तारिक छतारी : ‘आसमान मंजिल’ है दो घरों की सांस्कृतिक विषमता की कहानी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-07-2024
 ‘Aasman Manzil’
‘Aasman Manzil’

 

मेराज राणा

उर्दू की समकालीन लघु कथाओं के मुकाबले समरूप उपन्यास लिखे गए हैं या लिखे जा रहे हैं, जिन्हें बौद्धिक और कलात्मक दोनों ही दृष्टियों से शानदार कहा जा सकता है. इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से एक मुख्य कारण विषय की नवीनता की खोज है. समकालिक उपन्यासों के अध्ययन से यह आभास होता है कि वे कथा साहित्य की सभी मूल बातों को भूलकर विषय की विसंगतियों को उभारने में अपनी रचनात्मकता को बरबाद कर देते हैं. अगर समकालीन उपन्यासकार को याद रहे कि उसका पहला काम कल्पना के सहारे कहानी को पिरोना है. इसे इस तरह गढ़ना होता है कि उसके विचार पात्रों के कार्यों के माध्यम से व्यक्त हो सकें.

खालिद जावेद के अलावा समकालीन उर्दू परिदृश्य में बहुत कम उपन्यासकार हैं, जो इस रचनात्मक चेतना से पूरी तरह परिचित हैं. तारिक छतारी आठवें दशक के प्रतिष्ठित कथा लेखक हैं, जो अपनी गंभीरता और ईमानदारी के कारण हमेशा हमारे जैसे पाठकों को लुभाते हैं. ‘आसमान मंजिल’ उनका पहला उपन्यास है, जो हाल ही में प्रकाशित हुआ है. यह उपन्यास भी उनके कहानी संग्रह ‘बाग का दरवाजा’ की तरह ही अविश्वसनीय रूप से पढ़े जाने योग्य है. यह उपन्यास दरअसल चंद लोगों के एक घमंडी परिवार के उत्थान और पतन की कहानी कहता है.

यह जानना दिलचस्प है कि उपन्यास का शीर्षक एक घर (आसमान मंजिल) के नाम पर आधारित है. हम जानते हैं कि घर हमारी संस्कृति में सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि वे शांति का केंद्र हैं, बल्कि इसलिए भी कि उनके विवरणों से हमें लोगों के रहन-सहन, उनके तौर-तरीके और आर्थिक व सामाजिक स्थिति का पता चलता है.

उर्दू में, कुर्रतुल ऐन हैदर की यह विशेषता है कि उनके अधिकांश उपन्यासों में घर एक विशिष्ट नाम के साथ मौजूद होता है, जो उसमें रहने वालों की गूढ़ सांस्कृतिक संबद्धता को उजागर करता है. छतारी के इस उपन्यास में दो घरों के बीच सांस्कृतिक विषमता न केवल सांस्कृतिक विषमता को दर्शाती है, बल्कि समय के परिवर्तन के कारण व्यक्तियों के सामाजिक और संज्ञानात्मक पुनरुद्धार को भी बयान करती है. यहां एक घर वह है, जिससे नायक का अतीत जुड़ा हुआ है और दूसरा शहर का वह घर है, जिसे उसने बड़े जुनून के साथ बनाया है. डेविड लॉज ने हेनरी जेम्स के उपन्यास के बारे में बहुत बढ़िया लिखा हैः

“एक उपन्यास की शुरुआत एक दहलीज होती है, जो हमारे वास्तविक दुनिया को उपन्यासकार द्वारा कल्पना की गई दुनिया से अलग करती है.” (द आर्ट ऑफ फिक्शन, पृष्ठ 5)

उपन्यास की शुरुआत के बारे में लॉज यह भी लिखते हैं कि उपन्यासकार को उपन्यास का पहला वाक्य लिखने के लिए तब तक कलम नहीं उठानी चाहिए, जब तक कि पहले वाक्य की संरचना उपन्यासकार के दिमाग में पूरी तरह से साकार न हो जाए. तारिक के उपन्यास का पहला वाक्य अपने आप में आत्म-बहिष्कार और जिज्ञासा का स्रोत है. इसीलिए लॉज पहले वाक्य को उपन्यास का द्वार कहते हैं.

“उसने इस घर को बड़े जुनून के साथ बनाया.”

उपन्यास की शुरुआत उपरोक्त वाक्य से होती है. यह वाक्य हमें उत्सुकता देता है कि आखिर घर को इतनी शिद्दत से बनाने की क्या वजह थी? फिर दूसरी जिज्ञासा यह उठती है कि घर का भविष्य क्या होगा? इसलिए उपन्यास के इस पहले वाक्य से ही पाठक उपन्यास में एक के बाद एक होने वाली घटनाओं और पात्रों की आंतरिक स्थिति से परिचित हो जाता है. पाठक की यह आत्मीयता धीरे-धीरे उसे वैकल्पिक पाठ रचने के लिए मजबूर करती है. इसका मतलब यह है कि जब उपन्यास में कोई घटना घटती है, तो पाठक न चाहते हुए भी उस घटना के वैकल्पिक समापन की कल्पना करने के लिए मजबूर होता है, लेकिन जब उपन्यासकार द्वारा वैकल्पिक अंत प्रस्तुत किया जाता है तो वह आश्चर्य में पड़ जाता है.

अंत में, यह बिल्कुल अलग होता. इसका एक स्वादिष्ट उदाहरण उपन्यास में देखने को मिलता है, जब दंगाइयों की एक विशाल भीड़ नायक के नए घर ‘फलक पैमा’ (अत्यधिक ऊंचा) और उसमें रहने वाले तीन अन्य लोगों पर कहर बरपाती है. यहां पाठक द्वारा पीड़ा के कारण के लिए जिस वैकल्पिक अंत की कल्पना की जाती है, उसका खंडन नायक की बेटी के कथन से होता है. यानी, जब वह कहती है कि वे दुष्ट लोग आस-पास के अपराधी लड़के नहीं थे, बल्कि संपन्न परिवारों के युवा थे.

तारिक छतारी के उपन्यास में कई ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ पाठक वैकल्पिक पाठ के साथ खुद को ऊपर और नीचे देखता है. मेरा सिद्धांत एक धार्मिक विश्वास की तरह है कि उपन्यास में विषय की नवीनता की तुलना में उसकी अभिव्यक्ति की मंत्रमुग्ध शक्ति अधिक महत्वपूर्ण होती है. इसका एक बेहतरीन उदाहरण शेक्सपियर के नाटक हैं. हम जानते हैं कि उनके अधिकांश नाटक ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित हैं. यानी, वे सृजित नहीं हैं, फिर भी उनके नाटकों की अभिव्यक्ति के कारण उनके कलात्मक मूल्य सार्वभौमिक हो सकते हैं.

तारिक छतारी के उपन्यास की सबसे अच्छी खूबी इसकी लेखन शैली है. उपन्यास की भाषा इतनी सुसंगत और सुंदर है कि पाठक लिखित घटना को अपनी आँखों से देखना शुरू कर देता है. कुछ लोगों के लिए यह एक छोटी सी विशेषता हो सकती है, लेकिन मेरे लिए यह एक महान गुण है जो एक छोटी सी घटना को एक महत्वपूर्ण उपन्यास में बदल देता है.

(लेखक सीएसजेएम यूनिवर्सिटी, कानपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)