विदेश नीति में मोदी का एक दशक: विश्वास, साझेदारी और वैश्विक प्रभाव

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-09-2024
A decade of Modi in foreign policy: Trust, partnerships and global influence
A decade of Modi in foreign policy: Trust, partnerships and global influence

 

jasim प्रो. जसीम मोहम्मद

भारते के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के कार्यकाल का पिछला दशक भारतीय राजनीतिक दृष्टि से बहुत सफल समय कहाँ जा सकता है. उनके कार्यकाल के पिछले दशक में भारत और दुनिया के अन्य देशों के बीच विश्वास और सहयोग में  वृद्धि हुई है. अनेक लोगों ने दुनिया के देशों के साथ भारत के संबंधों को लेकर बहुत सी शंकाएँ प्रकट की थीं, लेकिन वह इस तरीके से पनपा और मज़बूत हुआ है, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी.

मई 2014 में जब  नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री अपना पदभार सँभाला , तो व्यापक रूप से यह माना जाता था कि विदेश नीति उनकी सबसे बड़ी कमजोरी होगी. कुछ शंकालु और संदेहवाद्यों ने यह सवाल उठाया कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सीमित अनुभव के साथ, क्या नरेंद्र मोदी वैश्विक कूटनीति की जटिलताओं को ठीक से समझ पाएँगे ?

बावजूद इन तमाम आशंकाओं के, लगभग दस साल बाद, यह बहुत विचारणीय है कि भारत ने अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को कैसे मजबूत किया है? वैश्विक चर्चाओं में एक केंद्रीय भूमिकावाला प्रमुख भागीदार कैसे बन गया है? साथ ही, किन रणनीतियों और बदलावों ने इन संदेहों और आशंकाओं को निर्विवाद रूप से  प्रगति के सोपानों में बदल दिया है.

 भारत के वैश्विक देशों के साथ संबंधों के भविष्य के लिए इसका क्या मतलब है ?अपने नेतृत्व में एक दशक के शासन के बाद,  नरेंद्र मोदी की विदेश नीति उनकी सबसे बड़ी पूँजी बन गई है. यह उपलब्धि अभूतपूर्व वैश्विक उथल-पुथल की पृष्ठभूमि में देखने पर और भी अधिक उभर कर सामने आती है.

दुनिया ने दशकों से अनदेखी चुनौतियों का सामना किया , जिसकी शुरुआत कोविड-19 महामारी से हुई. यह सदी में एक बार आनेवाला संकट है, जिसने वैश्विक अर्थव्यव्स्थाओं को झकझोर कर रख दिया.

दुनिया भर में मानवजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया. जिस समय दुनिया इस उथल-पुथल भरी परिस्थितियों से जूझ रही थी, दो अप्रत्याशित संघर्षों- रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़राइल-हमास संघर्ष- ने अस्थिरता को और अधिक बढ़ा दिया. इन मुद्दों को और जटिल बनानेवाला चीन का बढ़ता हुआ मुखर रुख रहा है.

 जापान और ताइवान के साथ पूर्वी चीन सागर में अपने टकराव से लेकर आसियान देशों के खिलाफ दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धाभ्यास तक, चीन ने क्षेत्रीय स्थिरता को असहज करने का प्रयास किया है.

इस क्रम में भारत और भूटान ने भी अनसुलझी भूमि सीमाओं पर तनाव के कारण दबाव महसूस किया. इन व्यापक वैश्विक परिवर्तनों के माध्यम से, मोदी की विदेश नीति न केवल कायम रही , तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के माध्यम से भारत को स्थिर हाथ से आगे बढ़ाते हुए और भी मजबूत हुई है.

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के शुरुआती कदमों में से एक, ‘पड़ोसी पहले’  नीति की शुरुआत करना था, जिसने भारत की क्षेत्रीय कूटनीति की दिशा तय की. 26 मई 2014 को अपने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए सभी सार्क देशों और मॉरीशस के राष्ट्राध्यक्षों और सरकार के प्रमुखों को प्रधानमंत्री का निमंत्रण, एक प्रतीकात्मक लेकिन रणनीतिक पहुँच को चिह्नित करता है.

इसी तरह के एक इशारे में, जब मोदी ने 31 मई, 2019 को दूसरे कार्यकाल के लिए पदभार संभाला, तो उन्होंने बिम्सटेक, किर्गिस्तान और मॉरीशस के नेताओं को आमंत्रित किया. क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया.

इस नीति का प्रभाव आज स्पष्ट है, जबकि पाकिस्तान, चीन और हाल ही में मालदीव के साथ चुनौतियाँ बनी हुई हैं. वहीं भारत के अपने अन्य पड़ोसियों के साथ संबंध सन् 2014 के बाद से काफी गहरे हुए हैं.

इस क्रम में एक उल्लेखनीय उदाहरण नेपाल के साथ संबंधों को फिर से जीवंत करना है. अगस्त 2014 में मोदी की नेपाल यात्रा 17 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी. उसके बाद मोदीजी चार बार नेपाल का दौरा कर चुके हैं, जिनमें नवंबर 2014 में सार्क शिखर सम्मेलन, 2018 में द्विपक्षीय चर्चा और उसी वर्ष बाद में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन शामिल हैं.

नेपाली प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर सन् 2022 में लुंबिनी की उनकी सबसे हालिया यात्रा ने दोनों देशों के बीच बढ़ते संबंधों को व्यापक रूप से रेखांकित किया. संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण सितंबर 2014 में संयुक्त आर्थिक आयोग की बैठक थी, 23 वर्षों में संभवत: पहली, जिसने बढ़े हुए आर्थिक सहयोग की नींव रखी.

इन लगातार यात्राओं और संवादों ने भारत और नेपाल के बीच एक मजबूत समझ और साझेदारी विकसित की  है, जो मोदी की, ‘पड़ोसी पहले’  नीति की व्यापक सफलता का प्रतीक है.मार्च 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका की पहली यात्रा एक ऐतिहासिक क्षण थी.

यह 32 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा थी. इस यात्रा ने एक मजबूत साझेदारी की नींव रखी.  यह श्रीलंका के सन् 2022 के आर्थिक संकट के दौरान भारत का निर्णायक राजनीतिक और आर्थिक समर्थन था, जिसने वास्तव में संबंधों को मजबूत किया.

इस कठिन समय में भारत ने अपने पड़ोसी को 4.5 बिलियन डॉलर की नकदी और संसाधन उपलब्ध कराकर उसके प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित की. द्विपक्षीय संबंधों को विश्वास और सहयोग के नए स्तर तक पहुँचाया.

 इस बीच, भूटान के साथ भारत के संबंधों की विशेषता हमेशा आपसी गर्मजोशी और गहरे विश्वास की भावना रही है. दोनों देशों के बीच अद्वितीय बंधन साझा सद्भावना पर आधारित है, जिसे नियमित रूप से उच्च-स्तरीय यात्राओं द्वारा मजबूत किया जाता है.

शीर्ष नेताओं के बीच लगातार बातचीत न केवल राजनीतिक स्तर पर, बल्कि दोनों देशों के लोगों के बीच मौजूद मजबूत संबंध को दर्शाती है.मार्च 2024 में भूटान के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा, उसके बाद उसी महीने बाद में मोदी की भूटान यात्रा - ने इस स्थायी मित्रता को और मजबूत करने का काम किया, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग और आपसी सम्मान की पहले से ही मजबूत नींव को और मजबूत किया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक, पश्चिम एशिया और मध्य पूर्व के साथ संबंधों को उल्लेखनीय रूप से मजबूत करना है. ये देश, जो कभी भारत के बारे में अपने दृष्टिकोण में पाकिस्तान के धार्मिक आख्यान से प्रभावित थे, अब भारत को एक प्रमुख राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं.

यह परिवर्तन नरेंद्र मोदी को मिली वैश्विक मान्यता से स्पष्ट है, जिसमें सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, मिस्र  जैसे देशों ने उन्हें अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया है. इस क्षेत्र में भारत का कद पहले कभी इतना ऊँचा नहीं रहा, जो मध्य पूर्व के साथ उसके संबंधों में एक गहरा और व्यापक बदलाव दर्शाता है.

क्षेत्रीय कूटनीति में एक उल्लेखनीय बदलाव आया, जब यूएई ने पाकिस्तान की आपत्तियों के बावजूद सन् 2019 में तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज को इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के विदेशमंत्रियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया. इस पहल ने खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों में एक महत्वपूर्ण विकास को चिह्नित किया.

