-फ़िरदौस ख़ान
"मैं एक शिक्षिका हूं जो जीना नहीं सिखाती, बल्कि मैं एक ऐसी शिक्षिका हूं जो सिखाने के लिए जीती है."ये शब्द हैं हैदराबाद की प्रोफ़ेसर डॉ. ज़रीना सुल्ताना के, जो वहां के आईएसएल इंजीनियरिंग कॉलेज में स्टूडेंट्स वेलफ़ेयर में डीन के तौर पर कार्यरत हैं. उनके लिए ज़िन्दगी का मक़सद अपने छात्रों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना और उनके व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए काम करना है.
उनके लिए अध्यापन सिर्फ़ एक करियर नहीं है, बल्कि यह उनके वजूद का एक अहम हिस्सा है. वे शिक्षा से अलग करके ख़ुद को सोच ही नहीं पाती हैं.
उन्हें बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक़ था. पढ़ाई में अच्छी होने की वजह से उनके वालिद सैयद मोहम्मद अक़ील उन्हें डॉक्टर बनाने चाहते थे, लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. जब वे स्नातक में पढ़ रही थीं, तभी मिर्ज़ा मोहिब असग़र से उनका निकाह हो गया.
बाद में उन्हें जेद्दा जाना पड़ा. लेकिन शिक्षा से उनका नाता जुड़ा रहा. उनकी वालिदा ज़मरूद बेगम चाहती थीं कि वे अपनी पढ़ाई जारी रखें और अपने सपनों को पूरा करें. उन्होंने साल 1990में जेद्दा के इंटरनेशनल इंडियन स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू किया और यहीं से उनके प्रभावशाली करियर की बुनियाद रखी गई.
यहां तक़रीबन उन्नीस साल शिक्षण कार्य करने के बाद वे स्वदेश वापस आ गईं. हैदराबाद में उन्होंने दो प्री स्कूल फ्रैंचाइज़ी खोलीं, जिनमें सनशाइन प्री स्कूल और डे केयर और भारती विद्यालय कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग शामिल हैं. इसके बाद उन्होंने कॉलेज की तरफ़ रुख़ किया और आईएसएल इंजीनियरिंग कॉलेज में डीन के तौर पर नियुक्त हो गईं.
चूंकि उन्हें पढ़ाई में गहरी दिलचस्पी थी, इसलिए उन्होंने अध्यापन के साथ-साथ ख़ुद भी पढ़ना जारी रखा था. उन्होंने उस्मानिया यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने साल 2021में पोखरा के हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य में पीएचडी की उपाधि हासिल की.
इसके अलावा उन्हें डॉक्टर की तीन मानद उपाधियां प्रदान की गई हैं. उन्हें साल 2019में नेशनल वर्चुअल यूनिवर्सिटी ऑफ़ पीस एंड एजुकेशन ने शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने के लिए डॉक्टर की मानद उपाधि से सम्मानित किया.
फिर साल 2021में वर्ल्ड हुमन राइट्स प्रोटेक्शन कमीशन ने मानवाधिकार और सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए उन्हें डॉक्टर की मानद उपाधि से पुरस्कृत किया. इसके बाद साल 2023में पेरिस की द टेम्स इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर की मानद उपाधि से नवाज़ा.
शिक्षण के साथ-साथ वे सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी हुई हैं. जेद्दा के काउंसलर जनरल अफ़ज़ल अमानुल्ला की पत्नी परवीन अमानुल्ला ने साल 1998में इंडियन लेडीज़ कल्चरल एसोसिएशन का गठन किया था. इसमें उन्हें महासचिव नियुक्त किया गया. वे जब तक जेद्दा में रहीं, उन्होंने इस एसोसिएशन के तहत अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करवाया, जिन्हें ख़ूब सराहा गया.
लेखन
प्रोफ़ेसर डॉ. ज़रीना सुल्ताना एक कुशल लेखिका और कवयित्री भी हैं. वे विभिन्न विषयों पर लिखती हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें अ टेक्स्ट बुक ऑन चैट जीपीटी एंड आर्टफ़िशल इन्टेलिजन्स, ग्लोबल इशूज़ एंड चैलन्ज : जेंडर इक्वालटी एंड वीमेंस इम्पाउअर्मन्ट और बिजनेस कम्युनिकेशन एंड सॉफ़्ट स्किल शामिल हैं. ये प्रभावशाली पाठ्य पुस्तकें हैं. उनकी कविताओं की एक पुस्तक प्रकाशनाधीन है.
