यूसुफ तहमी/ दिल्ली
ग्रीष्मकाल उपमहाद्वीप में आम का मौसम होता है और भारत दुनिया के आधे से अधिक आमों का उत्पादनकर्ता.उर्दू शायरी में जिस फल की सबसे ज्यादा तारीफ की गई है वह आम है. हास्य कवि सागर खय्यामी ने इसपर दिलचस्प शायरी की है. आइए, पहले बताते हैं कि एक आम का नाम चैसा क्यों पड़ा.
चौसा आम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की खास पैदावार रही है. अब यह पाकिस्तान के रहीम यार खान और मुल्तान शहरों में भी व्यापक रूप से उगाया जाता है.पूर्वी उत्तर प्रदेश से इसके विशेष संबंध के आधार पर पहले इसे गाजीपुरिया कहा जाता था. वैसे ही जैसे एक विशेष किस्म के आम को बम्बइया और कलकतिया कहा जाता है.
बम्बइया आम की फसल मौसम की शुरुआत में आती है, जबकि कलकतिया बड़ा और गूदेदार होता है और बरसात के मौसम में देर से आता है. इसका स्वाद कुछ खास नहीं होता. यह मीठा और पेट भरने वाला होता है. शायद मिर्जा गालिब को यह ज्यादा पसंद आया होगा जिन्होंने आमों के बारे में कहा था कि ये बड़े और मीठे होते हैं.
जून में पीले रंग में आने वाले इस गाजीपुरिया आम को अफगान राजा शेरशाह सूरी ने चौसा नाम दिया था. दरअसल, जब उन्होंने 1539 की लड़ाई में हुमायूं को बिहार के चैसा में हराया , तो उन्होंने अपने पसंदीदा आम के साथ जीत का जश्न मनाया और इस आम का नाम चैसा रख दिया. इसलिए आज भी इसे चैसा के नाम से ही जाना जाता है.
कहते हैं कि शेरशाह सूरी को ये आम अपनी जीत के उपहार के तौर पर अन्य इलाकाई सरदारों को भी भेंट स्वरूप भेजा था.चौसा युद्ध ने जहां शेरशाह सूरी के साम्राज्य को मजबूत किया, वहीं इसका महत्व भी वक्त के साथ बढ़ता चला गया.
जब औरंगजेब ने आम के लिए डांट लगाई
जब मुगल बादशाह शाहजहां दक्कन में बुरहानपुर के गवर्नर थे, तब उन्होंने आम के लगवाए, जिनमें से दो उसे बहुत पसंद आए.जब वह राजा बने तो दक्कन की जिम्मेदारी उनके बेटे औरंगजेब पर आ गई.
औरंगजेब को सख्त निर्देश थे कि इस आम की विशेष निगरानी की जाए और फल आगरा या दिल्ली, जहां भी वे हों, भिजवाया जाए.राजा के निर्देश पर, आम के मौसम के दौरान इसकी निगरानी के लिए विशेष रूप से गार्ड नियुक्त किए गए और अन्य दिनों में, इन पेड़ों की विशेष देखभाल की गई ताकि वे अच्छे फल दें.
एक बार जब इन पेड़ों के फल उसके पास भेजे गए तो वह मात्रा और संख्या में कम थे. थोड़े खराब भी हो गए थे. इसपर शाहजहां ने अपने बेटे को जबरदस्ती फटकार लगाई थी.अदब आलमगिरी के मुताबिक, औरंगजेब ने जवाब में जो पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा,‘‘इसमें उनका कोई दोष नहीं. फल खराब मौसम, हवा और ओले के कारण खराब हो गए हैं.’’
वैसे, शाहजहां के समय में बिहार और बंगाल में आम के बड़े-बड़े बागान लगाए गए और कई प्रजातियां भी विकसित की गईं. आज भारत में डेढ़ हजार से भी ज्यादा आम की किस्में हैं और अब हर पेड़ की अलग-अलग शाखाओं में अलग-अलग तरह के फल लगाए और प्रदर्शित किए जाते हैं.
औरंगजेब ने संस्कृत नाम दिए
शाहजहां की तरह औरंगजेब को भी आम बहुत पसंद थे. उसे तोहफे में आम भेजे जाते थे. एक बार उनके बेटे ने औरंगजेब को आम की दो नई किस्में भेजीं और उनसे उनका नाम रखने का अनुरोध किया.
हालांकि औरंगजेब को भारत में एक हिंदू द्वेषी के रूप में चित्रित किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं था. उनके दरबार में अधिकांश हिंदू सामंती प्रभु थे.हालाँकि, अपने बेटे के अनुरोध पर, उन्होंने इन दोनों आमों का नाम संस्कृत भाषा में रखा.
एक आम का नाम सुधा रस और दूसरे का नाम रसना विलास नाम दिया.संस्कृत शब्द सुधा का अर्थ है अमृत और दूसरे शब्द रस का अर्थ है रस. इस प्रकार यह आम का रस अमृत बन गया. अमृत को उर्दू में जीवन का जल समझा जा सकता है.
संस्कृत शब्द रस्ना का हिंदी में अर्थ है जीभ जो आपको स्वाद का एहसास कराती है जबकि विलास का अर्थ है आनंद.गौरतलब है कि औरंगजेब संस्कृत से बहुत अच्छी तरह से परिचित थे. कभी-कभी अपनी पसंद के शब्दों का इस्तेमाल भी किया करते थे.सागर ख्यामी ने इसपर भी एक कविता लिखी है.
खबर की खास बातें
अतिरिक्त जानकारी:
औरंगजेब के शासनकाल में कृषि और बागवानी को बढ़ावा दिया गया था, जिसमें आमों का उत्पादन भी शामिल था.'अदब आलमगिरी' नामक ऐतिहासिक ग्रंथ में औरंगजेब और आमों से जुड़े किस्से दर्ज हैं.भारत में आम की खेती और किस्मों का विकास सदियों पुराना है, जो विभिन्न संस्कृतियों और राजवंशों से प्रभावित रहा है.
निष्कर्ष:
औरंगजेब को अक्सर कट्टरपंथी मुगल बादशाह के रूप में देखा जाता है, लेकिन 'चैसा' आम और 'सुधा रस', 'रसना विलास' जैसे नामों का चुनाव उनकी रुचि और संस्कृत ज्ञान को दर्शाता है.यह कहानी मुगल दरबार में आम के महत्व और भारत में इस फल की समृद्ध विरासत को उजागर करती है.
उर्दू न्यूज से साभार