उर्दू साहित्य के महानायक प्रो. गोपी चंद नारंग नहीं रहे
आवाज द वॉयस / नई दिल्ली
प्रख्यात भारतीय सिद्धांतकार, साहित्यिक आलोचक और उर्दू के विद्वान का वृद्धावस्था संबंधी बीमारी के बाद निधन हो गया. वह कुछ समय से यूएसए में थे. 91 वर्षीय प्रो. गोपीचंद नारंग ने अमेरिका में अंतिम सांस ली. उनकी उर्दू साहित्यिक आलोचनाओं में शैलीगत, संरचनावाद, उत्तर-संरचनावाद आदि सहित सैद्धांतिक ढांचे को शामिल किया गया है.
डॉ. गोपीचंद नारंग ने साहित्य, कविता, आलोचना और संस्कृति विज्ञान पर दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं. उनकी रचनाओं का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया.
प्रोफेसर गोपी चंद नारंग को आधुनिक समय के अग्रणी उर्दू आलोचकों, शोधकर्ताओं और लेखकों में से एक माना जाते है. हालांकि प्रोफेसर गोपी चंद नारंग दिल्ली में थे. उन्होंने उर्दू बैठकों और चर्चाओं में भाग लेने के लिए पूरी दुनिया की यात्रा की और उन्हें उर्दू के राजदूत के रूप में भी जाना जाता है.
प्रो. गोपी चंद नारंग को भारत में पद्म भूषण की उपाधि मिली है, जबकि उन्हें पाकिस्तान में कई पुरस्कारों और सम्मानित किया गया है. उनमें पाकिस्तान सरकार द्वारा प्रतिष्ठित सितारा-ए-इम्तियाज सम्मान भी शामिल है. कुछ महीने पहले तक वह साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे.
जन्म और शिक्षा
ज्ञात हो कि गोपीचंद नारंग का जन्म 11 फरवरी, 1931 को डिकी, लोअर पंजाब में हुआ था. प्रोफेसर नारंग ने अपना बचपन क्वेटा में बिताया. उन्होंने 1954 में दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए और 1958 में उसी विश्वविद्यालय से भाषाविज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.
गोपी चंद नारंग ने 1957 में सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली में व्याख्याता के रूप में पढ़ाना शुरू किया और 1995 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाना जारी रखा.
सम्मान की भरमार
उनकी रचनाओं ने उन्हें कई अन्य पुरस्कार भी दिलाए हैं, जिनमें से कुछ में इटली का मैजिनी गोल्ड मेडल, शिकागो का अमीर खुसरो अवार्ड, गालिब अवार्ड, कैनेडियन एकेडमी ऑफ उर्दू लैंग्वेज एंड लिटरेचर अवार्ड और यूरोपियन उर्दू राइटर्स सोसाइटी अवार्ड भी शामिल हैं. साहित्य अकादमी ने उन्हें 2009 में अपनी प्रतिष्ठित फैलोशिप प्रदान की थी.
नारंग ने हिंदी और अंग्रेजी में किताबें भी लिखी हैं. उर्दू के प्रबल समर्थक, वह इस तथ्य पर खेद व्यक्त करते रहे कि यह भाषा राजनीतिकरण का शिकार रही है, क्योंकि उनका मानना था कि उर्दू की जड़ें भारत में हैं और यह हिंदी की बहन भाषा है.
किताबों का जखीरा
नारंग ने भाषा, साहित्य, कविता और सांस्कृतिक अध्ययन पर 60 से अधिक विद्वतापूर्ण और आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित की हैं. कई का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है. उर्दू मसनवियाँ (1961), इमला नामा (1974),अनीस शनासी (1981),सफर आशना (1982),इकबाल का फैन ( 1983),उस्लोबियत-ए-मीर (1985),उर्दू अफसाना, रिवायत और मसाइल ( 1986),सनिहा-ए-कर्बला बतौर शेरी इस्तिआरा (1986),अमीर खुसरो का हिंदवी कलाम (1987),अदबी तनकीद और उस्लोबियत (1989),कारी आसस तनकीद (1992),सख्तियात, पास-सख्तियात और मशरिकी शेरियत (1993),उर्दू गजल और हिंदुस्तानी जहन-ओ तहजीब (2002),हिंदुस्तान की तहरीक-ए-आजादी और उर्दू शायरी (2003),तरक्की पसंद, जदीदियत, मबद-ए-जदीदियत (2004),अनीस और दबीर (2005),जदीदियत के बाद (2005),उर्दू की नई बस्ती (2006),उर्दू जबान और लिसानियत (2006),सज्जाद जहीर अदबी खिदमत और तरक्की पसंद तहरीक (2007),फिराक गोरखपुरी शायर, नक्काद, दानीश्वर (2008),देखना तकरीर की लज्जत (2009);फिक्शन शरियत (2009),ख्वाजा अहमद फारूकी के खतूत गोपी चंद नारंग के नाम (2010),कागज-ए आतिश जदाह (2011),तपिश नामा-ए तमन्ना (2012),आज की कहानियां (2013),गालिब मानी-अफरीनी, जदलियाती वाजा कुलियात-ए हिंदवी अमीर खुसरोरू माई तशरीह ओ ताजिया नुस्खा-ए बर्लिन (2017),दिल्ली उर्दू की कारखंडी बोली (1961),उर्दू भाषा और साहित्यः महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य (1991),साहित्यिक उर्दू गद्य में पढ़ना ( 1965),राजिंदर सिंह बेदी : चयनित लघु कथाएं (1989 संस्करण),कृष्ण चंदरः चयनित लघु कथाएं (संस्करण 1990).बलवंत सिंहः चयनित लघु कथाएं ( 1996),गालिबः इनोवेटिव मीनिंग एंड द इनजेनियस माइंड (2017), फैज अहमद फैजः विचार संरचना, विकासवादी प्रेम और सौंदर्य संवेदनशीलता (2019),उर्दू गजलः भारत की समग्र संस्कृति का उपहार (2020),द हिडन गार्डन : मीर तकी मीर (2021),अमीर खुसरो का हिंदवी कलाम (1987),पाठकवादी आलोचना (1999),उर्दू पर खुल्ता दरीचा (2004),बीसवीं शताब्दी में उर्दू साहित्य (2005),संरचनावाद, उत्तर-संरचनावाद औरप्राच्य काव्यशास्त्र (2000),उर्दू कैसे लिखे (2001),उर्दू गजल और भारतीय मानस वी संस्कृति (2016),भारतीय लोक कथाएँ पर आधार उर्दू मसनवियाँ (2016),गालिबः अर्थवत्ता, रचनात्मकता और शून्यता (2020),अमीर खुसरोः हिन्दवी लोक काव्य संकलन (2021) आदि