जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने कहा कि साढ़े पांच सौ साल पहले का दोहा है, लेकिन ये हम सबकी लाइफ का रहनुमा है. ‘‘रहिमन मुश्किल आ पड़ी, टेढ़े दोऊ काम... सीधे से जग न मिले, उलटे मिले न राम.’’ तब अभिनेता अतुल तिवारी ने हौसला अफजाई करते हुए कहा कि राम की बात एक मुस्लिम कवि कह रहा है. ये बड़ी बात है. इस पर जावेद अख्तर ने भी हंसते हुए जवाब दिया कि भाई कवि... कवि होता है... बेचारे जो शायरी नहीं कर पाते, वो लोग होते हैं हिंदू-मुसलमान. जावेद के इस अंदाज पर पूरी महफिल हंसी-ठहाकों से गूंज उठी.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के 2025 संस्करण का भव्य उद्घाटन सांस्कृतिक चर्चाओं, कला और संगीत के मिश्रण के साथ शुरू हो गया है. उद्घाटन के दिन मौजूद कई दिग्गजों में से एक मशहूर गीतकार, पटकथा लेखक और कवि जावेद अख्तर भी थे, जिन्होंने अपनी नवीनतम पुस्तक ‘ज्ञान सीपियां: पर्ल्स ऑफ विजडम’ के लॉन्च के लिए मंच की शोभा बढ़ाई.
एक सत्र के दौरान अख्तर ने भाषा, शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत के महत्व पर अपने गहन विचार साझा किए. अख्तर ने शहरीकरण और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के कारण अपनी जड़ों से बढ़ते अलगाव के बारे में भावुकता से बात की. उन्होंने अपनी मातृभाषा को संरक्षित करने के महत्वपूर्ण महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान शहरीकरण की दौड़ में, हम धीरे-धीरे अपनी भाषाओं से दूर होते जा रहे हैं. इससे पारंपरिक कविता की उपस्थिति कम होती जा रही है, जिसमें प्रतिष्ठित दोहे शामिल हैं, जो हमारी विरासत का एक समृद्ध हिस्सा हैं. भाषा केवल संचार का स्रोत नहीं है. यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें परंपरा, संस्कृति और निरंतरता यात्रा करती है.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘यह पुस्तक ‘सीपियां’ लिखना मेरा विचार नहीं था. मेरे एक मित्र ने इसका सुझाव दिया और यह विचार मेरे साथ गूंज उठा. आज के माता-पिता अंग्रेजी-माध्यम के स्कूलों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जो एक अच्छी बात है, लेकिन यह आवश्यक है कि हम इस प्रक्रिया में अपनी जड़ों को न भूलें.’’
अख्तर ने जोर देकर कहा कि अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा सीखना किसी की मातृभाषा की कीमत पर नहीं होना चाहिए. उन्होंने बताया, ‘‘अंग्रेजी निस्संदेह वर्तमान समय की अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और इसे सीखना आवश्यक है. बहुभाषी होना महत्वपूर्ण है. हालांकि, अपनी भाषा सीखने की कीमत पर केवल अंग्रेजी पर ध्यान केंद्रित करना एक पेड़ लगाने और उसकी जड़ों को काटने जैसा है. यह हमें हमारी संस्कृति, इतिहास और हमारी पहचान के मूल से अलग कर देता है.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि हमें अंग्रेजी छोड़ देनी चाहिए, यह प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन मैं अपनी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की वकालत कर रहा हूँ, क्योंकि वे हमारी सांस्कृतिक और भावनात्मक पहचान का अभिन्न अंग हैं.’’
राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति भी जावेद अख्तर और सत्र के संचालक अभिनेता अतुल तिवारी के साथ पुस्तक का विमोचन करने के लिए शामिल हुईं. इस साल का उत्सव, जो 30 जनवरी से 3 फरवरी, 2025 तक जयपुर में चलेगा, दुनिया भर से हजारों साहित्य प्रेमी, लेखक और सांस्कृतिक नेता इसमें शामिल हो रहे हैं. पाँच दिनों के दौरान, 300 से अधिक वक्ता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला पर विचारोत्तेजक चर्चाओं में शामिल होंगे. उद्घाटन समारोह में नमिता गोखले, विलियम डेलरिम्पल और संजय के. रॉय सहित कई उल्लेखनीय वक्ता उपस्थित थे, जिन्होंने साहित्य और विचारों के भव्य समारोह में उपस्थित लोगों का स्वागत किया.
उत्सव की शुरुआत सुप्रिया नागराजन के मनमोहक संगीत प्रदर्शन से हुई, जिनके मॉर्निंग म्यूजिक ने कार्यक्रम के लिए एक शांत माहौल तैयार किया. सुप्रिया, एक प्रसिद्ध कर्नाटक गायिका हैं, जिन्होंने यूरोप, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में प्रदर्शन किया है, और वह यू.के. स्थित कला संगठन मानसमित्रा की सीईओ भी हैं, जो संगीत के माध्यम से सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देती है.
जेएलएफ टीम द्वारा साझा किए गए एक प्रेस नोट के अनुसार, इस वर्ष के उत्सव में कला, संस्कृति और इतिहास पर विभिन्न चर्चाएँ भी शामिल हैं, जैसे कि अजंता की गुफाएँ, डच कला और ओजस आर्ट अवार्ड पर सत्र, स्वदेशी कलाकारों और वैश्विक कला में उनके योगदान का जश्न मनाते हुए.