शांति स्वरूप भटनागर और उर्दू साहित्य: विज्ञान से लेकर कविता तक की यात्रा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-02-2025
Shanti Swarup Bhatnagar and Urdu Literature: A Journey from Science to Poetry
Shanti Swarup Bhatnagar and Urdu Literature: A Journey from Science to Poetry

 

sakibसाकिब सलीम

भारत के महान वैज्ञानिक, शांति स्वरूप भटनागर, न केवल विज्ञान के क्षेत्र में अपनी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध थे, बल्कि उनका उर्दू साहित्य के प्रति प्रेम भी उतना ही अद्वितीय था। भारतीय विज्ञान के इतिहास में उनके योगदान को हम सभी जानते हैं, लेकिन उनका उर्दू साहित्य और कविता के प्रति गहरा लगाव अक्सर अनदेखा रह जाता है.शांति स्वरूप भटनागर, जो विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थे, एक सशक्त उर्दू शायर भी थे. इस लेख में हम भटनागर की उर्दू कविता और साहित्यिक यात्रा पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

शांति स्वरूप भटनागर: एक वैज्ञानिक से शायर तक का सफर

शांति स्वरूप भटनागर भारतीय विज्ञान के पितामह के रूप में जाने जाते हैं. वे भारतीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के पहले महानिदेशक और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पहले अध्यक्ष रहे. उन्होंने स्वतंत्र भारत में विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहलें कीं और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को एक नई दिशा दी. हालांकि, उनके वैज्ञानिक करियर के अलावा, उनका साहित्यिक पक्ष भी उतना ही प्रेरणादायक है.

भटनागर का उर्दू साहित्य से गहरा संबंध था, और यह उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक था. बहुत कम लोग जानते हैं कि भटनागर ने रसायन शास्त्र और विज्ञान के अलावा उर्दू कविताएँ भी लिखी थीं. उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद एक शांत ग्रामीण क्षेत्र में रहने का ख्वाब देखा था, जहाँ वे न केवल खेती करते, बल्कि उर्दू में कविताएँ लिखने में भी अपना समय बिताते.

लाजवंती: भटनागर की कविता संग्रह की प्रेरणा

शांति स्वरूप भटनागर की उर्दू कविता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनकी पत्नी लाजवंती से जुड़ा हुआ है. लाजवंती की मृत्यु के बाद, भटनागर ने उनकी याद में अपनी उर्दू कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया, जिसे "लाजवंती" के नाम से जाना जाता है. यह संग्रह 1946 में प्रकाशित हुआ और इसमें लाजवंती के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और प्रेम को दर्शाने वाली कविताएँ थीं.

लाजवंती की इच्छा थी कि भटनागर की उर्दू कविताएँ प्रकाशित हों, और उनके जीवनकाल में एक बार उन्होंने इन कविताओं को एकत्र करके प्रसिद्ध उर्दू शायर फ़ैज़ झिंझनवी को भेजा था. दुर्भाग्यवश, यह संग्रह एक चोर द्वारा चुराया गया. लाजवंती के निधन के बाद, जब उनका संदूक खोला गया, तो उसमें भटनागर की कई कविताएँ मिलीं, जिन्हें उन्होंने बाद में प्रकाशित किया.

ग़ालिब और मुंशी हरगोपाल तुफ़्ता का प्रभाव

भटनागर का उर्दू से परिचय उनके परिवार से हुआ था. उनके नाना, मुंशी हरगोपाल तुफ़्ता, मिर्ज़ा ग़ालिब के करीबी दोस्त थे और एक प्रतिष्ठित शायर थे. ग़ालिब ने एक बार कहा था कि तुफ़्ता भारत में वह एकमात्र व्यक्ति थे जिनसे वे कभी नाराज नहीं हो सकते थे. भटनागर ने इस पारिवारिक धरोहर को संजोते हुए उर्दू साहित्य में अपनी पहचान बनाई.

मुंशी हरगोपाल तुफ़्ता की पुस्तकें बाद में भटनागर द्वारा लाहौर विश्वविद्यालय को दान की गईं, और इन पुस्तकों का संग्रह तुफ़्ता संग्रह के रूप में जाना गया. इस संग्रह में महाभारत का एक दुर्लभ फ़ारसी अनुवाद भी था, जिसके लिए भटनागर को विश्वविद्यालय से मानदेय मिला था.

भटनागर की उर्दू शिक्षा: एक साहित्यिक पृष्ठभूमि

भटनागर का उर्दू साहित्य से परिचय बचपन में ही हुआ था. उनका पहला स्कूल सिकंदराबाद (बुलंदशहर, यूपी) में था, जहाँ शिक्षा का माध्यम उर्दू था. इसके बाद वे लाहौर गए और दयाल सिंह हाई स्कूल में दाखिला लिया. यहाँ उनके उर्दू साहित्य और व्याकरण में गहरी रुचि ने शिक्षकों का ध्यान आकर्षित किया.

सुबह-शाम वे उर्दू शायरी में इतना निपुण थे कि उनके शिक्षकों को लगता था कि उर्दू कक्षाओं में उनके लिए कोई स्थान नहीं बचा. 1911 में, जब भटनागर ने लाहौर विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, तो उनकी उर्दू कविता की प्रतिभा ने निराह रिचर्ड्स जैसे समर्पित साहित्यिक व्यक्तित्व का ध्यान आकर्षित किया.

नाटक लेखन और शाही पुरस्कार

भटनागर ने केवल उर्दू शायरी में ही नहीं, बल्कि नाटक लेखन में भी अपनी क़ाबिलियत दिखाई। उनका उर्दू नाटक "करामत" उस समय के समाज और विज्ञान पर व्यंग्य था, जिसमें एक अंधविश्वासी भगत की आलोचना की गई थी. यह नाटक इतना प्रभावशाली था कि इसे शाही पुरस्कार के रूप में 15 रुपये की राशि मिली. हालांकि, यह नाटक सेंसर से प्रतिबंधित भी किया गया था, क्योंकि उस समय के शाही प्रशासन को डर था कि यह हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा.

भटनागर का उर्दू साहित्य में योगदान

शांति स्वरूप भटनागर का योगदान उर्दू साहित्य में उनके विज्ञान के योगदान से कम नहीं था. उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो यह बताता है कि किसी भी व्यक्ति के भीतर कला और विज्ञान दोनों का सामंजस्य हो सकता है. उन्होंने उर्दू को न केवल अपने शब्दों से संवारा, बल्कि अपने जीवन के हर पहलू में उर्दू के प्रति अपनी निष्ठा को भी बनाए रखा.

और अंत में

शांति स्वरूप भटनागर का जीवन एक प्रेरणादायक यात्रा है, जिसमें उन्होंने विज्ञान और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ी. उर्दू के प्रति उनका प्यार और समर्पण भारतीय साहित्य के इतिहास में हमेशा एक अनमोल धरोहर के रूप में रहेगा. उनकी कविताएँ, उनके नाटक, और उनके परिवार से जुड़ी साहित्यिक धरोहर आज भी हमें यह सिखाती है कि कला और विज्ञान दोनों का मेल किसी व्यक्ति को सम्पूर्ण बनाता है.