हाल में, जनवरी 2024 में, महिला और बाल विकास और अल्पसंख्यक मामलों की पूर्व मंत्री स्मृति ईरानी ने मदीना में तीसरे हज और उमराह सम्मेलन में भाग लिया. यह एक ऐसा आयोजन कहा जा सकता है,  जो एक दशक पहले अकल्पनीय होता.

इसके अलावा, किसी भी पश्चिम एशियाई देश ने कश्मीर मे अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने के भारत के फैसले का विरोध नहीं किया. वास्तव में, यूएई ने जम्मू और कश्मीर के लिए 500 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की प्रतिबद्धता जताकर अपना समर्थन प्रदर्शित किया, जिसमें एक बड़े मॉल के लिए 250 करोड़ रुपये और जम्मू और श्रीनगर में आईटी टावरों के लिए अतिरिक्त धन शामिल हैं.

इस क्षेत्र में भारत की विदेश नीति की सफलता कतर के अमीर द्वारा जासूसी के लिए मौत की सजा पाए आठ सेवानिवृत्त भारतीय नौसेना कर्मियों को क्षमा करने और रिहा करने के फैसले से और भी उजागर होती है. फरवरी 2024 में हासिल की गई यह कूटनीतिक जीत पश्चिम एशिया में भारत के बढ़ते प्रभाव और प्रभावी विदेश नीति को ठीक से रेखांकित करती है.

भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ विदेशनीति ने आर्थिक, राजनीतिक, रणनीतिक, संपर्क और सांस्कृतिक क्षेत्रों सहित विभिन्न क्षेत्रों में संबंधों को व्यापक और गहरा बनाने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है. इस नीति ने आसियान देशों, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, प्रशांत द्वीप राष्ट्रों और अन्य के साथ भारत के जुड़ाव को प्रभावी ढंग से बढ़ाया है.

पिछले एक दशक में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि और मजबूती देखी गई है. प्रधानमंत्री मोदी ने तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों- ओबामा, ट्रम्प और बाइडेन के साथ बातचीत की है और हर बार द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाया है.

यह साझेदारी भारत के सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक गठबंधनों में से एक बन गई है, जिसमें राजनीतिक, रणनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और तकनीकी आयाम शामिल हैं. दोनों देश 60 अलग-अलग संवादमंचों के माध्यम से सहयोग करते हैं, जिनमें उभरती हुई तकनीकें, नवीकरणीय ऊर्जा, कनेक्टिविटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, हरित हाइड्रोजन, रक्षा, सेमीकंडक्टर चिप्स और बहुत कुछ जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं.

 इस रिश्ते की मजबूती के प्रमाण के रूप में, राष्ट्रपति बाइडेन ने जून 2023 में मोदी को राजकीय यात्रा का निमंत्रण दिया, जिसके दौरान मोदीजी ने दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस को भी संबोधित किया. इससे पहले उन्होंने सन् 2016 में ओबामा के राष्ट्रपति-कार्यकाल के दौरान कांग्रेस के समक्ष भाषण दिया था.

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2017 से क्वाड को पुनर्जीवित करने और पिछले तीन वर्षों में इसे शिखर स्तर तक बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाल के छोटे-मोटे मुद्दों के बावजूद - जैसे कि गुरपतवंत सिंह पन्नून से संबंधित आरोप, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिकी विदेश विभाग की टिप्पणी, कांग्रेस के खातों को फ्रीज करना और भारत के सीएए कानून को लेकर विवाद - इनसे भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच लगातार बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों में बाधा पड़ने की संभावना नहीं है.

इस तरह के विकर्षणों से बचना और अपनी बढ़ती साझेदारी पर ध्यान केंद्रित रखना दोनों देशों के लिए हितकर और फायदेमंद होगा।.भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को लेकर पश्चिमी देशों द्वारा रूस की आलोचना करने के दबाव का विरोध करके अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन किया है.

इसके बजाय, भारत ने रियायती दरों पर रूस से तेल और गैस का आयात जारी रखा है, जिससे उसकी आबादी के लिए सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित हुई है.पिछले एक दशक में पीएम मोदी की विदेश नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत की जी20 प्रेसीडेंसी को सफलतापूर्वक सँभालना है.

यूक्रेन संघर्ष पर पश्चिमी देशों और रूस और चीन जैसे देशों के बीच परस्पर विरोधी वैश्विक स्थितियों की पृष्ठभूमि में, भारत पहले ही दिन सर्वसम्मति से नेताओं की सहमति और घोषणा प्राप्त करने में सफल रहा, जिसे कई लोगों ने असंभव माना.

इस सफलता का श्रेय काफी हद तक  मोदी के नेतृत्व और विश्व नेताओं के साथ मजबूत व्यक्तिगत संबंध बनाने की उनकी क्षमता को दिया जा सकता है. दुनिया ने भारत के लिए एक सफल जी20 प्रेसीडेंसी का समर्थन करने के लिए एकजुट होकर काम किया, जिसने वैश्विक दक्षिण की आवाज़ और एक विश्वसनीय वैश्विक मित्र के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत किया.

कोविड-19 महामारी के प्रति भारत की सकारात्मक पहल और अनुकूल प्रतिक्रिया ने स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए वैश्विक प्रशंसा प्राप्त की है. संकट के बीच भी महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को लागू करने और डिजिटलीकरण में तेजी लाने की देश की क्षमता को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यापक रूप से मान्यता और प्रशंसा मिली है.

अपनी घरेलू उपलब्धियों से परे, भारत ने 100 से अधिक देशों को लगभग 300 मिलियन कोविड वैक्सीन  की आपूर्ति करके, जिनमें से अधिकांश निःशुल्क प्रदान किए गए, स्वयं को प्रतिष्ठित और प्रमाणित किया. इस कार्य ने भारत के विकास के वैश्विक लाभों को रेखांकित किया, विशेष रूप से अन्य विकासशील देशों के लिए.

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेशमंत्री डॉ. एस. जयशंकर के नेतृत्व में उनकी विदेश नीतिसंबंधी टीम ने पिछले दशक की कई चुनौतियों का उल्लेखनीय कौशल और प्रभावशीलता के साथ सामना किया है.

उनके नेतृत्व ने वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत किया है. यह दर्शाता है कि भारत की प्रगति और विकास न केवल अपने नागरिकों के लिए है,  बल्कि वह व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी सकारात्मक योगदान देता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने जटिल और तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को कुशलता से सँभाला है तथा उल्लेखनीय कूटनीतिक लचीलापन और रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन किया है.

मोदी ने उन देशों के साथ गठबंधन करके पिछली सरकारों के प्रयासों को आगे बढ़ाया है, जो अक्सर वैश्विक संघर्षों के विरोधी पक्षों में होते हैं, फिर भी उन्होंने भारत के स्वतंत्र रुख को बनाए रखा है.

इस कूटनीतिक संतुलन का एक प्रमुख उदाहरण क्वाड - संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ साझेदारी - और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) दोनों में भारत की सक्रिय भागीदारी है, जिसमें चीन, रूस और उनके सहयोगी शामिल हैं.

मोदी की विदेश नीति की विशेषता यह है कि वे अमेरिका के साथ संबंधों को और मज़बूत बनाने में सक्षम होने के साथ उन्नत रक्षा तकनीक और हथियार हासिल कर रहे हैं, जबकि रूस के साथ संयुक्त विकास परियोजनाओं सहित दीर्घकालिक रक्षा सहयोग जारी रख रहे हैं.

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक यह है कि वे अमेरिका के साथ मज़बूत संबंध विकसित करने में सक्षम हैं, साथ ही साथ इसके वैश्विक विरोधियों से भी जुड़े हुए हैं. यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे विश्व की बहुत कम बड़ी शक्तियाँ हासिल कर पाई हैं.

मोदी ने चीन के बारे में वाशिंगटन की चिंताओं का चतुराई से फ़ायदा उठाया है और भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से समझौता किए बिना या बाहरी दबावों के आगे झुके बिना अमेरिका से असाधारण समर्थन हासिल किया है.

इस दृष्टिकोण ने भारत को वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बने रहने की अनुमति दी है, जो प्रतिस्पर्धी वैश्विक शक्तियों के बीच एक सेतु के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत करता है. साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि इसके अपने रणनीतिक हितों से कोई समझौता न हो.

(लेखक, तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर हैं.)