डॉ. रेशमा रहमान
"जब मुस्लिम ड्राइवर नहीं होते, तो गुवाहाटी की रफ्तार थम जाती है."यह वाक्य सुनने में भले ही अतिशयोक्ति लगे, लेकिन गुवाहाटी की सड़कों पर दिन-रात दौड़ती गाड़ियां और उनके पीछे बैठी मेहनतकश आत्माएं इस सच्चाई की गवाही देती हैं.
गुवाहाटी, असम का सबसे बड़ा और उत्तर-पूर्व भारत का व्यावसायिक और शैक्षणिक केंद्र, अपनी तेज़ रफ्तार ज़िंदगी के लिए जाना जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस रफ्तार को बनाए रखने वाले वे लोग कौन हैं, जो हर मौसम, हर परिस्थिति में आपको आपकी मंज़िल तक पहुंचाते हैं?
गुवाहाटी में लगभग 8000 मुस्लिम ड्राइवर रोज़ सड़कों पर उतरते हैं – टैक्सी, ऑटो, बस, रैपिडो, उबर या प्राइवेट गाड़ियाँ चलाते हुए. ये लोग सिर्फ ड्राइवर नहीं, बल्कि लाखों लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हैं.वे छात्रों को स्कूल पहुंचाते हैं, कर्मचारियों को ऑफिस, मरीज़ों को अस्पताल और सैलानियों को मंदिरों तक.
इनमें से ज़्यादातर ड्राइवर असम के गांवों, पहाड़ी इलाक़ों और सीमावर्ती जिलों से आते हैं, जैसे – बारपेटा, धुबरी, नगांव, गोलपाड़ा और करीमगंज. यह न केवल रोज़गार का ज़रिया है, बल्कि आत्मनिर्भरता और सम्मान से जीने की राह भी है.
गुवाहाटी के ड्राइवर मुफज्जुल हुसैन बताते हैं कि यहां 75% से अधिक ड्राइवर अपनी खुद की गाड़ियाँ चलाते हैं.“यह सिर्फ पेशा नहीं, बिज़नेस है. कोई और मालिक नहीं – हम खुद अपने भविष्य के निर्माता हैं.”
यहां एक ड्राइवर की औसत आय ₹40,000 से ₹50,000 प्रति माह है, जो त्योहार या पर्यटन के समय और भी बढ़ जाती है. यदि कोई शराब या जुए की लत से दूर रहे, तो मकान, ज़मीन और बच्चों की अच्छी शिक्षा तक की राह भी इस पेशे से मुमकिन है.
गुवाहाटी में ड्राइविंग के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है.एक मामूली निवेश में लाइसेंस और ट्रेनिंग से करियर की शुरुआत की जा सकती है. इससे उन युवाओं को राहत मिलती है जो कम पढ़े-लिखे हैं लेकिन मेहनती हैं.
ड्राइवरों का यह तबका असम के पारंपरिक व्यवसायों – कृषि, पशुपालन और हस्तशिल्प – से निकलकर आधुनिक शहर में रोज़गार की नई परिभाषा गढ़ रहा है.
दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों में जहां मेट्रो की रफ्तार ने बसों और टैक्सियों को पीछे छोड़ दिया है, वहीं गुवाहाटी में अभी भी परिवहन का मुख्य आधार है – प्राइवेट वाहन नेटवर्क.
शहर में आज भी लोगों की पहली पसंद है –
उबर और रैपिडो
ऑटो और टैक्सी
किराए की कार और मिनी बस
इस पूरे नेटवर्क की कमान मुस्लिम ड्राइवरों के हाथों में है, जो शहर के हर कोने को जोड़ने का काम करते हैं.
ईद, रमज़ान और अन्य मुस्लिम त्योहारों के समय गुवाहाटी की रफ्तार अचानक सुस्त पड़ जाती है."लोग कैब बुक करते हैं, पर ड्राइवर नहीं मिलते. गाड़ियाँ खड़ी होती हैं, और यात्रियों की कतारें लग जाती हैं."
यह स्थिति उस सामाजिक सच्चाई को उजागर करती है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज करते हैं – कि गुवाहाटी का ट्रांसपोर्ट सिस्टम मुस्लिम ड्राइवर्स के बिना अधूरा है.
शहर के अलग-अलग हिस्सों में ड्राइवर एसोसिएशन सक्रिय हैं – बेलटोला, पलटन बाजार, नारंगी जैसे इलाकों में इनके कार्यालय हैं, जो ड्राइवरों के अधिकार, सुरक्षा और ज़रूरतों को लेकर काम करते हैं.दुर्घटनाएं, पुलिस-प्रशासन से उलझन या आपसी विवाद – हर मसले पर एसोसिएशन की भूमिका सराहनीय रही है.
हालांकि 95% ड्राइवर असम के हैं, लेकिन बिहार और अन्य हिंदी भाषी राज्यों के कुछ ड्राइवर टूरिज्म सेक्टर से जुड़े हैं.
ये लोग खासकर माँ कामाख्या मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले पर्यटकों को सेवा देते हैं, जो देश-विदेश से आते हैं.
उनकी हिंदी बोलने की योग्यता उन्हें इस सेक्टर में बेहतर सेवा देने में मदद करती है.
गुवाहाटी के मुस्लिम ड्राइवरों की कहानी सिर्फ रोजगार की नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाने की कहानी है. वे समाज को जोड़ने वाले, रफ्तार को बनाए रखने वाले और ज़िंदगी को आसान बनाने वाले हैं.
आज जब देश में बार-बार धर्म के नाम पर सामाजिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है, तब ये कहानी याद दिलाती है कि –"समाज की गाड़ी चलाने के लिए हर इंसान का योगदान ज़रूरी है – चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो.
(लेखिका: डॉ. रेशमा रहमान। सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता, यूएसटीएम)