इसके अलावा उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में कई बार अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं. उन्हें ईएसएन पब्लिकेशंस और लंदन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ स्किल्स डेवलपमेंट लिमिटेड यूके द्वारा गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स-मान्यता प्राप्त दुनिया की सबसे मोटी अप्रकाशित पुस्तक की सम्पादक होने का प्रतिष्ठित गौरव प्राप्त है.
सम्मान
प्रोफ़ेसर डॉ. ज़रीना सुल्ताना को उत्कृष्ट कार्यों के लिए दो दर्जन से ज़्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें राष्ट्र प्रेरणा सम्मान, साउथ इंडिया वीमेन अचीवर्स अवार्ड और भारत गौरव श्री सम्मान प्रमुख रूप से शामिल हैं. ये पुरस्कार उनकी अटूट प्रतिबद्धता के प्रमाण हैं. ये कहना क़तई ग़लत नहीं होगा कि ये उपलब्धियां स्वाभाविक रूप से उनकी व्यक्तिगत जीत को दर्शाती हैं.
अपने तीन दशकों से अधिक लम्बे करियर में उन्होंने आलोचनात्मक सोच और बौद्धिकता को बहुत महत्व दिया है. उनके शिक्षण और प्रशासनिक दोनों ही दृष्टिकोणों में जिज्ञासा, सत्यनिष्ठा और सहानुभूति शामिल है। वे अपने छात्रों की शैक्षिक उन्नति के लिए उम्मीद से बढ़कर काम करती आ रही हैं.
शिक्षा में अंतर
प्रोफ़ेसर डॉ. ज़रीना सुल्ताना ने जेद्दा में भी शिक्षण कार्य किया है और अपने देश में भी वे इससे जुड़ी हुई हैं. इसलिए उन्हें दोनों ही जगहों की शिक्षा में फ़र्क़ अच्छी तरह से मालूम है. इस बारे में पूछने पर वे बताती हैं कि मध्य पूर्व में शिक्षा प्रणाली पर इस्लामी शिक्षाएं और मूल्य हावी हैं.
अधिकांश मध्य पूर्वी देश एक केंद्रीकृत शिक्षा प्रणाली के तहत काम करते हैं, जहां सरकार पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम प्रस्तुतियों को नियंत्रित करती है. सऊदी अरब जैसे कुछ देशों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूल हैं, जबकि अन्य में सह-शिक्षा संस्थान हैं.
अरबी मध्य पूर्वी शिक्षा में प्राथमिक भाषा के रूप में कार्य करती है. हालांकि वहां अंग्रेज़ी स्कूल भी हैं. आम तौर पर मध्य पूर्वी शिक्षा प्रणाली अपनी उच्च गुणवत्ता और स्थिति के लिए प्रसिद्ध है. वहां गणित, विज्ञान और भाषा अध्ययन पर ख़ासा ज़ोर दिया जाता है. वहां प्रतिमान परिवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय तर्ज़ पर शिक्षा पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
भारत का ज़िक्र करते हुए वे कहती हैं कि जहां तक भारत में शिक्षा प्रणाली का सवाल है, तो हमारा देश पदानुक्रमिक रूप से संरचित एक विविध और जटिल शिक्षा प्रणाली का दावा करता है. इसमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तर शामिल हैं. यह पाठ्यक्रम अकादमिक उत्कृष्टता, रटने और सीखने को प्राथमिकता देता है.
यहां की शिक्षा प्रणाली अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है, जो छात्रों को प्रवेश परीक्षाओं के लिए तैयार करती है. यहां बहुत सारे निजी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय भी हैं, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं. हमारे यहां आज तकनीकी शिक्षा पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है.
इसकी एक बड़ी वजह रोज़गार भी है. तकनीक का जितना फ़ायदा होता है, उतना ही नुक़सान भी होता है. मिसाल के तौर पर अगर किसी को हिसाब करना है, तो वह अपना दिमाग़ इस्तेमाल करने की जगह फ़ौरन कैलकुलेटर का सहारा ले लेगा. इससे उसका काम तो आसान हो जाएगा, लेकिन उसकी नैसर्गिक प्रतिभा का विकास नहीं हो पाएगा, बल्कि वह ख़त्म होने लगेगी. इसलिए हमें नैसर्गिक प्रतिभा को निखारने पर भी ध्यान देना होगा.
बहरहाल, प्रोफ़ेसर डॉ. ज़रीना सुल्ताना ने अपनी बहुआयामी प्रतिभा से शिक्षा जगत और साहित्य में एक अमिट छाप छोड़ी है और अनगिनत लोगों को प्रेरित किया है. वे युवाओं ख़ासकर लड़कियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं.