उर्दू पत्रकारिता को नया रूप देने के लिए डॉ. मुनव्वर हसन कमाल का सराहनीय प्रयास

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-01-2025
Dr. Munavvar Hasan Kamal's commendable effort to give a new look to Urdu journalism
Dr. Munavvar Hasan Kamal's commendable effort to give a new look to Urdu journalism

 

हक्कानी अल-कासिमी

उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्ष पूरे होने पर भारत के विभिन्न शहरों में पत्रकारिता समारोह आयोजित किये गये और इस अवसर पर दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित की गईं तथा सैकड़ों लेख लिखे गये. फिर भी उर्दू पत्रकारिता का विषयगत कैनवास इतना विशाल है कि कई कोण और दिशाएं अभी भी अनछुई हैं, यही कारण है कि पत्रकारिता पर पुस्तकों और लेखों का प्रकाशन जारी है और कुछ नए पहलू भी उभर रहे हैं. विशेष रूप से, कई समाचार पत्रों और पत्रों के बारे में लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं जिन पर पूर्व में विशेष रूप से चर्चा नहीं की गई है या जिन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है.

पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तकों में आमतौर पर हाशिए के समुदायों के कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का उल्लेख नहीं किया जाता है. हाशिये पर चल रही उन पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों के बारे में भी बहुत महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई और यह बात समझ में आई कि उन पत्रिकाओं ने भी उर्दू भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन पत्रिकाओं के कारण अनेक सृजनात्मक प्रतिभाओं का जन्म हुआ तथा अनेक अज्ञात एवं लुप्त लेखकों को प्रकाश में लाया गया, अन्यथा हाशिए के समुदायों का सार इन पत्रिकाओं में ही दफन होकर रह जाता.

उर्दू पत्रकारिता में और अधिक शोध और जांच की आवश्यकता है, तथा कई मुद्दों और चिंताओं का समाधान भी आवश्यक है. यही कारण है कि पत्रकारिता पर अभी भी किताबें प्रकाशित हो रही हैं और हम नए पहलुओं से भी परिचित हो रहे हैं. पत्रकारिता का कोई सुसंगत एवं व्यापक इतिहास अभी तक संकलित नहीं हो सका है, इसलिए पत्रकारिता पर प्रकाशित ये पुस्तकें पत्रकारिता के अधूरे इतिहास की पूरक सिद्ध हुई हैं.

डॉ. मुनव्वर हसन कमाल की पुस्तक ‘उर्दू पत्रकारिता के उज्ज्वल प्रभाव’ भी इस पूरक श्रृंखला की एक कड़ी है. मुनव्वर हसन कमाल व्यावहारिक रूप से पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं, इसलिए वे पत्रकारिता की समस्याओं, रिश्तों और अन्य पहलुओं से वाकिफ हैं. उन्होंने पत्रकारिता के उत्कर्ष का दौर भी देखा है और अब पत्रकारिता के पतन के दिन भी देख रहे हैं. पत्रकारिता के उत्थान और पतन की उन्हें पूरी समझ है, इसलिए इस पुस्तक में उन्होंने जहां पत्रकारिता के स्वर्णिम काल की छाप को उकेरा है, वहीं पत्रकारिता के पतन की तस्वीरें भी प्रस्तुत की हैं.

यह पुस्तक तीन संस्करणों में प्रकाशित है. ‘नक्श-ए-अव्वल’ में उन्होंने उन पत्रकारों की उपलब्धियों के बारे में लेख लिखे हैं जिनकी पत्रकारिता सेवाओं का दायरा बहुत व्यापक है और जिन्होंने पत्रकारिता परिदृश्य को नए रंगों और प्रतिमानों से सजाया है. इनमें उर्दू के पहले शहीद पत्रकार मौलवी मुहम्मद बाकिर, हसरत मोहानी, अबुल कलाम आजाद, सर सैयद, जफर अली खान, अल्लामा इकबाल, मुहम्मद अली जौहर, महात्मा गांधी और मौलाना अब्दुल मजीद दरियाबादी जैसी महान और प्रबुद्ध हस्तियां शामिल हैं. पत्रकारिता के क्षेत्र में ये वे प्रामाणिक हस्ताक्षर हैं जिनके उल्लेख के बिना पत्रकारिता का इतिहास कभी पूरा नहीं हो सकता. ये वो महान नाम हैं जिनके लिए पत्रकारिता एक मिशन थी, भौतिकवाद की मशीन नहीं. इसलिए उन्होंने पत्रकारिता को परोपकार का साधन नहीं बनाया, बल्कि पत्रकारिता की नैतिकता और मूल्यों को कायम रखा और उनकी वजह से पत्रकारिता को प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता भी मिली.

