कल्पना पांडे
भगत सिंह की जेल नोटबुक का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प पहलू के रूप में सामने आता है. यह नोटबुक न केवल भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों का दस्तावेज है, बल्कि यह उनके विचारधारात्मक और बौद्धिक विकास की भी गवाही देती है. इस लेख में, हम भगत सिंह की जेल डायरी के इतिहास, इसके महत्व, और उनके विचारों के अध्ययन पर विस्तृत चर्चा करेंगे.
12 सितंबर 1929 को भगत सिंह को जेल अधिकारियों द्वारा एक स्कूल नोटबुक के आकार की डायरी दी गई. इस डायरी पर लिखा था "भगत सिंह के लिए 404 पृष्ठ". कैद के दौरान, भगत सिंह ने इस नोटबुक में 43 किताबों से उद्धृत 108 लेखकों के विचारों पर नोट्स बनाए.
इन लेखकों में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और लेनिन जैसे महान विचारक शामिल थे. भगत सिंह का अध्ययन इतिहास, दर्शन, समाजशास्त्र और राजनीति पर केंद्रित था. इस दौरान, उन्होंने पश्चिमी विचारकों का गहराई से अध्ययन किया और न केवल उपनिवेशवाद के खिलाफ बल्कि समाज के समग्र विकास पर भी अपने विचार प्रकट किए.
भगत सिंह ने समाजवाद, क्रांति और मानवाधिकारों के विषयों पर गहन विचार किया. उन्होंने एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से परे जाकर, वैश्विक दृष्टिकोण अपनाया. उनका मानना था कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को केवल भारतीय सीमाओं तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे एक अंतर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में देखना चाहिए.
उनका यह दृष्टिकोण उनके समय के अन्य नेताओं, जैसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. बी.आर. अंबेडकर से भी अलग था, जो भारतीय मुद्दों पर अधिक केंद्रित थे.
भगत सिंह की इस डायरी का इतिहास कई दशकों तक अस्पष्ट रहा. 1968 में भारतीय इतिहासकार जी. देवल को भगत सिंह के भाई कुलबीर सिंह के साथ इस नोटबुक की मूल प्रति देखने का मौका मिला. इसके बाद, देवल ने भगत सिंह के बारे में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने इस डायरी का जिक्र किया.
हालांकि, डायरी को प्रकाशित करने का सुझाव दिया गया, लेकिन यह काम नहीं हो सका। 1977 में, रूसी विद्वान एल.वी. मित्रोखोव ने इस डायरी के बारे में जानकारी प्राप्त की और 1981 में अपनी पुस्तक "लेनिन एंड इंडिया" में इसके बारे में एक अध्याय लिखा.
1981 में, जी.बी. कुमार हूजा, जो उस समय गुरुकुल कांगड़ी के कुलपति थे, ने दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित गुरुकुल इंद्रप्रस्थ के तहखाने में एक नोटबुक की प्रति देखी. हालांकि, उन्हें इसे वापस लौटाने का अवसर नहीं मिला क्योंकि कुछ समय बाद, गुरुकुल के प्रशासक शक्तिवेश की हत्या कर दी गई.
इसके बावजूद, 1991 में, भूपेंद्र हूजा ने इस डायरी के अंश "भारतीय पुस्तक क्रॉनिकल" में प्रकाशित किए। यह पहला अवसर था जब भगत सिंह की जेल नोटबुक पाठकों तक पहुंची.
भगत सिंह के इस जेल नोटबुक में उनके विचारों का गहरा समावेश है. उन्होंने अपने लेखन में न केवल स्वतंत्रता के विचारों को स्थान दिया, बल्कि पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, और धर्म के बारे में भी अपनी राय व्यक्त की. उन्होंने उन विचारों को अपने नोट्स में उद्धृत किया, जो उनकी क्रांतिकारी सोच को दर्शाते हैं.
उनकी नोटबुक में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और लेनिन के विचारों को महत्व दिया गया. विशेष रूप से, उन्होंने मार्क्स के "कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र" और "द सिविल वॉर इन फ्रांस" जैसे लेखों का गहराई से अध्ययन किया. इसके अलावा, उन्होंने रूसो, थॉमस जेफरसन, पैट्रिक हेनरी, और विक्टर ह्यूगो के विचारों पर भी ध्यान दिया. उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन में असमानता के बारे में भी विस्तार से लिखा.
भगत सिंह के विचार केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर भी आधारित थे. उन्होंने धर्म को लेकर एक नास्तिक दृष्टिकोण अपनाया और इसे समाज के उत्पीड़न का एक साधन माना. उन्होंने लिखा कि धर्म मनुष्य का निर्माण नहीं करता, बल्कि मनुष्य धर्म का निर्माण करता है. इसके अलावा, उन्होंने बताया कि कैसे धर्म और राज्य मिलकर समाज में असमानताएँ उत्पन्न करते हैं.
भगत सिंह का उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकने तक सीमित नहीं था. उनका असली लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना था, जो समाजवाद पर आधारित हो, जहाँ जातिवाद, धर्म और पूंजीवाद जैसी समस्याएँ समाप्त हो चुकी हों. उनके अनुसार, स्वतंत्रता के बाद एक न्यायपूर्ण समाज की आवश्यकता थी, जो न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता बल्कि सामाजिक समानता भी प्रदान करे.
भगत सिंह ने अपने लेखन में कहा था, "हमें यह सिखाया जाता है कि लोगों का सिर काटना कितना भयानक है, लेकिन हमें यह नहीं सिखाया जाता कि सभी लोगों पर जीवनभर गरीबी और अत्याचार थोपने से होने वाली मृत्यु और भी भयानक है." यह उद्धरण उनके विचारों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है, जिसमें उन्होंने गरीबी और असमानता के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया.
भगत सिंह की जेल नोटबुक न केवल उनके क्रांतिकारी विचारों का दस्तावेज़ है, बल्कि यह समाज के प्रति उनकी गहरी समझ और उनके द्वारा किए गए गहन अध्ययन का प्रमाण है. यह उनकी बौद्धिक यात्रा का हिस्सा है, जिसमें उन्होंने अपने समय के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर विचार किया.
उनकी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है, और यह हमें एक न्यायपूर्ण, समाजवादी और समतावादी समाज की ओर मार्गदर्शन करती है. भगत सिंह का यह ऐतिहासिक दस्तावेज हमें उनके विचारों की गहराई से परिचित कराता है और उनके संघर्ष की वास्तविकता को उजागर करता है.