बहुत देर से किया गया एक फैसला

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 18-12-2024
a decision made too late
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 हरजिंदर

पिछले साल सात अक्तूबर को जब हमास ने इस्राएल पर हमला बोला था उसके बाद से दुनिया में बहुत कुछ बदला है. पश्चिम एशिया में जो खून खराबा हुआ है और कुछ हद तक अभी भी जारी है,उसके अलावा भी इस घटना ने पूरी दुनिया को ही प्रभावित किया है. खासकर अमेरिका में इसका जो मनौवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है वह काफी ज्यादा है.

अमेरिका की तरह के समाज की सोच को दो चीजें सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं- मीडिया और अकादमिक जगत. संयोग से दोनों ही जगह यहूदी समुदाय प्रभावी स्थिति में है. इसीलिए यह माना जाता है कि इस घटना के बाद अमेरिका में इस्लाम फोबिया या इस्लाम के खिलाफ नफरत को लगातार बढ़ाया गया है.

 हालांकि अमेरिका में पहले भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी. मुस्लिमों और अरब मूल के लोगों को लेकर एक बेवजह विरोध का भाव वहां के समाज में लगातार बनाने की कोशिश चलती रही है.अब व्हाइट हाउस ने इस इस्लाम फोबिया और मुस्लिमों से नफरत के खिलाफ एक विस्तृत रणनीति पेश की है.

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इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए.लेकिन इसे जारी करने के समय को देखते हुए खुद इस रणनीति के भविष्य को लेकर ही आशंकाएं हैं.अमेरिका में इस समय राष्ट्रपति जो बिडेन की सरकार है. बहुत जल्द ही उनकी विदाई होने वाली है. बिडेन सरकार ने अपने आखिरी दिनों में जो रणनीति पेश की है अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उससे क्या सलूक करेंगे यह अभी स्पष्ट नहीं है.

ट्रंप के बारे में उनके पिछले कार्यकाल में छवि बनी थी उसमें बहुत से लोगों ने तो उन्हें बाकायदा मुस्लिम विरोधी ही मान लिया था. उन्होंने इसे लेकर कुछ विवादास्पद बयान भी दिए थे. फिर उन्होंने कुछ मुस्लिम देशों के नागरिकों को अमेरिकी वीज़ा दिए जाने पर रोक लगा दी थी. यह रोक बिडेन ने सत्ता में आते ही हटा दी थी.

इतना ही नहीं इस बार चुनाव के दौरान ट्रंप ने यह बयान भी दिया था कि वे मुस्लिम देशों से आने पर्यटकों को अमेरिका आने से रोक देंगे. यह भी कहा था कि उनकी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस अमेरिका में जेहादियों को बसाना चाहती हैं. इसलिए यह डर है कि बिडेन सरकार ने नफरत को हटाने की जो रणनीति तैयार की है उसका भविष्य बहुत अच्छा नहीं होगा.

हालांकि इसी चुनाव में हमने ट्रंप का एक दूसरा चेहरा भी देखा. चुनाव प्रचार के बाद के दौर में वे मुस्लिम अरब मूल के अमेरिकी नागरिकों के वोटों को हासिल करने के लिए काफी कोशिशें करते हुए दिखाई दिए. कईं जगहों पर उन्होंने स्थानीय मुस्लिम नेताओं के मंच भी शेयर किए.

उनकी तारीफ भी की. उन्हें अच्छे लोग बताया. अपने विरोधियों को मुस्लिम विरोधी कहा. चुनाव नतीजों के कईं विश्लेषणों में यह बताया गया है कि मुस्लिम मतदाताओं ने कुछ जगह उन्हें वोट भी दिए.चुनाव के आखिरी दौर में जो हुआ क्या उससे ट्रंप बदल जाएंगे?

इसकी सिर्फ उम्मीद  की जा सकती है. ट्रंप की गिनती दुनिया के ऐसे नेताओं में होती है जिन्हें लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. कभी भी कुछ भी बोल देना उनकी फितरत रही है.इसलिए बिडेन ने जिस रणनीति की घोषणा की है उसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता.

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कुछ लोगों को डर यह है कि कहीं नई अमेरिकी सरकार उसकी बिलकुल उलटी दिशा में ही न चल पड़े. ठीक यहीं पर एक सवाल और भी है. बिडेन सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में ही यह रणनीति क्यों बनाई?उनके पास पूरे चार साल का समय था. अगर वे यह रणनीति थोड़ा पहले बना लेते तो इससे कुछ उम्मीद भी बांधी जा सकती थी.

  (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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