मुनव्वर हसन कमाल ने इन सभी उच्च पदस्थ पत्रकारों की पत्रकारिता संबंधी छाप और उनकी पत्रकारिता संबंधी विशिष्टताओं को स्पष्ट किया है. अधिकांश पुस्तकों में इन सभी व्यक्तित्वों पर लेख और निबंध शामिल हैं, लेकिन मुनव्वर हसन कमाल ने उनकी पत्रकारिता को एक अलग अंदाज में प्रस्तुत किया है. इसलिए, इन सभी व्यक्तित्वों का समावेश एक अलग ही बात है. लेख की प्रशंसा उचित है, तथा उसी लेख में एक अन्य बहुमूल्य लेख सम्मिलित है जिसमें उन्होंने पुरानी दिल्ली कॉलेज की सेवाओं की समीक्षा प्रस्तुत की है. इस कॉलेज की विशिष्टता और विशेषता यह है कि ‘मोहब्बे हिंद’, ‘कुरान-उल-सादीन’ और ‘फुआयदुल-नजीरीन’ जैसी प्रामाणिक वैज्ञानिक और साहित्यिक पत्रिकाएं इस कॉलेज से जुड़ी हुई हैं और यहां की पत्रिकाओं ने न केवल पाठकों का मनोरंजन किया है, बल्कि भाषा और साहित्य के साथ-साथ वैज्ञानिक और शैक्षणिक विषयों के साथ भी. मानसिक क्षेत्र को किसने प्रबुद्ध और सुगंधित किया है?

ये आलेख अतीत के उज्ज्वल पत्रकारिता इतिहास को प्रकाश में लाते हैं और हमें बताते हैं कि किस प्रकार हमारे महानुभावों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने उर्दू पत्रकारिता की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा बाद के पत्रकारों के लिए पत्रकारिता का एक आदर्श मॉडल भी प्रस्तुत किया.

पुस्तक के दूसरे पृष्ठ पर उर्दू पत्रकारिता से जुड़ी कुछ अन्य हस्तियों का भी उल्लेख है, जिनमें मौलाना मुहम्मद उस्मान फरकुलीत, आबिद सोहेल, ताबिश मेहदी, सोहेल अंजुम और हक्कानी अल-कासिमी के नाम शामिल हैं. मौलाना फरीकुलीत एक ऐसी शख़्सियत का नाम है, जिन्होंने उर्दू पत्रकारिता को एक नया नजरिया दिया और अपनी लेखनी के जरिए समाज को जगाने और संगठित करने का काम किया. वे अल-जामिया जैसे लोकप्रिय अख़बार से जुड़े थे और इस अख़बार के पाठक बहुत व्यापक थे. था. यह समाचार पत्र भारत के अधिकांश भागों में बड़े उत्साह के साथ पढ़ा जाता था तथा इसने देश के लोगों को शिक्षित करने में भी मदद की तथा उन्हें सामाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति जागरूक किया.

आबिद सोहेल मुख्यतः कथा लेखक थे और साहित्यिक पत्रकारिता भी उनकी पहचान का एक संदर्भ है. उन्होंने लखनऊ से श्महानामा किताबश् का प्रकाशन शुरू किया और इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने साहित्यिक पत्रकारिता को नया आयाम दिया. पुस्तक में साहित्य से जुड़े कई सामान्य मुद्दों पर प्रकाशित रचनाएं आज भी पाठकों के लिए प्रकाश की किरण हैं.