राजीव जोसफ का एक नाटक है, गार्ड्स ऐट द ताज, जिसके एक दृश्य में बाबर और हुमायूं ताजमहल का उद्घाटन देख रहे होते हैं. हुमायूं इस शानदार मकबरे के निर्माण का श्रेय, जाहिर है, बादशाह शाहजहां को देते हैं, जबकि बाबर के हिसाब से इसका श्रेय वास्तुकार उस्ताद ईसा को जाना चाहिए.
रुकिए. इस लेख के पहले पैराग्राफ से आप यह न मान लें कि इतिहासकार उस्ताद ईसा को ही वास्तुकला के इस नगीने के निर्माण के पीछे की असली प्रतिभा मानते हैं. तो फिर कौन हैं वह, जिसने ताजमहल बनाया, जिसे शायर शकील बदायूंनी ने ‘मोहब्बत की निशानी’बताया है तो साहिर लुधियानवी ने ‘ग़रीबों की मोहब्बत का मज़ाक़’कहा है.
इल्म की दुनिया में आज किसी एक मुस्लिम वैज्ञानिक या विद्वान की बात न कर, हम कुछ ऐसे कलाकारों-वास्तुविदों का जिक्र करेंगे जो ताजमहल के निर्माण से जुड़े रहे. हालांकि, एक बात से सभी इतिहासकार एकमत हैं कि मुगल बादशाहों के दौर में, किसी चीज के दस्तावेजीकरण पर खुद मुगल बादशाहों की निगरानी होती थी. इसी वजह से, हमारे पास ताजमहल की निर्माण प्रक्रिया से जुड़े बेहद कम सुबूत हैं. लगभग दो सदियों तक, ताजमहल के निर्माण का श्रेय बादशाह शाहजहां को मिली दैवीय प्रेरणा को दिया जाता रहा. जाहिर है, इसके पीछे उनकी दिवंगत बीवी को समर्पण और प्यार की भावना भी थी. वैसे सचाई यह है कि शाहजहां के सपने को सच करने के वास्ते हजारों कलाकार और कारीगर पूरी लगन से इस काम में लगे हुए थे.
असल में, सन 1800 तक ब्रिटिशों ने हिंदुस्तान के तीन-चौथाई हिस्से पर नियंत्रण हासिल कर लिया था और ताजमहल की देखरेख का जिम्मा भी उनके पास आ गया था. अंग्रेजों ने जाहिर है, उसके बाद उसके विभिन्न हिस्सों की मरम्मत भी की.
इसी के दौरान उस्ताद ईसा का नाम फिजां में तैरने लगा. ताजमहल से जुड़ी कुछ पांडुलिपियां आगरा में मिलने लगीं और कहा गया कि फारसी में लिखे ये दस्तावेज 17वीं सदी की हैं और ताजमहल का मूल डिजाइन हैं. एक तुर्क उस्ताद ईसा का नाम, ताजमहल के वास्तुकार के तौर पर उछल गया. वैसे, अधिकतर इतिहासकार इन दस्तावेजों को स्थानीय ब्रिटिश मुखबिरों द्वारा उछाला गया मानते हैं.
वैसे, इतिहासकार मानते हैं कि उस्ताद ईसा का अस्तित्व जरूर रहा होगा, लेकिन वह महज नक़्शानवीस था, वास्तुकार नहीं. यानी, उस्ताद ईसा ने ज्यादा से ज्यादा ताजमहल की योजना को कागज पर उतारा होगा. हाल में हुए शोध बताते हैं कि ताजमहल का असली वास्तुकार फारस का वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी था, जो शाहजहां का दरबारी था.
ताजमहल पर शोध करने वाली अगुआ इतिहासकार एब्बा कोच ने लिखा है कि उस्ताद ईसा की कहानी काल्पनिक है और इसे ब्रिटिश अधिकारियों ने हाथो-हाथ लिया क्योंकि उन्हें यह साबित करना था कि ताजमहल असल में एक यूरोपियन ने बनवाया था. इससे वह एक मुगल इमारत पर अपने अलहदा तरीके से अपने स्वामित्व का दावा कर सकते थे.
बहरहाल, उस्ताद अहमद लाहौरी, जिनको अहमद मीमार भी कहा जाता था, उनके हिस्से दिल्ली के लाल किले का डिजाइन बनाने का श्रेय भी है.
बहरहाल, लाहौर में एक कब्र है जिसके रखवाले यह दावा करते हैं कि वह ताजमहल के डिजाइनर की है. यह दावा है कि इतावली विद्वान गेरोनिमो वेरोनियो जो कि वेनिस का रहने वाला था, और जिसे शाहजहां ने लाहौर किले में कैद रखा था, उसे 1640 में मृत्युदंड दिया गया. हालांकि, यह दावा कि ताजमहल का काम पूरा होने के बाद शाहजहां ने वेरोनियो को कत्ल करवा दिया, बाद में इतिहासकारों ने गलत बताया.
असल में, इस बात के पक्के और लिखित सुबूत मौजूद हैं कि पुर्तगाली ईसाई पादरी फादर जोसेफ डि कास्त्रो ने बादशाह के आदेश पर वेरोनियो का कत्ल किया था क्योंकि बादशाह नहीं चाहते थे कि कोई हिंदू या मुस्लिम एक ईसाई को मृत्युदंड दे. तथ्य यह है कि वेरोनियो से जुड़ा पूरा किस्सा लाहौर में ही हुआ था इसलिए ब्रिटिशों ने ताजमहल के वास्तु पर इतालवी दावा चढ़ा दिया. वेरोनियो लागौर के तहसील बाजार की एक हवेली में रहता था.
