बाजार पूंजीकरण 33.32 फीसदी तक बढ़ गया है. इन कंपनियों के निकट भविष्य में भी वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है.ये कंपनियां रॉकेट कम्युनिकेशन, नैविगेशन, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट, मेटल गियर जैसी चीजें बनाती हैं. कंपनियों के पूंजीकरण में 2 अरब डॉलर से ज्यादा बढ़ोतरी एक सप्ताह में ही हुई है.
इस मिशन में सहयोग देने वाली कंपनियों के शेयर 33.32 फीसदी तक चढ़ गए. इसरो के रॉकेटों के लिए कोबाल्ट आधारित अलॉय बनाने वाली सरकारी कंपनी मिश्र धातु निगम के शेयरों की कीमत चंद्रयान-3 लॉन्च होने के बाद से 33.32 फीसदी तक बढ़ चुकी है.
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, गैस मुहैया कराने वाली लिंडे इंडिया के शेयर 23 प्रतिशत चढ़ गए. चंद्रयान के प्रोपल्शन व लैंडर मॉड्यूल्स के ऑनबोर्ड सिस्टम से जुड़ी सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स के स्टॉक में 11 प्रतिशत की तेजी आई है. सैटेलाइड कम्युनिकेशन से जुड़ी कंपनी एवेंटेल के शेयर 12 फीसदी तक बढ़े हैं. विक्रम लैंडर बनाने वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के शेयर की कीमत एक दिन में ही 3.5 फीसदी बढ़ गई. चंद्रयान के लॉन्च से जुड़े रॉकेट के बूस्टर से जुड़ी एलएंडटी एक दिन में 1.47 फीसदी बढ़ा. चंद्रयान के इंजन बनाने से जुडी एमटीएआर के शेयर की कीमत करीब 5.14 फीसदी बढ़ी है. चंद्रयान के लिए बाईमेटेलिक एडेप्टर मुहैया कराने वाली भेल के शेयर चंद्रयान लॉन्च होने के बाद से 11.52 फीसदी चढ़े. गोदरेज एयरोस्पेस 12.62 प्रतिशत बढ़ा है. इसनेथ्रस्टरवइंजनसेजुड़ेउपकरणमुहैयाकराए.
आज सुबह होते ही, मीडिया में चंद्रयान-3 की साफ्ट लैंडिग के किस्से आने शुरू हो गए. भारत के दर्जनों मंदिरों में चंद्रयान की सफल उतरान के लिए हवन और पूजा शुरू हो गई. मस्जिदों में खास दुआओं के लिए नमाज और इबादतें की तस्वीरें और खबरें उल्लास को बढ़ा रहीं थीं. गुरुद्वारों के अरदासें और गिरिजाघरों की घंटियां चंद्रयान-3 के लिए घनघना रही थीं. इन सभी मांगलिक अनुष्ठानों के बीच दिल की धुकधुकी भी बढ़ती जा रही थी, क्योंकि दूसरे नंबर का चंद्रयान चंदा मामा के घर जाकर रूठ गया था. दफ्तर में खबर लिखते और काम करते बार-बार नजरें टीवी पर जमीं थीं और इसी बीच शाम को काउंटडाउन शुरू हुआ. सभी ने करबद्ध, सांसें थामें और लबों पर दुआओं के लफ्ज बुदबुदाते वो आह्लादारी क्षण भी देखा कि जब इसरो ने चंद्रयान-3 की कामयाब साफ्ट लैंडिंग की घोषणाा की और पूरा देश हर्षातिरेक में उछल पड़ा. देशवासी उल्लासित हो एक-दूसरे को बधाईयां दे रहे थे. दुनिया भर के नेता और वैज्ञानिक ‘समर्थ भारत और सक्षम भारत’ की कहानी को अपनी खुली आंखों से देखकर अभिभूत दिखे. एक खास बात यह भी दिखी कि विश्व के नेताओं से मिल रहीं प्रतिक्रियाओं में भारत की इस उपलब्धि को दुनिया के तमाम देशों ने अपनी और मानव समाज की उपलब्धि मानकर जश्न मनाया. भारत की इस कामयाबी से न केवल चांद पर मानव बस्तियां बसाने के प्रकल्प की दिशा में प्राथमिक प्रायोगिक मदद मिलेगी, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान के अग्रणी खिलाड़ी के तौर पर भारत का दबदबा भी बढ़ेगा. इससे पहले, भारत एक ही मिशन में 104 उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च करके अपनी ताकता का लोहा मनवा चुका है. अब चंद्रयान-3 की उपलब्धि के बाद भारत के अंतरिक्ष उद्योग के कारोबार में गुणात्मक वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है. दुनिया के दीगर मुल्क, भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में कुशलता, प्रवीणता, सटीकता और कम लागत के कारण अपने उपग्रहों के लिए इसरो की सेवाएं लेने को कतारबद्ध दिखाई देंगे. अभी भारत के इसरो का राजस्व 8 अरब डालर है और चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद 100 अरब डॉलर का लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाएगा.
