आवाज़ द वॉयस /नई दिल्ली
राजनीति विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. अहमत टी. कुरु की चर्चित पुस्तक ‘इस्लाम, सत्तावाद और पिछड़ापन: एक वैश्विक और ऐतिहासिक तुलना’ का विमोचन आगामी 2 फरवरी को दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में किया जाएगा. इस अवसर पर स्वयं डॉ. कुरु विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे और इस्लाम, राजनीति और आर्थिक विकास के आपसी संबंधों पर अपने विचार साझा करेंगे.
खुसरो फाउंडेशन के संयोजक, डॉ. हफीजुर रहमान के अनुसार, डॉ. कुरु इस धारणा को चुनौती देते हैं कि इस्लाम स्वाभाविक रूप से विज्ञान और तकनीक के विकास में बाधा डालता है. इसके विपरीत, वे इस बात को उजागर करते हैं कि मध्यकाल में इस्लामी सभ्यता ने वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दिया था.
यह वह दौर था जब मुस्लिम समाजों ने विज्ञान, गणित और प्रौद्योगिकी में अमूल्य योगदान दिया था, जबकि यूरोप ‘डार्क एज’ में संघर्ष कर रहा था.हालांकि, पुस्तक का मुख्य प्रश्न यह है कि इतिहास में इतने शानदार योगदान के बावजूद, आज कई मुस्लिम-बहुल राष्ट्र विज्ञान, तकनीक और सामाजिक-आर्थिक विकास में पिछड़ क्यों रहे हैं?
डॉ. कुरु इस गिरावट के लिए इस्लाम को दोषी नहीं ठहराते, बल्कि वे इसे अधिनायकवादी शासन और धार्मिक संस्थानों के गठजोड़ का परिणाम बताते हैं. वे तर्क देते हैं कि इन सत्तावादी संरचनाओं ने बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रगति को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे मुस्लिम समाज पिछड़ गए हैं.
यूरोप और मुस्लिम समाजों की ऐतिहासिक तुलना
डॉ. कुरु अपनी पुस्तक में यूरोपीय इतिहास और मुस्लिम शासन की विभिन्न अवधियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं. वे बताते हैं कि किस तरह ‘पथ निर्भरता’ (Path Dependency) ने दोनों सभ्यताओं की दिशा तय की.
उनके शोध से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक निर्णय, जैसे कि मुस्लिम समाजों द्वारा प्रिंटिंग प्रेस को अस्वीकार करना, शिक्षा और बौद्धिक विकास के लिए घातक साबित हुआ. इस फैसले ने साक्षरता दर में गिरावट और वैज्ञानिक अनुसंधान के अभाव को जन्म दिया, जिससे मुस्लिम देश तकनीकी प्रगति में पिछड़ गए.
अविकसितता के कारण: इस्लाम बनाम उपनिवेशवाद
पुस्तक में मुस्लिम समाजों की अविकसितता के दो प्रमुख सिद्धांतों की समीक्षा की गई है:
पहला यह मानता है कि इस्लाम ही पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार है.
दूसरा उपनिवेशवाद को इसका मुख्य कारण मानता है.
डॉ. कुरु इन दोनों दृष्टिकोणों को अस्वीकार करते हैं.वे यह स्वीकार करते हैं कि औपनिवेशिक शासन ने मुस्लिम देशों की प्रगति को अवश्य रोका, लेकिन वे यह भी तर्क देते हैं कि यूरोपीय साम्राज्यवाद की शुरुआत से पहले ही मुस्लिम समाजों में गिरावट आ चुकी थी. उनके अनुसार, अधिनायकवाद और धार्मिक नेतृत्व के गठबंधन ने मुस्लिम समाजों को प्रगति से रोक दिया, और यह प्रभाव आज भी देखा जा सकता है.
खुसरो फाउंडेशन का हिंदी अनुवाद और भारतीय संदर्भ
खुसरो फाउंडेशन ने इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय लिया, ताकि भारतीय पाठकों को इस महत्वपूर्ण शोध से परिचित कराया जा सके. इस अनुवाद के माध्यम से शांति, सहिष्णुता और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देने की फाउंडेशन की प्रतिबद्धता को भी बल मिलेगा.
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आवाज़-द वॉयस' पर विशेष चर्चा
आवाज-द वॉयस के प्रधान संपादक आतिर खान ने डॉ. कुरु से इस विषय पर विस्तार से चर्चा की है. यह इंटरव्यू आवाज़-द वॉयस के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है, जहां "क्या राज्य-उलेमा गठजोड़ मुस्लिम बौद्धिक विकास के लिए प्रतिकूल साबित हुआ?" विषय पर गहन संवाद किया गया है.
आवाज़-द वॉयस एक मल्टीमीडिया डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है, जो समावेशी भारत के विचार को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है. यह मंच विशेष रूप से भारतीय मुसलमानों से जुड़े विषयों को कवर करता है और बहुलवादी भारतीय संस्कृति को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है.
डॉ. अहमत टी. कुरु की यह पुस्तक एक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से मुस्लिम समाजों की प्रगति और पतन का विश्लेषण प्रस्तुत करती है. पुस्तक न केवल शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए बल्कि उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है, जो मुस्लिम दुनिया की वर्तमान चुनौतियों और उनके संभावित समाधान को समझना चाहते हैं..
2 फरवरी को प्रगति मैदान, दिल्ली में होने वाले विमोचन कार्यक्रम में भाग लेकर पाठक इस ऐतिहासिक पुस्तक को खरीद सकते हैं और स्वयं डॉ. कुरु से संवाद कर सकते हैं.