अबू शाहमा अंसारी/ बारा बांकी
बिज़्म-ए-तहफ़ुज़ उर्दू द्वारा अहमद एजुकेशनल एकेडमी हॉल, फ़तेहपुर में मासिक मुशायरा आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता उस्ताद अल-शरा एडवोकेट अहमद सईद हरफ ने की.मुशायरे का संचालन हसन साहिर ने किया.मुशायरे की शुरुआत कारी जकीउल्लाह हुसैनी की तिलावत से हुई.इसके बाद मुशायरे की शुरुआत जमीयत उलेमा हिंद के जिला उपाध्यक्ष मुहम्मद शाकिर बहलीमी और नगर पंचायत फतेहपुर के पूर्व सदस्य मुहम्मद ओवैस अंसारी ने की.हाफिज सलमान राईन ने नात पाक पेश की.
अध्यक्ष उस्ताद अहमद सईद हरफ ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि बिज़्म-ए-तहफ़ुज़ उर्दू की स्थापना उर्दू भाषा और साहित्य की सेवा तथा प्रचार के लिए की गई थी.उन्होंने कहा कि हालांकि मासिक बैठकें और मुशायरे कुछ महीनों से बंद थे, लेकिन अब फिर से साहित्यिक गतिविधियाँ शुरू हो गई हैं.उर्दू की सुरक्षा का काम अब और भी अधिक महत्व पा चुका है.उन्होंने आगे कहा कि हमें अपने बच्चों को उर्दू की शिक्षा देनी होगी, यह हमारी जिम्मेदारी है.
मुशायरे में निम्नलिखित कवियों द्वारा कविताएँ पढ़ी गईं
अहमद सईद हरफ – "अब मुंसिफ भी बिकने लगा, अब वकालत करना आसान नहीं है"
हसन नईम – "मुझे ऐसा लगता है हसन, सोचने का भी समय नहीं"
शादाब अनवर – "आप उन्हें क्या करने की सलाह देते हैं? जिसमें कोई समझ नहीं है"
हसन साहिर – "स्तब्ध और अशक्त शरीर, कायरता बहादुरी नहीं है"
हसीब यावर – "झूठ बोलने की शक्ति नहीं, झूठ सुनने की आदत नहीं"
इमरान साहबा – "हिंदी में बात करें और भारत में करें, जीवन यह प्रांत नहीं है"
सलमान फतेहपुरी – "यह एक मजाक है, कोई सलाह नहीं, जिसमें प्यार शामिल नहीं है"
शमशाद राय पुरी – "जिंदगी बहुत व्यस्त है, दिल लगाने का मौका"
इस अवसर पर हाजी एज़ाज़ अहमद अंसारी, मुहम्मद जावेद अंसारी, अब्दुल मलिक, खलीलुर्रहमान अंसारी, निज़ामुद्दीन खान, मुहम्मद सग़ीर क़ुरैशी, अली अशहद, अबू दर्दा, मुहम्मद संघर, अब्दुल्ला आदि विशेष रूप से उपस्थित थे.मुशायरे के अंत में यजदानी की मां के लिए दुआ की गई.बज़्म के महासचिव हसन साहिर ने सभी शायरों और श्रोताओं का धन्यवाद किया और मुशायरे की सफलता की ओर इशारा किया.