- हरजिंदर
अमृतसर में प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के पीछे घनी गलियों वाला एक बाजार है और रिहायशी इलाका भी. स्थानीय भाष में इसे अंदरून अमृतसर भी कहा जाता है. यहां वे सब चीजें मिल जाती हैं जिसके लिए यह शहर परंपरागत रूप से मशहूर रहा है.
सबसे ज्यादा दुकाने हैं यहां के मशहूर बड़ियों और पापड़ की. इन्हीं गलियों में एक और चीज की दुकाने भी काफी मशहूर हैं- यहां के शरबतों की. इन दुकानों पर आपको तरह-तरह के शरबत मिल जाएंगे.
हर तरह के फलों के, जड़ी बूटियों के। शरबतों के तरह-तरह के कांबीनेशन. ये दुकानदार कईं पीढ़ियों से यही काम कर रहे हैं और स्थानीय लोगों, आस पास के शहर वालों के अलावा तीर्थयात्रियों व पर्यटकों सभी को काफी संख्या में आकर्षित करते हैं.
हर दुकानदार इनके असली और आर्गेनिक होने का दावा तो करता है. साथ ही हर शरबत के बारे में बताता है कि उससे कौन सा रोग जड़ से खत्म किया जा सकता है. पता नहीं इन शरबतों से रोगों का इलाज हो पाता है या नहीं. लेकिन एक बात तय है कि ये उत्तर भारत की भीषण गर्मी में लोगों को बहुत राहत देते हैं.
अमृतसर और कुछ दूसरे शहरों में उनकी संख्या ज्यादा हो सकती है, लेकिन आपको देश के तकरीबन हर बड़े और पुराने शहर में इस तरह के कुछ शरबत वाले मिल जाएंगे. कुछ हकीम और वैद्य भी इस तरह के शरबत बनाते और बेचते हैं. सबके अपने-अपने दावे हैं . सबके शरबत राहत भी खूब देते हैं.
आप पहाड़ों पर चले जाएं तो वहां बुरांश का शरबत मिल जाएगा. उसे पीने के बाद समझ आता है कि देश भर में जो लाल रंग के शरबत मिलते हैं उनका मूल आधार क्या है. कहीं खस का शरबत मशहूर है, कहीं फालसे का, कहीं संतरे का तो कहीं लोग तरबूज का शरबत बनाते हैं..
बिहार में सत्तू का शरबत तो लोग घरों में ही बना लेते हैं. जो गर्मी और एसीडिटी से तो राहत देता ही ही, इससे कुछ हद तक प्रोटीन का पोषण भी मिल जाता है. जब दूसरी तरह के शरबत उपलब्ध नहीं होते तो लोग घरों में नींबू और दूध के शर्बत ही बना लेते हैं.
कहीं-कहीं पर गन्ने का रस, छाछ, लस्सी और ठंडाई यह भूमिका निभाते मिल जाते हैं.इसके बाद आता है उन शरबतों का नंबर जिन्हें हम ब्रांडेड शरबत कहते हैं. बेशक इसमें पुरानी दिल्ली के हमदर्द के रूह अफ्जा का बहुत बड़ा नाम है और काफी बड़ा बाजार भी है. यह भारत में ही नहीं पूरे उपमहाद्वीप में काफी मशहूर है.
लेकिन दूसरी बहुत से कंपनियों के शरबत भी खासकर गर्मियों में काफी बिकते हैं. इनमें डाॅबर का शबर्ते आजम है. बैद्यनाथ भी दो तीन तरह के शरबत बाजार में बेचती है. और भी कईं कंपिनयां इस काम को करती हैं.
ये सारे शरबत मिलकर कोल्ड ड्रिंक को भी कड़ी टक्कर देते हैं. उनमें आपसी स्पर्धा भी है, इसलिए खुद को बेहतर और दूसरों को कमतर साबित करने की कोशिश भी करते रहते हैं. यह सब कुछ दशकों से ऐसे ही चल रहा है. ऐसे स्पर्धाएं बाजार और समाज का हिस्सा होती हैं. यह स्पर्धा दोनों को ही कोई नुकसान भी नहीं पहंचाती.
अगर आप पुरानी दिल्ली जाएं तो वहां जामा मस्जिद के सामने नवाब कुरैशी एक खास तरह का जायकेदार शरबत बेचते हैं जिसे मुहब्बत का शरबत कहा जाता है. वे इसे तरबूज, ब्रांडेड शरबत और दूध वगैरह मिलाकर बनाते हैं.
यह कितना मशहूर है इसका एक अंदाजा तो गर्मियों में वहां लगने वाली भीड़ से लगा जाता है और दूसरा अंदाजा लगाने के लिए आपको यू-ट्यूब पर जाना होगा. जहां ऐसे बीसियों वीडियो मिल जाएंगे जो बताते हैं कि मुहब्बत का शरबत घर पर कैसे बनाया जाए.
खैर हम बात कर रहे थे शरबत के बाजार की जो अपनी स्पर्धा के बावजूद ऐसी ही मुहब्बत तक पहंुचता है. लेकिन पिछले कुछ साल से नफरत का जो माहौल देश भर में तैयार किया जा रहा है उसमें इस मुहब्बत पर ही खतरा मंडराने लगा है. और अब तो कुछ शरबत भी इस नफरत को बाजार के मुनाफे में बदलने की तैयारी कर रहे हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
ALSO READ क्या कोई सिरोली के इस फैसले से सीखेगा ?