नजीर की दिवाली में बाजार के साथ आतिशबाजी और झालरों की चमक भी थी

Story by  फैजान खान | Published by  [email protected] | Date 24-10-2022
मुगल चित्रकला में दिवाली
मुगल चित्रकला में दिवाली

 

फैजान खान/ आगरा

महाकवि नजीर अकबराबादी ने कविताओं में हर उस चीज को शामिल किया, जो सीधे लोगों की जिंदगी से जुड़ी रही हो. बात चाहे मेलों की हो या त्योहारों की. हर बात पर नजीर ने अपनी बात को कविता के माध्यम से पुरजोर तरीके से पेश किया.

अब दीपावली है तो नजीर ने इस खास त्योहार पर भी अपनी कलम को चलाया. उन्होंने दीपावली पर कविता लिखकर ये साबित कर दिया है नाम से तो वे नजीर थे पर उनकी कविता सभी के लिए थी. उन्होंने जितना ईद, मुहर्रम और  शब-ए-बरात पर लिखा उससे कई गुना होली-दीपावली, श्रीकृष्ण और शिव पर भी लिखा.

आइए आज हम उनकी दीपावली पर लिखी गई कविता को पढ़ते हैं जो बेहद शानदार होने के साथ ही दीपावली के जोश और खुशी को बेहद खूबसूरत तरीके से पेश करती है.

हमें अदाएं दिवाली की ज़ोर भाती हैं कि लाखों झमकें हर एक घर में जगमगाती हैं।

चिराग जलते हैं और लौएं झिलमिलाती हैं, मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

गुलाबी बर्फ़ियों के मुंह चमकते फिरते हैं, जलेबियों के भी पहिए ढुलकते फिरते हैं।

हर एक दांत से पेड़े अटकते फिरते हैं, इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते फिरते हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

मिठाइयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं, तो उन पै क्या ही ख़रीदारों के झपट्टे हैं।

नबात, सेव, शकरकन्द, मिश्री गट्टे हैं, तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे-बट्टे हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं,तो लौंज खजले यही मसनद लगाते बैठे हैं।

इलायची दाने भी मोती लगाए बैठे हैं, तिल अपनी रेबड़ी में ही समाए बैठे हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग, यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग।

मगध का मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग, दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है, तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है।

कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है, कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

कोई खिलौनों की सूरत को देख हंसता है, कोई बताशों और चिड़ों के ढेर कसता है।

बेचने वाले पुकारे हैं लो जी सस्ता है, तमाम खीलों बताशों का मीना बरसता है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

और चिराग़ों की दुहरी बंध रही कतारें हैं, और हरसू कुमकुमे कन्दीले रंग मारे हैं।

हुजूमए भीड़ झमकए शोरोगुल पुकारे हैं, अजब मज़ा है अजब सैर है अजब बहारें हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

अटारी, छज्जे दरो बाम पर बहाली है, दिबाल एक नहीं लीपने से खाली है ।

जिधर को देखो उधर रोशनी उजाली है,  ग़रज़ में क्या कहूं ईंट-ईंट पर दिवाली है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।

जो गुलाबरू हैं सो हैं उनके हाथ में छड़ियां, निगाहें आशि‍कों की हार हो गले पड़ियां।

झमक.झमक की दिखावट से अंखड़ियां लड़ियां, इधर चिराग़ उधर छूटती हैं फुलझड़ियां।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

क़लम कुम्हार की क्या.क्या हुनर जताती है, कि हर तरह के खिलौने नए दिखाती है।

चूहा अटेरे है चर्खा चूही चलाती है, गिलहरी तो नव रुई पोइयां बनाती हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं,बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

कबूतरों को देखो तो गुट गुटाते हैं, टटीरी बोले है और हंस मोती खाते हैं।

हिरन उछले हैंए चीते लपक दिखाते हैं,भड़कते हाथी हैं और घोड़े हिनहिनाते हैं।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

किसी के कान्धे ऊपर गुजरियों का जोड़ा है, किसी के हाथ में हाथी बग़ल में घोड़ा है।

किसी ने शेर की गर्दन को धर मरोड़ा है, अजब दिवाली ने यारो यह लटका जोड़ा है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

धरे हैं तोते अजब रंग के दुकान.दुकान, गोया दरख़्त से ही उड़कर हैं बैठे आन।

मुसलमां कहते हैं ष्ष्हक़ अल्लाहष्ष् बोलो मिट्ठू जान, हनूद कहते हैं पढ़ें जी श्री भगवान।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।

कहीं तो कौड़ियों पैसों की खनख़नाहट है, कहीं हनुमान पवन वीर की मनावट है।

कहीं कढ़ाइयों में घी की छनछनाहट है, अजब मज़े की चखावट है और खिलावट है।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं

ष्नज़ीरष् इतनी जो अब सैर है अहा हा हा, फ़क़त दिवाली की सब सैर है अहा हा! हा।

निशात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा, जिधर को देखो अज़ब सैर है अहा हा हा।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं।


शायर अमीर अहमद अकबराबादी कहते हैं कि नजीर सिर्फ मुस्लिमों के ही नहीं बल्कि वो तो हर कौम-ओ-मजहब के शायर थे. उनसे ज्यादा कौमी एकता पर कविताएं किसी ने नहीं लिखीं.

आज की पीढ़ी के शायर, कविताओं ने उनकी कविताओं से सीख लेनी चाहिए कि शायर, कवि और लेखक किसी एक मजहब या एक समाज का नहीं बल्कि वो तो सर्वसमाज का आइना होता है. 

नजीर ने होली, दिवाली, जन्माष्टमी, श्रीकष्ण, शिव, मुहर्रम, शब-ए-बारात, ईद, बकरीद सभी लिखा है. दिवाली पर लिखी कविताएं आज भी लोग दिवाली के मौके पर सुनाते और गाते हैं.

आस्ताना आलिया कादरिया के नायब सज्जादानशीं सूफी सैयद फैजी मियां ने कहा कि नजीर की शायरी हो या कविता, उन्होंने हर कौम का ख्याल रखकर लिखा. उनकी कविताओं में सभी धर्मों के त्योहार तो लोगों की जिंदगी से जुड़ी चीजें भी जो उन्हें प्रभावित करती थी.

आगरा के बाजार, मेले, त्योहार, फल, सब्जियां, गली-मोहल्ले भी शामिल रहे. उनकी कविताओं की प्रासंगिता हर त्योहार पर होती है, लेकिन लोगों ने उन्हें भुला दिया.