नई दिल्ली. प्रोफेसर अखलाक अहान को फारसी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर लंदन के हैरो हॉल स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिंस्टर में फारसी एक्शन फाउंडेशन लंदन, यूके द्वारा कंद पारसी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस खबर से भारत और दुनिया भर के फारसी साहित्यिक हलकों में खुशी की लहर दौड़ गई है.
प्रोफेसर अखलाक अहान ने अपने व्याख्यान में कहा कि कुछ दिन पहले वे मध्य एशिया की यात्रा पर थे, जब उन्हें सूचना मिली कि इस वर्ष का पुरस्कार उन्हें एक भव्य समारोह में प्रदान किया जाएगा. उन्होंने अपनी यात्रा संबंधी प्रतिबद्धताओं के कारण अपनी अनुपस्थिति व्यक्त की, तथापि उन्होंने अपने मित्रों एडवोकेट डॉ. सैफ महमूद और इरफान मुस्तफा से अनुरोध किया कि वे उनकी ओर से पुरस्कार ग्रहण करें.
सैफ भी इस यात्रा पर थे, जबकि श्री इरफान मुस्तफा ने इस जिम्मेदारी को अच्छे तरीके से संभाला. फारसी एक्शन फाउंडेशन ब्रिटेन में फारसी भाषी प्रवासियों द्वारा स्थापित एक सक्रिय साहित्यिक संगठन है. यह संगठन दुनिया भर में फारसी भाषा, साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हर साल विभिन्न अवसरों पर साहित्यिक समारोहों, शैक्षणिक कार्यक्रमों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का नियमित रूप से आयोजन करता है. यह संगठन उन शोधकर्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर कंद पारसी पुरस्कार से सम्मानित करता है जिन्होंने फारसी भाषा, साहित्य और सभ्यता के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
इस वर्ष दसवें महासम्मेलन के अवसर पर प्रोफेसर अखलाक अहान को इस पुरस्कार के लिए चुना गया और एक सुंदर समारोह में उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया. उनके अलावा एक अन्य ईरानी शोधकर्ता डॉ. अली रजा कयामती को भी यह पुरस्कार दिया गया. सम्मेलन में अफगानिस्तान, ईरान और समरकंद के कलाकारों द्वारा एक सुंदर संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया. इस दौरान विश्वविद्यालय हॉल में पुस्तकों, कपड़ों और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी भी लगाई गई.
इस अवसर पर, आगा खान इंस्टीट्यूट लंदन के डॉ. दाद खुदाई कदमजादेह ने फारसी भाषा के ऐतिहासिक विकास और प्रचार में अकेमेनिद, सासानी और समानिद साम्राज्यों की भूमिका पर प्रकाश डाला. पूर्व बीबीसी पत्रकार नजीबा कासराय ने फिरदौसी के शाहनामा के अनुवादों के बारे में बात की और कहा कि शाहनामा ईरान के सभी क्षेत्रों की साझी विरासत है. सम्मेलन के अंत में, संगीत और नृत्य प्रदर्शन के दौरान, प्रसिद्ध अफगान हास्य कवि और पत्रकार हारून यूसुफी ने कविताएँ प्रस्तुत कीं. अख़लाक अहान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में फारसी विभाग से प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में जुड़े हुए हैं.
वह एक फारसी और उर्दू विद्वान और कवि के साथ-साथ एक शोधकर्ता, आलोचक और बुद्धिजीवी के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हैं. पांच कविता संग्रह ख़राबत, फागान-ए-अक्सा, सरवर, चश्न पे पेहरा है (उर्दू) और नमाज इश्क (फारसी) प्रकाशित हो चुके हैं और उन्हें प्रशंसा मिली है तथा दो उर्दू संग्रह नगमा-ए-इरफान (मंजुम तराजिम) और मस्ती (गजल) प्रेस में हैं.
उनकी कविताएं अपनी रचनात्मक और विषयगत विविधता के कारण चर्चा का विषय हैं, और गजल कविता अपनी आध्यात्मिक समृद्धि और अभिव्यक्ति की शैली की दुर्लभता और लालित्य के कारण वर्तमान काव्य परिदृश्य में खुशी की पुकार और प्रेरणा की पुकार है, जो कविता और साहित्य के प्रत्येक गंभीर पाठक के लिए उल्लेखनीय और अपरिहार्य दोनों है. लम्बी कविताएँ, सोच विचार सावधानी का विषय है, ईर्ष्या अभिशाप है, युग हमारा आदि नारों की रचनाएं अपनी रचनात्मक एवं विषयगत विविधता के कारण विशेष लोकप्रिय हैं. उनकी उर्दू कविताओं का फारसी और अन्य भाषाओं में अनुवाद और प्रकाशन हो चुका है.
उन्हें अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2018 महर्षि बदरीन व्यास पुरस्कार, शेख सादी पुरस्कार, 2022 तेहरान, दिल्ली उर्दू अकादमी पुरस्कार आदि शामिल हैं. साथ ही उन्हें ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा 2017 में एक विशेष वार्षिक कविता सत्र के लिए निमंत्रण, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा मानद निमंत्रण, बाकू में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में मानद भागीदारी, अजरबैजान की प्रतिष्ठित विज्ञान एवं साहित्य अकादमी, टीयू विश्वविद्यालय, कजाकिस्तान, अंदीजान स्टेट यूनिवर्सिटी, उज्बेकिस्तान, ताशकंद यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल स्टडीज, फरगाना पेडागोगिकल यूनिवर्सिटी, उज्बेकिस्तान, ताशकंद स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज, उज्बेकिस्तान में मानद प्रोफेसर, ईरान के सहर टीवी चौनल द्वारा उनकी सेवाओं पर एक वृत्तचित्र फिल्म, मानद टिकट और अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए हैं.
उनकी फारसी और उर्दू मध्य एशिया और ईरान के विभिन्न स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं और इस संबंध में शोध लेख भी लिखे गए हैं. अख़लाक़ अहान एक शैक्षणिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. अब तक लगभग सौ लेखों और निबंधों के अलावा, भाषा, साहित्य, इतिहास और संस्कृति पर तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें लेखकों, अनुवादकों और टिप्पणीकारों की रचनाएँ शामिल हैं.
अमीर खुसरो, बेदिल, दारा शिकोह, इंडो-ईरानी और रहस्यवादी साहित्य तथा मध्य एशियाई साहित्य और संस्कृति में उनकी विशेष रुचि है. वह कई शैक्षणिक, सांस्कृतिक और शोध संस्थानों से जुड़े हुए हैं और उन्होंने ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, तुर्की और कई मध्य एशियाई देशों की शैक्षणिक यात्राएं की हैं. वह 1997 से अध्यापन कार्य में लगे हुए हैं और जेएनयू से पहले उन्होंने अस्थायी रूप से जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के फारसी विभाग में भी पढ़ाया था.