ज़ायक़ा बिहार का: गया की बाक़रखानी की कहानी

Story by  सेराज अनवर | Published by  onikamaheshwari | Date 08-10-2023
Taste of Bihar: The story of Gaya's Bakarkhani
Taste of Bihar: The story of Gaya's Bakarkhani

 

सेराज अनवर/ पटना

देश में खान-पान पर ख़ास तवज्जो दी जाती है. बात चाहे अवधि लखनऊ की हो या हैदराबाद की, कश्मीर की हो या राजघराना राजस्थान की या फिर बिहार की.व्यंजन हर ज़माने में स्वाद का मालिक रहा है. इसका ज़ायक़ा हो या या लवाज़मात. उसी कड़ी में एक ज़ायक़ादार चीज़ है बाक़रखानी. बाक़रखानी पटना में भी बनती है और लखनउ में शाही बाक़रखानी.

लेकिन,कहते हैं गया की बाक़रखानी नहीं खाया तो क्या खाया? न सिर्फ़ बिहार बल्कि देश-विदेश के रिश्तेदार और दोस्त-अहबाब को पता चल जाये कि आप गया जाने वाले हैं तो बाक़रखानी की फ़रमाइश ज़रूर होती है.गया इसका हब है.बिना बाक़रखानी के बेटियां ससुराल नहीं जातीं. गया में 21 से 51 तक बाक़रखानी देकर बेटियों की विदाई की बहुत पुरानी परम्परा है.

शादी में 101 से 15I तक बाक़रखानी का नेग देकर भेजा जाता है. रमज़ान की शान है बाक़रखानी.इसकी चमक-दमक और ज़ायक़ा लोगों को अपनी तरफ़ खिंचती है. हालांकि,इसके दर में इज़ाफ़ा हुआ है बावजूद इसके अभी भी आम आदमी के पहुंच तक है.

पटना के सब्ज़ीबाग़ और गया के छत्ता मस्जिद इलाक़ा में दाख़िल होते ही बाक़रखानी की भीनी-भीनी ख़ुशबू खिंचने लगती है. बाक़रखानी को बनाने में ख़ूब मेहनत लगती है तब जाकर इसका स्वाद में मज़ा आता है.गया को बाक़रखानी की मंडी भी कह सकते हैं.गया की बाक़रखानी देश- विदेश में अपने स्वाद के लिए मशहूर है.

कैसे बनती है बाक़रखानी?

पहले मैदा में चीनी, दूध, इलाइची, खोवा, रिफाइन, नारियल का बुरादा, चेरी, ड्राइ फ्रुट आदि को मिलाया जाता है. उसके बाद जरूरत के अनुसार पानी डालकर काफी देर तक गूंथा जाता है.इसके बाद बेला जाता है. फिर मशीन से गोल-गोल आकार में काटने के बाद भट्ठी में डाला जाता है. 20 मिनट के बाद निकाल लिया जाता है. उस पर रिफाइन लगाकर पॉलिश की जाती है. अब बकरखानी तैयार है.

बाक़रखानी की ख़ासियत यह है कि इसे बहुत दिनों तक लोग अपने-अपने घरों में रखते हैं. हफ्ता तक यह ख़राब नहीं होता. गरम करने के बाद ताज़ी बाक़रखानी का स्वाद मिलता है. अमूमन बाक़रखानी को तैयार करने में मैदा का सबसे ज्यादा उपयोग होता है. प्रतिदिन 7से 8क्विंटल मैदा की खपत होती है. इसकी शुरुआत मो. सुलेमान ने की थी.उन्होंने दो किलो मैदा से इसकी शुरुआत की थी.

आज इसका स्वरूप व्यापक हो गया है. यहां के मुख्य मंडी में बाक़रखानी को तैयार करने के लिए पांच से छह कारख़ाना है. जहां सैकड़ों लोग दिन-रात मेहनत कर उसे तैयार करते हैं. इसे मुख्य रूप से गया के छत्ता मस्जिद,पंचायती अखाड़ा,नादरागंज,मारूफगंज,समेत अन्य मुस्लिम मुहल्लों में तैयार किया जाता है.

