बिहार-यूपी के आसमान पर लहराया डुमरांव के शमीम मंसूरी का बनाया तिरंगा

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 17-08-2023
बिहार-यूपी के आसमान पर लहराता है डुमरांव के शमीम मंसूरी का बनाया तिरंगा
बिहार-यूपी के आसमान पर लहराता है डुमरांव के शमीम मंसूरी का बनाया तिरंगा

 

सेराज अनवर/पटना

आज स्वाधीनता के 76 साल हो गए,लेकिन आज़ादी का जज़्बा आज भी मुस्लिम दिलों में पूर्व की भांति हिलोरे मार रही हैं.पूर्वजों की विरासत को नई पीढ़ी संभाल रही है.तिरंगा हमारी शान है.मुल्क उस पर क़ुर्बान है.देशप्रेम का जज्बा और हाथों में तिरंगा गढ़ने की हुनर देख उत्साह दोगुना हो जाना लाज़िमी है.

ऐसे ही शख़्स की आज हम चर्चा कर रहे हैं,जिसने तिरंगा सिलने को अपना ख़ानदानी विरासत बना रखा है.पहले दादा,फिर बाप और अब ख़ुद वह जश्न ए आज़ादी के मौक़े पर हज़ारों हज़ार तिरंगा सिलता है.उसे इस बात की भी परवाह नहीं है कि अभी तक प्रशासन या सरकार की सतह पर सम्मान या शाबाशी नहीं मिली,वह देश केलिए जिता है,तिरंगा पर मरता है.

उस शख़्स का नाम शमीम मंसूरी है.मुस्लिम समाज के पसमांदा जाति से ताल्लुक़ रखता है.मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान खान की सरज़मीं  डुमरांव के रहने वाले हैं.27 साल से शमीम मंसूरी देश की आन-बान-शान तिरंगा झंडा बनाने के काम में जुटे हैं.आजादी का त्योहार आते ही शमीम का पूरा परिवार तिरंगा बनाने के काम में जुट जाता है.तीन रंग के कपड़ों की कटिंग कर उसे बारीकी से सिलकर तिरंगे का आकार देते हैं.बिहार के बक्सर से यूपी तक इनके द्वारा ही बनाया तिरंगा लहराता है.

shamim mansoori

कौन हैं शमीम मंसूरी ?

शमीम मंसूरी मुस्लिम जाति के धुनिया बिरादरी से आते हैं.धुनिया बिरादरी का रुई धुन्ने का पुश्तैनी पेशा है.तोशक,तकिया,रज़ाई बनाने का यह बिरादरी काम करती है.बदलते परिवेश और भौतिकता की मांग ने धुनिया बिरादरी के धंधे को चौपट करके रख दिया है.सो,शमीम मंसूरी अब दर्ज़ी का काम करते हैं

.बक्सर ज़िला के डुमरांव स्थित ईश्वर सिंह की गली में रहते हैं.यह एक ऐसा  मुस्लिम परिवार है,तिरंगे को बनाना उसकी फितरत में शामिल है.शमीम मंसूरी के मुताबिक़ हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद से ही हमारा परिवार तिरंगा सिलने का काम करता आ रहा है.आज़ादी मिलने के बाद से ही मेरे दादा शकीरा मियां ने इस काम को शुरू किया.हालांकि,दादा को हम देख नहीं पाये.मेरे बचपन में ही वह गुज़र गए थे.

फिर अब्बा नन्हक मंसूरी ने इस काम को सम्भाला.1996 में अब्बाजान नन्हक मंसूरी के इंतकाल के बाद अपनी अम्मीजान हसीना ख़ातून  के साथ तिरंगे बनाने के हुनर को हमने आजतक कायम रखा है.मां अब बीमार चल रही हैं.हमारे दो भाई मोहम्मद नईम मंसूरी,मोहम्मद कलीम मंसूरी भी इस काम से जुड़े हैं.

तीन पीढ़ी से यह काम निरंतर हमारे यहां चल रहा है.मेरी तीनों बेटियां इशरत,फरहत,नुसरत भी इस काम में हाथ बंटाती हैं.पत्नी जब हयात थीं तो वह भी तिरंगा के प्रेम में ओतप्रोत रहती थीं.पत्नी हसीना मंसूरी का 2013में इंतेक़ाल हो गया.शमीम मंसूरी लेडीज़ टेलर हैं.

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एक महीना पहले से झंडा बनाने में जुट जाता है परिवार

गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस की तैयारी तीन माह पहले से ही शुरू हो जाती है और तिरंगा झंडा बेचने वाले छोटे-छोटे व्यवसायी एक माह पहले से ही इसकी खरीदारी करते है.तिरंगा झंडा बनाने में शमीम का पूरा परिवार एक माह पहले से तिरंगा तैयार करने में जुट जाता है.

हर छोटे-बड़े परिवार के सदस्यों को झंडे की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात मालूम है. शमीम बताते है कि तिरंगे के सिलाई करने के बाद 24तीलियों वाली चक्र की छपाई की जाती है.आजादी का त्योहार आते ही शमीम का पूरा परिवार तिरंगा बनाने के काम में जुट जाता है.तीन रंग के कपड़ों की कटिंग कर उसे बारीकी से सिलकर तिरंगे का आकार देते हैं.इसे तैयार करने में मेहनत अधिक होता है,जिस हिसाब से आमदनी नहीं होती.

इस परिवारों की माने तो बड़े झंडे में 20से 25रुपये तो छोटे झंडे में 8से 10रुपये की आमदनी होती है. बारह माह में दो राष्ट्रीय त्योहार आते है. छह माह तक इन परिवारों के हुनरमंद हाथ तिरंगे को गढ़ने में बिताते हैं, परिजन बताते है कि छह माह तो गुजारा चल जाता है.

लेकिन अन्य दिनों में परिवार का पेट पालना मुश्किल हो जाता है.खाली दिनों में थोड़े-बहुत कपड़े की सिलाई कर गुजारा करना पड़ता है. शमीम बताते है कि दिल्ली मेड तिरंगा झंडा के आने से व्यवसाय में कमी आयी है लेकिन यूपी के हुनरपसंद लोग आज भी घर पर आकर तिरंगे की खरीद करते है.उनकी माने तो स्थानीय दुकानदारों द्वारा खादी के तीन रंगों के कपड़े आसानी से उपलब्ध हो जाता है.

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यूपी तक शमीम के झंडे के हैं क़द्रदान

 यहां के तिरंगे झंडे की मांग यूपी के बनारस,गाजीपुर,बलियां के अलावे बिहार के बिक्रमगंज,सासाराम सहित स्थानीय बाजारों में है.डुमरांव के दुकानदार कपड़ा खरीदकर देते हैं.मंसूरी उसे तिरंगा का आकार देता हैं. एवज में सिलाई का मामूली चार्ज लेते हैं.

प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद अब कपड़े के तिरंगे की मांग बढ़ी है. कपड़े की महंगाई के कारण इस बार तिरंगे के दर में वृद्धि हुई है.बावजूद इसके तिरंगे का डिमांड हर वर्ष बढ़ता जा रहा है.बात-बात पर मजहबी रंग देकर राजनीति की रोटी सेंकने वालों शमीम मंसूरी अपने ढंग से जवाब दे रहे हैं.

ये राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का निर्माण कर लोगों को देशभक्ति का संदेश दे रहे हैं.इनके बनाए तिरंगा के कद्रदान बिहार के बक्सर और भोजपुर सहित पड़ोसी उत्तर प्रदेश के लोग भी हैं.शमीम मंसूरी बताते हैं कि इनके लिए आपसी भाईचारा और राष्ट्रीयता सबसे बड़ी चीज है.

इनके बनाए तिरंगा का मुख्य खरीदार खादी भंडार के दुकानदार हैं, जो इनके यहां बने तिरंगे झंडे को थोक में खरीदकर खुदरा दुकानदारों को देते हैं.डुमरांव के फूलचंद कानू मोहल्ले के रहने वाले अशोक कुमार के पुत्र मनीष कहते है कि दो माह तक पूरा परिवार जोश,जज्बा व जुनून के साथ तिरंगा बनाने के काम में लग जाता है.

शमीम मंसूरी को मलाल है कि सरकार ने तिरंगा निर्माण को घरेलू उद्योग का दर्जा नहीं दिया और न ही किसी योजना से सरकारी मदद ही मिली. फिर भी यह परिवार तीन पीढ़ियों से इस धंधे में कार्यरत है. इन्हें खुशी है कि यह काम देशप्रेम से जुड़ा है. इस परिवार को कपड़े से जुड़े दुकानदार कपड़े देकर इनके कारोबार का हौसला बढ़ाते है, राष्ट्रीय त्योहार बीतने के बाद यह कारीगर झंडे की बिक्री कर दुकानदारों को पैसे वापस करते है.

बिहार में मंसूरी समाज के बड़े नेता प्रो.फ़िरोज़ मंसूरी कहते हैं कि मंसूरी और पसमांदा समाज को शमीम मंसूरी पर फ़ख़्र है.मुस्लिम पसमांदा की बात करने वाली नरेन्द्र मोदी सरकार से हम मांग करते हैं शमीम मंसूरी जैसे सच्चे देश भक्त को सम्मानित कर उनकी हौसला अफजाई करे.

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बेटियां इशरत,फरहत

आज़ादी को लेकर क्या कहते हैं शमीम

आज़ादी को लेकर शमीम की थ्युरी अलग है.वह कहते हैं कि जिस तरह होली और ईद में एक दूसरे को बधाई देते हैं,गले मिलते हैं,जश्न ए आज़ादी पर भी गले मिल कर हिंदुस्तानियों को एक दूसरे को देश की आज़ादी का जश्न पर मुबारकबाद देनी चाहिए.

मुल्क की आज़ादी से बड़ा कौन सा महापर्व है.हिन्दू अपना पर्व मनाता है,मुसलमान अपना,सिख अपना त्योहार मनाता है,ईसाई अपना.आज़ादी का ही एक पर्व ऐसा है जो सभी धर्म के लोग एक साथ मिल कर मनाते हैं.हर घर में तिरंगा लहराना चाहिए.

2002 से हम यह बात कहते आ रहे हैं.वह कहते हैं हिंदुस्तान पर नाज़ है.मैं यहां पैदा हुआ.हिंदुस्तान जैसा देश दुनिया में नहीं है.दुनिया में कई देश हैं लेकिन महान सिर्फ हमारे देश को कहा जाता है.तिरंगा बनाना मेरे लिए सौभाग्य और गौरव की बात है.आवाज़ द वायस को शमीम मंसूरी ने बताया कि कुछ तिरंगा हम रख लेते हैं और 15अगस्त को उन बच्चों को मुफ़्त में देते हैं जो झंडा ख़रीद नहीं सकते.

-आवाज़ द वायस शमीम अहमद के देश प्रेम को सलाम करता है