सितारों के आगे जहां और भी है. और जिज्ञासु मानव ने अपने घर की छत पर खटिया पर लेटे हुए हमेशा यह जानने के प्रयास किए कि आसमान में टिमटिमाते हुए इन छोटे-छोटे तारों की असल कहानी क्या है. इस जिज्ञासा के शमन के लिए वैज्ञानिकों ने अब तक सैकड़ों अनथक प्रयास किए हैं. विश्व भर के वैज्ञानिक चांद का भौगोलिक और रासायनिक अध्ययन करने को लालायित हैं. प्रारंभिक शोधों के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि चांद पर भारी मात्रा में पानी, ऑक्सीजन, हीलियम और अन्य रासायनों के भंडार हो सकते हैं, जो न केवल चंद्रयानों के राकेटों को ऊर्जा देंगे, बल्कि पृथ्वी की आवष्यकताओं के लिए भी चांद के अन्य संसाधनों का उपयोग किया जा सकेगा. वैज्ञानिक अनुमान हैं कि चांद का दक्षिणी धु्रव पृथ्वी से हमेशा अंधरे में रहा हैं. इस क्षेत्र में उल्कापिंडों की निरंतर बारिशों से लाखों सालों में बड़े-बड़े क्रेटर्स यानी कई-कई किमी वृताकार के गड्ढे बन चुके हैं. इनमें बर्फ की शक्ल में पानी हो सकता है, जो जांच पर मानव बस्तियां बसाने के लिए एक जरूरी घटक सिद्ध होगा. यहां के पानी में उपलब्ध हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का प्रथक्कीकरण करके हाइड्रोजन का उपयोग राकेट के ईंधन के तौर पर किया जा सकता है. ये पुनरप्रयोगी राकेट न केवल वापस पृथ्वी पर आएंगे, बल्कि चांद को बेस बनाकर वहां से ईंधन लेकर अन्य ग्रहों की यात्रा भी कर सकेंगे. पानी से निःसृत ऑक्सीजन वहां उपस्थित वैज्ञानिक प्राणवायु के तौर पर इस्तेमाल कर सकेंगे.
कई कंपनियां तो चांद पर प्लाटिंग करने यानी भूखंड बेचने के कारोबार में भी सक्रिय हो गई हैं. इसलिए दुनिया का हर देश सबसे पहले चांद पर पहुंचकर अपनी दावेदारी मजबूत करने को उत्सुक है. चीन की ख्वाहिश है कि वह 2030 तक अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारे. जबकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की योजना है कि वह 2024 में चांद पर अंतरिक्ष यात्री भेजे. नासा चांद पर दीर्घकालीन रणनीति के तहत टिकाऊ ढांचागत सुविधाएं विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है. यहां अमेरिका सुरक्षित जोन बनाना चाहता है, ताकि उसकी सुविधाओं के माध्यम से उसके वैज्ञानिक अंटार्टिका की तरह चांद पर शोधकार्य संपादित कर सकें.
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कभी साइकिल पर पहला राकेट ले जाने वाले भारत ने प्रगति की मैराथन छलांग लगाकर चंद्रयान-3 की मीठी कहानी से दुनिया-जहान को चौंका दिया है. भारत के चंद्रयान ने 14 जुलाई को लांच होकर 23 अगस्त को चांद पर साफ्ट लैंडिंग की, जबकि रूस ने इसके 28 दिनों बाद भारत से भी तीव्र गति वाला लूना-25 लांच किया थी. रूस ने अंतिम बार 1976 में चंद्र अभियान के प्रयास किए थे. उसके लंबे अंतराल के बाद लूना-25 लांच किया था. मगर लूना-24 को उसकी विशेष गति शक्ति के कारण चंद्रयान-3 से पहले उतरना था. मगर, मित्र राष्ट्र को अंतिम क्षणों में अप्रत्याशित गड़बड़ी के कारण 20 अगस्त को विफलता हाथ लगी, जब वह लैंडिंग के दौरान क्रैश हो गया. इसके बावजूद रूस ने भारत के चंद्रयान-3 के लिए सफलता की कामना की. और दुआओं के असर ने अपना काम किया.
चांद पर पहुंचने की घुड़दौड़ नई नहीं है. सभी चांद पर पहले पहुंचने का मंसूबा बनाए हुए हैं. हर मुल्क के वैज्ञानिक चाहते हैं कि वे चांद के अनछुए हिस्सों पर पहले पहुंचे और अपनी खोजबीन शुरू करके चांद पर नई संभावनाओं का पता लगाएं. इसके लिए अमेरिका एक कार्यढांचा बना चुका है, जिसका नाम एर्टमिस अकॉर्ड है और इस पर भारत सहित 30 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं, जो चांद के शोध कार्यों के परिणामों को इस संधि से जुड़े सदस्य देशों को आपस हस्तांतरित करेंगे, ताकि अगले चरणों का शोध कार्य शुरू किया जा सके. हालांकि रूस और चीन ने इस अकॉर्ड पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
भारत के लिए कारोबार की संभावनाएं
भारत के सभी अंतरिक्ष अभियान अमेरिका और चीन के मुकाबले काफी किफायती यानी कम लागत मूल्य के होते हैं. ये बात अन्य मुल्कों को सर्वाधिक आकर्षित करेगी और वे भारत के कम लागत मूल्य की अंतरिक्ष सेवाओं का लाभ क्यों नहीं उठाना चाहेंगे. मसलन रूस के लूना-25 में तीव्र वेगवान रॉकेट इस्तेमाल हुआ, जिसमें ईंधन ज्यादा लगा. इसलिए उसकी लागत ज्यादा थी. हालांकि भारत के चंद्रयान-3 ने लूना-25 के मुकाबले चांद पर पहुंचने में ज्यादा समय लिया, परंतु भारत ने इस अवधारणा पर चंद्रयान-3 को विकसित किया था कि रॉकेट को कम ईंधन में चांद पर पहुंचाया जाए, ताकि उसकी लागत कम आए, भले ही उसमें समय थोड़ा ज्यादा लग जाए. साथ ही इसरो ने चंद्रयान-3 रॉकेट को इस तरह से डिजायन किया कि वो अपनी यात्रा के लिए उपलब्ध गुरुत्वाकर्षण का अधिकाधिक उपयोग करे, ताकि ईंधन कम खर्च हो.
इसरो ने महज 75 मिलियन डॉलर यानी लगभग 615 करोड़ रुपए में चंद्रयान-3 को निर्माण किया है, इसरो के इस बजट के मुकाबले हॉलीवुड फिल्मों का बजट ज्यादा होता है. एक्स पर @Newsthink नाम की आईडी से पोस्ट किया गया है, जिसमें चंद्रयान-3 और इंटरस्टेलर मूवी का पोस्टर लगाया हुआ है. एक्स पर किए गए इस पोस्ट में लिखा है कि ‘आपको आश्चर्य होगा, चंद्रयान-3 का बजट ($75 मिलियन) है. यह हॉलीवुड फिल्म इंटरस्टेलर ($165 मिलियन) से कम है.’ चंद्रयान की लागत अन्य देशों के चंद्र अभियानों के मुकाबले बहुत किफायती मानी जा रही है. अन्य देश इसीलिए चंद्रयान-3 की तकनीक के साथ कम लागत की भी तारीफ कर रहे हैं. भारत ने हालिया अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए सिर्फ 1.5 अरब डॉलर का बजट निर्धारित किया है. जबकि अमेरिका ने इन कार्यों के लिए 25 अरब डॉलर की भारी-भरकम राशि निर्धारित की है.
आर्थर डी लिटिल की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग में भारत की हिस्सेदारी 100 अरब डॉलर तक हासिल करने की क्षमता है. भारत का वर्तमान अंतरिक्ष बाजार लगभग 8 बिलियन डॉलर का है, जो पिछले कुछ वर्षों में 2 की तुलना में 4 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ रहा है. अभी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी महज 2 प्रतिशत है और भारत सरकार ने इस दशक के अंत तक 9 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है. इसलिए, अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्योग की भागीदारी बढ़ाई गई है. 2020 में भारत सरकार द्वारा घोषित सुधारों के बाद, 100 से अधिक स्टार्ट-अप विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हो गए हैं, जो लॉन्च व्हीकल यानी रॉकेट, उन्नत उपग्रहों के डिजाइन, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर आधारित एप्लिकेशन बनाते हैं.
भारत का गौरवशाली प्रतिष्ठान इसरो दूसरे देशों के पेलोड्स या सैटलाइट लांच करके अपने अंतरिक्ष उद्योग को लगातार विस्तृत कर रहा है. इससे वह काफी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर रहा है. इसरो की सीधे एलन मस्क की स्पेस-एक्स से प्रतिस्पर्धा है, जो अब तक लगभग 5,000 स्टारलिंक सैटेलाइट लॉन्च कर चुकी है. किंतु जो देश अपने संचार रिले, मौसम पूर्वानुमान, नेविगेशन (जीपीएस), प्रसारण, वैज्ञानिक अनुसंधान, पृथ्वी अवलोकन, टोही सैन्य उपयोग, प्रारंभिक चेतावनी, सिग्नल इंटेलिजेंस के लिए अंतरिक्ष में उपग्रह भेजना चाहते हैं. अब इसरो उनके लिए प्रमुख गंतव्य बन जाएगा.
बीबीसी के अनुसार, कनाडा स्थित मैकगिल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राम जाखू ने डब्ल्यूएसजे से कहा, ‘‘चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत दूसरे उभरते हुए देशों की अंतरिक्ष कार्यक्रम के मामले में मदद कर सकता है. जब आप सफल होते हैं, तो हर कोई आपके पास आता है.’’
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