ईद उल अज़हा पर विशेष : इस्लाम की बुनियाद है स्वच्छता

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 14-06-2024
Special on Eid ul Azha: Cleanliness is the foundation of Islam
Special on Eid ul Azha: Cleanliness is the foundation of Islam

 

-फ़िरदौस ख़ान

अफ़सोस और शर्म की बात है कि मुसलमानों की एक बड़ी आबादी साफ़-सफ़ाई पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं देती. ईद उल अज़हा यानी बक़रीद पर मुस्लिम इलाक़ों में गंदगी की भरमार रहती है. क़ुर्बानी के बाद जानवरों के अवशेषों को यहां-वहां फेंक दिया जाता है.जबकिइस्लाम में पाकी यानी साफ़-सफ़ाई को बहुत ज़्यादा अहमियत दी गई है.

अगर जिस्म या लिबास पर गंदगी लग जाए, तो फ़ौरन उसे साफ़ किया जाता है. पेशाब की एक बूंद लग जाने पर बहुत बड़ा अज़ाब है. क़ुरआन और हदीसों में साफ़-सफ़ाई के बारे में तफ़सील से बताया गया है.

हदीसों में सफ़ाई का हुक्म

अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि पाकी आधा ईमान है.(सही मुस्लिम)

इस एक हदीस से ही इस्लाम में पाकी की अहमियत का पता चल जाता है.आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि बेशक अल्लाह पाक है और वह पाकीज़गी को पसंद करता है.(तिर्मिज़ी)

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि जितना हो सके उतना पाक रहने की कोशिश करो. हक़ीक़त में  अल्लाह ने इस्लाम की बुनियाद पाकी पर रखी है. इसलिए पाक लोगों के अलावा कोई भी जन्नत में दाख़िल नहीं हो सकता. (कंज-उल-उम्माल)

क़ुरआन में सफ़ाई का हुक्म

क़ुरआन में बार-बार पाकी का ज़िक्र करते हुए लोगों को पाक साफ़ रहने का हुक्म दिया गया है.क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि इसी तरह हमने तुम्हारे दरम्यान तुममें से ऐसे रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा, जो तुम्हारे सामने हमारी आयतें पढ़ते हैं और तुम्हारे नफ़्स को पाक करते हैं और तुम्हें किताब यानी क़ुरआन और हिकमत की तालीम देते हैं और तुम्हें वह सब सिखाते हैं, जो तुम नहीं जानते थे. (2:151)

क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि ऐ चादर ओढ़ने वाले महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !उठो और लोगों को अज़ाब से ख़बरदार करो. और अपने परवरदिगार की बड़ाई बयान करो. और अपने लिबास को पाक रखो. और नापाकी से दूर रहो. (74:1-5)

क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि बेशक अल्लाह तौबा करने वालों से मुहब्बत करता है और वह पाक साफ़ रहने वालों से मुहब्बत करता है. (2:222)

 

दरअसल इस्लाम सिर्फ़ बाहरी यानी जिस्मानी सफ़ाई को ही अहमियत नहीं देता है, बल्कि दिल की सफ़ाई को भी उतनी ही अहमियत देता है. दिल में किसी के लिए भी किसी भी तरह की बुराई न होना ही दिल की पाकी है.क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि ऐ आदम अलैहिस्सलाम की औलाद ! तुम हर नमाज़ के वक़्त और मस्जिद के क़रीब ज़ीनत इख़्तियार कर लिया करो.(7:31)

यानी पाक साफ़ रहने के साथ ही ख़ुद को संवार कर रखो. क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि जब अल्लाह ने तुम्हें चैन व सुकून देने के लिए तुम पर नींद तारी कर दी और तुम पर आसमान से पानी बरसाया, ताकि उसके ज़रिये तुम्हें पाकीज़गी अता करे और तुमसे शैतान के वसवसों की ग़लाज़त को दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और तुम्हारे क़दम अच्छी तरह जमा दे.   (8:11)

क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि ऐ ईमान वालो ! जब तुम नमाज़ के लिए उठो, तो अपने चेहरों और अपने हाथों को कोहनियों तक धो लिया करो और अपने सरों का मसह करो और अपने पांव भी टख़नों तक धो लिया करो और अगर तुम जनाबत की हालत में हो, तो तुम गु़स्ल करके ख़ूब पाक हो जाओ.

और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुम में से कोई हाजत से फ़ारिग़ होकर आया हो या तुमने औरतों से सोहबत की हो और तुम्हें पानी न मिल सके, तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लिया करो यानी पाक मिट्टी से अपने चेहरों और अपने पूरे हाथों का मसह कर लो. अल्लाह नहीं चाहता कि वह तुम पर किसी भी तरह की कोई सख़्ती करे, लेकिन वह यह चाहता है कि तुम्हें पाक करे और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दे, ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार बन जाओ.(5:6)

अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम लोगों के लिए एक कामयाब ज़िन्दगी की मिसाल पेश की है.क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि ऐ ईमान वालो ! हक़ीक़त में तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेहतरीन मिसाल मौजूद है. हर उस शख़्स के लिए जो अल्लाह और आख़िरत की उम्मीद रखता हो और अल्लाह का ज़िक्र कसरत से करता हो.(33:21)

क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिससे तुम्हें मना करें, तो उससे बाज़ आओ. (59:7)

अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि जिसने मेरी बात मानी उसने अल्लाह की बात मानी और जिसने मेरी नाफ़रमानी की उसने अल्लाह की नाफ़रमानी की.(सही बुख़ारी)

बक़रीद पर सफ़ाई रखें

ये बहुत ही अफ़सोस और शर्म की बात है कि मुसलमानों की एक बड़ी आबादी साफ़-सफ़ाई पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं देती. ईद उल अज़हा यानी बक़रीद पर मुस्लिम इलाक़ों में गंदगी की भरमार रहती है. क़ुर्बानी के बाद जानवरों के अवशेषों को यहां-वहां फेंक दिया जाता है.

इससे राहगीरों को परेशानी होती है. इतना ही नहीं, गंदगी की वजह बीमारियां फैलने का ख़तरा भी बना रहता है. इस तरह की बातों से कुछ लोगों को बोलने का भी मौक़ा मिल जाता है. इसलिए ज़रूरी है कि क़ुर्बानी चहारदीवारी के भीतर करें और अवशेषों का निपटारा भी फ़ौरन करें, ताकि त्यौहार की ख़ुशियां क़ायम रहें. अगर क़ुर्बानी की वजह से किसी को ज़रा सी भी तकलीफ़ हुई, तो क्या क़ुर्बानी बारगाहे- इलाही में क़ुबूल होगी? ज़रा सोचिए.

(लेखिका आलिमा हैं)