पसमांदा की साफगो तस्वीर है जाति सर्वे

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 09-10-2023
Caste survey is a clear picture of Pasmanda
Caste survey is a clear picture of Pasmanda

 

harjinderहरजिंदर

चुनाव का ऊंट किस करवट बैठेगा यह एक अलग मामला है, लेकिन बिहार की जाति जनगणना या जाति सर्वे ने राजनीति को एक खलबली दे दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के तकरीबन सभी दलों के सभी बड़े नेताओं के पिछले एक हफ्ते के भाषण सुन लीजिए उनमें जाति जनगणना की बात घुमा फिराकर मिलेगी ही.

इस जाति सर्वे ने समाज के उस सच को सामने ला खड़ा किया है जिससे कोई अनजान नहीं था, लेकिन उसे स्वीकार भी नहीं किया जा रहा था. यह माना जा रहा है कि इस सर्वे से नतीजे मिले हैं वे बिहार ही नहीं भारत के एक बड़े हिस्से की राजनीति को बदल सकते हैं.
 
हालांकि यह बदलाव किधर जाएगा इस पर कुछ भी कहना अभी मुश्किल है. एक फर्क यह जरूर पड़ा है कि अब पूरे देश में ऐसा ही जाति सर्वे कराने की मांग कईं तरह से हो रही है.
 
बिहार के जाति सर्वे की एक खास बात यह थी कि इसे सिर्फ हिंदू जातियों तक ही सीमित नहीं रखा गया. यह इस धारणा के साथ किया गया था कि भारत में जाति व्यवस्था का असर सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित नहीं है. खासकर मुसलमानों में भी ऐसे तबके हैं जो पसमांदा हैं यानी पिछड़े हैं या अति पिछड़े हैं.
 
pasmanda
 
यह सर्वे बताता है कि जिन्हें पसमांदा कहा जाता है, बिहार की मुस्लिम आबादी में उनकी तादाद 70 फीसदी से अधिक है. बिहार के आंकड़ों को हम राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े नहीं मान सकते, लेकिन एक बात साफ है कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे आंकड़ें निकाले जाएं तो शायद तस्वीर बहुत अलग नहीं होगी.
 
बिहार के जाति सर्वे के आंकड़ें आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार अमाना बेगम ने द प्रिंट में एक लेख लिखा. आगे के कुछ आंकड़ें यहां हम उसी लेख से ले रहे हैं. देश की कुल आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत 10 से 14 तक है.
 
अगर हम पहली लोकसभा से 14वीं लोकसभा में देखें तो वहां मुसलमानों की भागीदारी 5.3 फीसदी के आस-पास रही है. जिन्हें अशराफ कहा जाता है वे देश के आबादी में 2.1 फीसदी हैं, लेकिन लोकसभा में वे 4.5 फीसदी हैं. जबकि पसमांदा की आबादी देश में 11.4 फीसदी है लेकिन लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व 0.8 फीसदी रहा है.
 
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पसमांदा मुस्लिम महाज के नेता अली अनवर बताते हैं कि जाति सर्वे की कोशिशों का एक बड़ा असर यह हुआ है कि अभी तक जो मुस्लिम धार्मिक संगठन यह कहते थे कि भारतीय मुसलमानों में जाति जैसी कोई चीज नहीं है. अब वे भी मानने लगे हैं कि मुसलमानों में पिछड़ेपन का एक कारण जातिगत भी है.
 
कुछ लोग दबी जुबान से भले ही यह कह रहे हों कि जाति सर्वे समाज में तनाव बढ़ा सकता है, लेकिन बड़ी संख्या में यह मानने वाले लोग भी हैं जिनका कहना है कि यह सर्वे देश के मौजूदा धारा को बदल सकता है.
 
इससे जो नया विमर्श खड़ा होगा, वह उस सांप्रदायिक धारा को कमजोर कर सकता है जो अभी तक लोगों को धार्मिक आधार पर बांट कर उनमें तनाव पैदा कर रही थी. 
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )