जफर दारिक कासमी
भारत में असंख्य धर्म, परंपराएं और विचारधाराएं हैं. कई लोगों, विद्वानों और राजाओं ने न केवल धर्मों की सभ्यता और इतिहास का अध्ययन किया, बल्कि अन्य धर्मों की महिमा का भी वर्णन किया. मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों विद्वानों ने इस विषय पर दस्तावेज छोड़े हैं. ऐसे ही एक विद्वान मुगल सम्राट शाहजहाँ के बेटे राजकुमार दारा शिकोह थे. कुछ विद्वान उन्हें झूठी विचारधारा का समर्थक मानते हैं. वे राष्ट्र के लिए उनके द्वारा छोड़े गए शोध कार्य को भी महत्व नहीं देते और उनके बहुलवादी विचारों की आलोचना करते हैं.
कुछ अन्य लोग उनके शोध कार्य को महत्व देते हैं. भारतीय उपमहाद्वीप और विदेशों में कई विद्वानों ने उन पर कई शोध पत्र लिखे हैं. इस विषय पर अब तक एक दर्जन पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं. दारा शिकोह ने सूफीवाद और उसके सार पर महत्वपूर्ण कार्य किया है. उनकी कुछ रचनाएँ हैं - हसनात अल-आरिफीन, रिसाला हक नुमा, सफीनत अल-अवलिया, सकीनत अल-अवलिया और तारीकत अल-हकीकत.
दारा शिकोह ने इन पुस्तकों में सूफीवाद पर चर्चा की है. बहुत से लोग जानते हैं कि कुरान और सुन्नत के संदर्भ में सूफीवाद और आत्मा की शुद्धि का अर्थ यह है कि व्यक्ति को अपने भौतिक सुखों को समाप्त करके ईश्वर के करीब जाना चाहिए. दारा शिकोह ने अपनी उपरोक्त पुस्तकों में भी इस सिद्धांत को प्रस्तुत किया है.
इसके अलावा, दारा शिकोह का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य फारसी साहित्य और कविता पर है. दारा शिकोह की जीवनी और उनके जीवन के विवरण फारसी साहित्य और कविता पर उनके कार्यों में देखे जा सकते हैं, जिन्हें दीवान-ए-दारा शिकोह कहा जाता है. इसी तरह, उनकी दूसरी रचना दारा शिकोह की बयाज भी फारसी साहित्य और कविता पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज मानी जाती है.
दाराशिकोह का सबसे महत्वपूर्ण कार्य तुलनात्मक धर्म पर है, जिसे आधुनिक युग में ‘अंतरधार्मिक संवाद और धार्मिक अध्ययन’ के रूप में अधिक उपयुक्त माना जाता है.
सबसे पहले, उन्होंने हिंदू योगियों पर जोग शास्त्र नामक एक पुस्तक लिखी. दूसरा कार्य, जो अपनी प्रकृति और सार में अद्वितीय है और जिसे समकालीन समय की आवश्यकता कहा जा सकता है, वह है ‘मजमा अल-बहरीन’ का लेखन और संकलन, साथ ही उपनिषदों का फारसी में अनुवाद ‘सिर-ए-अकबर’. यदि दारा शिकोह के विचारों को वर्तमान परिदृश्य पर लागू किया जाए, तो इसका महत्व दोगुना हो जाता है और धर्मों के अध्ययन के प्रति उनकी सहिष्णुता और प्रचार लाभकारी माना जाता है.
दारा शिकोह को कई मुस्लिम राजाओं और शासकों से जो बात अलग करती है, वह है धर्मों का उनका अध्ययन और सभी धर्मों के अनुयायियों के साथ उनका समान व्यवहार. इसके परिणामस्वरूप दारा शिकोह के हिंदू योगियों के साथ अच्छे संबंध थे. उन्होंने उपनिषदों का अनुवाद किया और हिंदू-मुस्लिम एकता की एक व्यावहारिक तस्वीर पेश की. इसके साथ ही दारा शिकोह के उदारवादी रवैये का अंदाजा सभी धर्मों के प्रमुख विद्वानों से उनकी नियमित मुलाकातों से लगाया जा सकता है. वे धर्मों की समानता और सभी को सम्मान देने में विश्वास करते थे.
आज के समय में जब हिंदू-मुस्लिम सह-अस्तित्व चुनौतियों का सामना कर रहा है, दारा शिकोह के विचारों की प्रासंगिकता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. इसलिए, इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए दारा शिकोह की उपरोक्त तीनों पुस्तकों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है.
हमारे बहुलवादी समाज में नफरत, असहिष्णुता और धर्म-विरोधी प्रथाओं के तेजी से प्रसार को रोकने के लिए, देश में धर्मों के प्रति प्रेम और सम्मान को उसी गति से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. हमें हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दारा शिकोह चेयर की स्थापना के लिए केंद्र सरकार द्वारा की गई पहल की सराहना करनी चाहिए.
डॉ. जफर दारिक कासमी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संकाय, लेखक, स्तंभकार हैं.