यूनानी चिकित्सा को व्यवसाय नहीं, जनसेवा का माध्यम बनाना चाहिए: हकीम अजमल खान के परपोते मसरूर अहमद खान

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 13-02-2025
Unani medicine should be made a means of public service, not a business: Masroor Ahmed Khan, great grandson of Hakim Ajmal Khan
Unani medicine should be made a means of public service, not a business: Masroor Ahmed Khan, great grandson of Hakim Ajmal Khan

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ऑल इंडिया यूनानी कांग्रेस द्वारा वल्र्ड यूनानी मेडिसिन डे के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का संयोजन सैयद अहमद खान की देखरेख में हुआ. संगोष्ठी का विषय "तिब्ब-ए-यूनानी: समस्या और समाधान" रहा, जिसमें विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों, सांसदों और यूनानी चिकित्सा विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.

इस अवसर पर हकीम अजमल खान की सेवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और यूनानी चिकित्सा की वर्तमान चुनौतियों और उनके समाधान पर खुलकर चर्चा हुई. कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का विमोचन किया गया और देशभर से आए चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों को सम्मानित किया गया.

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यूनानी चिकित्सा को व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए: मसरूर अहमद खान

इस कार्यक्रम के सम्माननीय अतिथि और हकीम अजमल खान के परपोते मसरूर अहमद खान ने अपने संबोधन में कहा कि यूनानी चिकित्सा एक कला और सेवा का माध्यम है, इसे धन कमाने का साधन नहीं बनाना चाहिए.

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उन्होंने यूनानी चिकित्सा विशेषज्ञों और यूनानी दवा कंपनियों के मालिकों से अपील की कि वे इस चिकित्सा पद्धति को मात्र व्यावसायिक दृष्टिकोण से न देखें, बल्कि इसे जनता की सेवा के रूप में अपनाएं.

उन्होंने कहा, "हमारे पूर्वजों ने यूनानी चिकित्सा को मानवता की सेवा के लिए अपनाया था. हकीम अजमल खान ने कभी इसे धन अर्जित करने का माध्यम नहीं बनाया, बल्कि इसे एक सामाजिक सेवा के रूप में विकसित किया। हमें भी उनके नक्शे-कदम पर चलना चाहिए."

उन्होंने यह भी कहा कि यूनानी चिकित्सकों को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ तालमेल बैठाते हुए इस पद्धति को अधिक प्रभावी बनाना चाहिए.

यूनानी चिकित्सा के प्रचार-प्रसार के लिए सहयोग को तैयार: सांसद रोची वीरा

इस अवसर पर मुरादाबाद से लोकसभा सांसद रोची वीरा ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि "यूनानी चिकित्सा के प्रचार-प्रसार की आज सबसे ज्यादा जरूरत है. मैं इस चिकित्सा पद्धति के विकास और विस्तार के लिए हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार हूं."

उन्होंने कहा कि सरकार को यूनानी चिकित्सा के लिए ठोस योजनाएं बनानी चाहिए, जिससे यह अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे और लोगों को इसका लाभ मिले.

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यूनानी चिकित्सा से जुड़ी समस्याओं को संसद में उठाने का आश्वासन

महाराष्ट्र के लातूर से सांसद डॉ. शिवाजी बंडप्पा कलगे ने कार्यक्रम में भाग लेते हुए कहा कि यूनानी चिकित्सा विशेषज्ञों की समस्याओं को संसद में उठाने के लिए वे हमेशा तैयार हैं.

उन्होंने कहा, "यदि यूनानी चिकित्सा विशेषज्ञों को किसी भी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो वे हमें अपनी समस्याओं से अवगत कराएं. हम इन्हें संसद में उठाएंगे और आयुष मंत्रालय से समाधान की मांग करेंगे."

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यूनानी चिकित्सा में शोध और गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में हिमालय ड्रग्स कंपनी के एमडी डॉ. सैयद मोहम्मद फारूक ने यूनानी चिकित्सा के विकास में शोध की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि यूनानी चिकित्सा में शोध और नवाचार को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है.

उन्होंने कहा, "यूनानी चिकित्सा में रुचि रखने वाले लोग बढ़ रहे हैं, लेकिन हमें ईमानदारी और समर्पण के साथ दवाइयां तैयार करनी होंगी. हमें आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ तालमेल बिठाते हुए यूनानी चिकित्सा को और प्रभावशाली बनाना होगा."

हकीम अजमल खान का विजन आज भी प्रासंगिक

जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन, प्रोफेसर एस.एम. आरिफ जैदी ने हकीम अजमल खान के योगदान को याद करते हुए कहा कि वे न केवल एक महान यूनानी चिकित्सक थे, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक भी थे.

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उन्होंने कहा, "हकीम अजमल खान का विजन और मिशन आज भी हमारा मार्गदर्शन करता है. उनके योगदान को याद रखना और उनके सिद्धांतों को अपनाना बेहद जरूरी है. हमें उनसे सीखना चाहिए कि कैसे उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी यूनानी चिकित्सा को आगे बढ़ाया."

हकीम अजमल खान के नाम पर मेडिकल संकाय की मांग

ऑल इंडिया तिब्बी यूनानी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अहमद ने हकीम अजमल खान को जामिया मिल्लिया इस्लामिया का असली संस्थापक बताते हुए कहा कि उनके योगदान को उचित सम्मान नहीं दिया गया है.

उन्होंने कहा, "हकीम अजमल खान का जामिया मिल्लिया इस्लामिया के निर्माण में अहम योगदान था, लेकिन उनके नाम पर कोई विभाग या संकाय नहीं है. मैं भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करता हूं कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बन रहे मेडिकल संकाय का नाम हकीम अजमल खान के नाम पर रखा जाए."

कार्यक्रम में हकीम अजमल खान को श्रद्धांजलि

इससे पहले, कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सैयद अहमद खान ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि हकीम अजमल खान सिर्फ एक चिकित्सक नहीं, बल्कि एक महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि, इस्लामी विद्वान और समाज सुधारक थे.

उन्होंने कहा, "हकीम अजमल खान न केवल यूनानी चिकित्सा के जनक थे, बल्कि वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया और यूनानी मेडिकल कॉलेज के संस्थापक भी थे. हमें उनके योगदान को हमेशा याद रखना चाहिए और उनके विचारों को आगे बढ़ाना चाहिए."

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सम्मान समारोह और समापन

कार्यक्रम में देशभर से आए यूनानी चिकित्सा विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. अब्दुल्लाह रऊफ की कुरान तिलावत और हकीम नईम कौसर की नात-ए-नबी से हुई. इस अवसर पर हकीम अरबाबुद्दीन, डॉ. उजैर बकाई, डॉ. मोहम्मद असद, डॉ. इमरान, हकीम मुर्तजा सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे.

इस संगोष्ठी ने यूनानी चिकित्सा के महत्व, उसकी चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर व्यापक चर्चा का मंच प्रदान किया. हकीम अजमल खान का योगदान भारतीय चिकित्सा जगत में अमिट है और उनके विचारों को आगे बढ़ाने की जरूरत है.

यूनानी चिकित्सा को केवल व्यवसाय के रूप में नहीं, बल्कि एक जनसेवा का माध्यम बनाने की जरूरत है, ताकि यह चिकित्सा पद्धति आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित और प्रभावशाली बनी रहे.