नई दिल्ली. राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद और दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग द्वारा आज ख्वाजा अहमद फारूकी लाइब्रेरी में ‘साहित्य क्यों पढ़ें?’ शीर्षक से एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया. विज्ञप्ति के अनुसार, कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि और लेखक उदीन वाजपेयी ने वक्ता के रूप में भाग लिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन प्रोफेसर अमिताभ चक्रवर्ती ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ख्वाजा मुहम्मद इकरामुद्दीन ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया.
परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके, हालांकि उनका लिखित संदेश प्रस्तुत किया गया. अपने संदेश में उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा का साहित्य न केवल मानवीय चेतना को प्रज्वलित करता है, बल्कि मनुष्य की व्यक्तिगत और सामूहिक शिक्षा में भी असाधारण भूमिका निभाता है, यही कारण है कि जागरूक समाज में साहित्य के अध्ययन पर जोर दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उर्दू परिषद उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न योजनाएं चलाने के साथ-साथ सामान्य स्तर पर साहित्य के प्रति परिष्कृत एवं परिष्कृत रुचि पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. गुणवत्तापूर्ण साहित्यिक पुस्तकों के प्रकाशन के साथ-साथ देश भर में साहित्यिक संगोष्ठियों, परिचर्चाओं, विशेष व्याख्यानों एवं कार्यशालाओं का आयोजन भी इसकी गतिविधियों का हिस्सा है.
डॉ. शम्स इकबाल ने कहा कि 2024-25 की अवधि में परिषद ने देशभर में दर्जनों बड़े कार्यक्रम और सौ से अधिक साहित्यिक परिचर्चाएं आयोजित की हैं, जिनमें देश भर से कमोबेश चार सौ युवा और वरिष्ठ साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और विद्वानों ने भाग लिया है, जो साहित्य को बढ़ावा देने की दृष्टि से निश्चित रूप से परिषद की बड़ी उपलब्धि है.
अपने विशेष व्याख्यान में उदयन वाजपेयी ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य चेतना की दृष्टि से दूसरे से भिन्न होता है, जो किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त होता है और साहित्य भी इसी का एक रूप है. उन्होंने कहा कि साहित्य व्यक्ति की भावनाओं और धारणा को बढ़ाता है तथा उसे चीजों की वास्तविकताओं को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करता है. उन्होंने कहा कि साहित्य और लेखकों का असली काम दुनिया को बदलना नहीं, बल्कि चीजों की वास्तविकता को समझना और समझाना है और साहित्य का अध्ययन करते समय इस लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए. उन्होंने साहित्य की समझ के संबंध में चेतना के विभिन्न स्तरों पर विस्तार से चर्चा की.
प्रोफेसर ख्वाजा इकरामुद्दीन ने कहा कि 21वीं सदी के उन्नत युग में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है - हमें साहित्य क्यों पढ़ना चाहिए? लेकिन दुनिया चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, साहित्य की जरूरत कल भी थी, आज भी है और भविष्य में भी रहेगी, क्योंकि कोई भी तकनीक या समकालीन विज्ञान या कला इसकी तुलना नहीं कर सकती. क्योंकि ये सभी विज्ञान बुद्धि की अभिव्यक्ति हैं और साहित्य हृदय की अभिव्यक्ति है. साहित्य मुख्यतः सौन्दर्यबोध की अभिव्यक्ति है, जिसमें अनुभूति और ज्ञान भी सम्मिलित है.
प्रोफेसर अमिताभ चक्रवर्ती ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि साहित्य और कविता मानवीय भावनाओं और विचारों की सच्ची अभिव्यक्ति हैं तथा साहित्य की सभी विधाओं के अध्ययन से व्यक्ति के भीतर अच्छे और बुरे साहित्य के बीच अंतर विकसित होता है. साहित्य व्यक्ति को उसकी योग्यता और मूल्य का बोध कराता है तथा उसे बताता है कि व्यक्ति का वास्तविक गुण उसके दिखावे में नहीं, बल्कि उसके भीतर निहित है. इसलिए व्यक्ति को अपने आत्मज्ञान के लिए साहित्य का अध्ययन करना चाहिए.
प्रोफेसर अबू बकर इबाद ने अपने समापन भाषण में कहा कि साहित्य का अध्ययन व्यक्ति में धैर्य और सहनशीलता का विकास करता है तथा सौन्दर्यबोध के प्रति रुचि जागृत करता है. उन्होंने कहा कि साहित्य पढ़कर ही व्यक्ति समाज, देश, समुदाय और स्वयं को समझ सकता है. अंत में, उनके धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. निर्देशकीय दायित्व प्रोफेसर अर्जुमंद आरा ने निभाया.
इस अवसर पर परिषद से डॉ. मसर्रत (शोध अधिकारी), नायाब हसन (शोध सहायक), दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के शिक्षक, छात्र एवं शोध छात्र, साथ ही फारसी, अरबी, हिंदी एवं अंग्रेजी विभागों के शिक्षक एवं विद्वान भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.