बाक़रखानी की नामी-गिरामी दुकान छत्ता मस्जिद और जामा मस्जिद रोड में है. छत्ता मस्जिद में सुल्तान की दुकान काफी पुरानी और ब्रांडेड है. तीन सौ ग्राम वाली बाक़रखानी की कीमत 40 और 450 ग्राम की 70 रुपये है.

इसे मुस्लिम समुदाय के अलावे अन्य समाज के लोग भी बेहद पंसद करते हैं.अन्य समाज के लोग इसे बाक़रखानी के नाम से नहीं बल्कि मीठी रोटी कहते हैं. कारण यह बहुत ही मुलायम और स्वादिष्ट होती है. वैसे तो इसकी बिक्री साल भर होती है, पर रमजान के दिनों में मांग काफी बढ़ जाती है.रमज़ान महीने में सबसे ज़्यादा यानी 30 से 35 टन बाक़रखानीकी खपत होती है.

मुस्लिम शादियों के वक़्त भी इसकी बिक्री बढ़ जाती है. बारातियों का स्वागत भी बाक़रखानी से किया जाता है.बिरयानी के साथ बाक़रखानी का होना लाज़मी है. इसका सालाना कारोबार करीब साढ़े तीन करोड़ का है.

इन देशों में भी है डिमांड

विदेशों में रह रहे लोग भी गया की बाक़रखानी क़ायल हैं. इसकी मांग अमेरिका,इंग्लैंड,सउदी अरब,इराक,बांग्लादेश,पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, चीन, भूटान, नेपाल आदि देशों में है. खास तौर से वहां इस इलाके या बिहार के रहने वाले लोग तो मंगाते ही मंगाते हैं, यहां से लोग संदेश के रूप में भेजते हैं.भारत में राउरकेला,कोलकाता,दिल्ली,रांची,हजारीबाग़ आदि में भी गया की बाक़रखानी के शौक़ीन हैं. घरों में आने वाले आगत अतिथियों को भी इसे परोसा जाता है.

बाक़रखानी को बच्चे,महिला और बुजुर्ग सबसे ज्यादा पंसद करते हैं.बाक़रखानी की शुरुआत करने वाले सुलेमान के पुत्र मो. जावेद बताते हैं कि शहर में पहली बार बाक़रखानी उनके पिता ने बनाई थी. उनके इंतकाल के बाद भी परिवार ने इसे छोड़ा नहीं. वे लोग 39 वर्षो से इस पेशे से जुड़े हैं. इसमें कम लागत में अच्छी आय हो जाती है. चार लोगों को रोजगार भी मिल जाता है. काम करने वाले लेबर वगैरह भी होते हैं.पहले के बनिस्बत बाजार भी बड़ा हो गया है.लोग विदेशों से भी ऑर्डर देकर मंगाते हैं.

पटनिया बाकरखानी के भी शौक़ीन

गया के बाद बिहार में पटनिया बाक़रखानी भी पसंद की जा रही है.राजधानी के सब्जीबाग, फुलवारीशरीफ, पटना सिटी के आलमगंज, सदर गली, खाजेकलां, सुल्तानगंज समेत अन्य मुहल्लों के बेकरी में बाक़रखानी तैयार किया जाता है. कारोबारी रिजवान, नूर, साजिद व असलम के मुताबिक़ पटनियां बाक़रखानी अपने लज़ीज़ स्वाद के लिए जानी जाती है.

कभी पटना से बाक़रखानी मुंबई, दिल्ली, कोलकाता व झारखंड तक भेजी जाती थी. उन्होंने बताया कि महंगाई का असर इस पर भी पड़ा है. बनाने की लागत बढऩे से इसकी कीमत में 15 से 20 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.विशेष रूप से माहे रमजान के मौके पर पटनिया बाक़रखानी की मांग काफी बढ़ जाती है.

इसकी खरीदारी में उछाल ईद तक चलती है. पटनियां बाक़रखानी की मांग आम दिनों में कम है. जबकि गया में रमज़ान बाद भी हर रोज़ बाक़रखानी जलवाअफ़रोज़ रहती है. गया के तुलना में पटनिया बाक़रखानी की क़ीमत भी अधिक है. छोटी शाही बाक़रखानी 45 से 55 रुपये प्रति पीस ,बड़ी शाही बाक़रखानी 50 से 80 रुपये प्रति पीस ,देसी घी की बाक़रखानी 80 से 150 रुपये प्रति पीस है.