जश्न-ए-रेख्ता: उर्दू की मिठास, शायरी का जादू और अदब का जश्न खत्म

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-12-2024
Jashn-e-Rekhta: The sweetness of Urdu, the magic of poetry and the celebration of literature are over
Jashn-e-Rekhta: The sweetness of Urdu, the magic of poetry and the celebration of literature are over

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

उर्दू के चाहने वालों के लिए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित जश्न-ए-रेख्ता का नौवां संस्करण एक बार फिर भाषा, साहित्य और संगीत का अनोखा संगम साबित हुआ. तीन दिन तक चले इस महोत्सव ने न केवल उर्दू अदब की गहराई को महसूस कराया बल्कि इसे मनाने वाले हर दिल को जोड़ने का काम भी किया. रेख्ता के इस आयोजन ने साहित्य और संस्कृति प्रेमियों को ऐसा मंच दिया, जहां उन्होंने उर्दू की खूबसूरती को नए अंदाज में देखा और महसूस किया.

रेख्ता: अदब और विवाद का संगम

हालांकि, इस बार भी जश्न-ए-रेख्ता अपने साथ विवाद लेकर आया. उर्दू की पारंपरिक लिपि को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है. एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि रेख्ता फाउंडेशन उर्दू भाषा के नाम पर इसकी लिपि को नष्ट कर रहा है.

लेकिन इस विवाद का असर न तो आयोजन की भव्यता पर पड़ा और न ही उर्दू के दीवानों के उत्साह पर. तीन दिनों तक यहां अदब, संगीत और कव्वाली की ऐसी गूंज सुनाई दी, जिसने इस बहस को काफी पीछे छोड़ दिया.
 

तीसरे दिन का जादू

आखिरी दिन की शुरुआत में रेख्ता के पारंपरिक रंग देखने को मिले. स्टेडियम का माहौल उर्दू की मिठास और अदब की खुशबू से सराबोर था. महफिलों में शायरी, ग़ज़ल और कव्वाली का सिलसिला जारी रहा. मशहूर शायर और गीतकार जावेद अख्तर ने मंच संभाला और उर्दू शायरी में राष्ट्रवाद पर अपने विचार रखे.

अनीसुर रहमान के साथ हुई इस बातचीत ने दर्शकों को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया कि उर्दू शायरी में किस तरह से राष्ट्रवाद के भाव प्रकट होते हैं और यह कला किस तरह समाज के हर तबके को जोड़ने का काम करती है.

दयार-ए-इज़हार में जावेद अख्तर का जलवा

रेख्ता के आखिरी दिन दयार-ए-इज़हार मंच पर जावेद अख्तर ने अपनी बातों और कविताओं से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. उन्होंने कहा,"उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, यह एक संस्कृति है जो इंसान को इंसान से जोड़ती है. यह भाषा ग़म और खुशी, इश्क और इंसानियत की भाषा है."उनकी शायरी और बातों ने माहौल को और भी भावुक और खुशनुमा बना दिया.

बज़्म-ए-सुखन: बैतबाज़ी का समापन

तीसरे दिन का एक और खास आकर्षण बज़्म-ए-सुखन मंच पर बैतबाज़ी का फिनाले था. युवा कवियों और शायरों ने अपनी प्रतिभा का ऐसा प्रदर्शन किया, जिसने हर किसी का दिल जीत लिया. युवा कवि मंच पर अपनी रचनाओं के जरिए उर्दू की शान को बढ़ाते दिखे. बैतबाज़ी के इस समापन समारोह ने उर्दू अदब की जीवंतता और इसके भविष्य को लेकर एक नई उम्मीद जगाई.

अली फज़ल और कविता सेठ ने बांधा समां

रेख्ता महोत्सव में फिल्म और संगीत जगत की भी मौजूदगी नजर आई. मशहूर अभिनेता अली फज़ल ने अपनी मौजूदगी से महफिल को और भी रंगीन बना दिया. वहीं, गायिका कविता सेठ ने अपनी दिलकश आवाज़ में ग़ज़लें पेश कर दर्शकों का दिल जीत लिया. उनकी प्रस्तुति के दौरान पूरा हॉल तालियों की गूंज और वाह-वाह से भर उठा.

— Rekhta (@Rekhta) December 14, 2024

रेख्ता: भाषा, अदब और तहज़ीब का उत्सव

रेख्ता महोत्सव ने यह साबित कर दिया कि उर्दू भाषा के प्रति प्रेम आज भी दिलों में जिंदा है. भले ही सोशल मीडिया पर इस आयोजन को लेकर विवाद हो, लेकिन इस कार्यक्रम ने भाषा और अदब के प्रति लोगों की गहरी भावनाओं को उजागर किया.

रेख्ता फाउंडेशन ने अपनी इस पहल से उर्दू को सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि एक जश्न के रूप में मनाया। यह महोत्सव इस बात का प्रमाण है कि उर्दू आज भी लोगों के दिलों में उतनी ही जगह रखती है जितनी दशकों पहले थी.

इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि उर्दू न सिर्फ साहित्य की भाषा है, बल्कि यह एक तहज़ीब, एक सोच और एक भावना है. यह भाषा इंसान को इंसान से जोड़ने का काम करती है और यही इसकी खूबसूरती है.

तीन दिनों तक दिल्ली में अदब का यह कारवां चलता रहा. अब रेख्ता के प्रशंसक इसके अगले संस्करण का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. उर्दू भाषा और साहित्य को लेकर जो जज्बा इस महोत्सव ने पैदा किया, वह लंबे समय तक दिलों में कायम रहेगा.