इतिहासकारों की राय है कि ताजमहल के शुरुआती नक्शे बेशक लाहौर में ही तैयार किए गए थे और उन्हें तैयार करने वाले उस्ताद अहमद लाहौरी ही थे. वह वजीर खान मस्जिद के पास पुरानी कोतवाली के पास एक घर में रहकर काम करते थे. उस काम में उनके साथ थे तुर्की के वास्तुकार इस्माइल एफेंदी, जिन्होंने गुंबद और गोलार्ध का ही डिजाइन बनाया था.
एक बार यह काम पूरा हो जाने के बाद उस्ताद अहमद ने अपने दोस्त कासिम खान को बुलाया जो लाहौर के ही थे और जो टकसाली में रहते थे. कासिम खान को गुंबदों पर चढ़ाने के लिए सोने के कंगूरे बनाने थे. इसलिए, ताजमहल के डिजाइन का काम विशेषज्ञों की मिलीजुली कोशिश मानी जानी चाहिए. आखिर में जो नक्शा खींचा गया उसे एक तुर्क और निष्णात नक्शानवीस उस्ताद ईसा और उस्ताद अहमद लाहौरी ने अंजाम दिया.
वैसे, वेरोनियो को लेकर आधिकारिक दरबारी दस्तावेज यही कहते हैं कि उसे मौत की सजा ताजमहल के डिजाइन को लेकर नहीं दी गई थी बल्कि उसकी वजह कुछ और ही थी. वह एक मशहूर सुनार और गहनों का डिजाइनर था. लेकिन दिक्कत यह थी कि वह सम्राट के परिवार के लिए आभूषण डिजाइन करते समय सोना चोरी कर लेता था. उस पर बहुत सारे बहुमूल्य रत्न और एक बेहद बड़ा हीरा चुराने का भी आरोप था. उसके घर से सारे गहने बरामद हुए थे और उसे मौत की सजा सुनाई गई थी. मुगल दस्तावेज बताते हैं कि उसे शहर के लाहौरी गेट से दो कोस दूर एक जगह पर दफनाया गया था.
असल में, वेरोनियो के नाम का दावा इस लिए भी कमजोर पड़ता है क्योंकि उस्ताद अहमद लाहौरी ने ताजमहल का डिजाइन तय करने के लिए दुनिया भर के विशेषज्ञ जुटाए थे. लाहौर के अपने दोस्त कासिम खान, जो गुंबद का स्वर्णिम कंगूरा डिजाइन कर रहे थे, उन्होंने दिल्ली से चिरंजी लाल को बुलवाया जो उस जमाने के मशहूर मौजेक पैटर्न डिजाइनर थे.
ईरान के शिराज से खुशनबीसी (कैलिग्राफी) के उस्ताद अमानत खान को बुलाया गया. पत्थर काटने के महारथी आमिर अली को बलोचिस्तान से बुलाया गया. तुर्की के उस्ताद ईसा और उस्ताद अहमद तो खैर मुख्य वास्तुकार थे ही. इनके अलावा मुल्तान के मोहम्मद हनीफ संगमरमर के टाइल्स बनाने में बेजोड़ थे. दिल्ली के मुकरीमत खान और शिराज के मीर अब्दुल करीम इस कामकाज के मुख्य पर्यवेक्षक और प्रशासक थे.
इस काम के लिए किस कलाकार और कारीगर को कितना पैसा मिला यह भी जानना बेहद दिलचस्प होगा. मुख्य नक्शानवीस मास्टर ईसा को एक हजार रुपया दिया गया था, आज के हिसाब से उनको 333 तोला सोना या 13.3 करोड़ रुपए दिए गए थे. उस्ताद इस्माइल खान रूमी, जो कि गुंबद बनाने के विशेषज्ञ थे, उन्हें 500 रुपए दिए गए थे. समरकंज के मोहम्मद शरीफ को, जो शिखर बनाने के लिए आए थे, उन्हें 500 रुपए, लाहौर के कासिम खान को 295 रुपए, कांधार के मोहम्मद हनीफ, जो मुख्य राजमिस्त्री थे, को 1000 रुपए, मुल्तान के मोहम्मद सईद को, जो विशेषज्ञ राजमिस्त्री थे को 590 रुपए, और एक अन्य उस्ताद राजमिस्त्री मुल्तान के अबू तोरा को 500 रुपए दिए गए थे.
शिराज के कैलिग्राफर अमानत खान को 1000 रुपए और एक अन्य कैलिग्राफर, बगदाद के मोहम्मद खान को 500 रुपए अदा किए गए थे. सीरियो के रौशन खान को 300 रुपए दिए गए.
चिरंगी लाल, मुन्नू लाल और छोटू लाल के जड़ाऊ काम करने वाले परिवार को 800, 380 और 200 रुपए दिए गए थे. इस पैमाने पर खासा भुगतान यह बताता है कि किस स्तर के कौशल की जरूरत इस काम में रही होगी.
अब हम उस मशहूर किंवदंती की बात करते हैं कि शाहजहां ने ताजमहल का काम पूरा होने के बाद उस्ताद अहमद लाहौरी की आंखें निकलवा दीं और हाथ कटवा दिए थे, ताकि वह दोबारा ऐसा कोई डिजाइन न बनवा सकें. लेकिन, इस बात में कोई दम नहीं है. उनके परिवार के पाकिस्तान में दस्तावेज यह साबित करते हैं कि उस्ताद अहमद लाहौरी की मौत प्राकृतिक तरीके से हुई थी.
सचाई यह है कि उस्ताद अहमद काम पूरा होने के बाद लाहौर लौट गए थे जहां उनके बेटों ने निर्माण कार्य का शानदार कारोबार खड़ा कर लिया था. उनकी मौत के वक्त उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी.