साहित्यकार तो दिल में बसते हैं: असग़र वज़ाहत

Story by  फिदौस खान | Published by  onikamaheshwari | Date 16-12-2023
Writers reside in the heart: Asghar Wajahat
Writers reside in the heart: Asghar Wajahat

 

फ़िरदौस ख़ान

सुप्रसिद्ध साहित्यकार असग़र वज़ाहत किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. साहित्य की तक़रीबन सभी विधाओं में उन्होंने अपनी क़लम का लोहा मनवाया है. उन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा-वृत्तांत और फ़िल्म लेखन आदि में अहम किरदार अदा किया है. चित्रकला में भी उन्होंने हाथ आज़माया और इसमें भी कामयाबी हासिल की.

उनकी रचनाओं के अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं. वे लेखक के रूप में समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, विशिष्ट भाषा शैली और शिल्प के सार्थक इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं. उनकी रचनाएं प्रेरणा देती हैं. वे समाज में सार्थक परिवर्तन के लिए प्रेरित करती हैं. वे एक बेहतर समाज के निर्माण की वकालत करती हैं.   

असग़र वज़ाहत साहब कहते हैं कि साहित्यकार न सिर्फ़ समाज में परिवर्तन लाने का काम करते हैं, बल्कि अपनी क़लम के दम पर पाठकों के दिल में बस जाते हैं. वे कहते हैं कि यह भ्रम है कि साहित्य और कलाएं किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर सकते.
 
उनके माध्यम से समाज और देश को बदला नहीं जा सकता. यह बात पूरी तरह ग़लत है. साहित्य और कलाएं संवेदना और विचार के कलात्मक मिश्रण से एक ऐसी रचनात्मकता उत्पन्न करते हैं, जिसके प्रभाव में मनुष्य और समाज आ जाते हैं.
 
 
वे हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट के एक ट्रक ड्राइवर का प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं- बुडापेस्ट में मेरी दोस्ती एक ट्रक ड्राइवर से हो गई थी, जो मुझे आमतौर से रोज़ एक पब में मिला करता था.
 
वह अंग्रेजी जानता था इसलिए बातचीत होती थी. एक दिन उसने कहा कि मुझे जीवन में सबसे अधिक प्रिय कवि अत्तिला जोज़सेफ़ है. उससे बड़ा मेरे लिए कोई नहीं है. वह सदा मेरे दिल के पास रहता है.
 
मैंने कहा था- ठीक है. अत्तिला जोज़सेफ़ तुम्हारा प्रिय कवि है, लेकिन तुम उसके बारे में जो कह रहे हो वह शायद कुछ ज़्यादा है. उसने जवाब दिया- नहीं, मैं जो कुछ कह रहा हूं वह बिल्कुल सच है.
 
देखो मेरी नौकरी जा सकती है. मेरे दोस्त मुझे छोड़ सकते हैं. मेरी पत्नी और बच्चे मुझसे अलग हो सकते हैं. मुझे देश से निकाला जा सकता है. मैं बिल्कुल अकेला हो सकता हूं, लेकिन तब भी अत्तिला जोज़सेफ़ मेरे साथ रहेगा. मुझे उससे जो ख़ुशी मिलती है, जो हिम्मत मिलती है, जो हौसला मिलता है उसे कोई छीन नहीं सकता. इसलिए वह मुझे संसार में सबसे अधिक प्रिय है.
 
असग़र वज़ाहत साहब का जन्म 5 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर में हुआ था. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई की और फिर वहीं से पीएचडी की उपाधि हासिल की.
 
उन्होंने पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से की. उन्होंने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में हिन्दी विभाग में काम किया. उन्होंने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट स्थित ओत्वोश लोरंड विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया. उन्होंने अमेरिका और यूरोप के कई विश्वविद्यालयों में अनेक व्याख्यान भी दिए हैं.  
 
उनकी कृतियां समाज के विभिन्न तबक़ों के लोगों की ज़िन्दगी को, उनके दुख-सुख को बख़ूबी बयान करती हैं. उनके कहानी संग्रहों में अंधेरे से, दिल्ली पहुंचना है, स्विमिंग पूल, सब कहां कुछ, मैं हिन्दू हूं, मुश्किल काम, डेमोक्रेशिया, पिचासी कहानियां, भीड़तंत्र, चयनित कहानियों का संग्रह, 10 प्रतिनिधि कहानियां, मेरी प्रिय कहानियां और असग़र वज़ाहत : श्रेष्ठ कहानियां आदि शामिल हैं. उनके उपन्यासों में सात आसमान, गरजत बरसत, कैसी आगी लगाई, बरखा रचाई, रात में जागने वाले, पहर-दोपहर, धरा अंकुराई और मन माटी आदि शामिल हैं.
 
उनके नाटकों में फ़िरंगी लौट आये, इन्ना की आवाज़, वीरगति, समिधा, जिस लाहौर नहीं देख्या ओ जम्याइ नई, अकी, गोडसे@गांधी.कॉम, पाकिटमार रंगमंडल और सबसे सस्ता गोश्त आदि प्रमुख हैं.
 
उनके यात्रा वृत्तांत में चलते तो अच्छा था, पाकिस्तान का मतलब क्या, रास्ते की तलाश में और दो क़दम पीछे भी आदि शामिल हैं. आलोचना में हिन्दी-उर्दू की प्रगतिशील कविता प्रमुख है. उनकी अन्य कृतियों में बूंद-बूंद  (धारावाहिक), बाकरगंज के सैयद, सफ़ाई गंदा काम है, ताकि देश में नमक रहे (निबंध), व्यावहारिक निर्देशिका : पटकथा लेखन आदि शामिल हैं. 
 
वे बताते हैं कि उनका पहला नाटक ‘फ़िरंगी लौट आये' 1857 की पृष्ठभूमि पर आधारित था. आपातकाल के दौरान 'फ़रमान' नाम से इसे टेली प्ले के रूप में फ़िल्माया गया था. उनके नाटकों का देशभर में मंचन हुआ है.
 
देश के जाने माने निर्देशकों हबीब तनवीर, एमके रैना, दिनेश ठाकुर, राजेंद्र गुप्ता, वामन केंद्रे, शहीम किरमानी और टॉम ऑल्टर आदि ने उनके नाटकों का निर्देशन किया.
 
उनके नाटक 'जिस लाहौर नई देख्या ओ जम्याइ नई' ने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी के परचम फहराये. हबीब तनवीर ने इस नाटक का पहला शो किया था.
 
उनके अलावा ख़ालिद अहमद, उमेश अग्निहोत्री, दिनेश ठाकुर और कुमुद मीरानी आदि निर्देशकों ने भी इसका निर्देशन किया. इस नाटक के दो दशक पूरे होने पर एक अंतर्राष्ट्रीय आयोजन हुआ, जिसके तहत दुनियाभर के कई शहरों में इसके मंचन और गोष्ठियां भी आयोजित की गई थीं. 
 
 
वे ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए बताते हैं कि इस नाटक पर सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार व अभिनेता आमिर ख़ान फिल्म बना रहे हैं. इसका निर्देशन राजकुमार संतोषी कर रहे हैं और सन्नी देओल मुख्य भूमिका में हैं.     
 
बुडापेस्ट में उनकी दो एकल चित्र प्रदर्शनियां भी लग चुकी हैं. वे टेलीविज़न व फ़िल्म लेखन और निर्देशन से भी जुड़े रहे हैं. उन्होंने कई वृत्तचित्रों, धारावाहिकों और कई फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन किया है.
 
वे नियमित रूप से अख़बारों और पत्रिकाओं के लिए भी लिखते रहे हैं. उन्होंने अतिथि सम्पादक के रूप में बीबीसी वेब पत्रिका का सम्पादन भी किया था. इसके अलावा वे 'हंस' के 'भारतीय मुसलमान : वर्तमान और भविष्य' विशेषांक और 'वर्तमान साहित्य' के 'प्रवासी साहित्य' विशेषांक के सम्पादक भी रहे.
 
असग़र साहब को उनके श्रेष्ठ लेखन के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है, जिनमें श्रेष्ठ नाटककार सम्मान, आचार्य निरंजननाथ सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, कथा क्रम सम्मान, इंदु शर्मा कथा सम्मान हिन्दी अकादमी का सर्वोच्च शलाका सम्मान और व्यास सम्मान आदि शामिल हैं.
 
गुज़श्ता जनवरी माह में उनके नाटक पर आधारित फ़िल्म ‘गांधी गोडसे एक युद्ध’ पर जमकर विवाद हुआ था. राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बनी यह फ़िल्म गणतंत्र दिवस के मौक़े पर रिलीज़ हुई थी.
 
इस फ़िल्म को लेकर आरोप लगाया गया कि फ़िल्म राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनके हत्यारे गोडसे को समकक्ष रखती है. इस बारे में असग़र साहब कहते हैं कि यह फ़िल्म आभासी इतिहास पर आधारित है, न कि वास्तविकता पर. इसमें सिर्फ़ कल्पना की गई है कि महात्मा गांधी को जब गोली मारी गई तो वे मरे नहीं, बल्कि बच गए. वे बड़े दिल वाले थे.
 
उनकी सोच थी कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं. वे कभी किसी को तुच्छ नहीं समझते थे. उनके लिए सब मनुष्य बराबर थे. अगर वे बच जाते तो गोडसे से घृणा नहीं करते, बल्कि उससे बात करते.
 
इसके ज़रिये दोनों अपने-अपने मत रखते. बस फ़िल्म में यही बताने की कोशिश की गई है, लेकिन कुछ लोगों ने इसे समझने के बजाय विवाद को हवा दे दी. बहरहाल उन्हें अपनी नई फ़िल्म से बहुत सी उम्मीदें हैं.